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उलझन - 2

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

दो

शाम को मम्मी-पापा अनुज अंकल से मिलने उनके घर गये। सौमित्र किताब खोलकर बालकनी में बैठ गया लेकिन उसका पढ़ने में मन नहीं लग रहा था। अचानक बिजली चली गयी और इनवर्टर की लाइट का फीकापन उसे अच्छा नहीं लगा। वह भी ताला बन्द कर नीचे उतर गया। उमंग को खिलाने के लिए वह अनुज अंकल के घर चला गया। जहाँ ड्राइंगरूम में मम्मी-पापा, अंकल-आण्टी, दादी माँ और अंशिका की मम्मी यानी बुआ जी बैठी थीं। बुआ जी के सामने चाय का कप रखा था जिसमें मलाई पड़ गयी थी। अंशिका की मम्मी रो रहीं थीं मम्मी और आण्टी उन्हें चुप करा रही थीं। सौमित्र बगल के कमरे में चला गया जहाँ अंशिका उमंग को लेकर टी0वी0 के सामने बैठी थी। वह भी उदास-उदास थी। पापा ने सौमित्र को अन्दर जाते देख लिया था इसलिए लगभग आधे घण्टे बाद मम्मी की आवाज पर वह बाहर आया। दादी माँ ने अंशिका को आवाज दी और सोमू से परिचय कराते हुए बताया कि अब अंशी भी सोमू के साथ स्कूल जाया करेगी कल उसका एडमीशन कराने पापा अंकल के साथ जायेंगे। उन्होंने सोमू के सिर पर हाथ फेरते हुए यह भी कहा कि अंशी कुछ पिछड़ गयी है इसलिए सोमू को उसकी मदद करनी होगी।

अगले दिन सोमू बस से स्कूल चला गया। दो पीरियड के बाद अंशी उसे अपनी क्लास की ओर आती दिखायी दी। उसने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया और अपने पास ही उसके बैठने की जगह बना ली। आज सोमू के पास बैठने वाली स्वाति स्कूल नहीं आयी थी। इंग्लिश वाली मैम जो उसकी क्लास टीचर भी थीं ने अंशी का सबसे परिचय कराया और एक सप्ताह में सारा छूटा काम पूरा कराने की जिम्मेदारी सोमू को सौंप दी जिसे उसने लगकर चार दिनों में ही पूरा करवा दिया। कुछ अंशी ने लिख लिया और कुछ सोमू ने उतार दिया। इस तरह एक सप्ताह में ही सोमू और अंशी क्लासफैलो होने के साथ-साथ अच्छे दोस्त भी बन गये।

धीरे-धीरे अंशी उससे खुल गयी और छोटी-बड़ी बातें उसको बताने लगी। एक दिन पढ़ते-पढ़ते अचानक अंशी ने पूछा- ‘अच्छा सोमू। तुम्हारे मम्मी-पापा में कभी झगड़ा होता है ?’ ‘नहीं तो, मैंने उन्हें कभी लड़ते नहीं देखा। कभी मम्मी यदि नाराज भी होती हैं तो पापा उन्हें मना लेते हैं और अगर पापा गुस्सा करते हैं तो मम्मी साॅरी बोल देती हैं। यह ‘साॅरी’ बहुत जादू की चीज है। कल हम स्कूल में फुटबाल खेल रहे थे। दो दीदियाँ उधर से निकल रही थीं वे शायद कैण्टीन से आयीं थीं क्योंकि उनके हाथ में आइसक्रीम के कोन थे। हर्षित ने एक हिट मारी और फुटबाल उनमें से एक दीदी के सिर से टकराकर दूसरी दीदी की आइसक्रीम से छू गयी। उन्होंने तो कोन तुरन्त फेंक दिया और जिन दीदी के सिर से टकरायी थी उनका कोन खुद ही गिर गया। इस तरह बेचारी दीदियों की आइसक्रीम तो गिरी ही एक दीदी के सिर में चोट भी लग गयी। वे सिर पकड़कर जमीन पर बैठ गयीं।

एक सैकेण्ड को तो हम डर गये लेकिन अगले क्षण मैं आगे बढ़ा और जो दीदी जमीन में बैठ गयीं थीं उन्हें हाथ पकड़कर गेम्स वाले सर की कुर्सी पर बैठाया और दोनों हाथ जोड़कर माफी माँगने लगा। मेरी देखा-देखी सभी बच्चे ‘साॅरी’ कहने लगे। बाद में हर्षित ने आगे बढ़कर दीदियों के पैर छू लिये और सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए ‘साॅरी’ बोल दिया तो दीदी लोगों का गुस्सा ठण्डा हो गया। तब तक एक बच्चा दौड़कर अपने पास से दो आइसक्रीम ले आया और दीदियों को दी। बाद में उन्होंने उस बच्चे को पैसे भी दिये। वह तो ले नहीं रहा था लेकिन वे मानी ही नहीं।’ सौमित्र ने बात पूरी की।

‘अच्छा अंशिका यह तो बताओ कि तुमने अचानक मेरे मम्मी-पापा के बीच झगड़े की बात क्यों पूछी ?’

‘इसलिए कि मैं पिछले तीन महीने से नानी के यहाँ रह रही हूँ और देखती हूँ कि मामा-मामी में भी कभी झगड़ा हो जाता है तो नानी मामी को डाँटती हैं और कहती हैं -‘आदमी लोग तो सब ऐसे ही होते हैं औरतों को दबना पड़ता है। मामी भी थोड़ा रो-धोकर शान्त हो जाती हैं लेकिन मेरे मम्मी-पापा के बीच जो झगड़ा हुआ वह तो इतना लम्बा हुआ कि हम अपना घर छोड़कर नानी के घर आ गये। तब नानी ने मम्मी को मामी की तरह डाँटा नहीं बल्कि उल्टा कहा तुमने बहुत अच्छा किया जो यहाँ आ गयीं। अपने आप उस बुढ़िया का और उसके बेटे का दिमाग ठीक होगा। बताओ सोमू नानी मेरी दादी को ‘बुढ़िया’ और पापा को ‘उनका बेटा’ कहकर बात कर रही थीं और मम्मी सुन रहीं थीं। आजकल मम्मी इंटरव्यू दे रही हैं। वे कहीं जाॅब करना चाहती हैं। अब उनका इरादा पापा के पास जाने का नहीं है।’ अंशिका ने पैन से आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींचते हुए उदास स्वर में कहा।

‘अंशिका ! क्या तुम अपने पापा के पास रहना चाहती हो ?’ सौमित्र का प्रश्न अंशिका को रुला गया। उसने सुबकते हुए कहा- ‘हाँ ! मुझे अपने पापा की बहुत याद आती है। दादी माँ को देखने का भी बहुत मन करता है। जानते हो सोमू ! मेरी दादी के घुटनों में बहुत दर्द होता है। वे बेचारी बड़ी मुश्किल से अपना जरूरी काम निपटा पाती हैं। तीन महीनों से वे क्या कर रही होंगी इसकी मुझे चिन्ता है। उनके कपड़े फैलाना अल्मारी लगाना, फोन मिलाना, पानी पिलाना और न जाने कितने छोटे-मोटे काम मैं ही किया करती थी अब कौन करता होगा ? दादी घर में अकेली रह जाती होंगी। पापा तो सुबह सात बजे घर छोड़ देते हैं और रात को आठ बजे से पहले नहीं लौट पाते फिर सारा काम कैसे चलता होगा ?

सोमू का ध्यान फिर अंशिका की ओर चला गया। अंशिका से उसने पूछा- ‘तुम्हारे मम्मी-पापा के बीच झगड़ा क्यों हुआ ? क्या वे हमेशा लड़ते रहते थे ?’

‘हाँ सोमू ! मैंने तो उन्हें हमेशा लड़ते हुए देखा है। मम्मी बहुत गन्दी हैं। वे दादी के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती हैं। अपनी मम्मी के तो आगे पीछे घूमती हैं और मामी को लैकचर देती हैं कि उन्हें नानी की सेवा करनी चाहिए मामी भी किसी दिन बूढ़ी होंगी तब उमंग अगर उनकी उपेक्षा करेगा तो उन्हें कैसे लगेगा ? और मेरी दादी को ‘वो बुढ़िया’ ‘वो बुढ़िया’ कहकर बातें करती हैं। जब हम पापा के घर थे तब भी वे दादी के दस बार आवाज देने पर एक बार सुनती थीं और हमेशा मुँह बनाकर काम करती थीं। साथ ही पापा से भी शिकायतें करती थीं कि दादी उन्हें चैन नहीं लेने देतीं। सारा दिन दौड़ाती रहती हैं। पापा ने मुझे समझाया था कि बेटा ! तुम दादी की बात सुना करो जिससे मम्मी को परेशानी न हो लेकिन मम्मी तो लड़ने-झगड़ने का बहाना खोजती रहती हैं जरा सा मौका मिला नहीं कि बात बढ़ा ली। अबकी बार तो मैं समझ ही नहीं पायी कि मामला क्या था ? शायद वे बुआ के पास उन्हें भेजना चाहती थीं और दादी और पापा दोनों ही इस बात पर तैयार नहीं थे। मम्मी यहाँ आ गयीं और अब तो वे पापा से फोन पर बात भी नहीं करती।’ अंशिका ने बताया।

सोमू ने पूछा- ‘तुमने अपने पापा से कभी बात की।’ ‘हाँ की थी एक दिन मम्मी की चोरी से। नानी ने बात करते सुन लिया और मम्मी को बता दिया। मम्मी ने आज तक मुझे कभी नहीं मारा उस दिन उन्होंने मुझे दो थप्पड़ लगाये और कहा आइंदा अगर मैंने पापा को फोन मिलाया तो अच्छा नहीं होगा।’ अंशिका का स्वर रुँआसा हो गया। सोमू को बहुत बुरा लगा। उसने अंशिका की काॅपी बन्द करते हुए कहा - ‘आओ अंशी तुम्हें तुम्हारे पापा से बात करवायें।’ ‘नहीं सोमू, मम्मी को पता चल गया तो वे मारेगी और न भी मारा तो उन्हें बहुत बुरा लगेगा।’ अंशिका ने विवशता जतायी।

‘उन्हें पता ही नहीं चलेगा। जब तुम बताओगी नहीं मैं बताऊँगा नहीं तो वे कैसे जानेंगी ?’ सोमू ने अश्वस्त किया।

‘अच्छा सोमू ! क्या मैं दो फोन कर सकती हूँ। पहले मैं दादी से बात करना चाहती हूँ बाद में पापा से बात करुँगी। आण्टी अंकल को पता चल गया तो वे तुम्हें डाँटेंगें तो नहीं।’ अंशिका के स्वर में उत्साह और डर दोनों का समावेश था।

‘नहीं अंशी ! पहली बात तो मैं यह बात किसी को बताऊँगा नहीं। हाँ, मौका देखकर मम्मी को जरूर बता दूँगा क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि एक मम्मी ही हैं जो तुम्हारी मदद कर सकती हैं। वे कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगीं कि तुम्हारा कष्ट दूर हो सके।’ सोमू का स्वर विश्वास से भरा था।

अंशी ने अपने घर का रटा-रटाया नम्बर मिलाया। उधर से बहुत देर बाद ‘हैलो’ हुआ। अंशी ‘दादी माँ’ कहकर रोने लगी। ‘अंशी मेरी बच्ची कैसी हो तुम की आवाज आ रही थी। इतने दिनों बाद दादी की स्नेहिल आवाज को सुनकर अंशी अपने को सम्हाल नहीं पा रही थी। सोमू ने फोन ले लिया, ‘दादी माँ ! मैं सौमित्र बोल रहा हूँ। अंशिका मेरी दोस्त है। हम एक ही क्लास में पढ़ते हैं अंशी बिल्कुल ठीक है आप मेरा नम्बर नोट कर लें और कभी भी दोपहर तीन से पाँच के बीच बात कर लें मैं और अंशी इस समय साथ-साथ पढ़ते हैं।’