Kamnao ke Nasheman - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

कामनाओं के नशेमन - 7

कामनाओं के नशेमन

हुस्न तबस्सुम निहाँ

7

‘‘क्या आपको पता था कि मोहिनी एक विवाहित महिला है?‘‘

‘‘नहीं, मैने कल ही जाना ऐसा।‘‘

‘‘क्या आप यह नहीं जानते थे कि मोहिनी जी यहाँ एक शक की निंगाह से देखी जाती हैं, वह एक संदिग्ध चरित्र की महिला हैं?‘‘ इंस्पेक्टर ने थोड़ा मुस्कुरा कर पूछा।

‘‘मैं महिलाओं का मूल्य इस तरह चरित्र वाली बातों से नहीं आंकता।‘‘ अमल ने सधे हुए लहजे में कहा।

‘‘क्या आपने यह नहीं जाना कि उनके यहाँ रहने वाला यह मोती वहाँ किस हैसियत से रह रहा था?‘‘ इंस्पेक्टर ने थोड़ा कटाक्ष करते हुए पूछा था। फिर बोला- ‘‘जनाब, इस छोकरे को मोहिनी जी ने अपना रखैल बना कर रखा हुआ था।‘‘

‘‘यह उनका निजी मामला होगा। इस बात से मुझे कोई सरोकार नहीं। मैं तो घूम-घाम के यहाँ से आज या कल में चला जाता।‘‘ अमल ने खीझ कर कहा।

‘‘मोहिनी जी को एंज्वाए करके?‘‘ इंस्पेक्टार ने व्यंग्य से हँस कर कहा- ‘‘वह हैं भी वैसे बहुत हॉट। बहुत ही उत्तेजक। आप जैसे पुरूषों को पाकर वह इंकार नहीं कर सकतीं। वह बहुत ही सहज स्त्री हैं। सामने रखे हुए एक गिलास पानी की तरह। जब प्यास लगे, हाथ बढ़ाईए गिलास उठा के पी जाईए‘‘

‘‘महिलाओं का असान या कठिन होना उनकी स्थितियों पर निर्भर करता है।‘‘ अमल ने इंस्पेक्टर की कसैली बात को जैसे बहुत ही मुशकिल से निगलते हुए आगे कहा था- ‘‘और उनके आसान या कठिन होने के आधार पर उनके मूल्य को पूरी तरह नहीं आंका जा सकता। मोहिनी सिर्फ एन्ज्वाए या प्लेजर देने की वस्तु नहीं थी एक पुरूष के लिए।....अगर मोती वाली बात मोहिनी जी को लेकर सच है तो वह खुद भी तो एक पुरूष को एन्ज्वाए करती होंगी। महिलाओं को भी अपने ढंग से जीने का हक होता है। फिजूल की नैतिकता इसमें आड़े नहीं आनी चाहिए।‘‘

‘‘मिस्टर अमल...‘‘ इंस्पेक्टर ने तेज आवाज में कहा- ‘‘यहाँ मैंने नैतिकता पर बहस करने के लिए आपको नहीं बुलाया है। आप नहीं जानते अगर कहीं मोहिनी जी की मृत्यु हो गई तो उनके पति आप पर कत्ल का मुकदमा चलवा देंगे या फिर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के इल्जाम में फंस जाएंगे।‘‘

‘‘ऐसा वह नहीं कर सकते।‘‘ अमल ने एक गहरे अर्थ के साथ कहा- ‘‘यदि मोहिनी को ऐसा कुछ हो गया तो वह एक बहुत बड़ी पीड़ाजनक घुटन से बच जाएंगे।‘‘ शायद मोहिनी पर उनका एक पति का ही अधिकार था। एक पुरूषत्व का अधिकार नहीं।‘‘

‘‘आप मोहिनी का मर जाना जस्टीफाई करते हैं यानी उनका मर जाना उनके पति के लिए हितकर ही होगा।‘‘ इंस्पेक्टर ने जैसे इन बातों का मर्म समझने का प्रयास करते हुए पूछा।

‘‘यदि इन प्रश्नों का उत्तर आप या फिर अदालत पर भी मिल जाए तो क्या होना जाना है।‘‘ अमल ने एक गंभीर लहजे में कहा- ‘‘स्त्री और पुरूष के संबंधों के मूल्यों को निर्धारित करने के लिए हमें उन अनदेखी अनबूझी सी त्रासदियों को पकड़ना होगा।‘‘

तभी इंस्पेक्टर का फोन बज उठा, उधर से बताया गया- ‘‘सर, मोहिनी जी होश में आ गई हैं। आप चाहें तो बयान ले लें।‘‘

इंस्पेक्टर ने हड़बड़ी में उठते हुए कहा- ‘‘चलिए, चलते हैं मोहिनी जी को होश आ गया है। बयान ले लूं और मिस्टर अमल, आप तब तक पचमढ़ी छोड़ कर नहीं जाएंगे जब तक मोहिनी का बयान पूरी तरह से नहीं ले लेता हूँ‘‘

‘‘जी, मैं खुद उनको इस हाल में छोड़ कर नहीं जाने वाला।‘‘ अमल ने उठते हुए गहरे स्वर में कहा।

और फिर वे हस्पताल की तरफ चल दिए।

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अस्पताल में मोहिनी के बेड के पास बाजू में बैठे अमल ने उसके हाथ को सहलाते हुए जैसे कहीं गहरे उतरते हुए कहा- ‘‘जब तक तक तुम्हें होश नहीं आया था, मैं बहुत सहमा हुआ था।...तुम्हें कुछ हो जाता तो शायद मैं तुम्हारी हत्या के अभियोग में फंस जाता।‘‘

मोहिनी ने अमल के चेहरे पर उभरे एक तोष को महसूस करते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘तुम्हें ज्यादह चिंता मेरी नहीं थी, सिर्फ फंसने की चिंता थी।‘‘

‘‘शायद तुम सही कह रही हो।‘‘ अमल ने बहुत ही सधे स्वर में कहा- ‘‘यदि मैं तुम्हें लेकर मुकदमें में फंस जाता तो उतना मैं कानून के लिए जवाबदेही महसूस न करता जितना कि बेला के लिए जवबदेह बन जाता। वह बहुत कुछ तुम्हारे बारे में सोचने के लिए मजबूर होती। शायद वह अंदर से टूट जाती।...उसका टूटना तुम्हें लेकर शायद मैं सह नहीं पाता।‘‘

मोहिनी इस सच को जान कर न जाने किस भाव में चुप रही। वह सिर्फ अमल का चेहरा निहारती भर रह गई। तभी अमल उसकी आँखों में झांकते हुए बोले- ‘‘एक बात कहूँ हनी, तुम्हारा वह बहुत ठंडा सा फैसला आत्महत्या करने का गलत था।‘‘

‘‘मैं अपने को हार कर नहीं ऐसा करने गई थी। मुझमें जरा भी फ्रस्ट्रेशन नहीं है शिखर को लेकर। जितना एक पुरूष को जीना चाहिए, मैं जी ही रही थी। मैंने कभी भी अपनी स्त्री को शिखर का एक मजबूर सा अभाव नहीं महसूस होने दिया।‘‘ मोहिनी बहुत ही बेबाकी के साथ बोली- ‘‘मैंने अपने भीतर कामनाओं से लदी एक औरत के सुख के लिए लोगों की अर्थहीन घृणा के मूल्य को नकार दिया।...फिर भी कल शिखर की निरीहता मुझे अंदर तक झकझोर गई। मैं उन्हें हर क्षण अपना एहसास करा कर उनका पल-पल मरते रहना सह नहीं पा रही थी।....तुम्हें गेस्टहाउस से वापस बुलाने के आग्रह को मैंने उनकी एक खामोश और बहुत ही विवश स्वीकृति महसूस की थी। ऐसा करने में या किसी पुरूष की मेरी संगता को सहज भाव से स्वीकार लेने में उनकी बड़ी महानता थी। उनके इस पुरूष के लिए मेरे मन में एक गहरी संवेदना जाग गई थी।...मैं ऐसा निर्णय न लेती तो क्या करती?‘‘

अमल ने उसके चेहरे पर अभी एक अज्ञात सी संवेदना को जैसे बहुत ही गहराई से महसूस करते हुए कहा- ‘‘नो...तुम्हारा फैसला फिर भी गलत था क्यूंकि ये एकदम कोरी भावुकता से भरा फैसला था। संवेदनाएं सिर्फ मोम की तरह होती हैं जो सिर्फ पिघल कर बह सकती हैं इससे अधिक कुछ भी नहीं। लेकिन व्यक्ति की लालसाएं चमकते पत्थर की तरह मजबूत होती हैं। वे पिघलती नहीं सदैव बनी रहती हैं। किसी भी शर्त पर अपनी लालसाओं से मुक्त होने का प्रयास, स्वयं को मारना है। लालसाएं हमें जितना निचोड़ेंगी, उतना ही हम जीवन के मूल्य को पहचानेंगे। मेरे यहाँ से जाने के बाद तुम अपने स्वयं की लालसाओं के मूल्य को पहचानोगी और कभी ऐसा प्रयास नहीं करोगी।‘‘

मोहिनी कुछ देर तक अमल का चेहरा देखती सोचती रही है और फिर जैसे चुपचाप किसी निर्णय पर पहुंचते हुए मुस्कुरा कर पूछा- ‘‘कब वापस लौट रहे हो। कम से कम मुझे यहाँ से डिस्चार्ज तो हो जाने दो।‘‘

‘‘अभी कहाँ तुम्हें छोड़कर जा रहा हूँ।‘‘ अमल ने एक आत्मीयता से भर कर कहा- ‘‘वैसे डॉक्टर कह रहे थे कि तुम्हें कल या परसों यहाँ से घर ले जा सकते हैं।....तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद ही मैं वापस जाऊँगा।‘‘

मोहिनी ने फिर एक गहरी सेंक के साथ अमल के बालों को छूते हुए धीमे स्वरों में कहा- ‘‘तुम्हारे इस तरह से खाली-खाली लौट जाने को सोच कर बहुत फील हो रहा है। तुम मेरे पास उतनी दूर से एक चेंज और...क्या कहूँ कि किसलिए आए थे, सब व्यर्थ गया न।‘‘ अमल ने मोहिनी की बातों का मोहक अर्थ महसूस करते हुए हँस कर कहा-‘‘एक बात कहूँ, अभी तुममें और अपनी बेला में ज्यादह फर्क नहीं महसूस कर पा रहा हूँ....तुम मुझे उतनी ही व्यर्थ लग रही हो जितनी कि बेला लगती रही है।‘‘

‘‘यहाँ बेचारी बेला को बार-बार क्यों लाते हो।‘‘ मोहिनी ने थोड़ा उत्तेजित आवाज में कहा- ‘‘किसी के साथ कुछ क्षण जीने के लिए उसे ही सिर्फ याद रहना चाहिए।‘‘ फिर उसने थोड़ा हँस कर कहा- ‘‘तुम पुरूष लोग भी बड़े अजीब होते हो। तुम अपनी यह यात्रा व्यर्थ न करना चाहो तो मिसेज नैना को बुलवा देती हूँ। कुछ दिन मेरे घर रह कर खाना बना दिया करेंगी।...और वह बहुत ही सहज सी औरत है।‘‘

मोहिनी की बातों का अर्थ समझते हुए अमल ने कहा- ‘‘मिसेज नैना से इतना जरूर करवा लेना कि बेचारा मोती सजा पाने से बच जाए।...अब मैं रूकूंगा नहीं। यहाँ फोन के टावर्स भी काम नहीं कर रहे। बाबू जी परेशान होंगे।‘‘

‘‘शरदोत्सव भी खत्म हो गया है शायद, बेला भी वहाँ तुम्हारे लौटने का इंतजार कर रही होगी।‘‘ मोहिनी ने अमल की आँखों में झांकते हुए कहा- ‘‘वैसे तुम मेरे पास रहे यह तो मेरी उपलब्घि थी। लेकिन तुमने यहाँ आ कर भी पचमढ़ी के शरदोत्सव के संगीत कार्यक्रम में भाग नहीं लिया इसके लिए मेरा मन कचोटता सा रहेगा।‘‘

‘‘आया था उसी का बहाना लेकर, लेकिन यहाँ आने का कारण केवल तुम ही हो।‘‘ अमल ने बहुत डूबते स्वर में कहा-‘‘अब लगता है मेरी उंगलियां सितार पर थिरकतना धीरे-धीरे भूलती जा रही हैं। बेला रोज टी.वी. देखती होगी। अखबार जरूर पढ़ती होगी...उसमें मुझे न पाकर न जाने क्या सोचती होगी।‘‘

‘‘मुझे भी अंदर से अच्छा नहीं लग रहा। मैं तुम्हें सितार बजाते सुनना चाहती थी लेकिन कह नहीं सकी।...एक बात कहूँ अमल अपनी प्रतिभा और यश को यूं लुप्त न होने दो।‘‘ मोहिनी ने किसी पीड़ा की गहराई में उतरते हुए कहा।

अमल ने उसकी आँखों में झांकते हुए हँस कर कहा- ‘‘तुम पास रहतीं तो कुछ तो इन बातों के लिए प्रेरणा मिलती। अब तो सब छोड़ने को जी चाह रहा है। बस इससे अधिक कहने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। तुम्हें सोच कर जरूर अब वहाँ कभी-कभी सितार छू लिया करूंगा।‘‘

तभी नर्स दवा लेकर आ गई। दोनों चुप रह गए।

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परसों से ही अमल के लौटने का इंतजार था। एक तो वह बेला को छोड़ कर कहीं बाहर जाते नही हैं, दूसरे इतने सारे दिन लगा दिए। पिछले तीन वर्षों से, जबसे बेला पैरालेसिस हुई है और उसने बेड पकड़ लिया है अमल शायद एक रात के लिए भी कहीं बाहर गए हों। अभी शाम होने को आ रही है लेकिन अमल का आज भी न लौटना....बेला के भीतर ढेर सारी आंशंकाएं घिरने लगी हैं। तभी माला बेला के पास दवा लेकर खडी हो गई। सामने माला को देख कर कहा- ‘‘तू किस जन्म का कर्ज उतार रही है, तू जिस गहरे मन से मेरी सेवा कर रही है उससे तेरे बाबू तुझे अच्छी खासी तन्ख्वाह देकर भी तेरे कर्ज से मुक्त नहीं हो सकते।‘‘

इस बारह तेरह साल की लड़की माला ने बेड पर पड़ी बेला के चेहरे की ओर एक पीड़ा के भाव से देखते हुए कहा-‘‘माँ जी, जब मैं आपका सिर दबाती हूँ या बदन दबाती हूँ या फिर दवा पिलाती हूँ तो मेरी अपनी माँ याद आ जाती है।...वह इसी तरह बीमार खाट पर पड़ी रहती थीं, बहुत चाहती थी मैं कि उनके खाट के पास बैठूं या उनका सिर दबाऊँ पर वह हमेशा ऐसा कर देने से मना कर दिया करती थीं।‘‘

‘‘क्यों...?‘‘ बेला ने माला के चेहरे पर उभरती एक पीड़ा के भाव को महसूस करते हुए पूछा। वह भोली सी बच्ची कुछ देर तक अपनी माँ को याद करने लगी थी। फिर सिर झुकाए धीरे से बोली- ‘‘उन्हें टी.वी. थी। वह मुझे अपने पास ज्यादा बैठने नहीं देती थीं। कहती थीं कि यह बहुत छूत वाला रोग है। कहीं मुझे न हो जाए। इससे वह बहुत डरती थीं।...मेरे बाबा एक टैक्सी ड्राईवर थे, वह एक एक्सीडेंट में पहले ही मर गए थे। तब मैं चार साल की थी। मैं उनकी कुछ भी सेवा नहीं कर सकी। इसका बहुत दुःख रहता है। आपको दवा देती हूँ, सेवा करती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है।‘‘

समीप खड़ी माला के बदन को सहलाते हुए बेला ने बहुत प्यार से कहा- ‘‘मैं भी तो तेरी माँ ही हूँ। तू मेरी बच्ची जैसी ही तो है। अगर मैं माँ नहीं बन सकी तो क्या हुआ...तुझे मैं वैसा ही प्यार दूंगी जो एक माँ अपने बच्चे को देती है।‘‘

माला एक गहरे स्नेह से बेला की आँखों में झांकने लगी थी। उसकी आँखों भर आई थीं और फिर भर्राए स्वरों में वह बोली थी- ‘‘दवा खा लो आप‘‘

बेला ने बहुत आहत भाव से कहा- ‘‘यह शाम की दवा मैं हमेशा तेरे छोटे बाबू जी के हाथों से खाया करती थी। आज तेरह दिन हो गए उन्हें पचमढ़ी गए हुए। अभी तक लौटे नहीं। अब जब वे आएंगें तभी उनके हाथों से ही दवा लूंगी।‘‘

‘‘छोटे बाबू जी आएंगे न..‘‘ माला जैसे ढांढ़स बंधाती बोली- ‘‘दवा आप नहीं खाएंगी तो वह वापस आने पर मुझें ही डांटेंगे।‘‘

तभी बाहर फाटक खड़कने की आवाज आई। लूसी भी कुकवाने लगा था। माला ने एक अंदाज लगाते हुए कुछ उत्साह के साथ कहा- ‘‘लो शायद छोटे बाबू जी आ गए वापस।‘‘ लूसी तभी बहुत प्यार से कूं...कूं करने लगा है।‘‘ इतना कह कर माला कमरे से बाहर चली गई। लेकिन कुछ ही पलों में हताश सी वापस लौटी और बेला के पास चुपचाप खड़ी होती बोली- ‘‘बड़े बाबू जी हैं।‘‘

इस क्षण बेला के चेहरे पर जो हताशा के भाव उभरे थे माला का साहस नहीं पड़ा कि वह दवा खाने के लिए फिर कह सके। तभी केशव नाथ बगल में एक बड़ा सा पैकेट लिए बेला के कमरे में आ गए। माला को बेला के पास हाथ में पानी का गिलास और दवा लिए खड़ी देखा तो मुस्कुराते हुए स्नेह से पूछा- ‘‘फिर आज दवा नही खा रही क्या?‘‘

‘‘नहीं, कहती हैं कि अब छोटे बाबू के हाथ से ही शाम की दवा लूंगी।‘‘

‘‘आज तो अमल को हर हाल में घर आ जाना चाहिए। केशव नाथ ने भी जैसे एक गहरे भाव के साथ कहा- ‘‘आज चार नवंबर है। आज उसको बेला के पास ही रहना चाहिए था। आज इन दोनों की शादी की चौथी वर्षगांठ है।‘‘

बेला ने केशव नाथ की ओर एक बड़े ही गहरे भाव से देखा और फिर एक फीकी मुस्कान के साथ बोली- ‘‘क्या बाबू जी...अब ये वर्षगांठ मनाना जाने कैसा-कैसा लगता है। जब मैं उठ कर खड़ी नहीं हो सकती...। उठ कर आपके पांव नहीं छू सकती। फिर इस अपाहिजपन में कैसी वर्षगांठ। अब तो जब भी ये तारीख आती है मन जाने कैसा-कैसा होने जगता है। न तो आपकी सेवा के लायक रह गई न ही आपके बेटे के लायक।‘‘ इतना कह कर वह सिंसकने लगी है। केशव नाथ ने एक गहरी पीड़ा के साथ बेला के सिर पे हाथ फेरते हुए कहा- ‘‘तू चाहे जैसा सोच लेकिन मेरा अमल वास्तव में एक बहुत बड़े मन का मालिक है। वह तुझे अभी भी वैसे ही प्यार करता है। वह पूरी तरह समर्पित है तेरे लिए। अब नहीं लौट पाया तो जरूर उसकी कोई मजबूरी होगी।‘‘

‘‘मैं इसको फील नहीं कर रही बाबूजी, कि वे आज लौटे क्यों नहीं, वे इन तीन सालों में मेरे पास रह-रह के घुट से गए थे। हालांकि वह अपनी घुटन हमें महसूस नहीं होने देते। लेकिन मैं उनकी घुटन महसूस करती हूँ। वे सारे प्रोग्राम छोड़ते चले गए हैं। मैंने ही उन्हें जिद करके पचमढ़ी शरदोत्सव वाले संगीत प्रोग्राम में निमंत्रण स्वीकार लेने को कहा था। फिर भी वे न तो अपना सितार साथ ले गए न ही अपने तबलावादक को ही। बस अकेले ही चले गए कि वहाँ सब मिल जाएगा। लेकिन आश्चर्य है कि न तो उनके प्रोग्राम टी. वी. पर दिखे और न ही अखबारों में उनके बारे में कुछ आया। ऐसा नहीं हो सकता कि वह सितारवादन करें और कहीं उसकी चर्चा न हो, इस वक्त देश में उनके सिवा कौन है सितार वादन में। बस यही चिंता है कि वह कहाँ रह गए।‘‘

शायद बेला के इस एहसास के सामने केशव नाथ जी अनुत्तरित रह गए और चुप लगा गए। फिर माला की ओर देखते हुए बोले- ‘‘दवा तो खा ही लो। वह बच्चा थोड़े ही है कि कहीं गुम जाएगा। आ ही जाएगा‘‘

माला ने फिर उसके मुँह में लेटे-लेटे ही दवा की टेबलेट डाल दी और चम्मच से पानी पिला दिया। वे कुछ न बोल सकीं। तभी केशव नाथ जी ने सामने पड़ा पैकेट खोलते हुए कहा- ‘‘आज तुम्हारे वर्षगांठ पर मैं तुम्हारे लिए साड़ी लाया हूँ...देखना कैसी है, एक बहुत ही खूबसूरत हार भी। अमल की माँ का जो पुराने डिजाईन वाला हार था, उसे तुड़वा कर नए डिजाईन का बनवा दिया है। तुम्हें जरूर पसंद आएगा।‘‘

बेला एक गहरे स्नेह से उनका चेहरा तकने लगी है। उसकी आँखें भर आईं। उसने भारी स्वर में कहा- ‘‘अच्छा हुआ बाबू जी माँ नहीं रहीं। आप लोग तो मुझे झेल ही रहे हैं, वह भी झेलतीं....। कितने सपने देखे होंगे आपने कि बहू घर में आएगी एक उजाड़ गृहस्थी बस जाएगी। माँ का अभाव कुछ कम हो जाएगा आप लोगों को। लेकिन सपने, सपने ही रह गए। अब मुझसे क्या मिलना है आप सबको। न तो बहू ही बन सकी और न ही एक पत्नी। बस एक जिंदा लाश बन के रह गई हूँ।‘‘

केशव नाथ जी बहुत ही आहत भाव से बोले- ‘‘यह तुम्हारी सोच हो सकती है लेकिन न तो कभी मैंने तुम्हें एक बोझ महसूस किया न ही अमल ने। वह तो बेचारा तुम्हारे लिए पूरी तरह समर्पित है....। तुम्हें पूरी तरह एक स्वस्थ्य मन से जीना चाहिए।‘‘ यह कह कर केशव नाथ जी ने वह हार बेला के गले में पहना दिया।