anaitik - 4 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - ०४ पुरानी यादें

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अनैतिक - ०४ पुरानी यादें

ना कोई भाई ना ही बहन बस अकेला था इसीलिए कोई साथ खेलने वाला नहीं था तो कभी कभी पापा के मोबाइल में भी अक्सर लूडो खेला करता, मैंने गेम की सारी सेटिंगस कर दी थी अब बस खेलना शुरू करना था की तभी.. डोर बेल बजी, माँ काम में वस्त थी और पापा तो फिर पापा थे तो जाना मुझे ही पड़ा, जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला-

"हाय रोहन तुम? वॉट ए सरप्राइज? कब आये? कितने दिनों बाद देखा है तुम्हे..."

हाय रीना ....कैसी है तू ...बस २-३ दिन पहले ही आया हूँ...

और हम दोनों एक दुसरे के गले लगे, मेरा ध्यान ही नही था की उसकी भाभी यानी कशिश भी साथ आयी है..

पापा ने कहा, "बेटा उसे अंदर भी आने देगा या दरवाज़ से ही बाते करोगे।। हम दोनों हँसने लगे..

और हम सब अन्दर आकर बैठ गये, हम दोनों हमारी बातों में इतना खो गये थे की पता ही नहीं चला कब शाम हो गयी...रीना मेरी बचपन की बेस्ट फ्रेंड थी, हम दोनों साथ में स्कूल और फिर एक ही कॉलेज मे थे, कभी कभी तो माँ कहती इसे ही मेरी बहु बनाऊंगी जिसे सूनकर रीना शरमा जाती पर पर कॉलेज के बाद मुझे तुरंत जॉब मिल गयी तो जर्मनी आना पड़ा थोड़े दिनों बाद पता चला उसने शादी कर ली..

माँ पापा समझ गये थे की हम इतने दिनों बाद मिले है तो बहोत बाते करेंगे इसीलिए वो दोनों पहले ही रूम में चले गये थे. रीना ने मेरी पहचान उसकी भाभी कशिश से करवायी, कशिश बस ख़ामोशी से हमारी बाते सुन रही थी, उसका हँसता हुआ चेहरा जब भी देखता मेरा मन हमेश कहता की ये अन्दर से बहोत दुखी है पर मै तो उसे ठीक से जानता भी नही था इसीलिए मैंने कभी पूछने की कोशिश नहीं की. रीना ने कशिश को हमारी सारी बाते बताई कैसे हम स्कूल कॉलेज में मजे करते, टीचर को परेशान करते..कशिश उसकी बाते इतने ध्यान से सुन रही थी मानो उसने कॉलेज देखा ही ना हो, मै रीना से कशिश के बारे में पूछना चाहता था पर उसके सामने पूछना मुझे अच्छा नहीं लगा...और वो दोनों चले गये, रीना ने बताया था की वो कल जा रही है बस २ दिन के लिए आयी थी उसकी माँ से मिलने, तब मुझे याद आया की कल माँ ने कहा था की रीना की मम्मी की तबियत ठीक नहीं है...

और बस ऐसी ही दिन गुजरने लगे, रीना अपने ससुराल चली गयी, मुझे भी पिछले कुछ दिनों में काम ज्यादा करना पड रहा था जिसके वजह से मै पैसे कमाने वाला गेम खेल ही नहीं सका... मतलब लूडो

एक दिन मै अपने रूम में काम कर रहा था, किसी ने डोर पर दस्तक दी, मैंने देखा तो कशिश थी पर ये ...ये...मुझे समझ नही आ रहा था की क्या बोलू क्यों की मै उसका नाम भूल गया था, हां सचमे भूल गया था मुझे अच्छे से याद है वो दिन... किसी का नाम याद रखना बचपन से मेरे लिए मुश्किल राहा है शायद वो ये बात समझ गयी थी, मै आगे कुछ बोलू ...उसने कहा "जी कशिश,"

हाँ बेटा अन्दर आओ..

नहीं आंटी जल्दी में हूँ बस प्रसाद देने आयी थी

मैंने प्रसाद लिया और दरवाज़ा बंद कर लिया ... और अपने रूम में आ गया सोचा आज तो एक बार गेम खेलकर देख ही लेता हूं..

"क्या दिन भर लैपटॉप या मोबाइल में लगा रहता है कभी हमसे भी बात कर लिया कर"

नहीं माँ, बस वो गेम खेलकर पैसे कमाना है न वो ही देख रहा, मै और माँ हँस पड़े, पापा समझ गये थे की ये मै उन्हें ही बोल रहा हूँ पर उनका पूरा ध्यान टीवी में था..

मेरे दोस्त का कॉल भी आ गया था तो मै उस से बात करने लग गया .. मैंने उसे बताया की लूडो वाला खेल इन्स्टाल कर लिया अब बस खेलकर देखना है की कैसा है और फिर मैंने पहला गेम खेलना शुरू किया जैसे की मैंने आपको बताया था की मै फेसबुक से गेम को कनेक्ट किया हुआ था तो मेरे सारे फेसबुक फ्रेंड्स जिनके पास ये गेम है उनका नाम मुझे बता रहा था पर मै अभी उनमे से किसी के साथ भी खेलना नही चाहता था. मै जानता था की अगर बार बार हार गया तो सब मेरा मजाक बनायेंगे तो मैंने खेलना शुरू किया और हुआ भी वैसा ही पहले की ४-५ गेम मै हार गया पर धीरे धीरे मुझे अब गेम समझ में आने लगा था...

मै हमेशा जितने की कोशिश करता पर आखरी में हार ही मिलती धीरे धीरे मेरा ध्यान काम में कम और गेम में ज्यादा जाने लगा मुझे कैसे भी करके ये गेम को सीखना और जितना था...