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कन्या पूजन (कहानी)

'कन्या पूजन ' (कहानी)

हर साल शांति देवी नवमी की पूजा बड़ी धूमधाम से करती है |शांति देवी के चार बेटे हैं और चारों विवाहित है | पति की मौत के बाद शांति देवी अपने छोटे भाई बसंत ठाकुर के साथ ही रहती है| अपनी बहन के बच्चों के दुलार में बसंत ठाकुर ने अपनी पूरी उम्र निकाल दी|उसने शादी नहीं की ,बसंत ठाकुर गांव का सरपंच है|घर के सभी सदस्यों ने पूजा की और चारों बहुएँ रसोई में लग गई |पहली बहू से सबसे छोटी वाली बहू ने पूछा" भाभी सा अम्मा जी नहीं दिखाई दे रही" बड़ी बहू ने कहा" बहुरानी तुम अभी नई आई हो, अम्मा जी सबके पूजा करने के बाद एक घंटा अलग से पूजा करती है, और इस बीच उन्हें कोई भी परेशान नहीं करता ,हम सिर्फ भोग अंदर पहुंचा देते हैं ,उसके बाद वह क्या करते हैं हमें आज तक नहीं पता, पर !दीपक की संख्या हर साल बढ़ जाती है, मैया जी के दीपक के अलावा पहले 1 दीपक होता था फिर 2 उसके बाद 3 और अब अम्मा जी अलग से 4 दीपक लगाती है, और क्यों?? यह सिर्फ अम्मा जी या फिर बसंत मामा ही जानते हैं "|पर ऐसा क्यों ??छोटी बहू ने अचंभित होते हुए पूछा! बड़ी बहू बोली "छोटी बहू घर में इस मामले में बात करना बिल्कुल मना है इसलिए अब तुम भी यह समझ लो, बाकी तुम्हें और परेशानी नहीं होगी, हम इतने सालों से इस घर में है अम्मा जी ने हमें अपनी मां की तरह प्यार दिया है ,कभी कोई परेशानी हो अम्माजी रात दिन हमारे साथ खड़ी रहती है ,बस एक कमी है सिर्फ बेटियों की|अम्मा जी को बेटियां बिल्कुल पसंद नहीं है|इसलिए हमारा दो बार और बाकी दोनों बहुओं का एक-एक बार गर्भपात करवा चुकी है, अम्मा जी कहती हैं बेटियां परेशानी का कारण होती है और इस मामले में अम्मा जी से बहस करना बेमानी है"|"पर यह तो गलत बात है ना भाभीसा बेटा और बेटी तो बराबर होते हैं|बेटियां भी बड़ी प्यारी होती है भाभीसा" छोटी बहू बोली |तकरीबन 1 घंटे के बाद अम्मा जी और बसंत मामा की पूजा खत्म हुई है |उसके बाद शुरू हुआ कन्या भोजन| कन्याओं को बड़े प्यार से आसन पर बिठाया गया ,उन्हें भोजन कराया गया बाद में अम्मा जी ने खुद उनकी पूजा की |उन्हें उपहार दिए ,अम्माजी और बसंत मामा ने| साथ ही घर के सभी सदस्यों ने कन्याओं के पैर छुए और आदर के साथ कन्याओं को विदा किया |छोटी बहू सोच में पड़ गई अम्मा जी को तो बेटियां पसंद नहीं फिर आज नवमी के दिन अंम्मा जी कन्याओं को इतना आदर सत्कार क्यों करती है|

दिन बीत रहे थे और 1 दिन छोटी बहू ने खुशखबरी दी |अम्माजी खुश तो हुई पर साथ ही परेशान भी कि अगर बेटी हुई तो| 2 महीने बाद अम्मा जी ने पता करवाया और घर पर आकर फरमान सुना दिया "छोटी बहू तुम्हें यह बच्चा गिराना होगा तुम्हारी कोख में बेटी है "|"नहीं अम्मा जी मैं ऐसा नहीं करूंगी" छोटी बहू की आवाज गूंजी |यह सुनकर अम्मा जी को गुस्सा आ गया "छोटी बहू तुम्हारी इतनी हिम्मत, जो मैंने कहा इस घर में वही होगा, इस घर में बेटी का जन्म नहीं होगा तो नहीं होगा ,तुम्हें यह गर्भ गिराना होगा "|पर छोटी बहू अपने बच्चे की ढाल बने खड़ी रही और उसने साफ साफ शब्दों में मना कर दिया, कि वह यह गर्भ नहीं गिराएगी |उसने अम्मा जी को समझाने की कोशिश की "अम्माजी बेटियां और बेटों में क्या फर्क है हम भी तो किसी की बेटियां थी जो आप हमें इस घर में लाएं और अब हमारी बेटियां किसी और के घरों में जाएगी| बेटियां बड़ी प्यारी होती है अम्मा जी "|अम्मा जी ने क्रोध में कहा" हर कोई हमारे जैसा नहीं होता" और यह कहते कहते अम्माजी रुक गई |अम्मा जी ने साफ साफ शब्दों में कह दिया" छोटी बहू अगर यह बेटी घर में आई तो मेरा इससे कोई नाता नहीं होगा, तुम मुझसे कोई उम्मीद ना रखना, ना इस घर में ना मुझ पर तुम्हारी संतान का कोई अधिकार नहीं होगा| वह तुम्हारी सिर्फ तुम्हारी जिम्मेदारी होगी"|

9 महीनों में एक प्यारी सी गुड़िया ने जन्म लिया, अम्मा जी ने छोटी बहू का तो खास ध्यान रखा पर गुड़िया की तरफ एक नजर उठाकर नहीं देखा| अम्मा जी दिनभर अपने पोतों के लाड दुलार में लगी रहती| पर !गुड़िया को अपनी गोदी में खिलाना तो दूर उसकी तरफ प्यार से एक नजर नहीं देखती |

जब नवरात्रों में कन्या पूजन की बारी आती तब अम्मा जी जरूर गुड़िया को लाड करती ,और दूसरे दिन अम्माजी का वही रूप सामने होता| "अम्मा जी गुड़िया को स्कूल भेजना है "छोटे बेटे के इतना कहने पर अम्मा जी ने कहा "मैंने कहा था ना गुड़िया के बारे में मुझसे कोई बात नहीं ,तुम्हें जो करना है वह तुम करो "|गुड़िया को दादी के इस व्यवहार से पीड़ा होती वह समझ नहीं पाती, क्यों दादी भैया को तो इतना प्यार करती है और मुझे नहीं ?धीरे-धीरे गुड़िया बड़ी होने लगी |

1 दिन गुड़िया अपने भाई के साथ TV देख रही थी मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग का कोई प्रोग्राम चल रहा था ,गुड़िया और उसका बड़ा भाई दोनों बहस कर रहे थे कि मार्शल आर्ट लड़कियों के लिए कितना जरूरी है |गुड़िया के बड़े भाई ने कहा" तुम बेवजह बहस मत करो यह कोई जरूरी नहीं है क्या है यह कुछ भी तो नहीं है" तब गुड़िया ने कहा "भैया लड़कियों की सुरक्षा के लिए अपने आप को बचाने के लिए यह ट्रेनिंग बहुत ही जरूरी होती है |आज के समय में इससे लड़कियां अपनी सुरक्षा खुद कर सकती है मुझे भी सीखना है यह मार्शल आर्ट "|पास ही खड़ी अम्मा जी यह सब सुन रही थी उन्होंने गुस्से में कहा "बंद करो यह सब "|दोनों बच्चे TV बंद करके खेलने चले गए| एक हफ्ते बाद पंचायत की तरफ से एक आदेश आया, गांव में मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग होने वाली है गांव की हर लड़की को यह सीखना है और महिलाएं भी अगर चाहे तो इसे सीख सकती है |गुड़िया को तो जैसे मन की मुराद मिल गई हो ,वह मन ही मन उस फरिश्ते को शुक्रिया कह रही थी जिसकी वजह से उसे मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग करने का मौका मिला |

गुड़िया के आठवीं कक्षा के पेपर चल रहे हैं |अलग से पढ़ाई के लिए वह स्कूल के ही अध्यापक से ट्यूशन लेती है |गुड़िया एक दिन ट्यूशन गई हुई थी ,घर के सारे लोग भी अपने अपने कामों में लगे हुए थे |तभी गांव के पांच -छह लोग शांति देवी के घर आए और बोले "देखिए आप की पोती ने क्या किया है "|सब लोग गए देखा स्कूल का अध्यापक जमीन पर बेहोश पड़ा हुआ है और गुड़िया लाठी लिए उसके पास खड़ी हुई है | पूछने पर पता चला अध्यापक ने गुड़िया के साथ गलत करने की कोशिश की ,पर गुड़िया ने बहादुरी के साथ अपना बचाव किया और लाठी से अध्यापक पर हमला करके अपने आप को बचाया |गांव वाले गुड़िया की तारीफ कर रहे थे और साथ ही यह भी कह रहे थे मार्शल आर्ट से हमारी बच्चियों के मन में आत्मविश्वास आया है उनमें बहादुरी आई है |घर के सभी सदस्य अपनी बिटिया की बहादुरी को देखकर खुश थे ,पर! शांति देवी के मन में कुछ तो ऐसा था जो उन्हें कचोट रहा था|गुड़िया ने आठवीं में अपने गांव में प्रथम स्थान प्राप्त किया |उसके बाद गुड़िया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा ,फिर दसवीं- बाहरवीं, गुड़िया अपनी मेहनत- लगन और बहादुरी से गांव वालों की लाडली बन गई|

छोटी बहू ने अम्मा जी से कहा "अम्मा जी गुड़िया को कॉलेज में दाखिला दिलवाना है"अम्मा जी ने साफ -साफ शब्दों में मना कर दिया | कहा "देखो बहू मैंने तुम्हें शुरू में ही कहा था तुम तुम्हारी बेटी की जिम्मेदारी खुद उठाओ मुझसे कोई उम्मीद ना रखो "|छोटी बहू परेशान थी ,कॉलेज में दाखिले के लिए काफी पैसे चाहिए थे, और तिजोरी की चाबी अम्माजी के पास रहती थी| ऐसे में यह सब कैसे होगा ?पर !!फिर अचानक 4 दिन बाद जहां पर गुड़िया ने एडमिशन के लिए अप्लाई किया था| प्रिंसिपल का फोन आया "आपकी बेटी का एडमिशन हो गया है" गुड़िया के लिए सब कुछ एक सपने जैसा हो रहा था, वह सोच में पड़ गई,एडमिशन ऐसे कैसे ,वह तो कितना रुपया पैसा मांग रहे थे, और अचानक से एडमिशन हो गया| गुड़िया ने कॉलेज जाना शुरु कर दिया ,अपनी मेहनत और लगन से गुड़िया ने कॉलेज में भी प्रथम स्थान हासिल किया और आज अपनी मेहनत के बल पर गुड़िया ने आईएएस परीक्षा पास कर ली |

गांव में भव्य समारोह का आयोजन किया गया है गुड़िया को सम्मान देने के लिए | घर के सभी लोग सज-धजकर समारोह में जाने की तैयारियां कर रहे हैं |शांति देवी भी |तभी गुड़िया शांति देवी के कमरे में आई" दादी आपको तो बहुत दुख होगा ना ,मुझे आप इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहती थी|जीवन में आपने मुझे कभी प्यार नहीं दिया |आप तो मेरी सफलता से दुखी होंगे"|गुड़िया का इतना कहना था के बीच में बसंत मामा ने आकर कहा "गुड़िया यह क्या कह रही हो तुम, ऐसे बात करते हैं अपनी दादी से "गुड़िया ने आगे कहा "मामा यह आप भी जानते हो दादी ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया है ,मैं कभी इन्हें माफ नहीं कर सकती "|यह कहकर गुड़िया कमरे से बाहर चली गई "जीजी आप यह सब क्यों सहन कर रहे हो ,सच्चाई क्या है आप गुड़िया को और घर वालों को बता क्यों नहीं देते |बता दीजिए सब को ,आप गुड़िया को कितना प्यार करती है ,वह मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग, आज तक गुड़िया को मिले हुए सारे खिलौने, गुड़िया के स्कूल और कॉलेजों की फीस, यह सब आपने किया है" बसंत ने कहा |शांति देवी ने गहरी सांस भरते हुए अपने छोटे भाई से कहा" नहीं बसंत वह मेरी पीड़ा है ,मेरे अंदर ही रहे तो ठीक है ,यह बात तुम्हारे और मेरे अलावा किसी और को नहीं पता चलनी चाहिए "|पर !!कोई था दरवाजे के बाहर जो यह सब सुन रहा था........

शांति देवी और बसंत मामा आपस में बातें कर रहे थे तभी लाउडस्पीकर से उन्हें एक संदेश सुनाई देता है," गुड़िया और पूरे परिवार को मंच पर बुलाया गया है कृपया आप सभी मंच के पास पधारें "|शांति देवी बसंत मामा से कहती है"- बसंत इस बात का पता किसी और को नहीं चलना चाहिए, और अभी गुड़िया के सम्मान समारोह में चलना है"|

सारे घर वाले मंच के समीप आ के प्रथम पंक्ति में बैठ जाते हैं| गांव वालों का उत्साह देखते ही बनता है ,आखिर हो भी क्यों ना उनके गांव की गुड़िया आज इतनी सफल जो है |सभी उसको आशीर्वाद देने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं |गांव के आला अधिकारी गुड़िया को स्टेज पर आमंत्रित करते हैं, गुड़िया को माला पहनाई जाती है और उसका सम्मान किया जाता है| बाकी सारे दर्शक तालियां बजाकर उसका स्वागत करते हैं ,एक सरकारी अधिकारी ने गुड़िया को बोलने के लिए माइक दिया ,और उससे पूछा"- अपनी कहानी और आपका यहां तक पहुंचने का सफर ,और किसको आप इसका श्रेय देना चाहती है कृपया हमें बताएं "|

गुड़िया ने बताया, किस तरह उसने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की, मार्शल आर्ट सीखा, कॉलेज गई और कैसे उसने आईएएस परीक्षा पास की, और आज इस मुकाम पर है ,अपने पूरे परिवार को उसने धन्यवाद कहा जो उसकी सफलता में सम्मिलित है, पर बोलते-बोलते अचानक गुड़िया रुक गई ,गुड़िया की आंखें भर आई और उसने कहा "-मेरी सफलता में एक शख्स और है जो कभी मेरे सामने नहीं आया ,जिसने कभी यह नहीं बताया कि वह मुझे कितना चाहता है ,ना ही कभी मुझे एहसास होने दिया कि मैं उसके लिए क्या हूं ,जिसने हर पल ,कदम- कदम पर मेरा साथ दिया ,पर एक फ़रिश्ते की तरह, वह कोई और नहीं मेरी दादी है "|गुड़िया का इतना कहना था ,सभी लोग अचंभित हो गए ,और साथ ही शांति देवी और बसंत मामा भी| गुड़िया ने आगे कहा "यह सच है मेरी दादी मुझे जान से भी ज्यादा चाहती हैं ,मेरी स्कूल की फीस ,कॉलेज के एडमिशन की फीस ,मेरी हर जरूरत को मेरी दादी में पूरा किया है ,दादी आप सोच रही होगी मुझे कैसे पता ,मैंने आपकी और बसंत मामा की सारी बातें सुनी है" , शांति देवी की आंखों से अश्रुधारा बह निकली |

बसंत मामा की आंखें भी नम हो चुकी थी ,तब गुड़िया ने दादी को स्टेज पर बुलाया| शांति देवी स्टेज पर गई गुड़िया को सबके सामने गले लगा लिया ,प्यार से गुड़िया का माथा चुम्मा ,और ढेरों आशीर्वाद देती रही |कार्यक्रम खत्म हुआ सब घर पर आ गए, परिवार वालों के मन में अभी भी कुछ सवाल थे, जिनके जवाब वह शांति देवी से चाहते थे|

घर पर आने के बाद गुड़िया ने शांति देवी से पूछा"- दादी आपने कभी मुझे एहसास नहीं होने दिया , मुझे कितना चाहती हो मेरे लिए इतना कुछ कर रही है ,क्या मैं इसकी वजह जान सकती हूं ?

शांति देवी ने कहा "-नहीं गुड़िया मैं तुम्हें वजह नहीं बता सकती, यह मेरी पीड़ा है जो हम किसी के साथ नहीं बांटना चाहती"| बड़ी बहू बोली "-अम्मा जी क्या हम आपके अपने नहीं हैं ,अापने हर सुख दुख में हम सबका साथ दिया है, तो हमारा भी फर्ज है ,आपका साथ देना, आप हमें बताइए आखिर बात क्या है ?बसंत मामा ने कहा "-जीजी इतने सालों से सारा दुख तकलीफ आप अपने अंदर समाए हुए हैं ,आखिर यह परिवार आपका ही तो है, और आप कहती है ना अपनों के साथ है दुख बांटने से कम हो जाता है"|

शांति देवी ने कहा"- सत्य! बसंत मैं इतने सालों से अपना दुख अपनी तकलीफ, अपने ही परिवार से छुपाए हुए घुट-घुट कर जी रही थी ,पर !अब नहीं ,गुड़िया मेरी यह तकलीफ आज की नहीं, उस वक्त की है जब मेरी उम्र मुश्किल से 10-11 वर्ष रही होगी, हम तीन भाई बहन थे हां 3 !!!तुम्हारे दादा को और ना तुम लोगों को पता है मेरी एक बड़ी बहन भी थी| मां ने हम दोनों बहनों को बड़े लाड़-प्यार से पाला, बाबूजी चाहते थे समय रहते हमारा ब्याह हो जाए पर ,मां ने कहा "-नहीं 15 वर्ष के पहले अपनी बेटियों की शादी नहीं करूंगी "|

मां -बाबूजी मैं हमेशा हम दोनों को लेकर लड़ाईयां होती थी, क्योंकि हम लड़कियां थी ,और बाबूजी हमेशा मां को कोसते रहते थे इस बात के लिए |बसंत उस वक्त छोटा था |मालती जीजी जब 15 वर्ष की हुई तब बाबूजी ने जीजी के लिए एक ऊंचे घराने का रिश्ता ढूंढ लिया| क्योंकि मां ने हम दोनों बहनों को लाड़ प्यार में पाला था,तो ज्यादा घर का काम हमें सिखाया नहीं गया था |शादी के बाद जीजी को बड़ी परेशानी आई ,मालती जीजी के ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी डाल दी गई ,और उसे दहेज के लिए परेशान करने लगे| मालती जीजी जब भी घर पर आती मां को अपना दुख बताती| मां बाबूजी को कुछ बोलती, तो बाबूजी उल्टा मां को मारते |मालती जीजी की शादी को 6 महीने भी नहीं हुए थे ,और एक दिन मालती जीजी की मौत की खबर आई| दहेज की मांग और उस पर ससुराल वालों का अत्याचार ,जीजी सहन नहीं कर पाई और आत्महत्या कर ली |इतना सब कुछ होने के बाद भी बाबू जी ने जीजी के ससुराल वालों को एक शब्द भी नहीं कहा| उल्टा बाबू जी ने मां को कोसना और उन्हें मारना शुरू कर दिया ,बेटी के गम से मां वैसे ही दुखी थी और उस पर बाबूजी का यह अत्याचार |जीजी की मौत को साल भर भी नहीं गुजरा था ,और एक दिन !!मां बाबूजी खेत के काम से दूसरे गांव गए हुए थे, तब गांव का ही एक युवक हमारे घर में घुस आया ,बसंत छोटा था वह घर के बाहर खेल रहा था ,और उसने मुझे,कहते-कहते शांति देवी का गला भर आया बड़ी मुश्किल से शांति देवी ने अपने आप को संभाला और कहा"- मैं बड़ा रोई -चीखी चिल्लाई पर वह जानवर की तरह मुझे नोच रहा था ,उस पल को मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई मेरी आत्मा निकाल कर ले जा रहा हो "|

बदनामी के डर से बाबूजी ने किसी से कुछ भी नहीं कहा ,और मुझे भी समझाया मैं किसी को कुछ ना बताऊं| एक- एक पल, एक-एक दिन मैंने कैसे गुजारा है मैं ही जानती हूं| बाबूजी हर वक्त मां को ही दोष देते"- तुमने ही मेरे घर को बर्बाद किया है, तेरी बेटियों की वजह से मुझे आज यह दिन देखना पड़ा है ,तुम और तेरी बेटियां अभिशाप है मेरे लिए "|इतने दुख दर्द के बाद अब मां को भी लगने लगा था ,शायद हम दोनों बहनों को पैदा करके उसने कोई गुनाह किया है, मन ही मन घुटते रहती और मुझसे बात नहीं करती| जब मां बीमार हुई ,तब मैंने मां को दवाई देना चाहा, पर!! मॉ ने मेरा हाथ झटक दिया और मुझसे कहा"- हाथ मत लगाना मुझे ,तुम बेटियों की वजह से मेरा जीवन बर्बाद हो गया है, तुम दोनों को मैंने जन्म ही क्यों दिया ,गर्भ में ही तुम्हें मैंने क्यों नहीं मार दिया, तुम बेटियां वरदान नहीं अभिशाप हो मेरे लिए"| 2 दिन बाद दुख- तकलीफ और बीमारी की वजह से मां का स्वर्गवास हो गया |मां के देहांत के बाद अब मुझे भी लगने लगा था ,हम बेटियां ही मां की मौत का कारण है, हमारी वजह से मां को इतना दर्द हुआ, बाबूजी को इतना अपमान और तकलीफ देखनी पड़ी, घृणा होने लगी थी मुझे अपने आप से |

मां के देहांत के बाद बाबूजी ने वह गांव छोड़ दिया, हम दोनों भाई बहन को लेकर बाबूजी नए गांव आ गए ,जहां हमने नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरु की| साल भर बाद तुम्हारे दादा जी के साथ मेरा लग्न हुआ, एक नई जिंदगी में मेरा प्रवेश तो हुआ ,पर पिछली बातें मेरे दिमाग में जैसे घर कर गई |"एक अबला एक कमजोर लड़की इस समाज का सामना कैसे कर सकती है ,इन वहशी दरिंदों से कैसे लड़ सकती है, यह सब नामुमकिन है इससे तो अच्छा है कि लड़कियों का जन्म ही ना हो, ताकि उन्हें कोई तकलीफ कोई दुख का सामना ना करना पड़े"| यह सब कहते कहते शांति देवी रोने लगी, फिर आगे कहा "-गुड़िया मैं तुमसे नफरत नहीं करती, पर मन ही मन डरती थी, तुम नाजुक सी, प्यारी सी कैसे वहशी दरिंदों का सामना कैसे करोगी,कैसे सहोगी वह सब कुछ जो मैंने सहा ,नहीं बेटा आसान नहीं है ,एक लड़की होना , और इसीलिए मैंने तुमसे पहले अपनी 4 पोतियों को, जन्म नहीं लेने दिया, दुनिया में आने से पहले ही उन्हें मरवा दिया और शांति देवी रोने लगी|

गुड़िया ने गुस्से में कहा "-दादी आपने कैसे सोच लिया हम कमजोर हैं ,अबला है ,नहीं दादी हममें समाज से और वहशी दरिंदों से लड़ने की पूरी क्षमता है,," गुड़िया की बात पूरी भी नहीं हुई थी ,शांति देवी ने बीच में ही कहा "-हां गुड़िया अब मैं यह समझ चुकी हूं, जब स्कूल अध्यापक को तुम ने पीटा था तब पहली बार मैंने नारी शक्ति का एहसास किया था ,अब मैं यह समझ चुकी हूं ,ना नारी अबला है ,और ना ही कमजोर है, अपने साथ हुए अन्याय से लड़ने की एक लड़की में पूरी क्षमता है ,मैं गलत थी मेरी गुड़िया मुझे माफ कर देना|

महीने भर बाद आज फिर नवमी है सब ने मां दुर्गा की पूजा की ,और आशीर्वाद लिया | शांति देवी ने चार अलग से दीपक जलाएं और इस बार एकांत में नहीं सबके साथ , चार दीपक को भोग लगाया गुड़िया ने पूछा "-दादी यह चार दीपक मेरी चारों बड़ी बहनों के नाम से आप लगाते हो ,"आंखों में आए आंसुओं को पोछते हुए शांति देवी ने कहा "-हां गुड़िया"| शांति देवी मन ही मन अपनी 4 पोतियों से क्षमा मांग रही थी| पूजन के बाद शांति देवी ने कन्याओं को भोजन कराया उनकी पूजा की और आशीर्वाद लिया |शांति देवी आज खुश थी पहली बार उनका कन्या पूजन सफल जो हुआ था |

(दोस्तों हमारा कन्या पूजन कितना सफल है हमें देखना है समाज से कुरीतियां और बुराइयों को दूर करना है आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छे समाज की रचना करनी है जहां हमारी बेटियां खुलकर सांस ले सके ताकि हमारा कन्यापूजन सफल हो सके)

दोस्तों कहानी कैसी लगी जरूर बताइएगा आशा करती हूं आप सभी को कहानी पसंद आए आप मुझे लाइक और फॉलो भी कर सकते हैं |

स्वरचित कहानी
टीना सुमन