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आत्मनिर्भरता - आत्मनिर्भरता जीवन की नई राह

मैडम हम आपको ऐसे लोन नही दे सकते, ना ही आपकी कोई नियमित कमाई है ना ही आप इनकम टैक्स भरते हो और ना ही आपके पति का कोई पुराना इनकम टैक्स या फॉर्म 16 का रिकॉर्ड उपलब्ध है, और तो और आपके पास कोई बैंक में गिरवी रखने का भी कोई साधन नही है, हम आपको किसी भी प्रकार से मदद नही कर सकते, ये शब्द बैंक के ग्राहक सेवा अधिकारी ने अधेड़ उम्र की इस महिला को कहे जो बैंक से लोन लेने की लिए आई थी।
परन्तु सर मुझे लोन की बहुत ज्यादा जरूरत है और मैंने अख़बार वगैरह में पढ़ा है बहुत सी सरकारी योजनाओं के बारे में जिसमे बैंक बिना कुछ गिरवी रखे लोन दे सकता है, महिला ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।
ग्राहक सेवा अधिकारी ने महिला को पल्ला झाड़ते हुए कहा कि आप केबिन में बैंक मैनेजर से मिल लीजिए।
महिला ने केबिन का दरवाजा खोलकर अंदर आने की इजाजत मांगी और उसी पल बैंक मैनेजर की कुर्सी पर बैठे अपने ही गांव के पारिवारिक जानकार अजय साहनी को देखकर ठिठक गई और असमंजस की स्थिति में पड़ गई।
बैंक मैनेजर ने महिला को देखते ही पहचान लिया क्योंकि वो उसके बचपन के दोस्त आजाद की पत्नी अनु थी।
बैंक मैनेजर अजय साहनी ने उसको आदरपूर्वक प्रणाम किया और सामने की कुर्सी पर बिठाया व घण्टी बजाकर चपरासी को तुरंत चाय पानी का आदेश दिया।
फिर बड़े इत्मीनान से पूछा भाभी जी अकेले अकेले आज शहर में व हमारे बैंक में कैसे आना हुआ और आजाद कहाँ है वो क्यों नही आया।
अनु ने बड़े सुकुचाते हुए कहा कि उसको कोई काम शुरू करने के लिए लोन की सख्त जरूरत है और उसे नही पता था कि आप भी इसी बैंक में काम करते हो। और इस प्रकार महिला ने ग्राहक सेवा अधिकारी से हुए अपने वार्तालाप की जानकारी अपने परिचित निकले बैंक मैनेजर अजय साहनी को दी।
अजय ने महिला को कहा कि भाभी जी ग्राहक सेवा अधिकारी ने आपको सही कहा है और बैंक की कुछ अपनी फॉर्मलटीज़ होती है, पर आप चिंता न करें मैं कुछ करता हूँ।
पर ये बताओ कि आपको लोन किसलिए चाहिए। अजय को वैसे तो अपने बचपन के मित्र आजाद की फाइनेंसियल स्थिति की जानकारी थी पर उसको ये अचरज भरा लगा कि आजाद की पत्नी लोन लेना क्यों चाह रही थी।
अनु को लगा कि अब झूठ बोलकर कोई फायदा नही, उसको अजय को सच बताना पड़ेगा।
अनु ने बताया की आजाद की कोई रेगुलर इनकम नही है और जो है वो घर चलाने में खर्च हो जाती है, बच्चों की कॉलेज की फीस और उनके अन्य पढ़ाई के खर्चो के लिए कुछ भी पैसा नही बचता इसलिए वो लोन लेकर घर मे कोई बुटीक खोलना चाहती है ताकि वो बच्चों को ठीक से पढ़ा सके।
अनु ने बताया कि उसके पति आजाद को लगता है कि मैं कोई काम नही कर सकती और इसलिए वो मेरा साथ नही दे रहे। मैं खुद से ही शहर आई हूं ताकि लोन लेकर मैं बुटीक खोलकर कुछ पैसे कमा सकूं और बच्चों की पढ़ाई ठीक से हो सके।
भाभी जी ये बताओ कि आपको कितना लोन चाहिए, अजय ने पूछा।
यही कोई एक लाख, अनु ने जवाब दिया।
इतने में चपरासी पानी और चाय रख गया था।
आप चिंता मत करो मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ, आप इत्मीनान से चाय पीजिए और मैं आज ही आजाद से बात करता हूँ वैसे भी मुझे उससे बात किये काफी दिन हो गए, आखिरी बार गांव गया था तभी मुलाकात हुई थी, अब शहर में जबसे रहना शुरू किया तो नौकरी की भागमभाग में गांव जाना कम हो गया है।
और सुनाओ गांव में, घर मे सब कैसे है, चाचा चाची और बच्चें कहाँ पढ़ रहे हैं, अजय ने एक सांस में सब कुछ पूछ डाला।
अनु ने बताया कि सब ठीक है और उसकी बड़ी बिटिया ने 12वी नॉन मेडिकल से पास की है और वो शहर के कॉलेज में कंप्यूटर इंजीनियरिंग में दाखिला लेना चाहती है जबकि बेटा अबकी बार दसवीं में आ गया है, उसको अपनो दोनो बच्चों को अच्छी पढ़ाई करवानी है ताकि बच्चे कामयाब हो सके। बस इसी उधेड़बुन में हूँ और आपसे एक निवेदन है कि आप आजाद जी को लोन वगैरह का ये सब मत बताना, वो नही चाहते कि मैं कोई काम करूँ।
भाभी जी आप बेफिक्र रहिएगा और मुझे बहुत खुशी हुई कि आप बच्चों के भविष्य के लिये व परिवार के लिये न केवल इतनी अच्छी सोच रखती हो बल्कि उसको मूर्त रूप भी देना चाहती हो, आप समझो कि आपका ये काम तो हो गया।
अजय ने किसी फॉर्म पर अनु के दस्तखत करवाये और उसकी आईडी की फ़ोटो कॉपी लगाकर बताया मैं लोन को मंजूरी के लिए भेज देता हूँ और अगले हफ्ते तक आपको लोन मिल जाएगा। आप अपनी तैयारी शुरू कीजिए।
अनु अजय की बात सुनकर बहुत खुश हुई।
जाते जाते दोनो ने एक दूसरे का मोबाइल नम्बर लिया और अजय ने फिर से कहा कि भाभी जी आपको कभी भी कोई भी कैसा भी काम हो तो नाचीज को याद कीजिएगा।
अनु के जाने के बाद अजय अपनी अतीत की यादों में खो गया जब वो गांव में आजाद के पड़ोस में ही रहता था और उसी की क्लास में पड़ता था।
आजाद के पिताजी फौज में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे जबकि उसके पिताजी किसान थे। दोनो गांव के स्कूल में 10 वीं कक्षा तक पढ़े थे और ग्यारवी में शहर के कॉलेज में दाखिला लिया था। दोनो साथ ही कॉलेज जाते थे। शहर में जाने से आजाद को जल्द ही शहर की हवा लग गई, कुछ शहर के आवारा लड़को के साथ उठना बैठना और लड़कियों के चक्कर मे पड़ गया। दिखने में आजाद स्मार्ट था और बोल चाल में भी हँसमुख और तेज था। इस वजह से लड़कियां उस पर मरती थी
जबकि अजय पढ़ाई में ठीक ठाक था और इन सब फालतू कामों से दूर रहता था, उसको अपनी परिवारिक स्थिति का भली भांति ज्ञान था और वो पढ़लिखकर कुछ बनना चाहता था। अजय ने आजाद को काफी बार समझाना चाहा कि वो पढ़ाई पर भी ध्यान दे लेकिन वो कहाँ समझने वाला था क्योंकि उसको तो खुलेपन की लत लग चुकी थी। खैर दोनो 11वीं में पास होकर 12वीं में आ गए। 12 वीं में बोर्ड की परीक्षा होती है और कठिन भी होता है। 12 वीं की परीक्षा में जहां अजय पास हो गया वहीं आजाद को कंपार्टमेंट मिली। अजय ने अब आगे की पढ़ाई के साथ साथ बैंकों व सरकारी नौकरी की कोचिंग शुरू कर दी थी इसलिए वो अब शहर में ही कमरा किराये पर लेकर रहने लगा। जबकि अजय से 12वीं की परीक्षा पास नही हुई तो उसने पढ़ाई बीच मे ही छोड़कर बिज़नेस शुरू कर दिया। उसके पिताजी फौज से रिटायर होकर आए थे तो उन्होंने अपना रिटायरमेंट के काफी पैसा आजाद की बिज़नेस पर लगा दिया। इसी बीच आज़ाद की शादी हो गई। आजाद की पत्नी अनु बहुत खूबसूरत और ग्रेजुएट थी, उसके घरवालों ने ये सोचकर शादी की थी कि आज़ाद का अपना बिज़नेस है और घर मे अकेला वारिस है इसलिए उनकी बेटी राज करेगी। शुरू शुरू में तो ठीक रहा, बिज़नेस ठीक से चल रहा था पर आजाद तो दिलफेंक हो चुका था इसलिए बिज़नेस पर उतना ध्यान नही देता था और धीरे धीरे उसको काम मे घाटा होने लगा तो उसने अपना ये काम बंद करके दूसरा काम शुरू कर लिया। इसी बीच आजाद को बेटा हो गया और पूरे परिवार में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। अजय ने अच्छे से पढ़ाई की और ग्रेजुएशन होते ही उसकी सरकारी बैंक में प्रोबेशनरी ऑफीसर की नौकरी लग गई और वो शहर में दो कमरे का मकान किराये पर लेकर रहने लगा। नीचे उसके मकान मालिक रहते थे और वो पहली मंजिल पर रहता था।
अजय और आजाद चूंकि बचपन से ही अच्छे दोस्त थे इसलिए मिलते जुलते रहते थे और एक दूसरे से अपनी सारी बातें शेयर करते थे।
एक दिन छुट्टी के दिन आजाद ने अजय को फोन किया कि वो उससे मिलने शहर आ रहा है तो अजय ने उसको घर आने के लिए बोल दिया।
तय समय पर घर की घण्टी बजी तो अजय ने दरवाजा खोला तो आजाद अपनी छोटी साली को लेकर आया हुआ था, अजय ने दोनों को अंदर लेकर गया और बैठक में बिठाया। उनको पानी देने के बाद अजय ने पूछा कि चाय पियोगे या कॉफी तो आजाद ने कहा कि भई खाली चाय कॉफी से काम नही चलेगा, उसकी साली आई है भई उसका शहर की प्रसिद्ध अग्रवाल स्वीट्स के गर्मागर्म पनीर के पकोड़े व गुलाबजामुन खाने का मन है। आप जाकर ले आओ चाय हम बनाकर रखते हैं।
अजय स्कूटर उठाकर अग्रवाल स्वीट्स के गर्मागर्म पनीर के पकोड़े व गुलाबजामुन लेने चला गया। उसको ये सब लाने में आधे घण्टे से ज्यादा का समय लग गया। सबने मिलकर चाय के साथ गर्मागर्म पनीर के पकोड़े व गुलाबजामुन का लुत्फ उठाया और इसके साथ ही आजाद अपनी साली को लेकर चला गया।
उसके जाने के बाद अजय को लगा कि बैडरूम से कोई अलग गन्ध सी आ रही है और चद्दर पर सलवटें पड़ी हुई थी। उसको लगा कि हो सकता है आजाद लेट गया हो लेकिन जब वो बाथरूम में पेशाब करने गया तो उसको लगा कि टॉयलेट में कंडोम तैर रहा था। उसने फ्लश किया तो भी थोड़ी देर में वो वापस तैरने लगे जाता था। उसको सब साफ साफ समझ मे आ गया कि उसके पीछे से आजाद ने अपनी साली के साथ ये सब किया होगा। नही तो वो उसके घर गांव से शहर क्यों आता।
अगले दिन उसने ये सब आजाद को पूछा तो आजाद ने हंसते हुए कहा कि भई साली तो आधी घरवाली होती हैं। तेरे को अग्रवाल स्वीट्स के गर्मागर्म पनीर के पकोड़े व गुलाबजामुन लाने इसीलिए तो भेजा था ताकि हमें एकांत मिल जाये।
अजय को सुनकर बड़ा अजीब लगा कि इसकी हरकतें तो शादी के बाद भी नही सुधरी है जबकि इसकी पत्नी कितनी खूबसूरत है।
खैर बात आई गई हो गई। कुछ समय बाद अजय ने भी अपने बैंक में ही लगी हुई एक ऑफिसर से शादी कर ली। दोनो की ट्रांसफर होती रहती थी पर साल में एक दो बार वो अवश्य गांव आते थे और आजाद के घर जरूर मिलकर जाते थे। आजाद को भी एक और बेटी हो गई थी।
अजय को भी दो बच्चे हो गए।
दोनो के परिवारों में अच्छी खासी जान पहचान थी। अजय जब भी गांव आता तो अनु भाभी के हाथ के आलू प्याज के परांठे जरूर खाकर जाता था। अजय अनु भाभी के व्यवहार से बहुत अच्छा महसूस करता था क्योंकि अनु स्वभाव से बहुत मिलनसार और हँसमुख किस्म की महिला थी और सारी रिश्तेदारी में उसकी तारीफ होती थी। उसके घर कोई भी रिश्तेदार अतिथि सत्कार पाकर बहुत खुश होता था। अनु भाभी भी अजय को भी बहुत मानती थी। सब लोग उसकी तारीफ करते थे और कहते थे कि अनु इतनी सुंदर होने के बावजूद बिल्कुल भी घमंडी नही है बल्कि बहुत ही मिलनसार है। वैसे आजाद भी स्वभाव से मिलनसार व सबकी इज्जत करने वाला था पर उसमें तो यही अवगुण था कि वो दिलफेंक था और खूबसूरत स्त्रियों के साथ इश्कबाज़ी करता रहता था। अनु को कभी उसने पता नही चलने दिया कि उसके इतने सम्भन्ध रहे हैं और तो और उसकी अपनी छोटी साली तक को उसने नही छोड़ा।
पर अनु उसको बहुत शरीफ मानती थी क्योंकि वो अनु को भी बहुत प्यार से रखता था। उनके आस पड़ोस और रिश्तेदारी में आजाद के दिलफेंक मिजाज की सबको जानकारी थी और थोड़ा बहुत अनु भी इस बात को समझती थी पर उसे इतना नही पता था कि आज़ाद इस हद तक चला जाता है। खैर अनु को कभी इन बातों से फर्क नही पड़ा बस उसको तो एक ही बात खलती थी कि घर की फाइनेंसियल स्थिति ठीक नही रहती थी और उसकी छोटी छोटी जरूरत भी मन मारकर पूरी होती थी।
वैसे अनु काफी अच्छे घर से थी और पढ़ी लिखी भी थी। उसने ग्रेजुएशन के बाद एक साल का कम्प्यूटर का डिप्लोमा भी किया हुआ था। शादी के कुछ साल तो उसके ऐसे ही निकल गए, ऊपर से दोनो छोटे बच्चों की परवरिश में टाइम कैसे निकल गया कुछ पता ही नही चला।
बाद में आज़ाद का बिज़नेस चला नही और काफी टाइम बिना काम के निकाल दिया, बच्चे बड़े हो रहे थे, फाइनेंसियल दिक्कत आनी शुरू हुई तब अनु को लगा कि उसने अपना समय और पढ़ाई का यदि सदुपयोग किया होता तो आज घर की माली हालात नही होती। पर अब नौकरी की उम्र तो निकल सी गई थी और ऊपर से जब भी वो आजाद से अपनी नौकरी की बात करती तो वो उसकी बात को महत्व नही देता था, बेचारी अनु कुछ नही कर सकती थी।
अनु के छोटे छोटे सपने थे जो उसको अब लग रहा था कि कैसे पूरे होंगे। पति का काम धंधा चल नही रहा था और ऊपर से बच्चों की पढ़ाई का खर्च, ऐसे में अनु ने सोचा क्यों न गांव में भारत सरकार कब डिजिटल इंडिया मिशन के तहत अटल ग्रामीण सेवा केंद्र की स्थापना की जाए जिसमे गांव के लोगो को ऑनलाइन सुविधाएं गांव में ही उपलब्ध हो जाये और रोजगार का साधन भी बन जाये। अब इसके लिए उसको कंप्यूटर, प्रिंटर, फ़ोटोकॉपी मशीन वैगरह के लिए पूंजी की आवश्यकता पड़ी। उसने अखबार में पढ़ा था कि सरकारी बैंक ऐसे कार्य के लिये लोन की सुविधा देता है इसलिए वो आज शहर में लोन के लिये बैंक आई थी।
आज अजय से जब उसका सामना हुआ तो एक बार तो वो सकपका गई थी पर उसे भी पता था कि अजय उसके घर के हालात से भली भांति परिचित है इसलिए उसने सारी बात अजय को खोलकर समझा दी।
इधर अजय ने दो लाख रुपए का लोन खुद की गारन्टी पर अनु को बैंक से दिलवा दियाअनु ने गांव में अटल ग्रामीण सेवा केंद्र की स्थापना की और गांव के लोग अपने छोटे मोटे काम अब इसी केंद्र से करने लगे। नौकरी के फॉर्म से लेकर, ऑनलाइन एडमिशन, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड वगैरह के आवेदन अब बहुत आसान हो गया। थोड़े दिन बाद इसी की कमाई से अनु ने दो और कंप्यूटर लगा दिए और गांव की लड़कियों को कंप्यूटर व टाइपिंग की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी।
आज एक साल पूरे होने पर वो मिठाई लेकर आज बैंक आई थी और अजय को धन्यवाद देने की उसकी मदद से व्व आत्मनिर्भर हो गई थी। महीने का तीस से चालीस हजार रुपए वो आसानी से कमा लेती थी। धीरे धीरे करके तीन साल में उसने बैंक से लिया सारा कर्ज भी उतार दिया था।
बच्चों की उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी उसने बड़ी आसानी से उठा ली थी।