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उलझन - 8

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

आठ

दादी का मानना कि इस प्रकार से लड़कियों को छूट देना उनकी जिद्द पूरी करना किसी प्रकार ठीक नहीं। उन्होंने यह बात जब सौमित्र के पापा को बतायी तो उन्होंने कहा - ‘अगर कलिका जाना चाहती है और उसकी टीचर्स एलाऊ करती हैं तो दीदी को उसे जाने देना चाहिए। जीजाजी के पास पैसों की कमी तो है नहीं वैसे भी स्कूल वाले एक अकेली बच्ची को तो भेजेंगे नहीं पूरा ग्रुप जा रहा होगा। मैं बात करुँगा जीजा जी से। केवल लड़की है इसलिए ऐसा मत करो मैं नहीं मानता। उसकी क्षमता, रुचि और सम्भावनाएँ देखकर निर्णय किया जाना चाहिए।’

दादी ने तर्क दिया - ‘इस तरह तो वह बिगड़ जायेगी कल चाँद माँगेगी तो चाँद लाकर देना पड़ेगा।’

‘नहीं दादी माँ, कलिका दीदी बुद्धू थोड़े ही हैं जो चाँद माँग लेंगी। हो सकता है कि वे चाँद पर जाने वाली अन्तरिक्ष यात्री बन जायें।’ सौमित्र ने भी बहस में भाग लिया।

‘बड़ा आया बातें बनाने वाला। इतनी पढ़ाकू नहीं है तेरी कलिका दीदी।’ दादी ने लाड़ से कहा।

‘दादी आप नहीं जानतीं कलिका दीदी कितनी होशियार हैं पढ़ाई में। वे तो कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स की तरह अंतरिक्ष यात्री बनना चाहती हैं। उनकी फिजिक्स और मैथ्स इतनी अच्छी है कि क्या कहने। सौमित्र ने दादी की जानकारी बढ़ाई।’

‘तेरी कलिका दीदी और तू दोनों ही एक नम्बर के पढ़ाकू हैं। इतना तो मैं भी जानती हूँ कि वह लड़की आगे जाकर कुछ करेगी कुछ बनेगी लेकिन बच्ची को इतनी दूर भेजने से जी डरता है तेरी बुआ का। डर तो मुझे भी लगता है। हवाई जहाज में बैठकर जायेगी कलिका तो कहीं कुछ बुरा न हो।’ दादी ने चिन्ता व्यक्त की।

‘तो क्या अम्मा ! तुम्हारी कलिका ही अकेली जायेगी हवाई जहाज में और बच्चे भी तो जायेंगे। काॅलिज की टीचर्स भी साथ में रहेंगी। तुम खुद तो डरती ही हो दीदी को भी कह-कहकर डरा रही हो।’ सौमित्र के पापा ने हँसते हुए कहा।

‘दादी पिछले दिनों भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल लड़ाकू विमान में बैठी थीं। आपके उम्र में तो अच्छी खासी बड़ी हैं वो लेकिन डरी नहीं यहाँ तक कि उन्होंने उस विमान यात्रा का आनन्द भी लिया।’

‘हाँ-हाँ जानती हूँ लेकिन वो तो राष्ट्रपति है चाहे जो करें। हम तो सीधे सादे लोग हैं।’

‘वह केवल राष्ट्रपति नहीं हैं तीनों सेनाओं की प्रमुख भी हैं। जब गणतंत्र दिवस की परेड होती है तब वे परेड की सलामी लेती हैं। सेना के जवानों को पदक देती हैं और उस समय भी सलामी लेती हैं सीधी खड़ी होकर और उन्हें घण्टों खड़ा रहना पड़ता है।’ सौमित्र ने बात आगे बढ़ाई।

‘कहाँ कलिका की बात हो रही थी और कहाँ महिला राष्ट्रपति की बात होने लगी। तुम तो बिल्कुल शेखचिल्ली हुए जा रहे हो सोमू !’ मम्मी ने प्यार से टोका।

अभी सभी बातें ही कर रहे थे कि कलिका दीदी के पापा का फोन आ गया। वे सौमित्र के पापा से कलिका को भेजने के सम्बन्ध में राय माँग रहे थे पापा से बातचीत करने के बाद उन्होंने बुआ से भी बात करायी और बुआ की दादी से भी बात की। रोज तो दादी नहीं, कलिका को इतनी दूर मत भेजो की रट लगायें थीं लेकिन आज उन्होंने कहा - ‘अगर कलिका का मन है और उसकी टीचर्स की भी यही इच्छा है तो उसे जाने दो। लेकिन एक बात सोच लो अब कलिका जल्दी ही तुमसे दूर होने वाली है। सोमू बता रहा था कि वह अन्तरिक्ष यात्री बनना चाहती है तो उसकी पढ़ाई तो तुम्हारे शहर में नहीं होती है। इसके लिए उसे दूर जाना पड़ेगा। तुम उसे उस समय बिल्कुल मत रोकना क्योंकि हो सकता है वह कल्पना चावला की तरह हमारे देश का नाम रौशन करे और तब लोग कहेंगे देखो अंतरिक्ष यात्री कलिका की नानी जा रही हैं।’

‘बस कीजिये अम्मा जी अब सोमू की तरह आप भी शेखचिल्ली बनी जा रही हैं।’ मम्मी ने हँसते हुए कहा और सोमू यह सोचकर बहुत खुश हुआ कि आज कलिका दीदी कितनी खुश होंगी। उसने सोच लिया है जब कलिका दीदी जायेंगी तो वह भी दादी के साथ उन्हें ‘बेस्ट आॅफ जर्नी’ कहने एयरपोर्ट जायेगा चाहे इसके लिए उसे एक दिन की छुट्टी क्यों न लेनी पड़े। वह जानता है कि दादी उन्हें सी0 आफ करने जरूर जायेंगी।

अंशिका अभी तक पढ़ने क्यों नहीं आयी सोचते हुए सौमित्र ने घड़ी की ओर देखा अरे साढ़े तीन बज गये आधा घण्टे में सर आ जायेंगे। रोज तो वह तीन बजे तक आ जाती है और फिर दोनों मिलकर सर का दिया हुआ होमवर्क करते हैं। आज क्या हो गया। स्कूल में तो सब ठीक-ठाक था।

थोड़ी देर बाद अंशिका आ गयी। वह उदास लग रही थी। जब तक सोमू उससे कुछ पूछता तब तक सर आ गये। दोनों पढ़ने बैठ गये। सोमू ने अनुभव किया कि आज सर के पढ़ाते समय अंशी का मन बिल्कुल नहीं लग रहा था वह बार-बार घड़ी की ओर देख रही थी जैसे पढ़ना उसे भारी पड़ रहा हो। सर के जाने के बाद अंशी ने बस्ता सम्हाल लिया। वह जाने के लिए आ खड़ी हुई तो सोमू ने पूछा - ‘क्या बात है अंशी ! आज कुछ परेशान हो। तुम आज देर से क्यों आयीं और तुम्हारा पढ़ने में भी मन क्यों नहीं लग रहा था। क्या कहीं जाना है ?’

‘हाँ सोमू! जाना है’ अंशी बोली

‘कहाँ’

‘वकील के यहाँ’

‘तुमको वकील से क्या काम ?’ सोमू को आश्चर्य हुआ।

‘मुझको कोई काम नहीं है। मम्मी के वकील ने मुझे बुलाया है।’

‘उन्हें तुमसे क्या काम पड़ गया ?’ सौमित्र ने पूछा

‘मैं क्या जानूँ ? लेकिन इतना जरूर है कि मम्मी और पापा की लड़ाई अब कोर्ट तक पहुँच गयी है। कोर्ट में ही वकील की जरूर पड़ती है।’ अंशी ने उदासी से कहा।

‘कह तो तुम ठीक रही हो लेकिन तुम इस कदर उदास क्यों हो पहले जाकर देखो तो कि बात क्या है हो सकता है दोनों की सुलह कराने का काम वकील साहब कर रहे हों।’ अपनी समझ से सौमित्र ने तसल्ली दी।

‘वकील और डाॅक्टर से भगवान बचाये। ये दोनों कभी मनुष्य का भला नहीं चाहते। ऐसा मैंने एक जगह पढ़ा है लेकिन अनुभव करने पर पता चलेगा कि सच्चाई क्या है ?’ अंशी ने ठण्डी साँस भरी और चल गयी।

अंशिका के जाने के बाद सौमित्र का मन भी पढ़ने में नहीं लगा। दादी को बताकर वह अभिनव से मिलने चला गया। दादी को बताकर वह अभिनव से मिलने चला गया। अभिनव का घर थोड़ा दूर था इसलिए उससे नीचे पोर्टिको से साइकिल निकाल ली। दादी बालकनी में आ गयीं थीं इसलिए उसने हाथ हिलाकर उनसे विदा ली। अभी मम्मी-पापा के आने में देर थी इसलिए उसने अभिनव के घर की ओर साइकिल बढ़ा दी। थोड़ी दूर जाने पर उसे बादल दिखायी दिया जिसे उसने दूर से पहचान लिया और उसके पास पहुँचकर साइकिल रोक दी। बादल अचकचा गया वह कुछ सोचता सा चला जा रहा था कि ‘बादल भइया’ शब्द से वह चैंक गया लेकिन सौमित्र को देखकर वह बहुत खुश हुआ। अभिनव के घर से लौटने के बाद से वह सौमित्र से मिल नहीं सका था वह सौमित्र को ध्ज्ञन्यवाद देना चाहता था जो उसने बादल के लिए किया वह तो कोई कर ही नहीं सकता था। लेकिन उसकी हिम्मत उसके घर जाने की नहीं पड़ रही थी न जाने उसके घर वाले उसे देखकर क्या व्यवहार करें ? सौमित्र से मिलने दें भी या नहीं। सौमित्र के पापा और उसके पापा की नौकरी में बहुत अन्तर था। सौमित्र के पापा भी आॅफीसर थे और उनके परिवार का रहन-सहन भी अलग था इसलिए बादल डर रहा था वैसे आज तक वह कभी सौमित्र के घर भी नहीं गया था। उनकी मुलाकात हमेशा खेल के मैदान में ही हुई थी।

वहीं सड़क पर खड़े-खड़े बादल से बातें करते हुए सौमित्र को समय का पता ही नहीं चला। अपने बारे में बताते हुए बादल ने एक भी बात नहीं छुपाई। रहमान के साथ घूमना, आना-जाना सब कुछ यहाँ तक कि पान मसाला खाने की बात भी उसने बतायी। सब कुछ सुनकर सौमित्र ने केवल इतना कहा - ‘बादल भइया ! आप सच्चे इंसान हो। अपनी गलतियों से सबक लेना अच्छी बात है और अपनी कमियों को छुपाना तो सबको आता है लेकिन किसी के सामने अपनी कमियों को स्वीकार करना बहुत कठिन होता है। ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले।’ यह मेरी दादी कहती हैं। आज मैं आपसे कहता हूँ। पुरानी बातें भूलकर नये सिरे से मेहनत करें। आपको भगवान सफलता देगा।

बादल से विदा लेकर सौमित्र ने घड़ी देखी साढ़े छः बज रहे थे। उसने अभिनव के घर जाने का विचार त्याग दिया और साइकिल घर की ओर मोड़ ली। मम्मी-पापा के आने से पहले वह घर पहुँच चुका था। सभी बातों को झटक कर उसने किताबें खोल लीं।

स्कूल बस में अंशिका सौमित्र से पहले बैठी हुई थी। उसका चेहरा कल की तरह ही उदास था बल्कि रोया-रोया सा लग रहा था। सौमित्र ने इस समय कुछ पूछना ठीक नहीं समझा न ही अंशी ने ही कुछ बताया।

रोज की तरह कुछ बच्चे फिल्मी गानों की अन्ताक्षरी खेल रहे थे। आज अंशी चुप थी वैसे वह भी कभी-कभार गाने बताने में सहायता करती थी। बस के दायीं ओर और बायीं ओर बैठे बच्चों की टीम अपने आप बन जाती थी। सभी बच्चों की सीट कण्डक्टर भइया जी ने शुरू में ही तय कर दी थी जिससे अपनी-अपनी सीट पर सभी बैठते थे और कोई झगड़ा आदि नहीं होता था। बस में छोटे-बड़े सभी प्रकार के बच्चे स्कूल जाते थे। कुछ छोटे बच्चे बहुत चुलबुले और शैतान थे जिन्हें बड़े बच्चों को सम्हालना पड़ता था, नहीं तो वे चलती बस में घूमना शुरू कर देते थे और बस के झटकों से बार-बार गिरते जाते थे। लेकिन इस गिरने-उठने में उन्हें बहुत मजा आता था उनकी ‘खिल-खिल’ सबको अच्छी लगती थी लेकिन जब से नन्हें अंकुर के सिर में चोट लग गयी तब से सब सतर्क हो गये और ड्राइवर भइया जी ने बड़े बच्चों की यह ड्यूटी लगा दी कि छोटे बच्चों को सम्हालने का काम उन्हें करना है।