Aakha teez ka byaah - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

आखा तीज का ब्याह - 2

आखा तीज का ब्याह

(2)

वासंती कार से उतर कर धीरे धीरे सधे कदमों से यूनिवर्सिटी के हॉल की ओर चल पड़ी जहाँ दीक्षांत समारोह चल रहा था| हॉल की सजावट देखते ही बनती थी| आज यूनिवर्सिटी का ज़र्रा ज़र्रा जैसे वासंती की ही राह देख रहा था| जैसे ही उसने हॉल में प्रवेश किया सभी लोगों की निगाहें उसकी ओर उठ गई| वासंती के दिल की ख़ुशी चेहरे पर चमक बिखेर रही थी| वह ख़ुशी होती भी क्यों नहीं आखिर आज उसकी ज़िन्दगी का वो ख़ास दिन जो था जिसका उसने वर्षों पहले सपना देखा था और जिसके लिए उसने इतनी मेहनत की थी| उसने शिशु चिकित्सा विज्ञान में एम.एस. में पूरे विश्वविध्यालय में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये थे, और आज के दीक्षांत समारोह में उसे राज्यपाल द्वारा गोल्ड मैडल दिया जाने वाला था| यूं तो गोल्ड मेडल मिलना कोई खास बात नहीं है, हर साल किसी ना किसी को मिलता ही है पर शादीशुदा और एक बच्ची की माँ होने के कारण वासंती को गोल्ड मैडल मिलना खुद उसके लिए बहुत ख़ास था| यह उपलब्धी पाने के लिए उसे कितने पापड़ बेलने पड़े थे यह तो बस वही जानती थी|

अपनी कुर्सी पर बैठने से पहले उसने वहाँ मौजूद हर शख्स पर एक उड़ती सी नज़र डाली| सभी अपने होठों पर मुस्कान सजाये हुए थे| वासंती भी मुस्कुरा दी पर वह सबके दिलों का हाल अच्छे से जानती थी| वह जानती थी कि असल तो इस मोहक मुस्कान की आड़ में सभी अपनी जलन छुपा रहे थे| उस भीड़ में बस एक प्रतीक ही ऐसा शख्स था जिसकी मुस्कान सच्ची थी| जो उसकी इस उपलब्धि के लिए दिल से खुश था और गर्व अनुभव कर रहा था| वह प्रतीक का हाथ थाम कर बैठ गयी| जब प्रतीक उसके साथ था तो कोई और हो ना हो उसे परवाह नहीं थी|

आखिर वह घड़ी आ गयी जिसका वासंती को बेसब्री से इंतज़ार था| मंच से उसका नाम पुकारा गया| तालियों की गड़गड़ाहट के बीच हर तरफ़ से ‘वासंती....वासंती’ की आवाज़ आने लगी, वासंती के मित्र और उसके कॉलेज के साथी पूरे उत्साह से उसका नाम पुकार रहे थे| वासंती के लिए अपने नाम की यह पुकार और ये तालियाँ कोई नई बात नहीं थी, उसने कई साल पहले भी अपने नाम की ऐसी ही पुकार, ये तालियाँ सुन रखी थीं, पर तब की बात अलग थी तब तो वह जीत कर भी हार गई थी, उन लम्हों में जब उसकी आँखों में खुशी की चमक होनी चाहिए थी, गम के आंसू बह निकले थे| हाँ कुछ है! जो तब भी था उसके साथ और आज भी है, वह है प्रतीक का साथ| उस दुःख की घड़ी में भी प्रतीक ने ही उसे संभाला था और आज भी इस अवसर पर सबसे तेज़ तालियाँ वही बजा रहा था|

वासंती जैसे ही इठलाती हुई ही मंच की ओर बढ़ी प्रतीक ने उसे पीछे से आवाज़ दी ‘वासंती...वासंती’ और साथ ही झकझोर सा दिया, वह झुंझला गई और सवालिया निगाहों से प्रतीक की ओर देखने लगी|

“वासंती उठो! चाय ठंडी हो रही है”,....वासंती आँखें फाड़ कर प्रतीक की ओर देख रही थी, उसे प्रतीक आवाज़ तो सुन रही थी मगर समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है| प्रतीक उसकी ऐसी हालत देख कर हंस पड़ा और चाय की ट्रे लिए खड़ी आशा के होठों पर भी मुस्कान आ गई, और उन दोनों को अपना उपहास उड़ाते देख कर वासंती झेंप गयी और उसने तकिया उठा कर प्रतीक को दे मारा, “पता भी है मैं कितना अच्छा सपना देख रही थी, तुम्हें भी ही अभी मेरी नींद में ख़लल डालना था|”

“अच्छा हमें भी तो पता चले क्या सपना देख रही थी हमारी डॉ. वासंती? लगता है अवार्ड सेरेमनी की ख़ुमारी अभी उतरी नहीं है डॉ. साहिबा की|”

“कैसे उतरेगी हमें एम. एस. में गोल्ड मैडल मिला है प्रतीक ये कोई छोटी बात नहीं है|”

“हमें या तुम्हें?”

“हम दोनों तो एक थे ना फिर ये मेरा तुम्हारा कब से हो गया| वैसे भी मेरी इस सफलता में मुझसे ज्यादा तुम्हारा हाथ है|”

“नहीं तुम्हारी सफलता में तुम्हारी मेहनत का हाथ है, पर हाँ ये तुमने ठीक कहा हम दोनों एक हैं, और ये! ये है हमारी छोटी सी परी..|” प्रतीक ने मुस्कुराते हुए बगल में सोई नन्हीं वन्या के गाल पर चुम्बन ले लिया |

उसकी देखा देखी एक चुम्बन वासंती ने भी जड़ दिया| मम्मा पापा के इस असमय प्रेम प्रदर्शन से वन्या की नींद में खलल पड़ा जो उसे नहीं सुहाया और उसने अपना होठ बाहर निकाल कर रो देने जैसी मुख मुद्रा बना ली| प्रतीक ओर वासंती दोनों हंस पड़े| वासंती वन्या को करवट दिला कर थपकी दे फिर सुलाने का प्रयास करने लगी| इस बीच प्रतीक अपने फ़ोन में व्यस्त हो गया|

“गोल्ड मैडल की इस ख़ुमारी से बाहर निकलो मैडम, और सामान पैक करना शुरू करो|”

“सामान पैक करूँ! कहाँ जा रहे हैं हम? कहीं घूमने?” वासंती का स्वर में अभी भी कुछ शोख़ी थी|

“तुम्हारे गाँव|”

“मेरे गाँव! क्यों? माँ-बापू तो ठीक हैं ना? क्या हुआ है बताओ तो|” वासंती गाँव का नाम सुन कर घबरा गयी और उसने एक साथ कई सवाल दाग दिए| बापूजी को जबसे दिल का दौरा पड़ा था वह उनके लिए काफ़ी चिंतित रहती थी|

“हाँ वो बिलकुल ठीक हैं| और एक अच्छी खबर है, तुम्हें नौकरी मिल गयी है वो भी मेरे ही हॉस्पिटल में|”

“क्या? नौकरी! तुम्हारे हॉस्पिटल में! पर मैंने कब आवेदन किया?”

“भाई अब तुम गोल्ड मैडलिस्ट हो तो ऐसे अच्छे ऑफर तो आयेंगे ही| मुझे अभी अभी विनय ने मैसेज किया है व्हाट्स एप्प पर, ये देखो|”

“पर इसके लिए मुझे गाँव जाने की क्या जरुरत है?”

“सिर्फ़ तुम्हें नहीं हम दोनों को|”

“ठीक से बताओ ना, ये पहेलियाँ क्या बुझा रहे हो|”

वासंती ने फोन प्रतीक के हाथ से छीन लिया और व्यग्रता से मोबाइल स्क्रीन पर नज़र दौड़ाने लगी, तभी वन्या फिर कुनमुनाने लगी पर इस बार वासंती के पास उस पर ममता लुटाने का समय नहीं था, वह जोर से चिल्लाई, “आशा वनु जाग गयी है इसे ले जाओ|”

“तुम्हारे गाँव के एक बड़े कारोबारी अपने इलाके के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं| वे स्थानीय लोगों को किसी बड़े शहर की भांति हर सुख सुविधा उपलब्ध करवाना चाहते हैं ताकि वहां के लोगों को हर छोटी-छोटी बात के लिए बड़े शहरों का मुंह ना ताकना पड़े, जैसे कि अच्छी शिक्षा व चिकित्सा सुविधाएँ आदि| उन्होंने तुम्हारे गाँव के आसपास अच्छे स्कूल व कॉलेज खोले हैं और अब आधुनिक सुविधाओं से लैस हॉस्पिटल खोलने जा रहे हैं| इस हॉस्पिटल का लाभ तुम्हारे गाँव सहित आसपास के गांवों को भी मिलेगा|”

“उन्हें हमारे हॉस्पिटल की पोलीसिज़ व काम करने का तरीका बहुत पसंद है इसीलिए उन्होंने हमारे हॉस्पिटल को अपने इलाके में अपनी ब्रांच खोलने के लिए आमंत्रित किया था जिसे हॉस्पिटल मेनेजमेंट ने स्वीकार कर लिया है| उन्हें अपने हॉस्पिटल में अच्छे डॉक्टर्स की टीम चाहिए और उन्होंने खुद हम दोनों को सलेक्ट किया है|”

“पढ़ लिया मैंने, क्यों बोर कर रहे हो|”

“प्रतीक मैं यह जॉब ज्वाइन नहीं करुँगी| क्या रखा है वहां, ना ढंग की सड़कें हैं ना रहने के लिए अच्छे मकान और ना बिजली की ही सही तरीके से व्यवस्था| वन्या अब बड़ी हो रही है, अगले साल दो साल में हम इसे स्कूल में डालेंगे, वहाँ तो कोई ढंग का स्कूल भी शायद ही हो तो प्ले स्कूल की तो बात ही क्या| मैं अपनी बच्ची के भविष्य के साथ कोई खिलवाड़ नहीं कर सकती| मैं यहीं कोई नौकरी ढूढ़ लूंगी| इतने बड़े ना सही किसी छोटे हॉस्पिटल में तो मुझे नौकरी मिल ही जाएगी|” वासंती ने दृढ स्वर में कहा|

“नहीं ऐसी बात नहीं है वासंती| रहने के लिए घर का इंतजाम तो हो ही जायेगा, फ़िर हॉस्पिटल की तरफ से क्वार्टर्स तो बन ही रहे हैं| हाँ कुछ दिनों की दिक्कत तो होगी| बाकी सुविधाएँ हम जुटा लेंगे| जहाँ तक स्कूल की बात है तो मेरे ख्याल से वह तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि मैंने सुना है वह बिज़नेस टायकून एजुकेशन, खास तौर से गर्ल्स एजुकेशन को लेकर काफ़ी जागरूक हैं|”

“मैं अच्छे से जानती हूँ इन सो कॉल्ड बिज़नेस टायकूनज़ को| ये सब इनके बिज़नेस बढाने और प्रसिद्धि पाने के तरीके होते है और कुछ नहीं| कुछ संस्थाएं खोल दो और उसकी आड़ में अपना काला धन छुपाते रहो|”

प्रतीक मुस्कुरा दिया, “नहीं विश्वास करो, वह इस तरह की संस्था नहीं है, वह बहुत भले आदमी हैं, काफ़ी नाम है उनका अपने इलाके में| फिर हमारी कंपनी भी किसी ऐरे-गैरे से तो कोलेबरेशन करेगी नहीं|

“तुम समझते क्यों नहीं, वन्या तो अपने ननिहाल कभी गयी ही नहीं| ना ही उन लोगों ने उसे कभी देखा है| मुझे भी वहाँ गए कितना टाइम हो गया| बस आखिरी बार तुम्हारे साथ गयी थी शादी के बाद, और तुम जानते हो तब वहां हमारे साथ क्या हुआ था| उसके बाद तो जाना ही नहीं हो सका, हिम्मत ही नहीं हुई| पता नहीं हमें देख कर वो लोग कैसे रिएक्ट करेंगे| अगर किसीने वन्या को कुछ कर दिया तो...तो हम! हम क्या करेंगे प्रतीक|” वासंती घबरा गयी|

“ऐसा कुछ नहीं होगा, डॉक्टर्स की वहां पूरी टीम होगी| स्टाफ़ होगा फ़िर कोई कैसे वन्या को या तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता है बोलो| फ़िर ये भी तो सोचो कि वन्या कभी अपने ननिहाल नहीं गयी, इस बहाने उसका अपने ननिहाल से भी परिचय हो जायेगा|”

“पर हमारा वहाँ जाना जरुरी क्यों है? हम खुश हैं ना यहां अपनी इस छोटी सी दुनिया में|”

वासंती के सवाल के जवाब में प्रतीक ने उसकी ही लिखी ये पंक्तियाँ सुना डाली-

गुज़रता वक्त, ये बहता हर पल

दिला जाता है याद

उन सपनों की

हैं जो पूरे से,

फिर भी कुछ अधूरे से

उन अपनों की

हैं जो हमसे जुदा से

या थोड़े ख़फ़ा से

ख्वाहिश बस इतनी सी

बूंद बूंद रिसते इस पल को

हथेलियों में समेट लेने की

क्यों ना कर लूं मैं कोशिश

एक छोटी सी

मिटा कर दिलों के सारे गिले

फिर अपनों को पास लाने की

अवाक सी देखती रही वासंती अपने सामने बैठे प्रतीक को| कैसा इंसान है ये अपने साथ हुए हर दुर्व्यवहार को भूल कर वासंती के माता-पिता को मनाने चल दिया, सिर्फ़ उसके लिए|

“पर तुम समझते क्यों नहीं मैं वहाँ अकेले नहीं रह सकती|” वासंती की आँखों से आंसू बहने लगे|

“ भई मैं अपनी इतनी सुन्दर पत्नी को अकेले कहीं जाने भी नहीं दूंगा| तो ऐज़ सीनियर डॉक्टर या दूसरे शब्दों में कहूं तो ऐज़ योर बॉस मैं भी चल रहा हूँ|” प्रतीक ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा फिर वासंती का सर सहलाते हुए बोला, “अकेली कहाँ हो तुम मैं भी तो हूँ ना तुम्हारे साथ| हमेशा! जो भी होगा मिल कर झेलेंगे|”

प्रतीक के शब्दों से वासंती आश्वस्त सी हो गई| प्रतीक जब भी उसके साथ होता है वह निश्चिंत हो जाती है| उसने अपना सर प्रतीक के कंधे पर रख दिया| वह बस यूं ही बैठे रहना चाहती थी पर प्रतीक को हॉस्पिटल जाना था इसलिए वह उठ गया पर जाते-जाते फिर उसे कहता गया, “ज़्यादा मत सोचो जो भी होगा अच्छा ही होगा|”