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वापसी

लम्बा कद,गहरी नीली,आँखेँ आकर्षक व्यक्तित्व उसके रूप के माया जाल में फँसे बिना न रह सकी थी वह।उसके बात करने का अंदाज, उसकी मुस्कराहट किसी का भी मन मोह ले, फिर वो तो यौवन की दहलीज पर खड़ी थी।पहली बार जब उसे देखा तो देखती ही रह गई थी। वह निशांत के दिलकश अंदाज और रोमांटिक बातों की इस कदर दीवानी हो गई थी कि उसको अमित का शांत धीर गंभीर व्यक्तित्व कहाँ रास आया था।काम्या जैसे अतीत की यादों में खो गई थी।

काम्या जैसा नाम वैसी ही सख्सियत थी उसकी, चंचल चुलबुली, अल्हड़,मस्तमोला।माँ समझाती "अब तो थोड़ी संजीदा हो जा, अब तू बच्ची नहीं रही, ग्रैजुएशन कर रही है" पर वह माँ की बात पर ध्यान नहीं देती, माँ अकेली सुबह से शाम तक काम में जुटी रहती मजाल है कि काम से हाथ लगा जाए। माँ कुछ कहती तो पिता बीच में टोक देते "कर लेगी जब जिम्मेदारी आएगी बच्ची है अभी"। काम्या के शौक मौज में कोई कमी नहीं थी मँहगे मँहगे मेकअप के सभी सामान थे, उस पर खाने पीने की भी शौकीन, रोज पिज्जा बर्गर की फरमाइश। मिस्टर शर्मा समाज कल्याण विभाग में लिपिक थे।और मिसेज शर्मा के एक बेटा और एक बेटी ही थे दोनों बच्चों में काम्या छोटी थी इसलिये उसे कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी थी।बेटा पढ़ने में अच्छा निकला और इंजीनियरिंग करके अच्छी नौकरी भी मिल गई थी उसे और जल्दी ही सुंदर सुशील संस्कारी निशि से उसकी शादी भी हो गई थी। लेकिन वह न पढ़ने में ही ज्यादा अच्छी थी और न ही घर के काम काज में ही उसकी कोई रुचि थी ।माँ कहती "देख कितनी मोटी होती जा रही है कुछ घर का काम काज भी किया कर" इस पर वह कहती "चिंता मत करो मम्मी में जिम जॉइन कर लूँगी और फिर से पतली हो जाऊँगी"।और फाइनल ईयर के एग्जाम के बाद उसने सचमुच जिम जॉइन कर लिया था।हर रोज शाम को सज संवरकर अपनी स्कूटी लेकर जिम जॉइन करने निकल जाती। उसी जिम में उसकी निशांत से मुलाकात हुई थी उसके आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न राह सकी थी वह।और इस प्रकार हर शाम होने वाली ये मुलाकातें पहले दोस्ती फिर प्यार में कब बदल गईं उसे पता ही नहीं चला था।अब वह जिम से बाहर भी कभी पार्क रेस्टॉरेंट में मिलने लगे थे।जल्दी ही इस बात की खबर उसके घरवालों को हुई । काम्या के पापा जल्द से जल्द उसकी शादी करना चाहते थे इसलिये उसके लिये रिश्ते देखने शुरू कर दिए। लेकिन वह अभी शादी नहीं करना चाहती थी, कारण वही निशांत था।निशांत अभी तक बेरोजगार था, पिता का बिज़नेस था पर वह कुछ नहीं करता था, दूसरी वह उनकी जाति का भी नहीं था।लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी।उसकी माँ ने उसे समझाया कि "अगर वह निशांत से शादी करती है तो उसके घरवाले उसे कभी आपनाएँगे नहीं, फिर वह तुझे कहाँ रखेगा, वह आत्म निर्भर भी नहीं है," वह निरुत्तर हो गई थी। फिर भी वह निशांत से मिलकर उसे सब बातें बताना चाहती थी।जब वह निशांत से मिली और शादी के बारे में कहा तो वह बोला "में अभी कैसे शादी कर सकता हूँ, अभी तो मेरे बड़े भाई की भी शादी नहीं हुई"। काम्या चुपचाप अपने घर चली आई ।इधर उसके पापा को उसके लिये लड़का मिल गया, लड़का मेरठ यूनिवर्सिटी में असिस्टेन्ट प्रोफ़ेसर था।उसके पापा खुश थे कि उनकी बेटी के लिये इतना अच्छा रिश्ता मिल गया।काम्या को देखने का प्रोग्राम बना वह उनको पसंद आ गई और अच्छे मुहूर्त में उनकी सगाई हो गई।और दो महीने बाद उनकी शादी भी हो गई।काम्या दुल्हन बनकर ससुराल आ गई।शुरू शुरू में तो सब ठीक था लेकिन जल्दी ही काम्या अमित के धीर गंभीर व्यक्तित्व ससुराल वालों की दकियानूसी सोच से ऊब गई।अमित पढा लिखा तो था लेकिन वो लोग गाँव से थे इसलिये घरवालों की सोच भी उसी प्रकार की थी। परिवार के अपने कुछ कायदे कानून और मर्यादाएँ थीं।जिनका परिवार की इकलौती बहु होने के नाते काम्या को पालन करना था। वह मायके में तो लाड़ चाव और नाजों से पली थी।उसे किसी बात की रोक टोक नहीं थी।इसलिये ससुराल के ये तौर तरीके उसे जी का जंजाल लग रहे थे ।अमित से जब घूमने फिरने या मूवी देखने के लिये कहती तो वह कहते कि पहले माँ से इजाजत ले लो और कई बार कहते कि श्रुति को भी साथ ले चलते हैं। ये सब बातें उसे बुरी लगतीं भला पति पत्नी के बीच किसी तीसरे का क्या काम और हर बात में माँ से इजाजत लेना जरूरी है ।कितने अजीब लोग हैं ये हर बात में इजाजत, रोका टोकी ?अब उसे फिर से निशांत का वो रोमांटिक अंदाज, उसकी वो दिलकश बातें सब याद आतीं । वह घर के काम काज में कोई विशेष रुचि नहीं लेती हर वक्त मोबाइल पर लगी रहती या सोती रहती उसकी सास ननद काम में लगी रहती। उसे सास ननद भी उसे फूटी आँख नहीं सुहाती।एक दिन दोपहर में जब अमित खाना खाने आया तो देखा काम्या सो रही है,श्रुति कॉलेज गई हुई और माँ अकेली किचन में खाना बनाने में लगी हुई है।वह कमरे में आया और काम्या को जगाकर बोला तुम सो रही हो और माँ अकेली काम में जुटी पड़ी है तुम उनका हाथ नहीं बंटा सकतीं।उन्होंने पूरी जिंदगी काम किया है अब बुढ़ापे में भी उन्हें थोड़ा आराम न मिले।इस पर काम्या बोली "नौकरानी लाये हो क्या?मुझे नींद आ रही थी इसलिये में सो गई अब अपनी मर्जी से सो भी नहीं सकती क्या ?" ।इस पर अमित बोला "सो जातीं पर काम खत्म होने के बाद"।उसने भी कह दिया घर के काम के लिये नौकरानी लगा लो,मुझसे नहीं होता इतना सारा काम ।इस पर अमित को गुस्सा आ गया और वह गुस्से में बोला यहाँ रहना है तो काम तो करना ही पड़ेगा। जब माँ ने अमित को समझाने की कोशिश की तो काम्या बोली " रहने दीजिये ये दिखावा अपने श्रवण कुमार को अपने पल्लू से ही बांधकर रखें में तो जा रही हूँ अपने घर" और अपना बैग पैक कर अपने मायके के लिये चल दी।उस समय तो उसकी सास ने किसी तरह उसे रोक लिया कहा अगर जाना ही है तो अमित तुम्हें छोड़ आएगा।लेकिन कुछ दिन बाद फिर इसी बात पर उसकी अमित से झगड़ा हो गया और वह अपना बैग उठाकर अपने मायके आ गई।

उसके इस तरह आ जाने से उसके माता पिता चिंतित हो गए उन्होंने कारण जानना चाहा।उसने कह दिया कि "वह अमित के साथ नहीं रह सकती उसे उसकी जरा भी फिक्र नहीं है"।वह अपनी माँ और बहिन के कहने में चलता है।फिर उन्होंने अमित को फ़ोन किया तो उसने उसकी सारी बातें बताईं ।काम्या की माँ और पापा ने काम्या को बहुत समझाया कि उसे इस तरह घर छोड़कर नहीं आना चाहिये था । इस पर काम्या बोली "तो क्या में अब अपने घर भी नहीं आ सकती " उनके लाख समझाने पर भी काम्या अपनी ससुराल जाने को तैयार नहीं हुई।फिर क्या था न अमित उसे लेने आया और न वह गई।इसी तरह दो साल बीत गए।उसके भाई की शादी तो पहले ही हो गई थी।अपनी भाभी से भी उसकी बनती नहीं थी।पिता उसकी चिंता में बीमार रहने लगे और एक दिन दिल का दौरा पड़ा और वह दुनिया छोड़ गए।काम्या इसके लिये खुद को जिम्मेदार समझने लगी ।एक पापा ही थे जो उसको सबसे ज्यादा प्यार करते थे और वह उसकी चिंता में ही घुलते रहे थे और दुनिया छोड़ गए थे। वह दुखी और उदास रहने लगी। उसे अपनी गलतियों का अहसास होने लगा जो उसने ससुराल में की थीं ।सास दिन भर काम में लगी रहती थी वह मन चाहा को काम करवा लेती अन्यथा मोबाइल में लगी रहती ।वो कोई उसकी माँ तो नहीं थी जो उसे झेलना उनकी मजबूरी था।वो उस घर की बहू थी तो बहु से तो सभी अपेक्षाएँ रखते हैं फिर उसकी भाभी भी तो सब काम करती है।काम्या की माँ पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा एक तो बेटी का दुख दूसरे पति भी नहीं रहे।उसने अपनी माँ के चेहरे पर हमेशा उदासी देखी उसकी वजह से। काम्या की अपनी भाभी से भी नहीं बनती थी।काम्या को अब अपनी ग़लतियों का अहसास होने लगा था।उसने मन ही मन कुछ निश्चय किया और एक दिन अमित को फ़ोन मिला दिया।अमित ने पूछा "कैसी हो काम्या ? "ठीक हूँ पापा नहीं रहे" कहकर काम्या रोने लगी। काम्या फिर बोली "मुझे अपनी गलतियों का अहसास है,अमित में उन्हें सुधारना चाहती हूँ, क्या मुझे एक मौका दोगे ? क्या हम फिर से एक नहीं हो सकते ?
अमित आश्चर्यचकित होकर बोला" कब हुआ ये सब तुमने बताया क्यों नहीं" ? "मेरी हिम्मत ही नहीं हुई बात करने की और तुमने भी कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि में कैसी हूँ"काम्या बोली। "हाँ मन किया था मेरा कि तुमसे बात करूँ तुम्हारा हाल चाल जानू पर फिर तुम्हारी माँ के साथ की गई बदसलूकी और गुस्से में घर छोड़कर जाना याद आता और में अपने मन को मार लेता" अमित बोला। काम्या -अमित क्या तुम मुझे माफ़ नहीं कर सकते। अमित -सारी ग़लती तुम्हारी नहीं है काम्या गलती मेरी भी थीं ।मुझे भी तुम्हारी मनोस्थिति समझनी चाहिये थी।एकदम अलग माहौल में एडजस्ट होने में तुम्हें कुछ वक्त तो लगता। तुम्हें अपनी गलतियों का अहसास है मेरे लिये इतना ही काफी है लेकिन में भी अपनी गलतियाँ सुधारना चाहता हूँ ।मैंने घर के काम के लिये कामवाली रख ली । वैसे भी श्रुति की शादी पक्की हो गई है वह तो चली जायेगी माँ की उम्र हो चली है वह भी कितना काम करेंगी ।काम्या- क्या श्रुति की शादी पक्की हो गई है ये तो बहुत खुशी की बात है।कब है शादी।अमित - सब कुछ फ़ोन पर ही जान लोगी क्या ।
काम्या- अमित तुम कल आ रहे हो न मिलकर ही सब बातें करेंगे। तभी दरवाजे पर एक गाड़ी आकर रुकी उसकी आवाज से काम्या की तंद्रा भंग हुई ।गाड़ी में से उसकी सास अमित उतरे । काम्या की माँ भैया भाभी सब उनकी आवभगत में जुट गये।उसके बाद सबने बैठकर बातें कीं।
सारे गिले शिकवे दूर हुए । दोनों ने अपनी अपनी गलतियाँ स्वीकार कीं और आगे से पिछली सारी गलतियाँ न दोहराने की प्रतिज्ञा की और उसके अगले दिन काम्या की दो साल बाद घर बापसी हो रही थी। काम्या को विदा करते समय उसकी माँ भैया भाभी की आंखों में आँसू थे लेकिन साथ में उसका घर बसने की खुशी भी थी।