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नाम का महत्व

"नाम का महत्व"

" हाँ - हाँ ठीक है,तू चिंता मत कर,आज मैं तुझे इस छिलके रूपी शरीर से मुक्त करके ही रहूंगी...!"

ऐसा लग रहा था जैसे वात्सल्य भाव में गीता आज फिर रसोईघर में किसी से बात कर रही थी..!तभी पीछे आँगन से रमेश(भाई) की आवाज़ आई,- "क्या बात है गीता ..!! .. आज फिर से रसोईघर में किससे बातें हो रही है..?!" गीता रसोईघर से बाहर निकलकर सकुचाते हुए बोली ;- "भईया ..वो...ओ... मटर..!! .. I ..मटर...!!" थोड़ी मुस्कराहट और अचंभित होकर रमेश बोला..- .. "भला मटर से भी कोई बातें करता है क्या?!" "..भईया वो,, रसोईघर के कोने में पड़ी मटर की थैली ..- ऐसा लगा जैसे वो मुझसे कुछ कह रही हो,,।"

तभी माँ की पीछे से आवाज़ आई..! .."वैसे, गीता ने बातों - बातों में आज बहुत बड़ी बात कह दी।".. माँ ने हाथ में फूलडाली लिए हुए घर में प्रवेश किया।
गीता भाग कर माँ के पास गई और उनके हाथ से फूलडाली लेते हुए पूछा;-"माँ..!! चाय बनाऊं?"माँ ने आँगन के तरफ बढ़ते हुए कहा;-"नहीं,..पहले रामायण पढूंगी फिर चाय"।इतना कह कर माँ आँगन में रखी हुई चारपाई पर बैठ गई..!!और गीता को रामायण लाने के लिए कहा..!!
उधर रमेश भी वहीं पास की एक कुर्सी पर बैठा अपने दफ्तर के कुछ कागज़ों में व्यस्त था।
गीता ने रामायण ला कर माँ को पकड़ा दिया और सिर पर दुपट्टा ओढ़ कर वहीं माँ के पास नीचे रामायण सुनने बैठ गई।
गीता के ऐसे भाव को देख कर माँ को उस पर अनायास ही प्यार उमड़ पड़ा,और गीता के सिर पर हाथ फेरते हुए कहने लगी;-" तू मेरी बहुत ही सयानी बिटिया है..।मैं तुझसे बहुत प्रसन्न और संतुष्ट रहती हूं।मुझे नाज़ है तुझ पर। तेरी जैसी पुत्री ईश्वर सब को दे..!" गीता ने भी मुस्कुराकर माँ का अभिनंदन किया।

माँ दोनों बच्चों को संबोधित करते हुए कहने लगी..!"वैसे तो, पैसे की अधिकता ना होने के कारण तुम दोनों को बहुत सुख सुविधाएं तो नहीं दे पाए,पर शिक्षा और संस्कारों से नवाजने में कहीं कोई कमी ना होने दी।" फिर गीता की ओर देखते हुए कहा;-"गीता अच्छी विद्या अर्जन करने के साथ साथ घर के काम में भी निपुण है , और ईश्वर स्मरण में भी लगी रहती है..।इसने अपने माँ बाप के नाम के साथ साथ अपने नाम का भी मान रखा है।"
रमेश जो अपने काम के साथ साथ माँ की सारी बातें भी ध्यान से सुन रहा था.., कर्तव्य भाव से माँ की ओर देखकर बोला;- "माँ..! पर ये पैसे तो नहीं कमाती है ना..! ..जो कि आजकल वो भी बहुत जरूरी है। सारा समय उन निम्नवर्गीय बच्चों को पढ़ाने में जाया कर देती है..।" गीता ने तुरंत मुड़कर भाई की ओर देखा और दृढ़ता से बोली:- "ऐसा मत सोचना भईया..!! ..मैंने जो उच्च शिक्षा प्राप्त की है ना,उससे मुझे कभी भी और किसी भी शिक्षा विभाग में उच्च पद पर आसानी से नौकरी मिल जाएगी..। और हां उन उपेक्षित वर्ग के बच्चों को पढ़ाने में जो आनंद की अनुभूति होती हैं ना, मुझे अन्य किसी भी कार्य में नहीं होती.. और माँ के अनुमति से ही तो करती हूं..! है ना माँ!?" ..."हाँ हाँ बिल्कुल," माँ ने भी हामी भरी..।

माँ ने गीता की ओर देखते हुए कहा;- "गीता से मैं निश्चिन्त हूं और विश्वास भी है कि जीवन के किसी भी परिस्थिति में अपने आपको संभालने में सक्षम है।"
माँ ने स्निग्ध दृष्टि से रमेश की ओर देखते हुए कहने लगी ,- "तेरा नाम रमेश भी हमने बहुत सोच समझ कर रखा था,.. "रमेश" यानी की "रमा" के ईश्वर "महादेव"- तूने महादेव के दाम्पत्य जीवन के संदेश को बखूबी निभाया... सबका का बराबर ख्याल रखा, हमे कभी शिकायत का मौका ही नहीं दिया, कभी किसी चीज की कमी नहीं खटकने दी, सबकुछ समय से पहले ही पूरा कर देता है..।पर तू महादेव के योगीेश्वर रूप को भूला हुआ है; जो कि समस्त जगत के कल्याण का उत्कृष्ट एवम् अद्वितीय उदहारण है। जिस दिन तुझे अपने नाम के स्वरूप का पूर्ण ज्ञान हो जाएगा,उसी दिन तेरे नाम की पूर्ण सार्थकता सिद्ध होगी।"
माँ शून्य में देखती हुई बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,"वैसे देखा जाए तो हर एक मध्यम वर्गीय परिवार इतना सक्षम तो जरूर होता है कि,किसी भी उपेक्षित परिवार के एक बच्चे कि पूर्ण शिक्षा का भार वहन कर सकता है। कम से कम एक बच्चे का कल्याण तो हो ही जायेगा,और उसकी अपनी आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी सभी शिक्षित होगी।"

इधर रमेश अपने काग़ज़ी कार्यों को छोड़कर,माँ की सारी बातों को बहुत ध्यान से सुन रहा था,फिर माहौल को हल्का बनाते हुए वो अपनी कुर्सी पर से उठ कर माँ के पास आ कर बैठ गया और शरारती भाव के साथ गीता की और देखते हुए बोला;-"चल ठीक है..! गीता..,तू रोज़ इसी तरह ज्ञान कि बातें किया कर,इसी बहाने कुछ सत्संग तो हो जाया करेगा..!!मुझे तो दफ्तर के काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है,।" गीता ने भी मुस्कुरा कर भाई के बातों का समर्थन किया।
रमेश उठ कर खड़ा हो गया और माँ के चरण छु कर दरवाजे की ओर बढ़ चला और जाते - जाते माँ से कहा;-"माँ..!!आज तू दोपहर के खाने पर मेरा इंतज़ार मत करना,मै शाम तक ही आऊंगा..!!"

उसके बढ़ते हुए कदम और हाव भाव से लग रहा था, जैसे आज उसे अपने नाम के अस्तित्व का बोध होने लगा था!.. और उसी की तलाश में शायद आज वो बाहर निकल पड़ा.....!!

पूनम सिंह
स्वरचित / मौलिक