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चुनाव

इलेक्शन

आज सभी को अपने -अपने इलेक्शन बूथ का नम्बर पता लगाना था। कल टीम का नम्बर पता लग गया था और परस्पर परिचय भी हो गया था । राघव अपनी चुनाव टीम के साथ एक ओर खड़ा था। वह अपनी टीम नम्बर 607 के मतदान केन्द्र का नाम एनाउंस होने का इन्तजार कर रहा था। कल उसने सारा सामान भी ले लिया था - सीलें, चपड़ी, मोमबत्ती, टैग, स्केल, वगैरह... ।

माइक से मतदान केन्द्रों के नाम पुकारे जा रहे थे। सहसा माइक से आवाज आई ‘‘ टीम नम्बर छह सौ सात का मतदान केन्द्र है ग्राम हुर्री ! यह टीम बस नम्बर सोलह में जायगी।’’

एनाउन्समेंट होते ही राघव अपनी टीम के साथ मतपेटी और मतपत्र लेने वालों की कतार में लग गया। एक घण्टे बाद वह मतपत्र और मतपेटी ले सका । यह जरूरी सामान लेकर वह अपनी टीम के साथ बस नम्बर सोलह में सवार हुआ और बैठने के लिए कोई तीन सीट वाली बेंच देख रहा था कि वहीं बस में ही उनकी टीम को पूछता डण्डा धारी एक सिपाही आया और बोला ‘‘ मैं आपका सुरक्षा अधिकारी हूँ।’

राघव को मन ही मन हँसी आई, यह मरियल आदमी डण्डे के बल पर क्या सुरक्षा करेगा ? खैर उसने बैठने का इशारा किया तो वह सिपाही बैठ गया। बड़े इन्तजार के बाद पटवारी आया और उसने स्कूल के बच्चों की तरह बस में बैठे हरेक आदमी की हाजिरी भरी। पटवारी ने इशारा किया तो बस चल दी।

धीमी गति से चली बस निबाया तिराहे पे रुकी। राघव समेत तीन पीठासीन अधिकारियो की टीमें यहाँ उतरीं। आगे जाने के लिये उन्हे ट्रेक्टर की सवारी करना थी। हुर्री, भरिया और बूकन गाँव एक ही दिशा में थे। नीचे उतर कर उसने देखा कि तिराहे से सामने की ओर जा रहे मार्ग की तरफ मूुँह किए एक ट्रेक्टर खड़ा है। वह उन्ही के इंतजार मे था, आगे के मार्ग के लिए एक पंचायतकर्मी स्तर का कर्मचारी उनका मार्गदर्शक था। तीनों गाँवों की चुनाव टीम ट्रेक्टर में सवार हो गयी।

ट्रेक्टर चला तो बदन में कंपकंपी आ गई सबके । कड़के की सर्दी में हवा साँय-साँय करके कानों से टकरा रही थी। दरअसल बस बन्द होने के कारण उसमें सर्दी का अधिक अनुमान न हो सका, ट्रेक्टर तो खुले आसमान की और चारों तरफ से खुली सवारी थी ।

दस किलोमीटर बाद ट्रेक्टर से तीनों गाँवों की टीमों को उतरना पड़ा । कुछ दूर तक पैदल चले तो रास्ते में एक नाला पड़ा ,जो कीचड़ से खचाखच भरा था। सबको वह स्थान पैदल पार करना पड़ा। नाला पार करने के बाद उन सबने वहाँ लगे हैण्ड पंप पर पांव धोये और उस पार खड़े ट्रेक्टर में सवार हुए ।

लगभग पाँच किलोमीटर चलने के बाद राघव का बूथ हुर्री आ गया। उसकी टीम ट्रेक्टर सेे उतर गयी। भरिया और बूकन गाँव आगे थे। बाकी की दोंनो टीमें ट्रेक्टर में सवार रहीं और आगे की ओर चल दीं ।

अब राघव की टीम अकेली थी और किंकर्तव्यविमूढ़ से सब लोग सड़क पर खड़े थे। अभी तक कई टीमें साथ में थी इसलिये राघव चिंता और भय से मुक्त था । दूसरी टीमों का साथ छूट़ते ही भय की छाया राघव के मन पर डोलने लगी। उसे याद आया पास का ही तो गाँव हैं, जहाँ डकैतों की सरगर्मी के कारण पिछली बार चुनाव कैंसिल हो गया था। कहीं उनका गिरोह यहाँ आ गया तो हमारी टीम का क्या होगा ? वैसे भी टीम में सब दुबले-पतले लोग हैं। साथ में सिर्फ एक होमगार्ड है । वो भी क्या कर लेगा ? उसके पास भी तो बंदूक नहीें हैं सिर्फ एक डण्डा हैं । राघव भय से सिहर उठा ।

‘‘जै राम जी की बाबूजी’’ एक आवाज ने राघव का ध्यान भंग कर दिया। उसने देखा एक लंबा, दुबला -पतला ,अधेड़ उम्र का व्यक्ति उससे नमस्ते कर रहा है । उसने भी चेहरे पर जबरन मुस्कान लाते हुए कहा -‘‘जै राम जी की ’’

राघव ने उससे पूछा, ‘‘ पोलिंग बूथ कहाँ है ?’’ कहने के बाद राघव को याद आया ये अंग्रेजी कहाँ जानता होगा। वह फिर से समझाते हुए बोला , ‘‘चुनाव कहाँ होगा ?’’

लगभग आधा किलोमीटर दूर गाँव दिख रहा था । उस गाँव के बाहर बना स्कूल भी यहीं से दिख रहा था । सरकारी विद्यालय के उजाड़ से कमरों की ओर संकेत करते हुए वह बोला - ‘‘वहाँ मास्साब ।’’

‘मास्साब‘ शब्द सुनकर राघव मन ही मन फंुक गया । वह सोचने लगा चुनाव करने वाले सब लोग इन्हे मास्टर नजर आते हैं , राघव मास्टर नहीं प्रोफेसर है। मूर्ख ये भी नहीं समझते मास्टर और प्रोफेसर में कितना अंतर है ? जाहिल कहीं के । प्रकट मे ंवह बोला, ‘ आप कैसे आये ?’

‘ हमे ही तिहाओ इन्तजाम करनो है।’

‘ इन्तजाम करनो है ’ वाक्य सुन कर राघव चौेका । फिर पल भर में सहज हो कर बोला, ‘‘ठीक है चलो चलते हैं स्कूल में ।’’

राघव ने अपना बैग और वोटों का थैला उठाया तो उसकी टीम के सदस्य उसके पीछे-पीछे सामान उठाकर चल दिए।

उस व्यक्ति ने ही बात शुरू कर दी और पूछने लगा , ‘‘कौन गाँव से आये हैं’’ ?

राघव ने बेरूखी से उत्तर दिया, ‘‘शिवपुरी से’’ ।

‘‘कौन बिरादरी ? घर में और कौन -कौन है ?’’ उसके प्रश्न एक के बाद एक बंदूक की गोली की तरह निकलते आ रहे थे। राघव ने उसे तीखी निगाहों से देखा । वह बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ और अपने प्रश्नों के उत्तर की आशा में उसे देखता रहा। पता नहीं क्यों राघव ने उसके प्रश्नों के उत्तर दे दिये । वह उसकी प्रश्नावली से तंग आ गया था। अब वह कोई प्रश्न करे उससे पहले ही राघव ने बात की दिशा बदलते हुए कहा , ‘‘इस गँाव का सरपंच कौन है ?’’

वह तपाक से बोल पड़ा , ‘‘मैं ही हूँ हरदेव सिंह’’

परिचय देतेे हुए उसका सीना चौड़ा हो गया, चाल में एक अलग प्रकार की गति आ गयी और गर्दन में अकड़ भर गयी। आँखों में चमक और चेहरे पर तेज छा गया।

अब तक वे विद्यालय के पास आ गये थे । राघव ने घूम फिर कर पूरा विद्यालय देखा। विद्यालय में पाँच कमरे थे। कमरे हवादार थे..., कमरों में फर्शीकरण था और बरामदा भी पक्का था। हर कमरे के दरवाजे के ऊपर सूक्तियाँ लिखी थीं। प्रायः सूक्तियाँ शिक्षा के महत्व को ही व्यक्त कर रही थीं।

एक कमरे के बाहर प्रधानाचार्य की तख्ती टंगी थी। उस कमरे के किबाड़ों पर जमीं धूल देखकर लग रहा था कि वह कमरा कई दिनों से नहीं खुला है। कमरों के ब्लेक बोर्ड संकेत दे रहे थे कि उनका कई दिनों से प्रयोग नहीं हुआ । विद्यालय के बाहर एक ओर दोने पत्तलों के ढेर इस बात को बयाँ कर रहे थे कि यहाँ कुछ दिन पहले ही कोई बारात आकर रुकी थी या अन्य कोई कार्यक्रम हुआ था।

नीम की एक डाली पर गर्डर के टुकड़े को घण्टीं के रूप में टांग रखा था, जिसके पास लकड़ी का डण्डा लटक रहा था । वहाँ के बच्चों के लिए ये घण्टीं मनोरंजन का साधन थी। जब से वे लोग वहाँ रुके थे वहाँ खेल रहे बच्चे खेल-खेल में तीन-चार बार उसे बजा चुके थे। हर बार हरदेव जी उन्हें अपनी अलंकार युक्त बोली में हड़का देते , ‘‘ ऐ मोड़ा-मोड़ियों मानतो के नई..., बेटी...के अबई ऐसे डण्डा परेंगे के सब समझ में आ जायेगी’’ । उनकी लताड़ से ऐसा असर होता कि बच्चे ततैया की तरह भागते नजर आते। लेकिन बच्चे तो बच्चे ठहरे , घड़ी भर बाद फिर हाजिर हो जाते ।

हरदेव ने सबको चाय पिलवायी और भोजन के बंदोबस्त में लग गये। राघव को वह अब अच्छा लगने लगा था। उन्होंने बताया कि अब यहाँ महिला सीट हो गयी है इसलिये वे दोबारा खड़े नहीें हो पाये । इस बात का उसे बहुत मलाल था। बातों ही बातों में पता चला वह आठवीं पास था। चुनाव में बिना पढ़े लोग भी खड़े हो जाते हैं इस बात पर वह क्षुब्ध था। उसने ही बताया कि गाँव में हर तरह का विकास हो चुका है। यहाँ मिडिल तक स्कूल है। आँगनवाड़ी तथा प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र भी है, जहाँ बुजुर्ग पढ़ते हैं। वैसे तो गाँव में शांति है लेकिन रात को यहाँ सिर्फ डकैतों का अंदेशा रहता है इसलिए वे किबाड़ की संाकल लगाकर सोयें ।

रात को भोजन खिलाकर हरदेव घर लौट गया ।

टीम के सभी सदस्य सो गए पर राघव की आँखों में नींद नहीं थी। वह सोच में पड़ा था कि सिर्फ एक होमगार्ड मात्र साथ में है । चारों ओर सनाकत खिंचे इस गाँव में राघव का मन खीझ रहा था कि ये गाँव वाले यहाँ क्यों बसे हुए हैं ? न यहाँ पानी के उचित साधन हैं औैर न ही अच्छी फसलें हो रहीं हैं। न सड़क है, न बिजली की समुचित व्यवस्था है। सड़कों के नाम पर कीचड़ भरे गढ्डे हैं, जिन्हें पार कर पाना मुश्किल है। शहर से इतनी दूर बसे इस गाँव के लोग शहर भी नहीं जा पाते हंोंगे, फिर ये लोग अपने जीने के साधन कैसे जुटा पाते होंगे। नेता कहते हैैं गाँव बिजली से चगनमगन हो गये हैं..., सड़कें ऐसी कि हवाई जहाज दौड़े...,, पानी की ऐसी व्यवस्था कि खेती लहलहा रही है...। लेकिन उसे ये सब बातें झूठी लग रही थीं।

वह चुनाव आयोग की योजना पर भी मन ही मन खिन्न था कि हर गाँव में चुनाव केन्द्र होना चाहिए। पिछले चुनावों की तरह तीन गाँवों को मिलाकर चुनाव करा दिये जाते तो इन्हें क्या फर्क पड़ जाता, और सिर्फ एक तिहाई कर्मचारी ही यह कष्ट उठाता। इन नेताओं और बड़े-बड़े अधिकारियों को ऐसे माहौल में रात गुजारना पड़े तब उन्हें दाल-रोटी का भाव समझ में आये ।

रात ज्यों -ज्यों बीत रही थी, राघव का डर बढ़ता जा रहा था।जरा सी आहट पर ही उसके दिल की धड़कनें तेज हो जातीं। उसने मन में कई बार हनुमान चालीसा का पाठ कर लिया, उसे बार-बार पंक्तियाँ याद आ रहीं थीं-

जय-जय-जय हनुमान गुसांई

कृपा करो गुरुदेव की नाईं।

कड़कड़ाती सर्दी की सरसराती हवा और उस पर डाकुओं का भय उसकी आँखों की नींद और मन का चैन उड़ाकर ले गया था। गाँव ऐसा कि फोन नहीं थे और मोबाइल ने भी काम करना बंद कर दिया था। चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था । कुत्ते के भौंकने की आवाजें आयी तो उसके दिल पर भय का साँप सरसराने लगा। वह उठा और उसने टॉर्च जलाकर खिड़की से बाहर झांका तो उसे एक कुत्ता बैठा दिखाई दिया। उसे याद आया कि जब वह और उसकी टीम के सदस्य खाना खा रहे थे तब यहीं कुत्ता जीभ लपलपाता बैठा था। यहाँ भोजन की व्यवस्था हो जाने से घर से लाया खाना बच गया था। वही खाना उसे डाल दिया और सोचा था कि ये कुछ तो वफादारी करेगा। कुत्ते को बैठा देखकर राघव के मन में अजीब सी हिम्मत आ गयी। किसी के आने की आहट होगी तो यह भौंक कर जरूर सूचित कर देगा। यह सोचते-सोचते उसे झपकी आ गयी।

सुबह तड़के ही नित्यकर्म से फारिग होकर टीम ने चाय नाश्ता कर लिया। टीम चुनाव का कार्य शुरू करने को तैयार हो चुकी थी। राघव ने पेटी खोलकर पार्टियों के एजेण्टों को दिखायी। एक कागज पर अपने हस्ताक्षर करके और उस पर मतपेटी क्रमांक एक लिखकर कागज मतपेटी में डाला और पेटी सील कर दी । कमरे के एक कोने मे सफेद कपड़ा टांग कर औट करके वोट डालने के लिए बूथ बना दिया था जिसके भीतर मतपत्र पर सील लगाने के लिए एक मेज की व्यवस्था स्कूल में पड़े फर्नीचर मे एक -एक टेबल चुन के कर ली ।

...ठीक सात बजे मतदान आरंभ हुआ।

कमरे में घुसते ही एक कुर्सी लगा कर मतदान अधिकारी नम्बर एक बिठा दिया जिसे नाम पूछकर लिस्ट में निशान लगाना था । मतदान अधिकारी नम्बर दो को वोटर का नाम सुनकर वोटर के हाथ की उंगली पर अमिट स्याही का चिन्ह लगाना था। जबकि तीसरे अधिकारी को हस्ताक्षर करवाकर मतपत्र पैड से फाड़ कर वोटर को देना था। देने के पहले वह वोट मोड़ता भी जा रहा था ताकि सील भली-भाँति लगी रहे। जब वोटर मतपत्र पर सील लगाकर ले आता तो नम्बर चार कर्मचारी मुड़े हुए मतपत्र को पेटी में डाल रहा था। राघव इन सभी के कार्यो की निगरानी कर रहा था।

बाहर हरदेव सब को चुनाव चिन्ह समझाकर हलकान हुआ जा रहा था। लोग बातें कर रहे थे कि इस बार पीं-पीं वाली मशीन नहीं आयी। जा बार तो वोट पे ठप्पा लगाने पडे़ंगे। हरदेव ने राघव को बताया कि पिछले चुनाव में वोटिंग मशीन देखने की लोगों में भारी उमंग थी ,सो वोटिंग का प्रतिशत बहुत बढ़ गया था। राघव को ताज्जुब हआ कि लोगों को वोट देने में दिलचस्पी नहीं तमाशे देखने में ज्यादा दिलचस्पी है। देश की मतदान प्रथा पर खूब हँसी आई उसे।

औरतें लम्बे-लम्बे घँूघट डालकर आ रही थीं। उनकी आवाज में बड़ी बुलंदी औैर चाल में फुर्ती थी। उनके चूड़ियाँ खनकते हाथों से ही समझ में आ रहा था कि किसका रंग काला, किसका गोरा या साँवला हैं । किसी की धोती यदि पतली-झीनी होती या घ्ँाूघट ऊँंचा होता तो उस महिला की बत्तीसी दिख जाती थी।

एक औरत अन्दर आयी तो अधिकारी नम्बर एक ने पूछा, ‘‘ क्या नाम हैं बहन जी ? ’’

वह कुछ नहीं बोली अपना- हाथ आगे कर दिया जिस पर सुखदेवी गुदा हुआ था ।

मतदान अधिकारी नम्बर एक ने पूछा , ‘‘ पर्ची लायी हो? ’’

उसने मुड़ी हुई पर्ची पकड़ा दी । अधिकारी ने पर्ची का नम्बर देखकर लिस्ट में टिक का निशान लगा दिया ।

जब वह सील लगाकर लौटी तो नं. चार ने देखा कि उसने मुड़े हुए मतपत्र पर ही सील लगा दी है। उसने उसे समझाया कि यह कागज खोलकर इसमें किसी एक चिन्ह पर सील लगाना है। तब जाकर उसने सही वोट डाला ।

एक औरत तो मतपत्र पर चुनाव कर्मचारियों के सामने ही ठप्पा लगाने लगी ।

वे बोले , ‘‘यहाँ नहीं वहाँ मेज पर लगाकर लाओ ।’’

ठप्पे की चार - पाँंच आवाजें आयी तो उन्होंने पुकार कर कहा , ‘‘अरे बहन जी इतनी सीलें किस पर लगा रही हो ? एक चिन्ह पर ही मोहर लगाना हैं ।’’

वह हाथ में कागज पकड़े बाहर आकर बोली , ‘‘तुमई ने तो कई थी केे मेज पे ठप्पा लगा ल्याओ । सो मेज के चारई कोने में ठप्पा लगा रई थी ।

‘‘इस कागज के पर ठप्पा लगा लिया’’

‘‘नहीं तो’’

तब उसे समझाया गया कि मेज पर नहीं बल्कि इस कागज को मेज पर रखकर ठप्पा लगाना हैं ।

यह सब देखकर राघव को लग रहा था कि कुछ लोग अब भी चौथे- पाँचवे दशक के भारत में जी रहे हैं ।

एक औरत बाहर एजेंट से पर्ची नहीं लायी और कहने लगी‘‘मोय नहीं लानौ पर्ची-फर्ची । मेओ नांउ है - सुवदरा । जामें देख देओ।’’

‘‘तुम्हारे पति का क्या नाम है ।’’

बड़े ही सहज भाव से शर्माती हुई, मुँह पर धोती का पल्लू रखकर वह हँस दी, फिर बोली , ‘‘ऐ अपने आदमी कौ नाम कैसे लेऊँ।’’

सब समझाने लगे कि फिर तुम्हारा नाम कैसे देख पायेंगेे ।

तब वह बोली , ‘‘बोई नांउ है जाके बिना दुनिया में काम नहीें चलतौ - पइसा-रूपिया।’’

एक ने कहा , ‘‘धन’’ ।

वह जल्दी से बोली , ‘‘हाँ -हाँ जइये अंगरेजी में का कैतें ?‘‘

‘‘मनी ?’’

‘‘हाँ - जेई है और जइके बाद सीता मइया के पति कौ नाम भी जोड़ दो ।’’

तब तक एक एजेंट ने आकर बताया, ‘‘कि उसके पति का नाम मनीराम हैं ।’’

एक औरत ने तो ठप्पा लगाकर मतपत्र अपने ब्लाउज में ही रख लिया। जब उससे मतपत्र पेटी में डालने के लिए कहा गया तो वह बोली ,‘‘ हओ मैं तो बइये बताओंगी के मैंने बइयेे वोट दओ है।’’

कुछ औरतें घँूघट में चेहरा छुपाकर वोट डाले जा रही थीं । सही गलत आदमी की पहचान कठिन थी। किसी भी कर्मचारी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनका चेहरा देख सके। चूड़ियों के रंग एवं प्रकार देखकर कई बार लगा कि कुछ महिलायें दो-तीन बार आ चुकी हैं । बस हर बार धोती अलग पहन आती थी और अपनी उंगली पर लगा अमिट स्याही का निशान भी पौंछ आती थी।

अचानक एक महिला रामरती पत्नी रनछोर आयी। नं. एक ने देखा कि इस नाम से तो कोई और वोट डाल चुका है। उसने चिंतित हेाकर राघव की ओर देखा। राघव ने सिर हिलाकर उसे इशारा कर दिया। नं. एक ने शशिबाई पति रामचंद्र पर टिक लगाकर नं. दो को उसका नाम धीरे से लिस्ट में इंगित कर दिया। महिला पढ़ी-लिखी नहीं थी। वह अंगूठा लगाकर वोट डालने आगे बढ़ गयी।

अचानक पैदा हो सकने वाला विवाद उसी समय बुद्धिमानी से निबट गया और किसी को कानों-कान खबर भी नहंी हुई । मतदान दल की होशियारी ऐसे ही क्षणों में साबित होती है।

राघव बार-बार घड़ी में समय देख रहा था और हर दो घंटे पर स्त्री-पुरूष संख्या व उनका प्रतिशत लिख रहा था। चुनाव आराम से निबटता जा रहा था। सभी लोग चैन की संास ले रहे थे।

चुनाव की अन्तिम घड़ी में अचानक चुनाव केन्द्र पर बड़ी भीड़ उमड़ आयी। सरपंच पद की प्रत्याशी झंकारी देवी वोट डालने अभी आयी थी उन्हीं के साथ समर्थकों की भीड़ भी चली आयी। जब तक वह कमरे में रही काफी गर्मजोशी का माहौल रहा।

चुनाव समाप्त हो चुका था । लोग अपना -अपना सामान समेट रहे थे। पेटी बन्द करने की तैयारी चल रही थी तभी हो हल्ला करती भीड़ विद्यालय में इकट्ठा हो गयी । राघव बाहर निकल आया । भीड़ में झंकारी देवी कह रही थी कि वे गलती से अपना वोट खुद को न देकर किसी और के नाम पर ठप्पा लगा गयी हैं, इसलिये वे दोबारा वोट डालेंगी।

राघव समझाते हुए बोला , ‘‘नहीं बहन जी ऐसा नहीं होता है एक व्यक्ति एक बार वोट डालता है।’’

झंकार देवी बोली , ‘‘काए नहीं हो सकतौ ।’’

उनके समर्थक भी हाँ में हाँ मिला रहे थे। एक साथ कई आवाजें आ रही थीं।

‘‘ तुम्हें तुमारे बच्चन की सौगंध... ’’

‘‘अरे यह नियम के विरूद्ध है...’’

‘‘नियम वियम कछू नइये... , नियम गए भाड़ में , हमाए गाँव में हमाई चलेगी.......’’

‘‘ देखिए आप लोग समझते क्यों नहीं... ? ’’

‘‘ अब समझवे को का धरौ है।’’

हरदेव भी झंकारी देवी और गाँववालों को समझा रहा था । लेकिन भीड़ तो विवेेकहीन होती हैं ! किसी ने उसकी एक न सुनी । खबर गाँव में हवा की तरह फेैल गयी कि झंकारीदेवी ने बूथ घेर रखा है । अब तक दूसरी पार्टी के लोग और उसकी प्रत्याशी रामप्यारी भी आ गई। उनकी आपस में तीखी झड़प होने लगी जिसकी तेज आवाजें कानो को भेदने लगीं ।

‘‘.... ऐ झंकारी तें पढ़ी नइये तो कायको खड़ी भई थी ।’’

‘‘.... ऐ रामप्यारी ज्यादा चकर-चकर नई कर । तोए का मतलब जे हमाए और चुनाव बालन की आपस की बात हैं ।’’

‘‘.... है गऔ चुनाव खतम अब तें काये आई है।’’

.‘‘...तें काए आ गई अपने खसम के संग। आग लगौ जोरू कौ गुलाम ।’’

‘‘... देख मेये घरवारे कों गारी मत देय।’’

‘‘ मेओ खसम तो नई आओ।’’

‘‘तेओ खसम तो नामर्द है वो कैसे आतो।’’

‘‘फिर झूमा - झटकी, चिल्ल- पौं ...। गालियों की आवाजे ...।कई सारे अलंकारयुक्त शब्द ...’’

अब तक चुनाव की अन्य दोनों टीम के लोग भी आ गये थे । उन दोनों पार्टियों के दोनों गार्ड भी साथ थे । राघव को याद आया कि जिला मुख्यालय पर ही उन्हें ताकीद दे दी गयी थी कि दोबारा पोलिंग नहीं होनी चाहिये। किसी भी तरह से चुनाव निवटाकर आना है। उसने अपने गार्ड को इशारा किया । वह डंडा उठाकर दौड़ते हुए भीड़ की तरफ बढ़ा।

इशारा समझ कर दूसरी टीमों के गार्ड भी मैदान में आ गये । डण्डे बरसना शुरू हो गये। वे लोग जमीन पर ही डंडे बजा रहे थे। भीड़ में अफरा - तफरी मच गयी । भय पैदा करने के लिए पुलिस का डंडा बड़ा कारगर सिद्ध होता है ।

राघव की टीम ने जल्दी से सामान समेटा और अन्य पार्टियों के साथ शीघ््राता से ट्रेक्टर मे सवार हो गये। जाते-जाते उसने एक नजर विद्यालय की ओर फेंकी । जहाँ अब फिर से उजाड़ पसर गया था । विद्यालय पर टंगी तख्ती हवा के झोंके से हिल रही थी। उस पर लिखा था-

सब घर शिक्षा का आह्वान

सुखी सम्पन्न मजदूर किसान।’’

राघव को लगा वह तख्ती उसे मुँह चिढ़ा रही है। इस देश में ज्यादा पढ़ जाने वाले भी मुसीबत पैदा करते हैं और कम पढ़ने वाले भी।

उसका मस्तिष्क तेजी से सोचने लगा कि यदि रास्ते में पेटी लूट ली गई तो क्या करेगा ?

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