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अपने-अपने कारागृह - 5

अपने-अपने कारागृह-4

अपने बच्चों को सफलता की ऊंचाइयां छूते देखकर न केवल उसे वरन अब अजय को भी उसके निर्णय पर गर्व का अहसास होने लगा था । वह भी महसूस करने लगे थे कि कभी-कभी बच्चों की भलाई के लिए कड़े फैसले लेने पड़ते हैं । यह फैसला भी उनमें से ही एक था । आज रिया और पदम अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पाए तो उसके निर्णय के कारण ही वरना बार-बार स्थानांतरण जहां उनकी शिक्षा को बाधित करता वहीं उनके व्यक्तित्व के विकास में भी बाधा उत्पन्न करता ।

शांति ने भी बी.एड. कर लिया था । जैसे ही शांति को सूचना मिली कि उसे केंद्रीय विद्यालय में नौकरी मिल गई है वह मिठाई लेकर अपने पिता गोपाल के संग उसका आशीर्वाद लेने आई ।

उषा ने खुशखबरी सुनकर उसका मुँह मीठा कराते हुए कहा,' शांति तुम्हारी सफलता पर मुझे बेहद खुशी हो रही है । बस यही कामना है कि तुम लगन और परिश्रम से अनेकों विद्यार्थियों के जीवन को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करती रहो ।'

' गोपाल तुम कब आये ।' उषा ने गोयल।की ओर मुखतिब होते हुए कहा ।

' कल ही...और आते ही खुशखबरी मिल गई । मेम साहब, यह सब आपके कारण ही हो पाया है ।' गोपाल ने प्रसन्नता से कहा ।

वह अपनी बेटी की सफलता पर अत्यंत ही खुश था । शांति की सारी सफलता का श्रेय उसको देते हुए वह उसके सामने नतमस्तक था ।

' गोपाल मैंने सिर्फ शांति की चाहत को पंख दिए थे पर पूर्ण तो उसने स्वयं किया । अगर वह प्रयास न करती, परिश्रम न करती तो कोई कुछ नहीं कर पाता ।' उषा ने गोपाल से कहा था ।

' आप ठीक कह रही हैं मेम साहब । आपने उसे पंख दिए जिससे उसने उड़ना सीख लिया । दुख तो इस बात का है कि पिता होते हुए भी मैं पिता का फर्ज ठीक से निभा नहीं पाया । अपनी अज्ञानता वश मैंने उसके पंख असमय ही काट दिए थे । अगर वह आप के संपर्क में नहीं आती तो गंदी नाली के कीड़े की तरह कहीं सड़ रही होती ।'

' पर ऐसा हुआ तो नहीं न । गोपाल अब यह सोचकर खुशी मनाओ कि आज तुम्हारी बिटिया लाखों करोड़ों के जीवन में प्रकाश लाने योग्य हो गई है । मुझे खुशी होगी यदि इसके जीवन में भी प्रकाश की किरण प्रवेश कर पाए ।'

' मैं समझा नहीं मेम साहब .. आप कहना क्या चाहतीं हैं ?'

'गोपाल अभी शांति की उम्र ही क्या है । पुनर्विवाह अब अपराध नहीं रहा है । कोई अच्छा सा लड़का देखकर, उसका विवाह कर एक बार फिर से इसका घर बसा सको तो मुझे लगेगा । मैं सोचूँगी कि मैं अपने मिशन में कामयाब हो गई । उषा की बात सुनकर शांति के चेहरे पर चमक आई थी ।

'मेम साहब अगर शांति चाहेगी तो मैं उसे रोकूँगा नहीं ।' गोपाल ने शांति की ओर देखते हुए कहा था ।

अपने पिता को अपनी ओर देखते देखकर शांति ने सिर नीचा कर लिया था ...उषा को लग रहा था मानो वह अपनी मौन स्वीकृति दे रही है । आखिर हर सांसारिक आदमी अपना घर परिवार चाहता है ।

' मुझे तुमसे यही उम्मीद थी ।' गोपाल का उत्तर सुनकर तथा शांति के मनोभावों को पढ़कर उषा ने खुशी से कहा था ।

शांति ने उसका आशीर्वाद लेकर स्कूल जॉइन कर लिया था एक जिंदगी को अंधेरों से रोशनी की ओर बढ़ते देख वह अत्यंत ही प्रसन्न थी । अगर हिम्मत है लगन है तो इंसान कमल की तरह दलदल में भी खिलकर अपनी पहचान बना सकता है ।

………..

पदम ने मैट्रिक करने के पश्चात इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा जाने की बात कही तब उषा चौंक गई थी । एकाएक उसे महसूस हुआ कि अब वह बड़ा हो गया है । आश्चर्य तो उसे इस बात का था कि उसने कभी बच्चों का रुझान जानने का प्रयत्न क्यों नहीं किया !! वह चाहती थी कि पदम भी अपने डैडी की तरह सिविल सर्विस को अपना कैरियर बनाए । अपनी इस सोच के कारण उसने पदम से अपना विचार त्याग कर आई.ए.एस . के लिए तैयारी करने के लिए कहा पर वह नहीं माना ।

उसे प्रारंभ से ही कंप्यूटर से खेलने का शौक था । वह उसे ही अपना कैरियर बनाना चाहता था । उसे लगता था कि आज सॉफ्टवेयर इंजीनियर की ज्यादा डिमांड है । मन मार कर उसने उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा जाने की इजाजत दे दी । खुशी इस बात की थी कि पदम न केवल अपने निश्चय पर अडिग रहा वरन् उसे आई.आई.टी. दिल्ली में प्रवेश भी मिल गया ।

आई.आई.टी. करते-करते प्लेसमेंट द्वारा उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब मिल गया । लंदन में कार्यरत पदम आज करोड़ों में कमा रहा है । उषा के मन मस्तिष्क पर प्रशासनिक सेवाओं से प्राप्त सुविधाओं का इतना अधिक असर था कि उसने पदम से ढाई वर्ष छोटी बेटी रिया से अपनी इच्छा पूरी करनी चाही , तब उसने भी भाई की बात दोहरा दी । वह भी भाई के नक्शे कदम पर चलना चाह रही थी । बी.ई. करने के पश्चात वह एम.बी.ए. करने कलकत्ता चली गई ।

कुछ चुभने का अहसास होते ही उषा के विचारों पर ब्रेक लग गया । उसने उधर निगाह डाली जहाँ चुभन हो रही थी । उसने पाया कि उसकी अपर आर्म पर बैठा मच्छर उसे चुभन का एहसास करा रहा है । उसने आव देखा न ताव अपना दूसरा हाथ उठाकर मच्छर पर मारा । जरा सी देर में वह निर्जीव होकर उसकी हथेली पर आ गिरा । इसे भी आज उसके हाथों ही मरना था शायद ठीक उसी तरह जैसे वह मन ही मन मर रही है ।

घड़ी की तरफ देखा 3:00 बजा रही थी । अजय अभी तक नहीं आए थे । उषा पलंग से उठकर कमरे में पड़े सोफे पर बैठ गई । मन एक बार फिर अनियंत्रित घोड़े की तरह भागने लगा था…

पदम को नौकरी मिलते ही उषा उसके विवाह के लिए लड़की की तलाश कर ही रही थी कि उसने अपने साथ काम करने वाली लड़की डेनियल से विवाह करने का फैसला सुनाया ही नहीं ,विवाह भी कर लिया ।

पद्म के इस निर्णय ने उसके अहम को चोट पहुंचाई थी । प्रतिक्रिया स्वरूप उसने पदम से कभी मुँह न दिखाने की बात कह दी । तब अजय ने प्रतिरोध करते हुए कहा था,' हमने भी तो प्रेम विवाह किया था फिर विरोध क्यों ? '

' हमने विवाह किया था पर माता-पिता की सहमति से... यह नहीं की पहले विवाह कर लिया फिर सूचना दी ।' उषा ने क्रोध में उत्तर दिया ।

' तुम्हारी बात ठीक है पर जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता । पदम के फैसले को स्वीकार करने में ही हमारी भलाई है ।'

' तुम्हें जो करना हो करो पर मैं इस विवाह को स्वीकार नहीं कर पाऊंगी ।'

वह तो अजय की समझदारी थी कि उसने माँ बेटे के अमूल्य रिश्ते को दरकने से बचा लिया था । उसके विरोध के बावजूद अजय ने पदम और डेनियल को भारत आने का निमंत्रण दे दिया तथा एक छोटी सी पार्टी देखकर उनके रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी थी । उस पार्टी में भारतीय परंपरागत ड्रेस भारी काम वाले क्रीम कलर के लहंगे में डेनियल को देखकर उसका सारा विरोध ताश के पत्तों की तरह डह गया था । उस दिन वह परी से कम नहीं लग रही थी । उससे भी अधिक उसका हाथ जोड़कर अभिवादन करना अतिथियों को भा गया था । सभी उसकी प्रशंसा करते हुए नहीं थक रह थे ।

रिया को डेनियल के रूप में सखी मिल गई थी । डेनियल थी तो अंग्रेज पर उसे भारतीय ड्रेस पसंद थी । अपनी बार्ड रोब को वह तरह-तरह की भारतीय ड्रेसों से सजाना चाहती थी । इस कार्य में रिया ने उसकी सहायता की । उन दोनों को साथ-साथ घूमते, शॉपिंग करते देखकर उसका दिल जुड़ा गया था । भावी पीढ़ी में यह प्रेम भाव होना सुखद भविष्य की तस्वीर पेश कर रहा था । मन ही मन उसने डेनियल को बहू रूप में स्वीकार कर लिया था ।

मम्मी जी इस अवसर पर नहीं आई थीं । दरअसल उस घटना के पश्चात वह यात्रा नहीं करना चाहती थीं शायद ट्रेन की यात्रा उन्हें पापा की याद दिला आ जाती थी । अतः वह और अजय पदम और डेनियल को उनके पास आशीर्वाद हेतु लेकर गए ।

मम्मी जी उन्हें देखकर बहुत खुश हुई । जब डेनियल उनके चरण स्पर्श करने के लिए झुकी तब उन्होंने उसे रोकते हुए कहा, ' बेटा तेरी जगह मेरे हृदय में है ...और पदम तू दादी की एक बात सदा याद रखना कभी इसको कोई दुख न होने देना । फूल सी नाजुक है मेरी बच्ची ।'

' यस दादी ,आपकी आज्ञा शिरोधार्य है । आप हम दोनों को अपना आशीर्वाद दीजिए ।' कहकर वह उनके चरणों में झुका ।

' बेटा, मेरा आशीर्वाद तो सदा तुम्हारे साथ है । '

' मुझे पता था आपका आशीर्वाद मुझे और डेनियल को अवश्य मिलेगा ।' गदगद स्वर में पदम ने कहा ।

' क्यों नहीं मिलता । अब मेरे जीवन में बचा ही क्या है सिर्फ तुम सबके ? सदा खुश रहो मेरे बच्चों ।' कहते हुए माँ जी ने अपना जड़ाऊ सेट निकालकर डेनियल को पकड़ाया था ।

दादी की बात सुनकर डेनियल ने उषा की तरफ देखा था । डेनियल को उसकी ओर देखते देखकर मम्मी जी ने उसे प्यार भरी डांट लगाते हुए कहा , ' अपनी सास की ओर क्या देख रही है मैं तुझे दे रही हूँ उसे नहीं ।'

मम्मी जी ने सबकी पसंद का भोजन बनवाया था । रात्रि के भोजन के पश्चात उषा ने मम्मी जी से आग्रह करते हुए कहा,' मम्मी जी अब आपने अवकाश प्राप्त कर लिया है, अब आप हमारे साथ चलकर रहिए ।'

' नहीं बेटा, मुझे यही रहने दे । कुछ बच्चे अभी भी मुझसे पढ़ने आते हैं । उनको पढ़ा कर मुझे संतुष्टि मिलती है । जब यह कार्य नहीं कर पाऊंगी तब तुम्हारे पास ही आऊंगी ।' कहकर उन्होंने अपनी नम हो आई आँखों को पोंछा था ।

मम्मी जी की जिजीविषा उषा को हतप्रभ कर रही थी वरना इस उम्र में लोग अपने बच्चों पर आश्रित होने लगते हैं । एक हफ्ते उनके पास रहकर वे लौट आये थे । उनको विदा करते हुए मम्मी जी की आँखे भर आईं थीं ।

सुधा आदेश

क्रमशः