Pankhewala (shortstory) books and stories free download online pdf in Hindi

पंखेवाला (लघुकथा)


अप्रैल का महीना था चिलचिलाती धूप निकली थी बाहर गर्म हवाएं चल रही थी कही-कही कोई दूर यात्री छाता लेकर आते-जाते दिखाई दे रहे थे,तो कही वृक्षों की छाया में बैठे हुए राहगीर दिखाई दे जाते थे
इंसान तो इंसान इस गर्मी से जानवर और पंछियां भी परेशान दिखाई दे रहे थे, चुकी मेरा घर सड़क के किनारे है,और मैं अपनी बरामदा में कुर्सी पर बैठकर बाहर का दृश्य देख रहा था मुझमे दो आवेग हैं, पहला मैं बहुत ज्यादा चाय पीता हूँ, और दूसरा मैं देर तक सोने वाला आदमी हूँ, इसलिए चाय पीने का मन किया तो वही बैठा हुआ ही अपनी पत्नी शालिनी को आवाज लगाई तो वह कमरे से होती हुई
बरामदे में मेरे पास आकर बोली"क्या बात है साहब,फिर चाय पीने का मन है क्या?"मेरी पत्नी मुझे साहब ही कहकर पुकारती थी और जिस प्रकार हर पत्नी अपने पति की आदतों से परिचित रहती हैं, ठीक उसी प्रकार मेरी पत्नी मेरी आदतों से वाफिक है अतः शालिनी की बात सुनकर मैने कहा"अब तो तुम जानती ही हो,तो पूछना क्या है?गर्मी अपनी जगह पर है और चाय पीने का मूड
अपनी जगह पर है"इतना कहकर मैंने मुस्कुराया,लेकिन मेरी पत्नी व्यंग्य भाषा में बोली"हाँ साहब,यह अप्रैल का महीना भी तो आपके लिए जनवरी का महीना है,खैर बनाकर ला रही हूँ"इतना कहकर वह चाय बनाने के लिए चली गई मैं पेशे से लेखक हूँ,और उस दिन रविवार के दिन होने के कारण मैं घर पर ही आनंद उठा रहा था
थोड़ी देर के बाद शालिनी चाय लेकर आई,और सामने रखी टेबल पर रखकर चली गई फिर क्या था?मैं जैसे ही चाय की पहली चुस्की लेने के लिए कप को होंठो के पास ले गया तबा मेरी नजर एक पंखेवाला पर गई जो मेरे घर से थोड़ी ही दूर
एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़ा था,शायद...
गर्मी से राहत पाने के लिए उस वृद्ध को देखकर ऐसा लगा मानो परिस्थितियों ने उसे पंखा बेचने के लिए विवश कर दिया हो दुबला-पतला शरीर, पोपले मुहँ, और फ़टी
पूरानी पोशाक पहने हुए, उसके चेहरे पर अशांति सी नजर आ रही थी मैंने उसे देखा तो देखते ही रह गया,तभी मुझे ख्याल आया की चाय का कप तो मेरे हाथ में ही है,फिर क्या था मैंने आराम से चाय पी और उठकर गेट खोला और चल पड़ा उस पंखेवाला के पास....
जैसे ही मैं उसके पास गया,वह बूढ़ा पंखेवाला मुझे देखते ही बोला"पंखा चाहिए बेटा तुमको?बोलो कितना दे दूँ?"हालांकि, मुझे पंखा की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि पहले से ही मेरे घर में सारी सुविधाएं मौजूद हैं और जिस प्रकार का पंखा वह बेच रहा था, वैसे पंखे पहले से ही दो-चार हैं और मैं तो यह जानने के लिए गया थी की इस उम्र में वह पंखा क्यों बेच रहा है?खैर मैंने पूछा"बाबा,पहले यह बताइए इस उम्र में आपको आराम करनी चाहिए तो आप पंखा क्यों बेच रहे है?"मेरी बात सुनकर बूढ़ा पंखेवाला बोला"क्या करूँ बेटा,समय बड़ा ही बलवान होता है उसके आगे किसी की नहीं चलती है"इतना कहने के साथ ही वह बूढ़ा पंखेवाला निराश हो गया,क्योंकि उसके चेहरे पर
निराशा के बादल साफ दिखाई दे रहे थे,अतः मैंने कहा"बाबा आप आराम से बताइए,क्या बात है?"तब वह बूढ़ा पंखेवाला मेरी तरफ देखकर बोला"बेटा,तुम्हारी ही उम्र का मेरा एक बेटा है,लेकिन उसने मुझे अकेला छोड़ दिया है और अपनी पत्नी के साथ बाहर रहता है घर पर मैं अपनी पत्नी के साथ रहता हूँ और मौसम के अनुसार धंधा करता हूँ तथा बाकी समय मजदूरी करता हूँ"इतना कहकर उसने अपनी निगाहे नीची कर ली,जैसे मानों गलती उसी ने की है
पंखेवाला को इस प्रकार निराश देखकर मेरा भी मन भर आया अतः मैंने कहा"बाबा,एक पंखा आप कितना में देते है"
"सात रुपये में देता हूँ बेटा,बोलो कितना चाहिए"मेरी बात सुनकर वह बूढ़ा पंखेवाला बोला
"पांच दिजिए, मुझे"मैंने यह कहते हुए उसे रुपये दे दिया,और घर पर आया जब मैं उसी बरामदा में कुर्सी पर बैठा हुआ था, और उस पंखेवाला के बारे में सोच रहा था तभी शालिनी आई और मुझे इस प्रकार चिंता में देखकर बोली"क्या बात है साहब?क्यों इस प्रकार खोए हुए है"
"कुछ नहीं शालिनी, बैठो तो बता रहा हूँ"और इस प्रकार शालिनी को पूरी किस्सा सुनाया मेरी बात सुनकर शालिनी बोली"आपने बहुत अच्छा काम किया है अगर आप केवल पैसे देता तो वह नहीं लेता,लेकिन आप पंखा के बहाने उसकी मदद कर दिए"
"हाँ शालिनी, मैंने मदद तो कर दिया, लेकिन ऐसे बहुत से पंखेवाला, फेरिवाला और मजदूर हैं जो अपनी ही संतान से उपेक्षित हैं और स्वाभिमान के साथ जिंदगी जी रहे हैं"इतना कहकर मैं चुप हो गया
:कुमार किशन कीर्ति,लेखक