Sajna sath nibhana - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

सजना साथ निभाना-- भाग(३)

विभावरी बोली, मां ऐसे कैसे तुम मेरी बलि चढ़ा सकती हो, मैं कैसे दीदी की जगह बैठ जाऊं, कुछ तो सोचों मेरे बारे में, अभी एक मिनट पहले मैं हंसती मुस्कुराती लड़की थी और दूसरे मिनट में मुझे तुमने किसी की दुल्हन बनने को कह दिया।।
कहां जाएगा मेरा भविष्य,जब लड़के वालों को पता चलेगा कि मैं वो नहीं हूं जिसे वो ब्याहने आए थे, इतना बड़ा धोखा,अगर उनलोगो ने मुझे स्वीकार नहीं किया तो....
ऐसा कुछ नहीं होगा बेटी,मुझ पर भरोसा रख, मैं तेरे साथ अन्याय नहीं होने दूंगी, पूर्णिमा बोली।।
अन्याय.....अन्याय की दुहाई मत दो मां,वो तो तुम अभी कर रही हो,क्यो....क्या मेरे कुछ सपने नहीं है, मेरे अरमान नहीं है , इतना कहकर विभावरी जमीन में घुटनों के बल बैठकर फूट-फूटकर रोने लगी।।
मां-बेटी दोनों ही आंसुओं में डूबी थी!!
लेकिन बेटी खानदान की इज्जत पर दाग लग जाएगा अगर बारात लौट गई तो, पूर्णिमा बोली।।
कौन सी इज्जत? क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है,विभावरी गुस्से से बोली।।
मां...इस घर में इज्जत के नाम पर बहुत से ऐसे काम होते आए हैं जो नहीं होने चाहिए थे,हम लड़कियां हैं मां ....कोई बेजुबान जानवर नहीं कि आप लोग जब चाहे जिसके गले हमें बांध दोगें, हमें भी जीना है,खुली हवा में सांस लेना है, हमें भी कालेज जाके पढ़ना है नाकि प्राइवेट,मत करो मां ऐसा मत करो, इतना कहकर विभावरी ने रो रोकर अपनी आंखें लाल कर ली।।
पूर्णिमा बोली, जाकर देख अपने पापा को कैसी हालत हो गई है उनकी अगर तूने भी शादी से इनकार कर दिया और बारात वापस लौट गई तो तेरे पापा ये सब नहीं सह पायेंगे इसलिए बेटी मानले मेरी बात...!!
थोड़ी देर में ही बारात दरवाजे पर आ पहुंची, पूर्णिमा ने ननद को बुला कर सारी बात कह दी__
बिट्टी आज सम्भाल ले, जिंदगी भर तेरा एहसान नहीं भूलूंगी, तेरे भइया तो जैसे होश में ही नहीं है, पूर्णिमा बोली।।
सारी बातें पता चलते ही द्वार-चार के सारे नेग सुरेखा और उसके पति भूपति ने किए, बुआ-फूफा ने दूल्हे का स्वागत तो कर दिया लेकिन अब आगे की रस्म कैसे हो?
कुछ देर बाद सेठ धरमदास ने मधुसुदन को अंदर बुलवाया, मधुसुदन अंदर आया, सेठजी को देखकर समझ गया कि कोई ना कोई बात जरूर है।।
मधुसुदन ने जैसे ही पूछा कि, कहिए क्या बात है आपने मुझे अकेले क्यो बुलवाया?
वैसे ही सेठ धरमदास ने अपने हाथों में ली हुई पगड़ी जो कि वो पहले से ही उतार चुके थे, मधुसुदन के पैरों में रख दी।।
मधुसुदन पीछे हटकर बोला__अरे..... अरे.....ये आप क्या कर रहे हैं?
सेठ धरमदास बोले, डाक्टर साहब अब सब आपके हाथ में है आप चाहें तो इस घर की इज्जत नीलाम होने से बचा सकते हैं।।
मधुसुदन ने पूछा ऐसा क्या हुआ है ?जो आप इतने परेशान हैं।।
धरमदास बोले, बेटा अब कैसे कहूं, हमारी ही परवरिश में कहीं कोई कमी रह गई थी तभी उसने ऐसा किया।।
आप खुलकर बतायेगे कि क्या हुआ है ?पहेलियां क्यो बुझा रहे हैं, मधुसुदन बोला।।
धरमदास जी बोले, बेटा वो हमारी इज्जत पर दाग लगा कर भाग गई, अगर तुम तैयार हो तो हम तुम्हारी शादी अपनी छोटी बेटी विभावरी से करने के लिए तैयार हैं।।
अरे,ये सब क्या हो गया, आपने यामिनी की मर्ज़ी नहीं पूछी थी कि वो इस शादी के लिए तैयार हैं कि नहीं, मधुसुदन बोला।।
हां,पूछी थी लेकिन हमें नहीं मालूम था कि वो किसी और को चाहती है उसने कभी किसी से कुछ कहा ही नहीं,सेठ जी बोले।।
लेकिन यामिनी मुझसे से तो वैसे भी पांच साल छोटी है फिर तो विभावरी में और यामिनी की उम्र में कुछ अंतर तो होगा, मधुसुदन बोला।।
हां,विभावरी यामिनी से तीन साल की छोटी है,सेठ जी बोले।।
तब तो आठ साल का अंतर होगा, मुझ में और विभावरी में, मधुसुदन बोला।।
लेकिन बेटा ये शादी ना हुई तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा, सेठ धरमदास बोले।।
लेकिन आपने विभावरी से पूछा कि वो तैयार है कि नहीं, मधुसुदन ने पूछा।।
सेठ धरमदास बोले,वो हमारी बेटी है,हमारा अधिकार है उस पर, उससे क्या पूछना? हमारे यहां बेटियां वहीं करती है जो हम कहते हैं!!
तभी तो यामिनी ने ऐसा किया, आपने जबरदस्ती ये शादी थोपनी चाही और वो रजामंद नहीं थी आपने कभी भी उसके मन की बात नहीं जाननी चाही शायद वो किसी और को चाहती थी इसलिए भाग गई, मधुसुदन बोला।।
लेकिन बेटा अगर बारात लौट गई तो मैं क्या मुंह दिखाऊंगा दुनिया को,लोग थूकेंगे मुझ पर,सेठ धरमदास बोले।।
तो दुनिया वालों के डर से आप अपनी बेटी की बलि चढ़ा देंगे, मधुसुदन गुस्से से बोला।।
तभी वहां पूर्णिमा आ पहुंची और बोली, बेटा ऐसा मत कहो, हमें तुम पर पूरा भरोसा है, तुम हमारी विभावरी को कभी कोई कष्ट नहीं होने दोगे, तुम्हारे साथ वो हमेशा खुश रहेगी,मान जाओ बेटा....इस शादी से मत इनकार करो।।
पूर्णिमा के कहने पर मधुसुदन मान गया।।
धरमदास जी बोले, बहुत बहुत धन्यवाद बेटा.... लेकिन अब जयमाला कार्यक्रम नहीं होगा, सीधे फेरों की रस्म करा देते हैं लड़की को घूंघट ओढ़ाकर ।।
मधुसुदन बोला,अब आपको जो ठीक लगे कीजिए।।
बेचारी विभावरी को सुरेखा ने जल्दी से तैयार किया, पूर्णिमा अपने सारे गहने निकाल लाई बोली इन्हें पहना दो, यामिनी तो अपने सारे गहने लेकर भाग गई।।
और उधर नवल की आंखें बस इधर-उधर विभावरी को ही ढूंढ रही थी,वो ब्याकुल सा यहां-वहां उसे ढूंढ रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर विभावरी गई कहां?
आखिरकार जयमाला कार्यक्रम नहीं किया गया और विवाह की रस्मे अपने निर्धारित समय से पहले शुरू हो गई, कुछ लोगों ने पूछना भी चाहा तो यह कहकर टाल दिया गया कि दूल्हा डाक्टर हैं उनके किसी मरीज की हालत बहुत ही गंभीर है इसलिए बारात जल्द विदा होगी।
अब विभावरी घूंघट में ढ़की-मुदी मण्डप में आई,सारे रस्मे जल्दी-जल्दी निपटा कर बारात विदा कर दी गई।।
पूरी शादी खत्म हो गई और इधर नवल किशोर बेचारा,विभावरी को ढूंढता ही रह गया,अब किससे पूछूं कि आखिर विभावरी है कहां? वो यही सोचता रहा।।
उधर बेचारी विभावरी ने ससुराल में कदम रखे,विभावरी की द्वार छिकाई की रस्मों के बाद, सबने कहा कि मुंह दिखाई की रस्म होगी।
मधुसुदन बोला,कल की शादी की थकावट है और फिर यामिनी के शहर से आने में ही हमें चार-पांच घंटे लग गए अभी हम दोनों थक गये है थोड़ा आराम कर ले उसके बाद सारी रस्में निभाई जाएगी।।
फिर मधुसुदन ने अपनी मां और बहन को एकांत में ले जाकर सारी बात बताई, मधुसुदन की मां शांति देवी बहुत ही नाराज होकर बोली, इतना बड़ा धोखा, मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी,इसे अभी इसी वक्त इस घर से निकालो और तू मुझसे बिना पूछे इसे ब्याह भी लाया, मैं दूसरों का पाप अपने सर पर ले कर घूमती रहूं।।
मधुसुदन बोला, मां चुप रहो!वो सुन लेगी।।
मैं किसी से डरती हूं क्या,सुनती है तो सुनती रहे, शांति देवी बोली।।
मधुसुदन बोला,मां तुम घबराओ मत, परेशान ना हों , मैं कुछ करता हूं।।
शांति देवी बोली, मैं क्यो घबराऊं, मैंने थोड़े ही गलत काम किया है।।
फिर मधुसुदन ने अपनी भांजी श्रद्धा को आवाज दी...
श्रद्धा आकर बोली,क्या है मामा जी?
जा.. जाकर अपनी मामी से पूछ, कोई परेशानी तो नहीं, मधुसुदन बोला।।
ठीक है मामा जी और इतना कहकर श्रद्धा चली गई।।
मधुसुदन के पिता जी नहीं है और बहन प्रेमा भी श्रद्धा के पैदा होने के बाद विधवा हो गई थी ससुराल वाले साथ में रखने को तैयार नहीं हुए, तबसे अपने मायके में ही रहती है,श्रद्धा ने भी इस साल बारहवीं पास की है और मेडिकल कालेज में पढ़ती है वो भी अपने मामा की तरह डाक्टर बनना चाहती है।।
थोड़ी देर में श्रद्धा वापस आकर बोली,मामा जी!!मामी ने तो घूंघट ही नहीं हटाया और बोली उन्हें कुछ नहीं चाहिए।।
मधुसुदन बोला, ठीक है फिर अपनी बहन से बोला, दीदी तुम जरा बाहर बैठी महिलाओं से कहदो कि वो लोग आज जाए।
और प्रेमा भी चली गई।।
थोड़ी देर बाद मधुसुदन,विभावरी के कमरे में पहुंचकर बोला,अब आप घूंघट उठा सकती है यहां अब कोई भी नहीं आएगा और घबराइए मत।।
जैसे ही विभावरी ने घूंघट ऊपर किया,उसका भोला सा मासूम चेहरा देखकर, मधुसुदन देखता ही रह गया, सिंदूर से भरी मांग,माथे पर मागटीका,आंसुओं से भरी झुकी हुई पलकें,नाक में बड़ी सी नथ,लाल लिपस्टिक लगे कांपते होंठ, इतनी मासूम खूबसूरती उसने पहली बार देखी थी।।
मधुसुदन बोला,आप ये गहने, कपड़े बदलकर कुछ आरामदायक पहन लीजिए,उस तरफ बाथरूम है,तब तक मैं आपके लिए नाश्ता भिजवाता हूं और इतना कहकर मधुसुदन चला गया।।
उसने श्रद्धा से सारी बात बताई और कहा कि बेचारी डरी हुई है उसका ख्याल तुम्हें ही रखना है।।
श्रद्धा बोली, ठीक है मामा जी।।
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, मधुसुदन ने दरवाजा खोला__
किसी ने कहा, डाक्टर साहब जल्दी चलिए बेटे की बहुत तबियत खराब है...
मधुसुदन ने अपना बैग उठाया और जाते जाते कहता गया,मां मरीज देखने जा रहा हूं.....
शाम हो गई थी मधुसुदन नहीं लौटा,उधर श्रद्धा ने विभावरी से बहुत सारी बातें की उसका ख्याल रखा।।
तभी दोनों मां-बेटी आ गई, शांति देवी बोली,ए चल अपना सामान उठा और जा मेरे घर से..
विभावरी बोली, लेकिन मैं कहां जाऊंगी..
कहीं भी जा, शांति देवी बोली।।
श्रद्धा बोली, नानी ये क्या कह रही हो?
तू चुप कर, शांति देवी बोली।।
और विभावरी को मां बेटी ने थोड़े से सामान के साथ घर से निकाल दिया।।
श्रद्धा ने बहुत मना किया कि मामा जी घर में नहीं है,आप लोग ऐसा मत करो लेकिन दोनों नहीं मानी।।
थोड़ा थोड़ा अंधेरा हो चला था,विभावरी कभी भी ऐसे अकेले बाहर नहीं निकली थी, उसने एक रिक्शे वाले को रोककर बस-स्टैण्ड का रास्ता पूछा और अपने घर की बस पकड़ने के लिए निकल पड़ी।।

क्रमशः___

सरोज वर्मा_____