Sajna sath nibhana - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

सजना साथ निभाना--भाग(२)

जब सब खाना खा चुके,तब सभी एक साथ उठे__
नवलकिशोर भी उठा और पूर्णिमा से बोला,अच्छा आंटी जी अब मैं चलता हूं,इतने अच्छे लंच के लिए धन्यवाद।।
ठीक है बेटा,आते रहना शादी का घर है कुछ ना कुछ काम लगा ही रहता है आते रहोगे तो कुछ मदद हो जाया करेंगी, पूर्णिमा बोली।।
जी आंटी, इतना कहकर नवलकिशोर चला गया।।
घर आकर नवलकिशोर के मन में विभावरी की सूरत और उसकी बातें ही चल रही थी, उसने ऐसी चंचल लड़की कभी नहीं देखी थी।।
उधर विभावरी भी नवल के बारे में सोच रही थी कि कितना बुद्धू है लेकिन मेरी वजह से बेचारे के कपड़े खराब हो गये।।
शाम को दीपक घर आया और पूर्णिमा से पूछा, मां कोई किताबें देने आया था क्या?
पूर्णिमा बोली, हां बेटा, कोई नवलकिशोर नाम का लड़का आया था।
किताबें कहां है, मां!! दीपक ने पूछा।।
अरे,विभावरी से पूछ!उसी ने रखवाई थी, पूर्णिमा बोली।।
ठीक है मां, दीपक इतना कहकर विभावरी के पास पहुंचा।।
अरे,विभू कोई किताबें लेकर आया था, दीपक ने पूछा।।
हां, कोई नवलकिशोर,विभावरी बोली।।
कहां है किताबें ,दीपक ने पूछा।।
जी ,आपके कमरे में रखवा दी थी।।
ठीक है,मैं देख लेता हूं, इतना कहकर दीपक चला गया।।
ऐसे ही शादी की तैयारियों में सब ब्यस्त थे,राहुल भी नवलकिशोर का भाई ,दीपक के साथ साथ लगा रहता, कुछ ना कुछ काम के लिए दोनों ही दिनभर भागादौड़ी करते रहते।।
फिर एक दिन राहुल के साथ नवलकिशोर भी आ गया, राहुल बोला आज इसे भी ले आया,ये यहां कमरे में अकेले रहता है कह रहा था भइया आप तो चले जाते हैं और मैं यहां अकेले रहता हूं,ये इसी साल यहां आया है पढ़ने के लिए, गांव में बारहवीं के बाद सुविधा नहीं थी पढ़ने की तो मैं साथ लिवा लाया गांव से, यहीं कालेज में एडमीशन करा दिया है बी.एस.सी.में।
दीपक बोला, अच्छा तो यही आया था उस दिन किताबें देने,
राहुल बोला, हां, मैं ने पर्ची में घर का पता लिख दिया था।
तभी पीछे से विभावरी आ गई, हां राहुल भइया एक बात और पता चलीं कि आपका नाम चित्तकिशोर है।।
राहुल बोला,इस नवल ने बताया होगा।।
विभावरी बोली, हां और हंसकर जाने लगी।।
तभी दीपक बोला,विभा जरा नवल को अंदर बिठा और कुछ चाय नाश्ता करा दें फिर इसको भी कोई ना कोई काम पकड़ा देते हैं।।
ठीक है, भइया और विभावरी नवल से बोली उठो!! चलो अंदर
नवल चल दिया विभावरी के कहने पर।।
विभावरी ने बैठक में जाकर नवल से कहा कि यही बैठो ,मैं आती हूं , थोड़ी देर में विभावरी चाय और गरम गरम कचौड़ी लेकर आ गई उसने नवल को नाश्ता दिया और चली गई।।
ऐसे ही शादी नजदीक आ रही थी और दिन गुजरते जा रहे थे, अब कभी कभी नवल भी राहुल के साथ आ ही जाता था,वो तो सिर्फ विभावरी को देखने ही आता था,विभावरी भी उसे देखकर खुश हो जाती ।।
एक दिन नवल ने विभावरी से पूछा तुम पढ़ती हो।।
विभावरी बोली , हां
लेकिन तुम तो हमेशा घर में रहती हो,नवल बोला।।
हां,बी.ए. फर्स्ट इयर में पढ़ती हूं लेकिन प्राइवेट,विभावरी बोली।।
लेकिन प्राइवेट क्यो?नवल ने पूछा।।
हमारे खानदान में लड़कियां कालेज नहीं जाती, मेरी बुआ भी ऐसी ही पढ़ी है और मेरी दीदी भी।।
अच्छा वहीं दीदी जिनकी शादी होने वाली है,नवल बोला।।
विभावरी बोली, हां मेरी यामिनी दीदी।।
लेकिन मैंने देखा नहीं उन्हें आज तक,नवल बोला।।
हां, कहते हैं कि शादी के पहले होने वाली दुल्हन को ज्यादा बाहर नहीं निकलना चाहिए नजर लग जाती है,विभावरी बोली।।
अच्छा,अब मैं कुछ काम करती हूं, परसों तिलक चढ़ना है,सारे रिश्तेदार दूल्हे के घर जाएंगे,तिलक चढ़ाने, मां कह रही थी कि सारी चीजों की लिस्ट बनाकर बाबू जी को देदू कहीं कुछ कम तो नहीं,कल का टाइम है अगर कुछ घट रहा होगा तो आ जाएगा इतना कहकर विभावरी चली गई।।
नवल भी अपने काम में लग गया,अब तो नवल आए दिन आने लगा सिर्फ विभावरी को देखने के बहाने उधर विभावरी भी परेशान हो जाती थी अगर नवल नहीं आता था तो।।
दोनों ही एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे नई उम्र का आकर्षण था,इस उम्र में भावनाओं पर काबू नहीं रहता,बस वहीं हो रहा था दोनों के साथ।।
अब शादी को दो तीन दिन ही बचे थे, तैयारियां जोरों पर भी थी, कोई अपना लहंगा लेनें जा रहा था तो कोई अपने जेवर, महिलाओं को तो बहुत अच्छा मौका मिल जाता है, सजने-संवरने का,सब एक-दूसरे से पूछ रही थी कि कौन सी चूड़ियां और कौन से जेवर इन कपड़ों के साथ अच्छे लगेंगे।।
पूरे घर में चहल-पहल मची थी,मण्डप भी सज चुका था लड़की को हल्दी और तेल चढ़ना था,शाम को महिलाएं मंगल-गीत गा रही थीं, लड़की को मण्डप के नीचे लाया गया,एक एक करके सबने लडकी को तेल और हल्दी चढ़ाकर शगुन किया।।
सब विभावरी से मजाक कर रहे थे कि दुल्हन की बची हुई हल्दी लगाने से ब्याह जल्दी हो जाता है,ले तू भी लगा लें तेरा ब्याह भी जल्दी हो जाएगा।।
वहीं पर नवलकिशोर भी बैठा,सारे नेगचार देख रहा था,बार बार नजरें चुरा कर विभावरी की ओर भी देख लेता,विभावरी लग भी बहुत सुंदर रही थी।।
सारे नेगचार खत्म हो गये अब रात के खाने का समय हो रहा था, तभी राहुल बोला, अच्छा आंटी जी हम चलते हैं।।
पूर्णिमा बोली, ऐसे कैसे अब रात का खाने का समय हो रहा है, थोड़ी देर में सब खाना खायेंगे, खाना खाकर जाओ।।
राहुल बोला, ठीक है आंटी जी... लेकिन थोड़ा जल्दी जाना है,मकान मालिक को हमारे देर से आने में परेशानी होती है।।
पूर्णिमा बोली, अच्छा तो ठीक है, मैं विभावरी से कहती हूं,वो तुम दोनों का खाना लगा दे।।
राहुल बोला, ठीक है आंटी जी!!
पूर्णिमा ने विभावरी को आवाज दी,विभावरी...ओ विभावरी...
हां !मां क्या बात है ?
बेटी,सुन इन दोनों भाइयों को जल्दी जाना है,जरा इनका जल्दी से खाना तो लगवा दें और सुन रसोई के बगल वाले कमरे में लगवा दें, दादी देखकर ये ना कहने लगे कि घर के बड़े बूढ़े बैठे हैं और तू इन्हें जल्दी खाना खिलवा रही है, पूर्णिमा बोली।।
ठीक है मां, अभी लगवाती हूं,राहुल भइया आप जब तक रसोई के बगल वाले कमरे में चलिए, मैं खाना लेकर आती हूं और पूर्णिमा खाना लेने चलीं गईं।।
पूर्णिमा ने खाना परोसा___
दोनों थालियां व्यंजनों से भरी हुई थी, दोनों थालियों में कम-से-कम छः छः कटोरियां थी,एक में मटर-पनीर,एक में छोले,एक मे दही-आलू की सब्जी,एक में दाल तडका,एक में भरवां बैंगन और एक कटोरी में गरम गरम गाजर का हलवा वो भी सूखे मेवे और देशी घी में सराबोर,साथ में मसाले वाली भरवां मिर्च, रोटियां और सलाद भी था।।
नवल बोला, इसमें से एक दो सब्जियां कम कर लो विभावरी मैं इतना नहीं खा पाऊंगा।।
तुम्हीं हटा दो,जो तुम्हें पसंद ना हो,विभावरी बोली।।
नवल ने भरवां बैंगन और छोले हटा दिए।।
लेकिन भरवां बैंगन तो आज मैंने बनाए थे,विभावरी बोली।।
तब नवल ने कहा ठीक है और मटर पनीर हटा दिया अपनी थाली से,विभावरी खुश हो गई।।
विभावरी बोली मैं अभी और रोटियां लेकर आती हूं।।
तभी राहुल बोला,क्यो रे! तुझे तो मटर पनीर बहुत पसंद हैं और तू भरवां बैंगन कब से खाने लगा।।
नवल दांत निकालकर हंस दिया।।
राहुल बोला,सुधर जा बेटा, मैं सब समझ रहा हूं लगता है अब तू बड़ा हो गया है।।
राहुल ने फिर दांत निकाल दिए।।
दोनों खाना खाकर चले गए।।
अब अगले दिन मेंहदी की रस्म भी हो गई, सबने खूब गाना-बजाना किया।।
अब आज शादी वाला दिन है दिनभर घर में खूब चहल-पहल रही,जिसको देखो वही काम करते हुए नजर आ रहा है। कहीं मिठाइयों की खुशबू तो कहीं पूड़ी-कचौडी की।।
और ऐसे ही शाम भी हो गई और शाम से रात भी सब महिलाएं और लड़कियां अपने अपने बनाव-सिंगार में लग गए क्योंकि बारात के आने का समय हो गया था।।
विभावरी तैयार होकर बाहर आई, एकाएक नवल की नजर पड़ गई विभावरी पर,वो एकटक देखता ही रह गया।।
विभावरी बोली,क्या देख रहे हो?
बहुत ही सुंदर लग रही हो,नवल ने कहा।।
विभावरी शरमाकर चली गई।।
लेकिन कुछ देर बाद पूर्णिमा घबराई सी,सेठ धरमदास जी के पास पहुंची, पूर्णिमा की बात सुनकर सेठ धरमदास अपने सर की पगड़ी निकाल कर वहीं पड़े बिस्तर पर धड़ाम से बैठ गए, उनके माथे की रेखाएं बता रही थी कि कुछ तो ऐसा हुआ जो शायद नहीं होना चाहिए था।
तभी पूर्णिमा बोली,आप चिंता ना करें इसका भी उपाय है, बिल्कुल भी निराश ना हो, मैं ऐसा कुछ भी नहीं होने दूंगी की आपकी इज्जत पर आंच आए।‌
और पूर्णिमा ने विभावरी को अंदर बुलवाया___
पूर्णिमा को ऐसे हैरान और परेशान देखकर विभावरी ने पूछा,मां क्या बात है जो आप इतनी परेशान हैं।।
पूर्णिमा,विभावरी के पैरों तले गिर पड़ी और बोली__
तू ही अब कुछ कर सकती हैं,तू ही इस खानदान की इज्जत बचा सकती है।।
मां ऐसा क्यो कह रही हो?क्या हो गया है तुम्हें?विभावरी ने पूछा।।
बेटी वो भाग गई, हमारी इज्जत पर दाग लगाकर, उसने कुछ नहीं सोचा किसी के बारे में, पूर्णिमा बोली।।
कौन मां?विभावरी आश्चर्य में थी।।
और कौन यामिनी,अब तू ही हमारी डूबती नैया को पार लगा सकती है, पूर्णिमा बोली।।
लेकिन कैसे मां?विभावरी ने पूछा।।
यामिनी की जगह तू इस मण्डप में दुल्हन बनकर बैठ जा.....
पूर्णिमा बोली।।
नहीं ... मां... ऐसे कैसे हो सकता है...विभावरी चीखी।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___