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उलझन - 9

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

नौ

अंशिका की उदासी उसकी सहेली सौम्या ने अनुभव की तभी स्कूल गेट पर उतरते हुए पूछने लगी - ‘क्यों अंशिका, क्या आज तबियत ठीक नहीं है। बहुत सुस्त लग रही हो।’

‘नहीं तो तबियत ठीक है। कोई खास बात भी नहीं है।’ अंशिका ने टाला।

‘पता नहीं कुछ मौसम का असर होगा।’ कहकर सौम्या आगे बढ़ गयी। उसके पीछे सुस्त कदमों से जाती हुई अंशिका को देखकर सौमित्र सोच में पड़ गया। जरूर वकील साहब के यहाँ कुछ ऐसी बात हुई है कि अंशी इतनी परेशान है।

स्कूल से लौटकर सौमित्र ने अंशी से पूछा तो उसने यह कहकर कि कुछ नहीं कोई खास बात नहीं, बात टाल दी तो सौमित्र भी चुप लगा गया। वह जानता था कि अंशी ज्यादा देर कुछ छुपा कर नहीं रह सकती। और हुआ भी वही।

एक घण्टे बाद जब अंशी ऊपर आयी तो उसने दादी के सामने ही रोना शुरू कर दिया। बहुत मुश्किल से उसे चुप कराया गया। दादी के पूछने पर उसने बताया कि कल वह अपनी मम्मी और मामा के साथ वकील के यहाँ गयी थी। मम्मी ने पापा के ऊपर मुकदमा कर दिया है। मुकदमे में मम्मी ने वकील साहब से लिखवाया है कि पापा उन्हें परेशान करते हैं। कभी-कभी मारते-पीटते भी हैं। अपशब्दों का प्रयोग तो रोज ही करते हैं। घर खर्च के लिए पैसे भी नहीं देते न कोई नौकरानी रखी है और सभी घरेलू काम उन्हें खुद करने पड़ते हैं, इसके साथ ही अपाहिज सास की जिम्मेदारी ऊपर से। पति का सहयोग न मिलने के कारण वे वह घर छोड़कर आ गयी हैं। अपनी बेटी के भविष्य की उन्हें चिन्ता है इसलिए गुजारे भत्ते की माँग कर रही हैं। सोमू! मम्मी और वकील साहब चाहते हैं कि जब ये सारी बातें फैमिली कोर्ट में जज साहब के सामने हों तो मैं उनका समर्थन करूँ जिससे वे यह मुकदमा जीत जायें और पापा के दिमाग ठिकाने आ जाये।

‘यह तो बहुत गलत बात है। बड़ों की लड़ाई में बच्चों को घसीटने का क्या तुक ?’ दादी ने कहा।

‘ऊपर से दादी सच्चाई भी यह नहीं है। पापा हमेशा मेरा और मम्मी का खूब ध्यान रखते हैं। हाँ वे दादी का भी उतना ही ध्यान रखते हैं, यह बात मम्मी और नानी को अच्छी नहीं लगती। सारा फसाद यही है। मम्मी का कहना है कि दादी को कुछ दिन बुआ के घर भी रहने जाना चाहिए जिससे उन्हें कुछ चैन और आजादी मिले। पापा इस बात में मम्मी से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि जब दादी बुआ के पास रहने नहीं जाना चाहती तो उन्हें जबर्दस्ती कैसे और क्यों भेजा जाय ? उनकी वजह से अगर मम्मी को कोई परेशानी हो रही है तो एक दो और नौकर लगा लें वैसे कान्ता आण्टी दादी की देखभाल के लिए आती भी थीं लेकिन मम्मी आजादी चाहती हैं पूरी आजादी जिससे वे अपने हिसाब से उठ-बैठ सकें, खा-पी सकें।’ अंशिका ने मूल कारण बताया।

असलियत जानकर सौमित्र की दादी को गुस्सा आने लगा।

उन्होंने कहा - ‘बड़ी बेवकूफ है तुम्हारी मम्मी, अपनी सजी सजायी गृहस्थी छोड़कर यहाँ चली आयी।’

‘अच्छा दादी, अगर मेरी मामी भी नानी से यह कहें कि वे भी जाकर अपनी बेटी के साथ रहें तो क्या मम्मी उनको अपने साथ ले जा पायेंगी ? पापा तो कभी मना नहीं करेंगे लेकिन मम्मी खुद ही ऐसा काम नहीं करेंगी जिससे उनकी जिम्मेदारी बढ़े।’ अंशिका ने कहा।

दादी सोचने लगीं जब इतनी छोटी सी बच्ची इस बात को समझ पा रही है तो एक पढ़ी-लिखी महिला इस तथ्य को क्यों नहीं समझ पा रही है कि जीवन का नाम जिम्मेदारी है जिम्मेदारी से भागकर कैसे जिया जा सकता है ?

अंशिका ने दादी को सोचते देख पूछा - ‘दादी आप ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए ?’

दादी ने कहा - ‘बेटी, तुम्हें जो सही लगे वही करो, जीवन में कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। तुम्हारे झूठ बोलने से तुम्हारे पापा को तो कष्ट होगा ही तुम्हारी आत्मा भी आहत होगी। हाँ, हो सकता है तुम्हारे सच बोलने से तुम्हारी मम्मी और नानी नाराज हो जायें लेकिन उनकी नाराजगी थोड़े समय के लिए होगी जब वे नींद से जागेंगी तब समझेंगी कि उन्होंने क्या गलती की और तुमने उन्हें कितने बड़े गुनाह से बचाया।’

‘लेकिन दादी ! अगर मैं अभी से उनकी बात मानने से मना करूँगीं तो वे बहुत नाराज होंगी। इसलिए मैंने सोचा है कि मैं अभी तो चुपचाप सुनती रहूँ और बाद में मुझसे जो प्रश्न पूछे जायेंगे उनका सही-सही उत्तर दूँगी।’ अंशिका ने कहा

‘बिल्कुल ठीक, तुम्हें यही करना चाहिए।’ सोमू ने समर्थन किया।

‘मेरा आशीर्वाद भी तुम्हारे साथ है। हो सकता है तुम्हारे इस कदम से बात बिगड़ते-बिगड़ते बन जाय और तुम सब साथ में रह सको।’ दादी ने प्यार से कहा।

जिस दिन फैमिली कोर्ट में पहली सुनवायी थी उस दिन अंशिका को स्कूल से छुट्टी करनी पड़ी थी। जज महोदया उससे अकेले कमरे में बात करेंगी इसलिए उसका जाना जरूरी है। निश्चित समय पर वह मम्मी और मामा के साथ कोर्ट पहुँची। पहले एक केस की सुनवायी हो रही थी। एक आण्टी जी अपनी बात कह रही थीं उनके रोने की आवाज बाहर तक आ रही थी। उनका मुकदमा सुनने के बाद जज साहिबा ने चाय पी और फिर उसको और उसकी मम्मी को बुलाया गया। मम्मी की बात पूरी होने के बाद मम्मी को बाहर भेज दिया गया और अंशिका को बैठे रहने का आदेश हुआ।

अंशिका ने ध्यान से देखा जज साहिबा मम्मी की उम्र की ही रही होंगी। उन्होंने पीच कलर की चिकन की कढ़ाई की सुन्दर सी साड़ी पहन रखी है। गोल्डन कलर का चश्मा उनके सुन्दर मुख को और सुन्दर बना रहा है। मैचिंग चूड़ियाँ, बिन्दी और हल्की सी लिपिस्टिक बहुत प्यारी लग रही है। जब वे गरदन हिलाती हैं तो उनके कटे बाल भी हिलते हैं। अब वे अंशिका की ओर ही देख कर प्रश्न कर रही हैं - ‘हाँ बेटे, आपका नाम क्या है’

‘अंशिका’

‘सुन्दर नाम है, किसने रखा ?’

‘जी, दादी माँ ने।’

‘आप अपनी दादी के साथ रहती थीं। अब नानी के पास हैं आपको किसके साथ ज्यादा अच्छा लगता है ?’

‘जी दादी के साथ’

‘लेकिन बच्चों को तो नानी का घर बहुत प्यारा होता है।’

‘हाँ मैम, होता है लेकिन उन बच्चों को जो कभी-कभी नानी के घर रहने आते हैं, छुट्टियाँ या त्योहार मनाने के लिए। मेरी तरह हमेशा के लिए नानी के घर रहने आने वाले बच्चों को नानी का घर कभी अच्छा नहीं लग सकता।’

‘तो क्या तुम अपनी मर्जी से मम्मी के साथ नानी के घर रहने नहीं आयी हो ?’

‘नहीं मैम, बिल्कुल नहीं। मैं तो यहाँ एक भी दिन नहीं रहना चाहती। मुझे अपने पापा और दादी की बहुत याद आती है।’ अंशिका का स्वर भारी होने लगा।

‘लेकिन बेटी तुम्हारी मम्मी का तो कहना है कि तुम्हारे पापा बहुत अत्याचारी हैं वे उन्हें और तुम्हें बहुत परेशान करते हैं। अपशब्द भी कहते हैं और तुम लोगों की सुख-सुविधाओं का ध्यान भी नहीं देते। क्या ये बात सही है ?’ जज साहिबा का गम्भीर स्वर गूँजा।

‘नहीं मैम, बिक्ुल नहीं। यह बात सच नहीं है। मेरे पापा बहुत प्यारे हैं। वे हमें बहुत अच्छी तरह रखते हैं। हमेशा ध्ज्ञीमी आवाज में प्यार से बात करते हैं। मम्मी ही उल्टा चीखती-चिल्लाती हैं।’ अंशिका ने झटके से कहा।

‘अंशिका तुम ये बात इसलिए तो नहीं कह रही हो कि तुम अपनी नानी के घर रहना नहीं चाहतीं। यदि ऐसा है तो हम तुम्हारी मम्मी का अलग इंतजाम भी करवा सकते हैं जहाँ वे तुम्हारे साथ आराम से रह सकती हैं। तुम्हारे पापा को तुम दोनों का खर्चा देना होगा।’

‘नहीं मैम, मैं बिल्कुल झूठ नहीं बोल रही और न ही इसलिए कह रही हूँ कि मुझे नानी के घर रहना अच्छा नहीं लगता है मैं तो अपने पापा और मम्मी दोनों के साथ एक ही घर में रहना चाहती हूँ जहाँ हमारी प्यारी-प्यारी दादी भी हों। अगर मम्मी नहीं जाना चाहतीं तो आप मुझे भेज दें लेकिन इक्जाम्स के बाद क्योंकि मेरी दादी बहुत परेशानी में हैं और उन्हें किसी की मदद की जरूरत है। किसी की देखभाल की आवश्यकता है। अंशिका की आवाज भर्रा गयी।

‘तुम तो बहुत प्यारी और समझदार बच्ची हो, साथ ही बहादुर भी हो कम से कम सच बात कहने की हिम्मत तो रखती हो, शाबाश ! तुम्हारे जैसी बेटियाँ परिवार के महत्त्व को समझती हैं। देखना तुम बड़े होकर बहुत ऊँचाई प्राप्त करोगी और बहुत सारा मान-सम्मान पाओगी। तुम कभी रोना मत रोते तो कमजोर लोग हैं तुम तो बहुत बहादुर हो। मैं तुमसे वायदा करती हूँ कि ऐसा कुछ नहीं होने दूँगी जो तुम नहीं चाहती हो। तुम जब भी चाहो मुझसे मिलने आ सकती हो। मुझे तुम बहुत प्यारी लगीं।’ जज साहिबा ने कहा

‘थैंक्यू मैम, थैंक्स एलाॅट।’ अंशिका ने हाथ जोड़ दिये।

‘अब तुम जा सकती हो, देखो इस कमरे में हुई बातें अपनी मम्मी को मत बताना नहीं तो वे तुम पर सख्ती करेंगी।’

‘जी कहकर अंशिका बाहर निकल आयी जहाँ मम्मी उसका बेसब्री से इंतजार कर रहीं थीं।

मम्मी ने उतावली से कहा- ‘अंशी ! तुमने जज के सामने वही सब कहा जो हमने तुम्हें कहने को कहा था।’

अंशिका ने हाँ में गरदन हिलायी। मम्मी को तसल्ली नहीं हुई बोलीं -

‘बहुत देर तक बातें होती रहीं क्या-क्या पूछ रहीं थे वे।’

‘कुछ खास नहीं पहले तो वे फाइल देखती रहीं बाद में उन्होंने जो कुछ पूछा वह मैंने बता दिया।’ अंशिका ने टाला।

तब तक वकील साहब भी आ गये उन्होंने बताया कि अगली पेशी अगले महीने है जिसमें अंशिका को भी आना है। उसके पापा को बुलाया जा रहा है। आज तो वे किसी जरूरी मीटिंग के कारण उपस्थित नहीं हो सके थे अगली पेशी के समय उनका रहना जरूरी है। सुनकर अंशिका ने राहत की साँस ली कम से कम वह अपने पापा से मिल तो सकेगी। आज ही वह उन्हें फोन कर सारी बातें बता देगी। जज साहिबा का आश्वासन भी। अब उसे सौमित्र के घर पहुँचने की जल्दी थी।