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अपने-अपने कारागृह

अपने-अपने कारागृह

' मेम साहब फोन ...।' फोन अटेंडेन्ट ने उसे फोन देते हुए कहा।

'दीदी कैसी है आप? आपका मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था इसलिए लैंडलाइन पर फोन किया । बताइए आप कब तक लखनऊ पहुंच रही हैं ?'

'हम ठीक हैं शायद बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी । हम परसों दोपहर तक इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट से पहुँचेंगे ।'

' ओ. के दीदी । मैं और शैलेश आपको और जीजाजी को लेने समय से पहुंच जाएंगे ।'

' व्यर्थ तकलीफ होगी । हम स्वयं पहुंच जाएंगे ।'

' दीदी, इसमें तकलीफ कैसी ? फाइनली आप आ रही हैं , सोचकर हमें बेहद खुशी हो रही है । ममा तो बहुत एक्साइटेड हैं ।'

' अच्छा रखती हूं । रामदीन कुछ कह रहा है ।' कहकर उषा ने फोन रख दिया ।

फाइनली आप आ रहे हैं । हमें बहुत खुशी हो रही है .. .सुनकर उषा समझ नहीं पा रही थी कि नंदिता के वाक्य सहज हैं या व्यंग्यात्मक । उसके दिल में दंश देते अनेकों तीरों में से एक तीर की और वृध्दि हो गई थी । विचलित मनोदशा के कारण उसने रामू को निर्देश देते हुए कहा अगर कोई अन्य कॉल आए तब कुछ भी बहाना बना देना मैं अभी आराम करना चाहती हूं ।

आज सुबह से ही उषा बेहद उद्दिग्न थी । नाश्ता भी नहीं किया था । अजय के ऑफिस जाते ही वह अपने कमरे में आकर लेट गई । किसी से बात ना करने की मनःस्थिति के कारण उसने अपना मोबाइल भी स्विच ऑफ कर दिया था । यहां तक कि नियत समय पर बावर्ची श्रीराम चाय बनाकर लाया तो उसने उसे भी लौटा दिया वरना आज से पहले उसे चाय लाने में जरा सी भी देर हो जाती थी तो वह सवाल जवाब करने से नहीं चूकती थी पर आज उसका न कुछ खाने पीने का मन कर रहा था और ना ही किसी से बातें करने का ।

जिस परेशानी से वह पिछले कुछ दिनों से गुजर रही थी आज उसकी चरमावस्था थी । उसकी इस परेशानी को अजय समझ रहे थे पर उनका समझाना भी व्यर्थ हो गया था कल उससे उसके महिला क्लब की सदस्य रीना,सीमा, ममता मिलने आई थीं उसे अनमयस्क देखकर सीमा ने उससे पूछा था, ' मैम क्या तबीयत ठीक नहीं है ?'

' हां हल्का हल्का बुखार लग रहा है ।' ना चाहते हुए भी वह झूठ बोल गई थी ।

' मेम मौसम बदल रहा है । इन दिनों संभल कर रहना ही अच्छा है ।' सीमा ने चिंतित स्वर में कहा ।

' तुम ठीक कह रही हो सीमा । कल रात मेरे भी सिर में भयंकर दर्द हो रहा था । दवा खाई तब जाकर आराम मिला । ' ममता ने उसके स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा ।

' मेम आप चली जाएंगी तब हमारा बिल्कुल भी मन नहीं लगेगा ।' रीना ने विषय बदलते हुए कहा ।

' सच में रीना ठीक कह रही है । तरह-तरह के गेम, तरह-तरह की एक्टिविटीज .. आपने थोड़े समय में ही हमारे महिला क्लब को इतना जीवंत बना दिया है कि इसकी एक भी मीटिंग मिस करने का मन ही नहीं करता है । पता नहीं आपके जाने के पश्चात क्या होगा ।'ममता ने रीना का समर्थन करते हुए कहा था ।

परिवर्तन जीवन का स्वाभाविक नियम है । समय को रोका नहीं जा सकता पर समय के अनुसार स्वयं को ढालने की शक्ति अवश्य विकसित करनी चाहिए ।' अजय के शब्द कहते हुए उषा समझ नहीं पा रही थी कि रीना सीमा ममता की चिंता सच्ची है या बनावटी ।

उसे स्वयं ही समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हो क्या रहा है । आज का दिन अचानक तो आ नहीं गया।। यह तो वर्षों पहले सुनियोजित था । अजय कहते हैं बहुत काम कर लिया । अब घूमेंगे , फिरेंगे अपने शौक पूरे करते हुए आराम से जिंदगी काटेंगे । कम से कम इस भागदौड़ से तो मुक्ति मिल जाएगी और तो और अपनों को तुम्हें और बच्चों को समय तो दे पाऊंगा पर उषा को उनकी फिलासफी बनावटी, दिखावा, छलावा लगती । उसे लगता था जब इंसान विवश हो जाता है तभी इस तरह की बातें करता है वरना किसको ऐशो आराम, नाम और प्रसिद्धि बुरी लगती है । हो सकता है कुछ लोगों को यह दिन सुकून और चैन दे जाता हो पर उसके अनुसार ऐसे विरले ही होंगे । आज का दिन उसकी जिंदगी का सबसे बुरा दिन है क्योंकि आज उससे सब कुछ छिनने वाला है । यह आराम , यह इज्जत, यह शोहरत आज के पश्चात यह जिंदगी सिर्फ स्वप्न बनकर रह जाएगी ।

एक समय था चाहे वह किसी पार्टी में जाती या मार्केटिंग के लिए , उसकी नीली बत्ती वाली गाड़ी उसको अन्य की तुलना में अति विशिष्ट बना देती थी । सब उसको अदब से सलाम ही नहीं करते, उसके स्वागत में पलक पाँवड़े भी बिछा दिया करते थे । यहां तक कि कुछ दुकानदार नया माल आने पर उसे फोन भी कर दिया करते थे । मैक्सिमम डिस्काउंट के साथ चाय नाश्ता भी सर्व होता था ।

यद्यपि अजय के प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनकर रांची आने के पश्चात सुख सुविधाओं में कमी कमी आई थी पर स्टेटस तो था ही पर अब वह भी नहीं रहेगा । आज के पश्चात सब समाप्त हो जाएगा ।

कल शाम उन्हें अपने घर खाने का न्यौता देने आई उसकी पड़ोसन जॉइंट सेक्रेटरी विवेक शर्मा की पत्नी नीता ने बातों-बातों में उससे पूछा, ' उषा जी अब कहां सेटल होने का इरादा है ।'

पहले कोई अगर यही प्रश्न पूछता था तो वह सहजता से उत्तर देती थी पर न जाने क्यों उनकी बात सुनकर शरीर क्रोध से थर्रा गया । आखिर यह प्रश्न करके लोग कहना क्या चाहते हैं ? क्या इस दिन के बाद लोग नाकारा हो जाते हैं ? पर फिर स्वयं को कंट्रोल कर कहा,' घर लखनऊ में बनवा ही लिया है । अजय को जॉब के लिए कई ऑफर मिल रहे हैं पर उनकी इच्छा अब अपना बिजनेस प्रारंभ करने की है ।'

' इस उम्र में बिजनेस ...किसी बिजनेस को सेटिल करने में वर्षों लग जाते हैं ।' आश्चर्य से नीता ने कहा था ।

' नया नहीं , अपने भाई का बिजनेस... काफी दिनों से वह इनको ज्वाइन करने के लिए कह रहे थे पर इनके पास समय ही नहीं था । दरअसल वह इनके सहयोग और अनुभवों द्वारा उसे और बढ़ाना चाहते हैं ।' उषा ने नीता की शंका का निवारण करते हुए एक बार फिर झूठ का सहारा लिया था । वह नहीं चाहती थी कि अजय बेचारा कहलाए ।

' मेम अब हम चलते हैं । बच्चे स्कूल से आ गए होंगे ।' सीमा ने कहा ।

सीमा की बात सुनकर उषा विचारों के भंवर से बाहर निकली थी पर उनके जाने के पश्चात वह बेहद अपसेट हो गई थी । मन कर रहा था वह चीखे चिल्लाए ...अक्सर ऐसी स्थिति में वह अपना क्रोध नौकरों पर उतारती थी पर आज वह ऐसा भी नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसे लग रहा था अब उन पर भी उसका अधिकार नहीं रहा है । अवसाद की स्थिति में वह अपने जीवन के नापतोल में लग गई …

ऐसा नहीं है कि उसने सदा ऐशो आराम की जिंदगी जी । मम्मा डैडी के संघर्ष की वह भुक्तभोगी रही थी । ममा बताती हैं कि भारत पाकिस्तान विभाजन के समय उन्हें अपना घर परिवार छोड़कर भारत आना पड़ा था । डैडी और ममा के परिवार कड़वाहट की अग्नि में स्वाहा हो गए थे । उनके घरों में आग लगा दी गई थी । मम्मी और डैडी इसलिए बच गए क्योंकि उस समय वे अपने मामा के घर गए हुए थे । जैसे ही नफरत की चिंगारी थमी, वे छुपते छुपाते भागे । मम्मा उस समय प्रेग्नेंट थी भाग्य अच्छा था या किस्मत ने साथ दिया वह भारत आने वाली बस में सवार हो गये पर बस में भी खूनी खेल प्रारंभ हो गया । वे दो सीटों के बीच की जगह गिरकर सांस रोककर बैठ गए । वे लोग इन्हें मरा जान कर भाग गए । न जाने कितने घंटे उन्होंने शवों के मध्य बिताए । चारों तरफ सन्नाटा पाकर वे धीरे से बाहर निकले तब तक सूरज ने भी दस्तक दे दी। मौत को उन्होंने मात दे दी थी । इस बात से उनका हौसला बुलंद था। छिपते -छिपाते 2 दिन पश्चात आखिर वे भारतीय सीमा में प्रवेश कर पाए ।

उसके बाद का जीवन आसान नहीं था । एक तो अपनों को खोने का दुख दूसरा बेघर होने का एहसास । गनीमत थी लखनऊ में ममा की बहन का विवाह हुआ था । उन्होंने उन्हें शरण दी । शैलेश का वहीं जन्म हुआ । पापा को एक दुकान में काम मिला । एक कमरे का घर ले लिया । बस जिंदगी जल्दी चल निकली ।

मम्मा को सिलाई का शौक था । उन्होंने कुछ कपड़े सिले । डैडी उनके सिले कपड़ों को रेडीमेड गारमेंट्स की शॉप पर ले गए । शॉप के मालिक ने तुरंत ही उन्हें खरीद लिया तथा दूसरा आर्डर भी दे दिया । धीरे-धीरे मांग बढ़ने पर एक टेलर को रख लिया गया । काम अच्छा चलने लगा था ।

ममा कहतीं हैं तू आई तो मानो लक्ष्मी ही बरसने लगी । तेरे आने के पश्चात तेरे डैडी ने चार कर्मचारियों के साथ रेडीमेड गारमेंट बनाने की फैक्ट्री की नींव रख दी । ममा डिजाइन बनातीं , उस डिजाइन को अपनी देखरेख में टेलर से बनवातीं जबकि डैडी बाहर से आर्डर लेकर आते । उनके परिश्रम और लगन से व्यवसाय में दिनोंदिन उन्नति होने लगी । डिमांड को पूरा करने के लिए हुनरमंद कर्मचारी रखे गए । उनके बनाए कपड़ों की अपने देश में तो डिमांड थी ही अब वे बाहर भी निर्यात करने का प्रयास करने लगे थे ।

इसी बीच उन्होंने घर खरीद लिया । ममा घर बाहर के चक्कर में परेशान रहने लगी थीं अंततः उन्हें घर के काम के लिए नौकर रखना पड़ा । रामदीन उनकी फैक्ट्री के एक कर्मचारी का ही लड़का था । उसने घर का काम अच्छी तरह से संभाल लिया था । कुछ वर्षों पश्चात फ़ैक्टरी के पास ही जमीन खरीदकर मम्मा डैडी ने अपना घर बना लिया था । जीवन में ठहराव आने के साथ ममा फ़ैक्टरी के साथ सोशल एक्टिविटी से भी जुड़ने लगी थीं क्योंकि उनका मानना था कि लाभ का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों को दान देना चाहिए ।

डैडी की तरह उनका भी घर आने जाने का समय निश्चित नहीं था । घर के नौकरों को उन्होंने अपने -अपने कामों में इतना निपुण कर दिया था जिससे कि उनके बाहर रहने पर भी घर की व्यवस्था सुचारु रुप से चल सके । सारी व्यवस्थाओं के बावजूद ममा का घर पर अच्छा नियंत्रण था । नौकरों की छोटी से छोटी गलती जहाँ वह पल भर में ही भांप लिया करती थी वहीं शैलेश और उसकी छोटी से छोटी आवश्यकताओं को भी पूरा करने का वह हर संभव प्रयास किया करती थीं ।

मम्मा और डैडी ने शैलेश और उसकी परवरिश में ना कोई भेदभाव किया और ना ही कोई कमी रहने की थी डैडी चाहते थे कि वह डॉक्टर बने तथा शैलेश उसका बड़ा भाई उनकी विरासत को संभाले शैलेश को भी इसमें कोई एतराज नहीं था पर वह चाहता था कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए उन्हें ज्वाइन करें क्योंकि शिक्षा मस्तिष्क का न केवल विकास करते हैं वरन निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ाती है डैडी को भी उसके बाद से कोई एतराज नहीं था यही कारण था कि उसने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री प्राप्त कर डैडी का बिजनेस ज्वाइन करना पसंद किया डैडी की इच्छा अनुसार वह स्वयं डॉक्टर बनना चाहती थी दो बार मेडिकल के एंट्रेंस टेस्ट में भी बैठी पर न जाने उसकी पढ़ाई में कमी थी या इच्छाशक्ति में वह सफल नहीं हो पाई अंततः उसने बीएससी करने का निर्णय लिया उन दिनों आजकल की तरह विभिन्न तरह के कोर्स नहीं हुआ करते थे लड़कियों के लिए मेडिकल या टीचिंग की बेस्ट माने जाते थे इक्का-दुक्का लड़कियां ही इंजीनियरिंग और साइंटिस्ट या सीए बनना चाहती थी बीएससी करते-करते उसका अजय से परिचय हुआ था वह साधारण परिवार से था पर था कुशाग्र बुद्धि 1 दिन लाइब्रेरी में बुक कराने के लिए दोनों ने एक साथ ही लाइब्रेरी में प्रवेश किया दोनों एक ही पुस्तक यीशु करवाना चाह रहे थे प्रॉब्लम यह थी उस पुस्तक की एक ही प्रति लाइब्रेरी में थी उन दोनों को असमंजस में पड़ा देखकर अंततः लाइब्रेरियन ने पूछा, ' मैं किसके नाम बुक इशू करूं ?'

' सर पुस्तक उषा जी के नाम इश्यू कर दें ।'अजय ने कहा था ।

उसकी इस सदाशयता ने उषा का दिल जीत लिया था । प्रारंभ में पढ़ाई से संबंधित विषयों पर चर्चा करने के लिए कॉलेज कैंपस से अधिक कॉपी कैसे सुरक्षित लगा धीरे-धीरे उनकी मुलाकात में बढ़ने लगी उसी के साथ दिलों में जगह भी स्थिति यह हो गई थी कि जब तक वे दिन में एक बार मिल नहीं लेते थे उन्हें चैन नहीं मिलता था वह इस आकर्षण का मतलब समझ नहीं पा रही थी क्या यही प्यार है बार-बार यही प्रश्न उसके मन मस्तिष्क में उमड़ घुमड़ कर उसे परेशान करने लगा था ।

उषा जानती थी अजय को उसके घर वाले स्वीकार नहीं करेंगे । वह शुद्ध शाकाहारी ब्राह्मण है जबकि अजय मांस मच्छी खाने वाला बंगाली उस पर भी साधारण परिवार । अजय के पिता श्री केंद्रीय विद्यालय में प्रिंसिपल हैं तथा मां डी. ए. वी . में शिक्षिका । इसके बावजूद उस पर अजय के प्यार का जादू इस कदर छा गया था कि उसने कई अच्छे रिश्ते यह कहकर लौटा दिए थे कि मुझे अभी और पढ़ना है । संतोष था तो सिर्फ इतना कि अजय सिविल सर्विस के लिए प्रयास कर रहा था । उसे विश्वास था कि अगर वह इस प्रतियोगी परीक्षा में सफल हो गया तब शायद उसके ममा -डैडी उनके रिश्ते को स्वीकार कर लेंगे ।

शैलेश के विवाह की बातें भी चलने लगीं थीं । डैडी की अच्छी प्रतिष्ठा के कारण अच्छे रिश्ते आ रहे थे । अंततः एक चीनी मिल के मालिक अनिल शर्मा की पुत्री नंदिनी से उसका विवाह हो गया । नंदिनी का बड़ा भाई अमर था जो अपने पापा की फैक्टरी में ही सहयोग कर रहा था । उसका भी विवाह हो गया था । उसकी पत्नी पल्लवी बेहद सुलझे विचारों की लगी या यूं कहें कि मां ने उसी को देखकर नंदिनी को पसंद किया क्योंकि उन्हें लगा था कि अगर उसने घर परिवार में इतना अच्छा सामंजस्य स्थापित कर रखा है तो शत-प्रतिशत नहीं तो कुछ अंश तो परिवार की बेटी मैं भी आया होगा । नंदिनी की मां भी अपनी बहू पल्लवी की तारीफ करते हुए नहीं थक रही थीं । अंततः रिश्ता पक्का करने के इरादे से नंदिनी को डायमंड सेट देते हुए मम्मा ने कहा था, ' बेटा, तुम मेरी बहू ही नहीं , बेटी ही हो । कभी भी कोई भी समस्या आए मेरे साथ खुले मन से शेयर करना । घर को टूटने मत देना क्योंकि तोड़ना तो बहुत आसान है बेटा पर जोड़ना बहुत ही कठिन । बस मेरी यही बात सदैव ध्यान रखना ।'

विवाह बहुत धूमधाम से हो गया । दोनों पक्ष संतुष्ट थे । नंदिनी ने फाइनेंस में पोस्ट ग्रेजुएशन किया था । उसने पापा से फ़ैक्टरी ज्वाइन करने की इच्छा प्रकट की तो पापा ने तुरंत स्वीकार कर लिया । पापा ने उसको फाइनेंस डिपार्टमेंट का इंचार्ज बना दिया । सच तो यह था कि नंदिनी ने आते ही घर बाहर संभाल कर घर भर का दिल जीत लिया था । ममा -डैडी तो खुश थे ही, उषा को भी घर में एक मित्र मिल गया था जिससे वह अपनी हर बात शेयर कर सकती थी तथा समाधान भी प्राप्त कर सकती थी ।

वह समय भी आ गया जब सिविल सर्विस रिटेन एग्जाम का रिजल्ट निकला । अजय खुशी थी पर आधी अधूरी ...अब वह आधी खुशी को पूरी करने में जुट गया । उसकी भी एम .एस .सी. की परीक्षा प्रारंभ होने वाली थी अतः दोनों ही अपना लक्ष्य प्राप्त करने में जुट गए ।

उषा की परीक्षाएं समाप्त हो गई थीं । अजय भी अपना इंटरव्यू दे आया था । उषा की परीक्षा की समाप्ति के पश्चात उसने उसे कॉफी हाउस में मिलने के लिए बुलाया । उस दिन वह बेहद नर्वस था । उसका हाथ पकड़ कर उसने कहा ,' अगर मैं इस परीक्षा में असफल हो गया तो जीवन की परीक्षा में भी असफल हो जाऊँगा ।'

' कहते हैं इंसान जैसा सोचता है वैसा ही फल प्राप्त होता है । मैं कभी नकारात्मक विचार मन में नहीं लाती । सदा सकारात्मक सोचती हूँ इसलिए सफल होती हूँ । तुम अवश्य सफल होगे और फिर तुम्हारा यह प्रयास अंतिम तो नहीं है अगर किसी कारणवश सेलेक्ट नहीं हो पाए तो अगले वर्ष परीक्षा देना । मुझे विवाह की कोई जल्दी नहीं है । मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी । 'उषा ने उसका हाथ हौले से दबाते हुए कहा था ।

'सच उषा, अब मुझे कोई डर नहीं है अगर तुम्हारा साथ है तो मैं कठिन से कठिन परीक्षा में सफल होने के प्रति आश्वस्त हूं ।' अजय ने आत्मविश्वास से कहा ।

अच्छे परिणाम की आकांक्षा लिए उस दिन उन दोनों ने सहज रूप से विदा ली थी । एक हफ्ते पश्चात उसका एम.एस.सी . का भी रिजल्ट निकलने वाला था । उसका रिजल्ट निकला ही था कि अजय का भी फाइनल रिजल्ट आ गया । वह आई.ए.एस. में सेलेक्ट हुआ था । अपने -अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त कर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था । एक दूसरे को ट्रीट देते हुए वे आगे की प्लानिंग करने लगे ।

अजय ने अपने घर में उषा के संदर्भ में पहले ही बता दिया था उषा उनसे मिल भी चुकी थी । अजय के पापा को कोई आपत्ति नहीं थी पर अगर की मम्मी क्षमा को उसका नॉन बंगाली होना रास नहीं आ रहा था पर बेटे की खुशी के लिए उन्होंने बेमन से इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था । अब उसे अपने मम्मी डैडी को इस रिश्ते के लिए तैयार करना था । नंदिनी भाभी को उसने अपने और अजय के बारे में पहले से ही बता दिया था । नंदिनी भाभी की बात मानकर मम्मा -डैडी से पहले उसने नंदिनी भाभी के सम्मुख ही शैलेश से बात की । उसकी बात सुनकर शैलेश ने चौक कर कहा था , ' विवाह वह भी बंगाली से ....मम्मा डैडी कभी तैयार नहीं होंगे ।'

'भाई इस बात का एहसास मुझे भी है इसीलिए तो मैं पहले आपसे बात कर रही हूँ ।भाई मैं उससे बेहद प्यार करती हूँ । उसे 4 वर्षों से जानती हूँ । यद्यपि बी.एस.सी. के पश्चात वह सिविल सर्विस की कोचिंग करने दिल्ली चला गया था पर हम सदा संपर्क में रहे । जाते समय उसने कहा था ,' अगर मैं इस परीक्षा में सफल हो पाया तभी तुम्हारा हाथ मांगने तुम्हारे मम्मा डैडी के पास आऊंगा वरना हम एक दूसरे को एक बुरे स्वप्न की तरह भूल जाएंगे । आज उसने अपनी मंजिल प्राप्त कर ली है । वह मम्मा डैडी के पास पास मेरा हाथ मांगने आना चाहता है । अगर मम्मा डैडी मान जाते हैं तब तो कोई बात नहीं है अगर नहीं मानते हैं तब क्या आप दोनों से सहयोग की आशा कर सकती हूँ ।'

' पर वह अकेले क्यों आ रहा है ? उसके माता- पिता उसके साथ क्यों नहीं आ रहे हैं ?' शैलेश ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा ।

'भाई वह नहीं चाहता कि उसके मां -पापा मेरे मम्मा- डैडी के हाथों अपमानित हों ।'

' तुम क्या सोचती हो नंदिनी ?'

' लड़के का मुख्य गुण उसकी योग्यता है । इस परीक्षा में सफलता उसकी योग्यता का प्रमाण पत्र है । अगर दीदी उसे चाहती हैं तो मैं नहीं समझती कि लड़के का बंगाली होना बहुत बड़ा इशू है । ' नंदिनी ने उत्तर दिया था ।

' तू इतवार को उसे बुला ले ,सब कुछ ठीक ही होगा ।' शैलेश ने उषा से कहा था ।

इतवार को शैलेश के कथनानुसार शाम को उसने अजय को बुला लिया मम्मा -डैडी को उसने पहले ही बता दिया था कि वह अपने एक मित्र से उन्हें मिलना चाहती है ।

अजय के आने पर उसका परिचय करवाते हुए उषा ने कहा , ' डैडी यह हैं अजय विश्वास मेरा क्लास में पहली बार में ही आई.ए.एस . में सेलेक्ट हो गया है तथा कल ही ट्रेनिंग के लिए जा रहा है । मैं चाहती हूं कि यह आपका आशीर्वाद लेकर जाए ।'

' रियली यह सर्विस बहुत खुशनसीबओं को ही मिल पाती है । तुम सदा सफल रहो बेटा ।'अजय को अपने पैरों पर झुकते देखकर उसके पिता आलोक शंकर ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा था ।

इसी बीच शैलेश और नंदिनी आ गए।। अजय को देखकर उन्होंने उषा की ओर इशारा करके ओ.के . कह दिया था । वह उनको आँखों आँखों में ही थैंक्स कहने जा रही थी कि मम्मा की आवाज सुनाई दी…

' तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं ?'

' जी वह एक केंद्रीय विद्यालय में प्रिंसिपल है ।'

' और तुम्हारी मां...।'

' वह शिक्षिका हैं ।'

' एक ही स्कूल में ...।'

' नहीं डीएवी में ।'
' ओ.के . । तुम लोग कितने भाई बहन हो ?'

' जी एक बहन अंजना है । उसका विवाह हो चुका है ।'

' क्या करते हैं तुम्हारे जीजा जी ?'

' वह पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर हैं ।'

'तुम भी... उससे प्रश्न पर प्रश्न ही करती जाओगी या कुछ नाश्ता पानी का भी इंतजाम करवाओगी ।' कुछ और पूछने को आतुर को डैडी ने रोते हुए निर्देश दिया ।

मम्मा के प्रश्न पूछने के तरीके से नंदिनी और अजय हतप्रभ थे । पता नहीं क्यों उषा को लग रहा था कि ममा को उनके संबंधों का एहसास हो गया है । उसका अनुमान सच निकला । अजय के जाते ही तीखी नजरों से देखते हुए ममा ने उससे पूछा , ' क्या तुम अजय को पसंद करती हो ?'

'हाँ...।' तीखी नजरों के बावजूद उसने सच बताना उचित समझा क्योंकि झूठ कह कर वह उन्हें गुमराह नहीं करना चाहती थी । साथ ही इससे अच्छा अवसर उसे दोबारा मिले या ना मिले ।

' क्या उससे विवाह करना चाहती हो ?'

'क्या इसी लड़के के लिए तुम अब तक रिश्तो को नकारती आई हो । तुम्हें पता है वह बंगाली है और हम ब्राह्मण । हम शाकाहारी हैं और वह मांसाहारी ।' उसे चुप देखकर ममा ने तेज आवाज में पुनः कहा ।

'मम्मा वह कहता है अगर तुम नहीं खाती हो तो घर में नॉनवेज नहीं बनेगा । रसोई में वही बनेगा जो तुम चाहोगी ।'

' यह सब कहने की बातें हैं । माना वह तुम्हारी वजह से नहीं खाएगा पर जब उसके माता-पिता तुम्हारे पास आएंगे वह बनाना और खाना चाहेंगे तो क्या वह उन्हें रोक पाएगा '

' मम्मा मुझे उस पर विश्वास है ।'

' भले ही वह आई.ए.एस .बन गया है पर क्या तुम एक नौकरी पेशा इंसान के साथ संतुष्ट रह पाओगी ? तुम्हारा एक महीने का जितना जेब खर्च है उससे ज्यादा उसका वेतन नहीं होगा ।'

' मम्मा मैं उसे चाहती हूं । उसके साथ मैं किसी भी हाल में खुश रह लूंगी ।'

' यह सब फिल्मी बातें हैं । यथार्थ के धरातल पर आदर्शवादिता धरी की धरी रह जाती है । तुम उसकी मां से मिली हो ।'

'हां ...बहुत सीधा सादा परिवार है । वह मुझे चाहती भी बहुत हैं ।'

' क्यों नहीं चाहेंगी ? इतने बड़े घर की लड़की जो फंसा ली है ।उनके तो पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे होंगे ।' कहते हुए उनके स्वर में तिरस्कार की भावना झलकने लगी थी।

मम्मा अजय ने मुझे नहीं उसकी सरलता योग्यता संतुलित व्यवहार तथा निर्णय लेने की क्षमता ने मुझे उसकी ओर आकर्षित किया है वह आईएएस में मैं सेलेक्ट हुआ है लड़कियों की लाइन लग जाएगी उसके घर पर पर वह अब भी मुझसे विवाह करना चाहता है वह मुझसे प्यार करता है और मैं उससे हमारा प्यार सच्चा है एक बात और अगर अजय से मेरा विवाह नहीं हो पाया तो मैं कभी विवाह नहीं करूंगी अजय को दिल में बसा ए दूसरे पुरुष से विवाह करना है उसे धोखा नहीं दे सकती उसने मम्मा की बात का प्रतिवाद करते हुए कहा था उसे पता था अगर अब वह कमजोर पड़ी तो मैं उसके और अजय के रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगी क्या तुम्हारे डेडी उस रिश्ते को स्वीकार कर पाएंगे उसके स्वर की दृढ़ता को देखकर हम आकाशवाणी पड़ा था मम्मा उन्हें मनाना आपका काम है अजय में क्या कमी है वह सर्वोच्च परीक्षा में सफल होकर अपनी योग्यता का परिचय दे चुका है इस बार उसका आंसर भी संस्था पर है तो मध्यमवर्गीय परिवार का और वह भी हो जाती है जमाना बदल रहा है मामा और उसके साथ सोच भी मैं अजय को चाहती हूं और वह भी मुझे अगर आपने मेरा विवाह कहीं और कर दिया मेरे विचार उस लड़के के विचारों से नहीं मिल पाए तब क्या मेरे साथ आप भी दुखी नहीं रहेंगे पर प्रेम लोहा सफल दांपत्य की तो गारंटी नहीं हुआ करते आप ही कह रही हैं मामा पर हर अरेंज मैरिज भी तो सफल नहीं होती जब तू ने निर्णय कर ही लिया है तो अब बहस किस लिए ठीक है तेरे डैडी से बात करके देखती हूं ।

'आई लव यू ममा ।'कहते हुए वह ममा के गले से लग गई थी ।

एक बार फिर उसे पापा के ढेरों प्रश्न उत्तरों के मध्य से गुजरना पड़ा था । उसकी दृढ़ता देखकर वह अजय के घर गए । उसके माता-पिता से मिलकर उनके विचारों में परिपक्वता तथा घर का सुरुचिपूर्ण वातावरण देखकर वह आश्वस्त हो गए । अंततः उन्होंने अपनी स्वीकृति दे ही दी । इसके साथ ही उसने मन ही मन एक प्रतिज्ञा की थी कि वह अपने विवाह को असफल नहीं होने देगी चाहे कितनी भी परेशानियों का सामना क्यों न करना पड़े ।

अजय के ट्रेनिंग पूर्ण करके आने के पश्चात विवाह की तारीख पक्की कर दी गई खूब धूमधाम से विवाह हुआ था उसके सास-ससुर के अतिरिक्त बहन अंजना और मयंक जीजा जी ने भी उसे हाथों हाथ लिया था अंजना दी और मयंक जीजा जी ने शिमला कुल्लू मनाली का हनीमून पैकेज गिफ्ट किया था यद्यपि वाह शिमला कुल्लू मनाली मम्मा डैडी के साथ भी जा चुकी थी पर अजय के साथ जाना सुखद आनंद दे गया था शिमला की माल रोड पर हाथ में हाथ डाले घूमना भूख लगने पर खाना और फिर अपने होटल के कमरे में आकर एक दूसरे के आगोश में खो जाना यही कुल्लू मनाली में भी हुआ रोहतांग और सोलंग वैली में बर्फ से अठखेलियां खेलने में जो आनंद आया था वह आज भी नहीं भूल पाई है यह बात अलग है कि रोहतांग और सोलंग वैली से आने के पश्चात वे 2 दिन तक अपने होटल के कमरे से बाहर ही नहीं निकले थे कुछ सर्दी तथा तथा कुछ एक दूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की चाहत हफ्ते भर पश्चात जब वे लौटे तो उनके चेहरे की रंगत ही बता रही थी कि वह एक दूसरे के साथ बहुत संतुष्ट और खुश हैं दूसरे दिन वह अजय के साथ मम्मा डैडी के घर गई अजय शैलेश और डैडी से बात करने में लग गए पर नंदिनी भाभी उसे अंदर खींच कर ले गई तथा उसकी आंखों में देखते हुए पूछा ननद रानी खुश तो है ना आप हमारे नंदोई जी के साथ हां भाभी कहते हुए उसने दोनों हाथों से अपना मुंह छुपा लिया था ।

' कहीं घूमी भी या यूं ही ...।'

' नहीं भाभी , घूमे भी यह लीजिए यह शाल आपके लिए कुल्लू मनाली से खरीदा है और यह मां के लिए है ।' उसने पैकेट से शॉल निकालकर नंदिता को देते हुए कहा ।

' शॉल तो बहुत अच्छा है पर अजय जीजा जी ने आपको शॉल खरीदने के लिए समय दे दिया । '

'भाभी आप भी ...।'

' हां ननद रानी मैं भी ....अब अगर आप से मजाक नहीं करूंगी तो फिर किससे करूंगी ।' कहते हुए उसने प्यार से चोटी काटी थी ।

' उई ...।' कहते हुए वह बिल बिलबिलाई थी ।

' जाइये, मां से मिल लीजिए वरना वह भी सोचेंगी कि बिटिया ने उनकी सुध नहीं ली । अपनी भाभी से ही चिपकी बैठी है ।'

आप ठीक कह रही हैं भाभी मैं ममा से मिलकर उन्हें यह शाल भी दे दूंगी ।' चिकोटी वाले स्थान को उसने सहलाते हुए कहा ।

उषा मां को ढूंढते हुए किचन में पहुंच गई मम्मा अपने सुपर विज़न में रामदीन से पनीर पकौड़े बनवा रही थी उसने उन्हें किचन में देख कर कहा मामा आप यहां ।

हां दीदी जब से आप ने अपने और जूजू के आने की सूचना दी है तब से मम्मा किचन में रामदीन के साथ ही लगी हुई है कुछ वेरी स्पेशल बनवा रही है न ने ने ने ने कहा विवाह के पश्चात पहली बार घर में दामाद आया है कुछ स्पेशल तो बनाना ही है ।' ममा ने प्यार से उसे देखते हुए कहा ।

मम्मा किचन में तभी जाती है जब किसी को स्पेशल ट्रीटमेंट देना हो... डैडी के विदेशी डेलीगेट या विशेष मित्र । ममा का अजय को उसी तरह ट्रीट करना उषा को बहुत ही अच्छा लगा ।

' मम्मा आपके लिए यह शाल ।'

' अच्छा अब तू इतनी बड़ी हो गई है कि मेरे लिए उपहार भी लाने लगी ।

' मम्मा यह अजय ने आपके लिए पसंद की है । '

' वाओ... वेरी ब्यूटीफुल उसे मेरी ओर से थैंक्स कहना और हां अपनी सास के लिए भी लाई है न ।'

' हां मम्मा ...।'

नंदिनी सोच रही थी कि मां की यही सोच बेटी के घर के रिश्तो को दरकने से बचा लेती है वरना कुछ बात तो बेटी को ससुराल से दूर रहने जिम्मेदारियों से भागने की सलाह देती है । उसे खुशी थी कि वह ऐसे घर की बहू बनी ।

सुधा आदेश

क्रमशः