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शम्बूक - 8

उपन्यास : शम्बूक 8

रामगोपाल भावुक

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5 वर्ण परिवर्तन- वैदिक परम्परा में भाग.1

5 वर्ण परिवर्तन- वैदिक परम्परा में

मेरे फूफा जी ने यह किस्सा मुझे सुनाया था- जब शम्बूक उस आश्रम से बाहर निकला। उसके चित्त में गुरुदेव के कुछ विचार घनीभूत होने लगे-हर जगह कुछ बुराइयाँ हैं तो कुछ अच्छाइयाँ भी। मेरे साथी छात्रों ने गुरुदेव से मेरे शूद्र होने के कारण आश्रम में स्थान देने का विरोध किया था। गुरुदेव ने उन्हें इन तथ्यों से अवगत कराया-हमारे वैदिक इतिहास में वर्ण परिवर्तन के अनेक प्रमाण मिलते हैं।

ऐतरेय ऋषि अपराधी दास के पुत्र थे। वे परम उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की। ऋग्वेद को समझने के लिये ऐतरेय ब्राह्मण को अतिशय आवश्यक माना जाता है।

ऐलूष ऋषि भी दासी के ही पुत्र थे। जुआरी एवं चरित्र हीन भी थे। बाद में उन्होंने अध्ययन कर ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये। ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित करके आचार्य के पद पर आसीन किया। ‘ऐतरेय ब्राह्मण (‘दो.उन्नीस)’

सत्यकाम जाबाला एक सेविका के पुत्र थे। वे भी ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुये।

राजा दक्ष के पुत्र पृषध अपने आचरण से शूद्र हो गये थे बाद में उन्होंने तप करके मोक्ष की प्राप्त की।‘ विष्णु पुराण (चार.एक.चौदह)

गुरुदेव ने कहा था-यदि हम शम्बूक को पढ़ने से रोकते हैं तो पृषध का उदाहरण मिथ्या हो जायेगा।

राजा नैदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुये। उनके कई पुत्रों ने क्षत्री वर्ण अपनाया।‘विष्णु पुराण (तीन. एक. तेरह)’

धृष्टा नाभाग के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मण हुये और उनके पुत्रों ने क्षत्री वर्ण अपनाया।‘‘विष्णु पुराण. (दो. दो’ चार

आगे उन्हीं के वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुये।‘विष्णु पुराण (दो. दो’ चार’)

भागवत महापुराण के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुये है।

विष्णु पुराण के अनुसार रथोत्तर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने। विष्णु पुराण के अनुसार ही हारित क्षत्रिय पुत्र से ब्राह्मण हुये।

गुरुदेव ने कहा था-मेरे परम प्रिय शिष्यों, एक यह बात भी आप सब को याद रखने लायक है कि शौनक ऋषि के बारे में आप सब जानते ही है कि वे क्षत्रिय कुल में जन्मे थे बाद में वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुये। ‘विष्णु पुराण (चार. आठ. एक’)

’विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण के अनुसार शौनक ऋषि के पुत्र कर्म-भेद से ब्राह्मण ,क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रवर्ण के हुये हैं।’

मातंग चांडाल पुत्र से ब्राह्मण बने। इसी तरह ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण राक्षस हुआ है। राजा रधु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ। त्रिशंकु राजा होते हुये कर्मों से चांडाल बन गये थे और तो और विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया। विश्वामित्र क्षत्रिय कुल के थे बाद में ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुये।

उन्होंने कहा था-छात्रों आपके प्रश्न के उत्तर में मैंने अनेक उदाहरण प्रस्तुत कर दिये है। अब कभी यह प्रश्न आपके मन में नहीं उठना चाहिये।

वेदों में शूद्र शब्द लगभग बीस बार आया है। कहीं भी उसका अपमान जनक अर्थों में प्रयोग नहीं हुआ। वेदों में किसी भी स्थान पर शूद्र के जन्म से अछूत होने, उन्हें वेदाध्ययन से वंचित रखने, अन्य वर्णें से उसका दर्जा कम होने या उन्हें यज्ञ आदि से अलग रखने का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। वेदों में कठिन परिश्रम करने वालों को शूद्र कहा गया है।‘ तप से शूद्रम् यजु (तीस. पाँच)में शूद्र वर्ण को सम्पूर्ण मानव समाज का आधार स्तम्भ कहा है।

आप सब को समझना चाहिए कि चार वर्णों से अभिप्राय यही है कि अपने- अपने कर्मों को रुचि पूर्वक अपनाया जाना है। शब्द से कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। शिक्षा का सभी को समान अधिकार है।

उनकी इन बातों से गुरुदेव के प्रति श्रद्धा में कमी नहीं रही है।

वह घर लौटकर गुरुदेव द्वारा बतलाई कठिन साधना करने लगा। ऐसी कठिन साधना देखकर प्रतिष्ठत लोग उससे भयभीत होने लगे। वे सुविधाजीवी बन गये हैं। उनसे ऐसी कठिन साधना कर पाना सम्भव नहीं है। उसके गाँव का ब्राह्मण वर्ग उसकी तपस्या को देखकर डरने लगा और उसकी साधना को देखकर मन ही मन ईर्ष्या भी करने लगा।

शम्बूक की माँ बासन्तिका सोच में डूवी थी-‘आर्य संस्कृति के अनुसार तप करके मेरा पुत्र ब्राह्मण बन जायेगा। तब वह पांड़ित्य कर्म करने लगेगा। इन दिनों मेरे काका के लड़के वैश्य वर्ग में सम्मिलित हो गये हैं। इस वर्ग ने उन्हें पूरी तरह आत्मसात् कर लिया है। ब्राह्मण एवं क्षत्रिय वर्ग कट्टर बनते जा रहे हैं। इनमें प्रवेश के लिये परीक्षा उत्तीर्ण करना पड़ती है। वैश्य वर्ग आज भी शूद्र वर्ग के निकट है। वैश्य अपना लाभ-हानि देख कर चलते हैं। ब्राह्मण प्रवेश परीक्षा को कठिनतम बनाते जा रहे हैं। जो हो, मेरा यह पुत्र ब्राह्मण बनकर ही रहेगा। योग्यता होने पर भी वर्ग बदलने में व्यवधान, किसी दिन यह नियम समाज में अभिषाप बन जावेगा। देखना, किसी दिन यही नियम समाज के पतन का कारण भी होगा। बासन्तिका को ज्ञात है कि सुन्दरलाल त्रिवेदी जैसों के घर अभी भी हैं जिनके घरों में आर्य संस्कृति फलफूल रही है।

शम्बूक भी इन दिनों सोच में रहता-यहाँ आकर एक प्रश्न जन्म ले रहा है ब्राह्मण कौन? उत्तर है-जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विजः। वेद-शास्त्र पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीत् ब्राह्मणः।

अर्थात् व्यक्ति जन्म से शूद्र होता है संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेद पुराणों के पठन- पाठन से वह विप्र हो सकता है। अरे! जो ब्रह्म को जान ले वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।

मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या यह सिद्धन्त नाम मात्र का रह गया है। ब्रह्म को जान लेने के प्रयास का ही लोग विरोध करने लगे हैं। अरे! कोई ब्रह्म को जान तो ले, उसे जानना सहज नहीं है। मैं ब्रह्म जानने का प्रयास कर रहा हूँ तो मेरी यह बात तथाकथित् ब्राह्मणों को पच नहीं रही है।

मेरे ऐसे सार्थक तर्क श्रीराम के पास पहुँच गये है वे जानते हैं मैं खरी-खरी कहने वाला इंसान हूँ। ऐसे आदमी को आँगन में कुटी बनवाकर रखना चाहिए कि नहीं, उनके यहाँ गुप्तचर विराजमान हैं। ये सारी खबरें उन तक पहुँच रही हैं। वे भी क्या करे ? ये ऋषि लोग उनके कान भरने में लगे हैं। उनकी दृष्टि में राम कैसे हो, वैसे उनकी संरचना करने में लगे हैं। कौन कैसे आचरण करें यह तय कोई दूसरा कैसे कर सकता है! अरे! जो जैसा है उसे वैसा रहने दें। वे अपने वने सिद्धान्तों की कसौटी पर कसकर श्रीराम को देखना चाहते हैं। अरे! मानव को किसी दूसरे की वनी कसौटी पर कसना सम्भव नहीं है। मुखौटा किसी दूसरे का और मूल्यांकन करने वाला दूसरा। सब कुछ इसीलिये उलटा-पुलटा हो रहा है। 00000