Aakha teez ka byaah - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

आखा तीज का ब्याह - 5

आखा तीज का ब्याह

(5)

अभी तो बसंती इस नए माहौल में खुदको ढालने की कोशिश कर ही रही थी कि फ्रेशर्स पार्टी नाम की एक नयी मुसीबत उसके सर पर आ पड़ी| जबसे क्लास में वीणा मैम ने इस पार्टी के बारे में बताया है सभी लड़के लड़कियाँ ख़ुशी से उछल रहे थे पर वह तनाव में थी|

“सवीता, ये फरेसर पार्टी क्या होती है?”

“पहली बात मेरा नाम सविता नहीं श्वेता है दूसरा फरेसर पार्टी नहीं फ्रेशर्स पार्टी| तुम ठीक से बोलना कब सीखोगी बसंती| तुम्हारे इस लहज़े के कारण ही सब तुम्हारा मज़ाक उड़ाते हैं और फिर तुम बुरा मान जाती हो| थोड़ा तुम भी तो खुदको बदलने की, सुधारने की कोशिश करो|”

“कोसिस करती तो हूँ ना, थोड़ा टाइम तो लगेगा ही, बचपन से ऐसे ही बोला है एक ही दिन में कैसे छूट जायेगा सब| चल अब नाराज मत हो तू तो मेरी प्यारी बहन है ना, अब बता ये फ्रेशर पार्टी क्या बला है?” बसंती ने उसकी चिरौरी की|

“हर साल सीनियर्स कॉलेज में नए आये स्टूडेंट्स को एक पार्टी देते हैं जिसे फ्रेशर्स पार्टी कहते हैं|” यह सुनकर वासंती का हार्ट अटैक होते होते बचा| उसे कॉलेज का पहले दिन का अनुभव याद आ गया| बसंती को ऐसे घबराते हुए देख कर श्वेता जल्दी से कह उठी, “अरे घबराओ मत, इसमें सीनियर्स कोई गलत व्यवहार नहीं करते बल्कि रैगिंग की वजह से फ्रेशर्स के मन में आई कड़वाहट को दूर करने के लिए यह पार्टी रखी जाती है|”

श्वेता ने हालाँकि बसंती को अपनी तरफ़ से तसल्ली देने की बहुत कोशिश की पर उसके मन का डर नहीं निकाल सकी| चाहे कॉलेज हो या कैंटीन या फिर होस्टल हर जगह सिर्फ़ फ्रेशर्स पार्टी की ही बात होती रहती थी| जैसे जैसे पार्टी का दिन पास आता जा रहा था बसंती का दिल बैठा जा रहा था| वह पार्टी में ना जाने के बहाने ढूंढती रहती थी|

“बसंती तुमने पार्टी के लिए ड्रेस सलेक्ट कर ली, दिखाओ क्या पहन कर जाने वाली हो?”

“मैं चाहे कुछ भी पहन कर चली जाऊं वहां सब मेरा मज़ाक ही उड़ायेंगे|”

“ऐसा कुछ नहीं है, उस दिन तो सीनियर्स हम सभी की बारी बारी से खिंचाई कर रहे थे, हाँ, तुम थोड़ा अलग हो इसलिए तुम्हारे साथ थोड़ा ज्यादा हो गया| मैं भी तो तब तुम्हें कहाँ पसंद करती थी, और अब देखो हम दोस्त बन गए हैं ना| फिर भी अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि सब तुम्हारा मज़ाक बनाते हैं तो तुम सबको चौंका देना, इतने अच्छे से तैयार हो कर जाना कि सब तुम्हें देखते ही रह जाएँ| अच्छा चलो तुम मुझे अपनी सारी ड्रेसेज़ दिखाओ मैं पार्टी के लिए ड्रेस सलेक्ट करने में तुम्हारी हेल्प करती हूँ|”

वासंती ने अपनी सबसे अच्छा सुलमे-सितारे की कढाई वाला लाल रंग का सलवार कुरता अपनी अलमारी में से निकाल कर श्वेता के सामने रख दिया| “ये देखो, ये सूट मेरे बापू मेरे लिए शहर से लाये थे मेरी फुफेरी बहन की शादी में| ये मेरा सबसे अच्छा सूट है इसे पहन कर मैं शादी में दुल्हन से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी|” बसंती ने थोड़ा इतरा कर कहा| उसे उम्मीद थी कि श्वेता भी उसकी ड्रेस की प्रशंसा करेगी पर उसे यहाँ भी निराश होना पड़ा| श्वेता ठठा कर हंस पड़ी और बसंती के उस गहरे लाल रंग के सूट को हाथ में लिए देर तक हंसती रही| फिर जब उसकी नज़र वासंती के उदास चहरे पर पड़ी तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ|

“तुम्हारा सूट बहुत अच्छा है बसंती पर फ्रेशर्स पार्टी के लिए ठीक नहीं है| अगर तुम इसे पहन कर पार्टी में जाओगी तो सच में सब तुम्हारा मज़ाक ही उड़ायेंगे| वहां तो तुम्हें कुछ मॉर्डन ड्रेस पहनी चाहिए| ताकि तुम बाकी लोगों से अलग ना लगो| ठहरो मैं दिखाती हूँ|”

श्वेता ने अपनी कुछ ड्रेसेज़ वासंती के सामने रखते हुए कहा, “इनमें से कोई भी एक चुन लो और पार्टी में पहन लेना|”

“मैं तुम्हारी ड्रैस कैसे ले सकती हूँ?”

“क्यों तुम मेरी दोस्त हो और फ्रेंड्स में तो छोटी छोटी चीज़ों का शेयर चलता है|” श्वेता ने बसंती को हिचकिचाते हुए देख कर खुद ही एक पिंक कलर की बेहद खूबसूरत सी ड्रैस उसे पकड़ा दी|

“अच्छा ठीक है, मैं ले लूंगी पर इस शर्त पर कि तुम्हें भी जब भी जरूरत हो तुम मुझसे मेरे कपड़े ले लेना|”

“देखते हैं, अभी तो तुम ये रखो|”

फ्रेशर्स पार्टी के लिए श्वेता ने बसंती को बहुत अच्छे से तैयार किया| ड्रेस के साथ मैच करती हुई जूलरी पहनाई और उसके बालों को भी खूबसूरत तरीके से बांध कर जूड़ा बना दिया| तैयार होने के बाद बसंती इतनी खूबसूरत लग रही थी कि उसे देख कर श्वेता तो श्वेता बाकी सब भी हैरान हो गए| किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था कि बसंती इतनी खूबसूरत भी हो सकती है| उसे देख कर प्रतीक का तो मुंह खुला का खुला रह गया| वह कुछ देर के लिए अपनी पलकें झपकाना ही भूल गया|

“भाई मुंह बंद कर ले, बुरा लग रहा है|” रजत ने शरारत से कहा तो वह झेंप कर रह गया|

पार्टी में फ्रेशर्स के लिए सीनियर्स ने काफ़ी अच्छा इंतज़ाम किया था| खाना भी था, म्युज़िक भी और डांस भी| सीनियर्स उनकी टांग खिंचाई भी कर रहे थे पर आज का माहौल उस दिन से अलग था आज सीनियर्स सभी फ्रेशर्स के साथ दोस्ताना अंदाज़ में पेश आ रहे थे| बसंती को यहाँ बहुत अच्छा लग रहा था पर फिर भी कुछ गड़बड़ ना हो जाये यह सोच कर वह श्वेता के आस पास ही रही|

आज भी फ्रेशर्स को सीनियर्स कुछ ना कुछ करने के लिए कह रहे थे| किसी एक फ्रेशर को स्टेज पर बुलाया जाता और उससे डांस या गाना सुनाने को कहा जा रहा था| बस आज उस दिन की तरह किसी का मज़ाक नहीं उड़ाया जा रहा था बल्कि आज ना सिर्फ़ सीनियर्स फ्रेशर्स की दिल खोल कर प्रशंसा कर रहे थे वरन उनके साथ खुद भी नाच गा रहे थे| हर परफोर्मेंस के बाद सीनियर्स उस फ्रेशर को एक नाम भी दे रहे थे जैसे कि राधिका का नाम उन्होंने तितली रखा दिया और सुयश का जोकर| सभी अपने नए नाम को मुस्कुराते हुए स्वीकार कर रहे थे| श्वेता को उन्होंने बेबी टुनटुन की नकल करने का टास्क दिया, श्वेता ने कुछ ऐसे अंदाज़ में बेबी टुनटुन की एक्टिंग की कि हँसते हँसते सबके पेट में बल पड़ गए| उसे पतली टुनटुन नाम दिया गया|

जब बसंती का नाम पुकारा गया तो वह घबरा गयी कि पता नहीं आज क्या होने वाला है| वह स्टेज पर जाकर सर झुकाकर खड़ी हो गयी| रिया बसंती से अंग्रेजी में गाना सुनाने को कह रही थी पर रजत उसे माधुरी दीक्षित के गाने पर डांस करने को कह रहा था| अपनी अपनी बात पर अटल वो दोनों आपस में ही उलझ पड़े, इस बीच प्रतीक ने एक अलग ही फरमाइश की जिसे सुन कर बसंती हैरान रह गयी|

“दूसरों की नक़ल तो सभी कर लेते हैं कुछ ओरिजनल कर के दिखाओ तो जाने| सुना है लिखने का शौक रखती हो, चलो ठीक है, आज हम भी देखते हैं कैसा लिखती हो| कोई अपनी लिखी कविता सुनाओ तो जाने|”

इसे कैसे पता चला कि बसंती को साहित्य में रूचि है, उसने श्वेता की ओर देखा, वह मुस्कुरा रही थी, ‘ओह तो यह श्वेता की कारस्तानी है’, जो भी हो उसने आज बसंती को एक बहुत बड़ी मुसीबत से बचा लिया था| उसने आँखों ही आँखों में श्वेता का शुक्रिया अदा किया| कुछ पल को तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या सुनाये| जल्द ही कुछ करना था वरना वहाँ फिर सब उसका मज़ाक उड़ना शुरू कर देते| तभी बसंती को कुछ पंक्तियाँ याद आई और उसने वही सुना दी-

एक लड़की हूँ मैं

हज़ार बंधनों में जकड़ी हूँ मैं

तो क्या

हैं कुछ ख्वाहिशें भी मन में मेरे

सजाये हैं कुछ सपने भी नयनों ने मेरे

तोड़ कर बंधन ये सारे

उड़ना चाहे बावरा मन मेरा

नील गगन में बादलों की तरह

जो ना हो कोई चील

जो ना हो कोई बाज़

तो लेलूँ मैं भी बेख़ौफ़ एक परवाज़

पंछियों की तरह

चाहे मन मेरा बनकर मैं

कोई खुशबूदार झोंका हवा का

महका दूं घर आँगन अपना

किसी चमन की तरह

मिटा दूं हर अँधेरा मैं

कर दूं रोशन ये सारा जहाँ

फिर चाहे ख़ुद हो जाऊं फ़ना

एक शमा की तरह

उसकी कविता की सभी ने तारीफ की, फिर चाहे सीनियर हो या फ्रेशर सबने जी खोल कर तालियाँ बजाई| अब बारी थी उसके नामकरण की| कोई और बोलता उससे पहले ही प्रतीक बोल उठा, “आज से बसंती का नाम होगा वासंती, क्योंकि ये बिलकुल भीनी भीनी सुहानी वासंती बयार की तरह है| तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं|”

बसंती ने सर झुका कर ना में सर हिला दिया|

“प्रतीक! मेरे भाई! लगता है तू तो गया काम से|” रजत ने प्रतीक की ओर झुक कर धीरे से कहा|

“ऐसा कुछ नहीं है, मैं तो बस उस दिन की भरपाई कर रहा था| उस दिन कितना परेशान किया था हमने इसे, बेचारी रो ही पड़ी थी| गाँव की सीधी सी लड़की है फिर भी इतने दूर पढ़ने आई है, हमें इसे प्रोत्साहित करना चाहिए|” कहने को तो प्रतीक ने कह दिया पर उसकी मुस्कान और आँखें तो कुछ और ही कह रही थीं|

उस दिन उस पार्टी ने बसंती की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल दी| अब वह कॉलेज में किसी के लिए अछूत नहीं रह गयी थी, उसे भी कुछ दोस्त मिल गए थे| अब वह बसंती से वासंती हो गयी, और गुलाबी रंग उसका पसंदीदा रंग हो गया| उसे भी सजना संवरना अच्छा लगने लगा और सबसे बड़ी बात अब वह अपना लहज़ा सुधारने की कोशिश ईमानदारी से करने लगी थी|