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नकटी - भाग-4

सुबह सुबह ग्यारह बजे का समय था। चरण फाईनेंस के ब्रांच मैनेजर गुप्ता जी ऑफिस की फाइलें निपटाने में व्यस्त थे। किसी ने दरवाजा खटखटाया। गुप्ता जी ने गर्दन ऊँची की वहाँ एक लड़की खड़ी थी।

“अरे कंचन, आओ आओ।“

“गुड मॉंर्निग अंकल” कंचन ने सामने की कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

गुप्ता जी ने पूछा "तुम्हारे पापा ने इस ऑफिस में लम्बी नौकरी की है। कैसे हैं आज कल?”

"जी अच्छे हैं, आपको बहुत याद करते हैं।“

कंचन फिर रुक कर बोली "अंकल मैं एक व्यक्तिगत काम से आपके पास आयी हूँ।"

"कहो बेटी , कुछ लोन चाहिए?"

“नहीं अंकल, अंकल मैने सुना है आपकों रिकवरी एजेंट की आवश्यकता है।

“हाँ सही सुना है। किसी से मुझे मालूम हुआ है तुमने एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर ली है।“

“मैं अपने लिए नहीं आई हूँ अंकल। मेरा एक दोस्त है ‘संजय’, उसके लिए आई हूँ ।“

तभी एक कर्मचारी अंदर आया और ब्रांच मैनेजर के कान में फुसफुसाया “एक नंबर का मवाली है सर।“

कंचन ने कहा “हाँ अंकल, लोग कहते हैं कि वह मावली है। लेकिन मैं उसको स्कूल के दिनों से जानती हूँ । वह बहुत अच्छा लड़का है। मैं बडी आशा लिए आपके पास आई हूँ ।

“आई हो तो तुम्हें निराश होने की आवश्यकता भी नहीं है, मैं प्रयास करता हूँ। मुझे ऊपर के अधिकारियों को भी इसके लिए राजी करना पड़ेगा।“

“थैंक यू अंकल।“ कह कर मुस्कुराते हुए कंचन ने विदा ली।

ब्रांच मैनेजर ने अपने उच्च अधिकारी से बात की “सर मैं एक लडके को रिकवरी एजेंट नियुक्त करना चाहता हूँ ।“

“कर लो। क्या क्वालिफिकेशन है?“

“ग्रेजुएट है सर।“

“लेकिन एल.एल.बी. होना आवश्यक है।“

“सर उसकी अतिरिक्त योग्यता ये है कि वह इस इलाके का सबसे बडा मवाली है।“

“किन चक्करों में पड रहे हो गुप्ता जी! ये योग्यता है या अयोग्यता? कोर्ट बहुत सख्त है, आजकल किसी से जबर्दस्ती नहीं कर सकते। आपकी रिकवरी रेट पहले ही बहुत कम है। “

“सर मैं रिस्क लेना चाहता हूँ।“

“शौक से लो लेकिन यदि कल को कोई आफत आए तो मुझसे कोई अपेक्षा मत करना।“

“सर मैं कल उसे रिकवरी एजेंट का आर्डर दे रहा हूँ।“

“जैसी तुम्हारी मर्जी।“

ब्रांन्च मैनेजर ने नियुक्ति पत्र टाईप कर कंचन के घर भिजवा दिया।

कंचन पत्र लेकर संजय के पास पहुँची और उछलते हुए बोली “संजू ,चल जल्दी तैयार हो जा। चरण फाईनेंस चलना है।“

“मुझे लोन की कोई ज़रूरत नहीं है।“

“तुम जैसे को लोन कौन देगा। तुम्हे तो डूबे लोन की रिकवरी करनी है।“

“लोगों में पहले ही मेरी छवि ग़लत बन गई है। मुझसे ये डराने धमकाने का काम नहीं होगा।“

“डराने की आवश्यकता कहाँ है? चाहे ग़लत बनी हो लेकिन ये छवि तुम्हारे बहुत काम आ सकती है। इस काम के लिए तुम्हारा नाम ही काफी है। अब ज्यादा बहस की जरूरत नहीं है, चलो मरे साथ।“

“इतने रौब से मुझे दो ही लोग कह सकते है।“

“कौन कौन?”

“ एक मेरी माँ और दूसरी तुम।“

“अच्छा चलो भी अब।“ कंचन ने मुस्कुराते हुए शर्माते हुए कहा।

“चलो।“

दोनों चरण फाइनेंस के ऑफिस पहुंचे। ऑफिस के लोग आपस में घुसर फुसर बाते करने लगे ।

“मे आय .............?” संजय ने चैम्बर के द्वार पर रूककर कहा।

“अरे आइये संजय। मैं तुम्हारा इन्तजार ही कर रहा था चलो मैं तुम्हे स्टाफ से मिलवाता हूँ।“

तीनों उठकर हॉल में, जहाँ सभी कर्मचारियों के केबिन थे, आ गए। ब्रांच मैनेजर को देखकर सभी कर्मचारी खडे हो गए।

“कृपया सभी ध्यान दें। मैं आपका परिचय हमारे नये रिकवरी एजेंट से करवा रहा हूँ। आप है ‘मि. संजय’, मुझे आशा है, आप सभी ने इनका नाम अवश्य सुना होगा।“

सभी आपस में घुसर फुसर करने लगे। एक व्यक्ति ने पास खड़े व्यक्ति के कान की तरफ झुक कर धीरे से कहा ‘‘क्यों नहीं सुना! रोज तो पेपर में इसकी मारपीट करने की खबर आती है।“

“सर, लेकिन हमारे यहाँ तो रिकवरी एजेंट एलएलबी को ही बनाने का नियम है“ एक ने पूछ ही लिया।

“मेरा मानना है कि जो काम लडाई झगडे, कानूनी दांव पेच की बजाय प्रेम से हो जाय वह बेहतर होता है। क्यों संजय?” गुप्ता जी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया।

“शत-प्रतिशत सहमत सर। मैं तो सब काम बस ‘प्यार से ही करना’ पंसद करता हूँ“ संजय ने कहा।

संजय के कथन पर सभी ने एक दूसरे की ओर रहस्यमयी मुस्कान बिखेरी।

“चलो संजय, हम डिफॉल्टर्स की लिस्ट पर चर्चा कर लेते है“ गुप्ता जी ने कहा।

“जरूर सर।“

चैम्बर के अंदर पहुँच कर गुप्ता जी ने संजय को एक फाइल थमाते हुए कहा

“इस फाईल में सभी डिफॉल्टर्स की डीटेल है। मैं अभी तुम्हें पूरा प्रजंटेशन दिखा देता हूँ।

गुप्ता जी ने साथी कर्मचारी से कहा

“मेहता जी प्रजंटेशन शुरू कीजिये।“

चैम्बर की दीवार पर लगे बडे टीवी पर एक तस्वीर और डीटेल उभर आई।

“ये हैं शहर के सबसे बडे माल ग्रेट सिटी के मालिक प्रतीक। सब दुकानें अच्छी चल रही है लेकिन दस साल से कोई किश्त जमा नहीं करवाई है“ मेहताजी ने कहा।

“फिर हम कब्जा क्यों नहीं ले लेते?” संजय ने पूछा।

“हम हमारी फाइनेंस कंपनी चलाए या मॉल! हमारे इतना पास स्टाफ कहाँ होता है? ...मेहता जी नेक्सट“ गुप्ता जी ने कहा।

स्क्रीन पर एक नई तस्वीर और उसकी डिटेल उभर आई

“ये हैं मनीष सूती, शहर के फेमस रेस्ट्रॉ सूती स्वीट्स के मालिक, दस करोड का लोन लिया था। आठ करोड का डिफाल्टर है।“

“हमने तो यहाँ खूब खाया पिया है। अच्छी खासी भीड़ भी रहती है“ संजय ने कहा।

“रेस्ट्रॉ अच्छा चल रहा है लेकिन नीयत अच्छी नहीं है ना।“

गुप्ता जी के फिर इशारा करते ही स्क्रीन पर एक और तस्वीर उभर आयी।

“ये हैं शहर के नामी ज्वैलर रूपेष खंडेलवाल, खंडेलवाल ज्वैलर्स के मालिक, आजकल इनका बेटा काम संभालता है।“गुप्ता जी ने कहा।

“क्या नाम है उसका? कंचन ने पूछा।

“रवि खंडेलवाल।“

कंचन और संजय एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुराये।

“बाकी और भी हैं। तुम ये फाइल अपने पास रख सकते हो। आराम से देख लो और अपना काम शुरू कर दो।मे री किसी सहायता की जरूरत हो तो बता देना।“ गुप्ता जी ने कहा।

“जी जरूर।“

कंचन और संजय फाइल लेकर बाहर आ गए।

“कंचन चलो किसी रेस्ट्रॉ चलते हैं” संजय ने कंचन को प्रस्ताव दिया।

“सूती स्वीट्स?” कंचन ने मुस्कुरा कर पूछा

“हा…… हा…… अरे अभी वहाँ नहीं। अभी तो आस पास ही कहीं चलते है… कान्हा चले?”

“चलो।“

संजय और कंचन दोनों कान्हा पहुचे। उन्होंने कॉफी और स्नेक्स आर्डर किये।

वेटर ऑर्डर लेकर चला गया तो संजय ने बात शुरू की

“मुझे नहीं लगता मुझ से ये काम हो पायेगा।“

“हो जायेगा संजू और वर्स्ट टू वर्स्ट केस में नहीं भी होता है तो हमारा क्या जा रहा है? तुम प्रयास तो करो। मुझे उम्मीद है तुम जरूर कामयाब होगे। मैं तुम्हें कर के बताती हूँ सोचों जैसे तुम डिफाल्टर हो और मैं रिकवरी एजेंट हूँ।“

कंचन बाहर चली गई और रिकवरी एजेंट जैसी स्टाइल व चाल ढाल बदल कर अंदर प्रवेश किया और संजय से कहा

“हाय सर, मै चरण फाईनेंस से संजय, रिकवरी एजेंट।“

“बोल कैसे आया? अभी टाइम नहीं है। फिर कभी आना। कोई सुन रहा है? बाहर करो इसकों” संजय ने भी डिफाल्टर के अपेक्षित उत्तर के अंदाज़ में जवाब दिया।

कंचन झुंझलाकर उसके पास बैठ गयी और बोली

“पैसेवाले ऐसे कभी नहीं बोलते। वे बहुत सोफस्टीकेटेड होते हैं । तुम जब इंट्रो देओगे तो वे कहेंगे................ आईये, बैठिये, मै आपके लिए क्या कर सकता हूँ?”

“यार जब उसे पता है सामने वाला वसूली के लिये आया है? ऐसे क्यों कहेगा?”

“तुम्हे हर चीज खुद की सोच जैसी लगती है। तुम्हें इसको बदलना होगा। मेरे कहने से एक बार मान लो। मै फिर आती हूँ।“

कंचन बाहर चली गई और फिर उसी अंदाज में वापस आई।

“सर मायसेल्फ संजय फ्राम चरण फाइनेंस”

“संजय उठ खडा हुआ और पास रखी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए बोला

“आईये मिस्टर संजय, तशरीफ रखिए”

कंचन बगल की कुर्सी पर बैठ गई।

“तुम्हारी जैसी लडकी रिकवरी एजेंट हो तो हर कोई ऐसे ही उठकर सम्मान देगा। मेरे जैसा जाएगा तो कुर्सी में सिकुड जाएगा। वैसे एक बात है, क्यों नहीं तुम ही रिकवरी एजेंट बन जाती हो। सवा सौ परसेंट रिकवरी हो जाएगी।“

दोनों ठहाका लगा कर हँस पड़े।

“इसलिए ही नही बन रही।“

दोनों फिर हँस पड़े।

*****

अगले दिन संजय और कंचन ग्रेट सिटी मॉल पहुँचे। गाडी पार्किंग में खडी की।

‘‘ये प्रतीक सिंह कहाँ बैठता है?” संजय ने कंचन से पूछा।

“मैं यहाँ कई बार आयी हूँ लेकिन इसके मालिक का आफिस कहाँ है ये तो ध्यान ही नहीं दिया।“

दोनों कमर पर बगल में वायरलेस सेट लटकाये नीली ड्रेस में घूम रहे सुरक्षाकर्मियों के इंचार्ज के पास गए और मॉल के मालिक के ऑफ़िस के बारे में पूछ। उसने उनसे मिलने का कारण पूछा। उन्होने बताया कि वे बैंक से आये है। उसने बताया कि मालिक का आफिस मॉल की टॉप फ्लोर पर है।

दोनों टॉप फ्लोर पहुँचे। एक चैम्बर पर नेम प्लेट लगी थी ‘प्रतीक सिंह’। संजय और कंचन ने धीरे से दरवाजा खोला और अंदर प्रवेश कर गये। प्रतीक सिंह उनको देख कर भी अनदेखा करते हुए अपनी फाईलों में व्यस्त रहा। संजय ने खंखारते हुए हाथ आगे बढाते हुए धीरे से कहा “हाय सर, मायसेल्फ संजय फ्राम चरण फाईनेंस।“

“हाँ, बोल कैसे आया? अभी मेरे पास टाइम नहीं है, फिर कभी फुर्सत में आना।“

“सर हम लोग लोन रिकवरी के संबंध में आये है आपने पिछले तीन साल से कोई किश्त जमा नहीं की है । आप पर ब्याज का भार चढता जा रहा है” कंचन ने थोड़ा आगे बढ़कर जानकारी दी।

“अच्छा किया तुमने बता दिया” प्रतीक ने तुनककर कहा।

“तो फिर कब तक जमा करवा देंगे सर“ संजय ने कहा।

प्रतीक ने घंटी बजायी। कुछ सुरक्षाकर्मी दौड कर अंदर आये। प्रतीक चिल्लाया

“तुम लोग काम करते हो या मटरगस्ती, कोई भी ऐरा ग़ैरा अंदर चला आता है।“

संजय ने कंचन की ओर देखा।कंचन ने ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं की थी।कंचन उठकर बाहर चल दी। संजय भी पीछे-पीछे चल दिया।

दोनों बाहर आ गये। संजय ने कहा

“देख लिया सोफस्टिकेशन अमीरों का।“

“बडा हरामी निकला।“

“अब तुम मुझे मेरे ढंग से रिकवरी करने दो।“

“देखो, कोई लडाई झगडा मत करना। तुम्हे मेरी कसम है।“

“नहीं करूँगा मैं वचन देता हूँ।“

“फिर तुम्हे पूरी छूट है, जो चाहे सो करो। मतलब पैसे वूसल होने से है।“

दोनों पार्किंग से गाड़ी उठा कर चले दिये।

दूसरे दिन संजय ने अपनी मूल स्टाईल में मवालियों जैसे कपडे पहने और कुछ साथियों के साथ मोटर साईकिल पर सवार हो कर ग्रेट सिटी मॉल पहुँचा और सभी सीधे टॉप फ्लोर में प्रतीक सिंह के चैम्बर में घुस गये। प्रतीक सिंह गुस्से में अपनी सीट से उठ खडा हुआ। संजय ने कहा

“कालू हम कहाँ से आये है?”

“भाई तू तो फाईनेंस कम्पनी से आया है, हमारा पता नहीं।“

“लेकिन यहाँ तो कोई चाय पानी के लिये भी नहीं पूछ रहा। ऐसा कर तू नीचे जा और चाय लेकर आ।“

“मैं नहीं जाऊँगा।“

संजय के साथी कालू पर टूट पड़े। पीटने वाले में से एक बोला “भाई को ना सुनने की आदत नहीं है। फिर कभी ऐसी हरकत की तो जिन्दा नहीं छोडेगे।“

संजय ने एक साथी से कहा “तू नीचे जा। सिंह साहब के लोन की फाइल है। सिंह साहब ने कोई किश्त जमा करने के लिए कभी मना ही नहीं किया। लोग बेवजह उनको बदनाम करते हैं “

प्रतीक सिंह घबराकर एक कोने में खडा हो गया था। संजय ने कहा “अरे सिंह साहब, आप वहाँ क्यों खड़े हैं? बैठिये ना अपनी सीट पर।“

प्रतीक सिंह डरते-डरते सीट पर बैठा। संजय ने कहा “सर, मेरा आपसे निवेदन है कि आप हमारे लोन का बकाया जमा करवा दें।“

“न...................” (गैंग सभी सदस्य उसकी ओर गुस्से में देखते है).. मे….रा... म..त..ल..ब ... हाँ हाँ जमा करवा दूँगा । एक किश्त का चैक दे रहा हूँ।प्रतीक सिंह ने कांपते हाथों से एक चैक साइन कर संजय को पकडा दिया और बोला “चाय पीकर जाइयेगा।“

“फिर पियेंगे। अब तो आना जाना लगा ही रहेगा।“

संजय चैक लेकर अपने साथियों को साथ लेकर चैंबर से बाहर निकल गया।

“चलो भाईयों, कहीं चलते है बडी भूख लगी हैं।“

“प्रतीक सिंह खिला रहा था ना, खाया क्यों नहीं?” एक बोला।

सभी साथी हँस पडे

संजय अपने साथियों के साथ सूति रेस्ट्रॉं पहुँचा। संजय को साथियों के साथ देखकर रेस्ट्रॉं के मालिक मनीष सूति ने स्टाफ को बुलाया और कहा

“संजू भाई से पैसे मत मांगना?”

“पैसे मांग कर मरना है क्या सर?” एक बोला।

तभी संजय ने साथियों के साथ रेस्ट्रॉं में प्रवेश किया

“कैसे हो नीजू?” एक वेटर को पहचानते हुए संजय बोला। दरअसल वेटर का नाम नीरज जुनेजा था।

“ठीक हैं सर, बहुत दिनों बाद आये?”

“आजकल नौकरी में समय ही नहीं मिलता।“

“क्या लाऊँ सर आपके लिए?” उसने पानी की बोतल और गिलास टेबल पर रखते हुए कहा।

“ऐसा करो, दो प्लेट पनीर पकौडे और पांच कॉफ़ी ले आओ।“

कॉफ़ी खत्म करते ही वेटर उनके पास आया और बोला

“कुछ और लाऊँ सर?”

“नहीं..............बिल ले आओ?”

“बिल............” वेटर ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

“हाँ बिल । हम किसी का उधार नहीं रखते। पुराना भी बकाया हो तो हिसाब ले आना। आज पूरा हिसाब करेंगे।“

वेटर भागता हुआ मनीष सूति के पास गया। मनीष सूति के पास प्रतीक सिंह का फोन आया हुआ था “मनीष भाई बैंक के मैनेजर ने नया रिकवरी एजेन्ट रखा है। पता लग गया होगा।“

“सिंह साहब, पता नहीं लेकिन क्या फर्क पड़ता है? कई रिकवरी एजेंट आये और चले गए।“

“इस बार पड सकता है भाई, उल्टी आ सकती है, चक्कर आ सकता है और हार्ट अटैक भी आ सकता है।“

“क्या कह रहे हैं? कुछ समझ नहीं आ रहा है।“
“आ जायेगा… उस मवाली ‘संजय’ को जानते हो?”

“हाँ, मेरे रेस्ट्रॉं में अपने साथियों के साथ बैठा है । पनीर पकौडे खा रहा है।“

“बस अब तुम्हारा सब खाया पिया बाहर निकालने वाला है। संजय चरण फाईनेंस का नया रिकवरी एजेन्ट है । एक सलाह दूँ.. जान बचानी है तो उसको ‘ना’ मत बोलना, नहीं तो तुम्हारे साथ जो होगा उसे मुझे मत बताना।“

मनीष सूति के हाथ से फोन गिरते गिरते बचा। उसका ध्यान वेटर की तरफ गया। वेटर ने कहा

“संजू भाई पुराने हिसाब सहित बिल मांग रहे है।“

“तू टेबल पर चल मैं पीछे पीछे आ रहा हूँ।“

मनीष सूति टेबल तक गया और बोला

“संजू भाई क्यों शर्मिंदा कर रहे हो आपका ही तो रेस्ट्रॉं है।“

“मनीष जी नमस्कार, मैं भाई नहीं आजकल सर हो गया हूँ। बैंक का कर्मचारी हूँ। जी से बोलता हूँ जी से जी से सुनाता हूँ।हाँ एक बात और, आजकल उधारी बंद कर दी है, अपनी भी और दूसरों की भी। “ संजय ने ‘दूसरों की भी’ पर जोर देकर कहा।

“सर आपको कहने की कोई आवश्यकता नहीं। अभी अभी प्रतीक सिंह जी फ़ोन पर आपकी बहुत तारीफ कर रहे थे। आप उनको भी बहुत इज्जत देर आये हैं।“

“हमारा काम ही इज्जत देना रह गया है।“

“इतनी इज्जत मैं सहन नहीं कर पाउँगा। कल मैं खुद बैंक में जाकर बकाया जमा करवा दूँगा।“

“थैंक्स, मैं इंतजार करूँगा।“

संजय ने बिल चुकाया और साथियों सहित रवाना हो गया।