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नकटी - भाग-7 (अंतिम)

सुबह हुई तो हरसी और संजय अपने खेतों की ओर गये। वहाँ केदार पहले से मौजूद था। उसे पहले ही अंदाजा हो गया था कि हरसी और संजय सुबह सुबह खेतों की तरफ़ ज़रूर आएंगे। हरसी को देखते ही केदार बोला "अरे हरसी, तुम। कब आई?"
हरसी ने मुँह फेर लिया। संजय ने कहा "प्रणाम ताऊ जी।"
"सदा प्रसन्न रहो बेटा, क्या नाम है तुम्हारा?"
"संजय।"
"किसी चीज़ की जरूरत हो तो बता देना। थके हुए हो। सुबह सुबह घूमने आने की कहाँ जरूरत थी।"
"घूमने नहीं ताऊ जी, यहाँ अपनी जमीन देखने आये हैं।" संजय ने कहा।
"तुम्हारी कहाँ? ये तो हमारे भाई बसन्त की जमीन थी। तुम्हारी माँ इसे लावारिश छोड़ गई थी तो हमने अपने नाम करवा ली। तुम तो जानते ही हो जोरू और जमीन एक बार किसी के नाम हो गयी फिर उसी की रहती है।"
"यही तो फर्क है आपकी और मेरी सोच में ताऊ जी। आप जमीन को उपभोग की वस्तु समझते हो और मैं माँ समझता हूँ। लेकिन आपको माँ की परवाह करना आता ही कहाँ है!" उसने हरसी की ओर देखकर कहा।
"शहर में रहकर अच्छा बोलना सीख गये हो। अब आएगा मज़ा। साला यहाँ मूर्ख ही मूर्ख लोगों से माथा मारते मारते बोर हो गया था। ठीक है अपना ध्यान रखना। और हाँ बिना मेरी इजाजत इस जमीन में पैर भी मत रख देना।"
"मैं आऊँगा तो ज़रूर, इस जमीन को पैर से नहीं मेरे मस्तक से छूऊँगा जिसने पता नहीं अपनी कितनी पीढ़ियों का पेट भरा है।"
हरसी और संजय वापस आ गए। संजय का खराब मूड देखकर कंचन ने पूछा
"इतना गुस्सा क्यों?"
"जमीन हड़प ली और हेकड़ी भी दिखा रहा है।"
"फिर मैं किस काम के लिए आई हूँ यहाँ! तुम उस पटवारी का घर मालूम करो।"
"पास के गाँव में ही घर है। मुझे पता है।" हरसी ने कहा।
"तब समझो काम हो गया।"
कंचन ने दोनों को अपना प्लान समझाया।
***
रात का समय था । पटवारी अपने घर में सो रहा था। अचानक उसे अजीब डरावनी सी आवाज़ सुनाई दी। उसकी नींद टूट गई। उसने इधर उधर देखा कुछ दिखाई नहीं दिया लेकिन जैसे ही उसकी नज़र खिड़की की ओर गई उसकी घिग्घी बंध गई। दबी आवाज़ में चिल्लाया
"भूत... भूत.... ।" उसने अपनी पत्नी को हिला कर जगाया।
पत्नी ने नींद में कहा "क्या है? नींद नहीं आ रही क्या आपको?"
" भूत.... भूत... हरसी...।"उसने खिड़की की ओर उंगली करते हुए कहा।
उसकी पत्नी ने हल्का सा खिड़की की ओर देखा। उसे कुछ दिखाई नहीं दिया।
"कुछ नहीं है। जब से तुमने हरसी की जमीन केदार के नाम चढ़ाई है हर जगह हरसी का भूत दिखाई देता है। सो जाओ"
दोनों जैसे ही सोने लगे। फिर दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आने लगी
"कौन है?" पटवारी ने हिम्मत कर कहा
"मैं हरसी।"
सुनते ही पटवारी और उसकी पत्नी डर के मारे सहम कर उठ कर बैठ गये। उन्होंने देखा खिड़की से हरसी का चेहरा दिखाई दे रहा था।
"हमें माफ कर दो" पटवारी गिड़गिड़ाया।
"दरवाजा खोलो।"
"हम नहीं खोलेंगे। हमें भूत से बहुत डर लगता है।"
"मैं भूत नहीं जीती जागती हरसी हूँ।"
पटवारी ने बाहर की लाइट का स्विच दबाया। सामने हरसी संजय और कंचन दिखाई दिये।
"घबराइये नहीं। दरवाजा खोलिये।" कंचन ने कहा।
पटवारी ने दरवाजा खोल दिया। दोनों अंदर आ गये।
"आपको कल कचहरी में मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना पड़ेगा" कंचन ने कहा।
"मैं आप जहाँ कहें वहाँ चलने को तैयार हूँ।" पटवारी ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा।
दूसरे दिन संजय हरसी कंचन और पटवारी मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर हुए। रिकॉर्ड देखकर मजिस्ट्रेट ने हरसी और संजय के नाम जमीन के नाम दुरुस्ती के आदेश जारी कर दिये। मजिस्ट्रेट ने तहसीलदार के नाम कब्जा दिलवाने के आदेश भी जारी कर दिये। तहसीलदार ने आकर संजय और हरसी को कब्जा दिलवा दिया। केदार ने कहा
"हुकुम, इस फसल के लिए हमने जुताई की है, पानी दिया है, इस फसल को तो हम ही काटेंगे।"
"मुझसे क्यों कह रहे हो? आज से मालिकाना हक इनका है अब इनसे पूछिये।" तहसीलदार ने जवाब दिया।
संजय ने केदार की ओर व्यंग्य नज़र से देखा। संजय ने कहा "ताऊ जी मज़ा आया कि नहीं। देखते जाओ अभी तो मज़ा आना शुरू हुआ है।"
केदार हुँह कहकर वहाँ से चला गया। कंचन और संजय मुस्कुरा दिये।

अगले दिन कंचन गाँव में कुछ आवश्यक घरेलू सामान लेने के लिए निकली। गाँव का एक शराबी सामने से डगमगाते कदमों से आ रहा था। पास आने पर वह रुक गया और फब्तियाँ कसने लगा
"ए लडक़ी कौन है तू? क्या लगती है तू संजय की जो उसके घर में रहती है?"
कंचन ने क्रोध से उसकी ओर देखा। वह झेंपने के बजाय व्यंग्यात्मक दृष्टि लिये मुस्कुराने लगा। कंचन तेज़ कदमों से चलती हुई दुकान पर पहुँची और दुकानदार से आवश्यक सामन देने को कहा फिर पूछा "कौन है ये बदतमीज़।"
"मत पूछिये बहन जी। विक्रम के गुंडे हैं, गाँव मे बहु बेटी का निकलना मुश्किल कर रखा है।"
"तो आप लोग पुलिस में शिकायत क्यों नहीं करते?"
"पानी में रहकर इन मगरमच्छों से बैर कौन करे। पुलिस कितनी बार आएगी यहाँ?"
"मैं करूँगी शिकायत।"
"बहन जी आप तो कुछ दिन में चली जाओगी ये लोग हमारा जीना हराम कर देंगे।"
"यही सोच तो इन अपराधियों का हौसला बढ़ाती है। थोड़े से बदमाश एक होकर ताकत बढ़ा लेते है लेकिन हर शरीफ़ आदमी अपने आप को अकेला ही समझता है।"
कंचन ने घर आकर घटना का वर्णन संजय से किया और कहा "चलो थाने चलते हैं। जब पुलिस आएगी तभी इनको पता चलेगा।"
संजय और कंचन थाने गये और थानेदार से शिकायत की "गाँव में कच्ची शराब की गैर कानूनी भट्टियाँ लगी हुई हैं। कुछ शराबियों की गैंग गाँव में उत्पात करती घूमती रहती है। आप कुछ करिए।“
"क्या नाम है तेरा?"
"जी संजय।"
"हूँ... बसंत का बेटा?"
"जी।"
"तुम्हारा तो पुलिस रिकॉर्ड में नाम है। तुम कौनसे कम हो?"
"मैंने किसी औरत को कुदृष्टि से नहीं देखा।"
"फिर इस लड़की को किस दृष्टि से देखता है?"
सुनकर कंचन को गुस्सा आ गया "इंस्पेक्टर साहब, मैं एक वकील हूँ। आप कार्यवाही नहीं करेंगे तो मुझे कोर्ट से करवाना भी आता है।"
"करवाइए करवाइए। अपराध वहॉं बढ़ते हैं जहाँ लोग सहन करते हैं। इस थाने के नीचे तीस गाँव हैं और यहाँ बीस लोगों का स्टाफ है । पांच का स्टाफ वीआईपी प्रोटोकॉल में रहता है, तीन चौकीदारी में, तीन तामील में, तीन कोर्ट गवाही में , दो साहब के बंगले पर, चार लोग रात को गश्त पर, अब बताओ कितने बचे?"
"फिर तो आप ही बचे?"
"हाँ। समझे इसका मतलब?"
"समझ गए। हमें ही कुछ करना पड़ेगा।" संजय ने कहा।
"बिल्कुल और मेरा यह वादा है किसी ने अपराध के विरोध में अपराध किया तो अपराध नहीं माना जायेगा।"
कंचन और संजय वहाँ से चले आये। कंचन कोर्ट जाना चाहती थी संजय ने रोक दिया
"मुझे थानेदार की बात जँच गयी है। विरोध की शुरुआत करनी पड़ेगी।"
दोनों गाँव वापस आ गये। एक शराबी ने उन्हें देखकर कहा।
"लौट के बुद्धू घर को आये।"
संजय से इस बार रहा नहीं गया। उसने उतरकर एक तमाचा जड़ दिया। शराबी लड़खड़ा कर जमीन पर गिर गया। यह शराबी विक्रम का खास था। वह लड़खड़ाते खड़ा हुआ कपड़े झाड़कर देख लेने की धमकी देता हुआ विक्रम, केदार के घर की ओर चला गया। केदार और विक्रम के पास जाकर शराबी रोने लगा "संजय ने मेरे बहाने आपके गाल पर थप्पड़ मारी है। वह जानता है मैं आपका खास आदमी हूँ।"
केदार ने कहा "विक्रम ये सही कह रहा है। अब हमें जल्द से जल्द इस निशानी को उसके बाप के पास पहुंचाना होगा।"
"सही कह रहे हो भाई जी।"
विक्रम ने उस व्यक्ति की ओर देखते हुए कहा
"भीखा अपने आदमियों को तैयार कर ले। जैसे ही मौका मिलेगा इस को सुलटा देना है।"
रात को भीखा अपने पाँच लोगों को विक्रम के घर ले आया। विक्रम ने सबको अंग्रेज़ी शराब पिलाई। वे लोग शराब पी ही रहे थे तभी एक घर से रोने की आवाज़ आई। एक औरत दहाड़ते हुए बाहर निकली
"बचाओ कोई बचाओ उनको।“

संजय, कंचन, हरसी, महेश सहायता के लिए दौड़े।

“क्या हुआ काकी?” संजय ने पूछा।

“वे शराब पीने के बाद बेहोश हो गये हैं। कुछ भी कर उनको बचा लो संजू।"
इसी तरह आवाजें दूसरे घर से भी आने लगी। वहाँ भी शराब पीने के बाद व्यक्ति छटपटा रहा था। इस तरह पाँच छः घरों से दर्दभरी चीखें आने लगी। कानदास को ख़बर मिली तो वह भी दौड़ता हुआ आ गया। गाँव के लोग इकट्ठा हो गये थे। एक बोला “ये तो जहरीली शराब के लक्षण हैं। बचना मुश्किल है।”

“मैंने इनको विमला से थैली खरीदते देखा था। मुझे भी कह रहे थे लेकिन मैंने मना कर दिया।" दूसरे ने कहा।
"तुम्हारी गाड़ी लेकर जल्दी आओ इन्हें हॉस्पिटल लेकर चलते हैं" संजय ने कंचन से कहा।

कंचन गाड़ी लेने दौड़ी लेकिन जब तक वह गाड़ी लेकर आयी तब तक सब दम तोड़ चुके थे। मरने वालों के परिवार वालों के चेहरे पर तो गुस्सा था ही गाँव के हर व्यक्ति में एक उबाल आ गया था। एक व्यक्ति अपनी लाठी निकाल लाया और उसे एक हाथ में उठाकर कर चिल्लाने लगा "इनको सबक सिखाने का समय आ गया है।"
और भी लोग लाठियाँ लेकर बाहर आ गये यहाँ तक कि गाँव की औरतें भी लाठियाँ लेकर आ खड़ी हुई। भीड़ संजय, हरसी, कंचन के नेतृत्व में केदार , विक्रम, नवल के घर की तरफ बढ़ने लगी।
खबर केदार विक्रम नवल और शराबियों तक पहुंच गई। शराबी बचने के लिए दौड़ने लगे। एक टोली ने शराबियों को पकड़ कर धुन दिया। भीड़ ने वहाँ बनी शराब की सारी भट्टियाँ तोड़ दी।
केदार विक्रम नवल अपनी पत्नियों सहित गाड़ी में सवार हो कर भागने की तैयारी करने लगे। सभी औरतों ने गहने अपने साथ ले लिए और आदमियों ने जितनी भी रकम थी, साथ ले ली।
वे गाँव से बाहर निकलने वाले थे कि लोगों की भीड़ ने रास्ते में रोक लिया। नवल गाड़ी चला रहा था। उसने चिल्ला कर कहा
"हट जाओ सामने से नहीं तो टक्कर मार दूँगा।"
"कितनों को टक्कर मरोगे।" संजय ने आवाज दी। नवल नहीं माना और गाड़ी चला दी। एक लाठी नवल के हाथ पर पडी। नवल के हाथ से स्टेयरिंग छूट गया। गाड़ी एक पेड़ से जा टकराई। नवल टक्कर से बेहोश हो गया। थोड़ी थोड़ी चोटें सबको आई। गांववालों ने ने जाकर गाड़ी को घेर लिया।
केदार विक्रम बिमला सब गाड़ी से हाथ जोड़ते हुए बदहवाश हालात में बाहर निकले । लोगों ने उनके रुपये पैसे छीन सब लिए और मारने लगे।
"बेटा, तू मेरा भतीजा है, तू समझा इनको।" केदार ने संजय से हाथ जोड़कर कहा।
"चलो आपने स्वीकार किया कि मैं बसन्त का बेटा हूँ।"
विक्रम कानदास के आगे गिड़गिड़ाया "जोगी जी आपका तो सब सम्मान करते हैं। जोगी तो हमेशा हिंसा को गलत मानते हैं।"
"निश्चित ही मैं गलत मानता हूँ विक्रम। जब तुमने बसंत को मारा था उसको भी मैंने गलत माना। जब तुमने हरसी पर अत्याचार किये तब भी गलत माना। लेकिन गलत केवल उनके लिए मानता हूँ जो अहिंसक हैं तुम तो हिंसक जानवर हो।"
लोग विक्रम, केदार नवल पर टूट पड़े। कानदास के सामने विक्रम का उनके पैर को तोड़ने का दृश्य तैरने लगा। उसने भी पूरी ताकत से विक्रम के पैर पर प्रहार किया। विक्रम दहाड़ कर रोते हुए पैर पकड़ कर वहीं बैठ गया। शायद उसके पैर में फ्रैक्चर आ गया था।
हरसी ने बिमला के हाथ से गहनों की पोटली छीन कर उंडेल दी। हरसी बोली "जिस बहन का जो गहना है वो ले ले।"
एक अन्य औरत बोली "इस शराबखोरी ने गाँव के आधे गहने इनके गिरवी रखवा दिये थे।"
बिमला डर के मारे थर थर काँप रही थी। उसने हरसी से हाथ जोड़कर कहा "हरसी, हमें माफ कर दो। हमें बचा लो मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूँ।”
हरसी की आंखों में खून उतर आया था। उसने गुस्से में जोर से एक धक्का मारा। बिमला गिर गई। हरसी उसके ऊपर बैठ गई और कूदने लगी। वह एक एक कर उसके शरीर से गहनें खींचने लगी। सभी गहने उतार लिए गये थे अब बस नाक की नथनी और कान की बालियाँ बची थी जो उतर नहीं रही थी। संजय यह देख रहा था। उसकी नज़रों के सामने वह दृश्य घूमने लगा जिसने उसकी माँ को नकटी बना दिया। उसने बिमला के नाक की तरफ हाथ बढ़ाया। बिमला डर के मारे पीली पड़ गई। तभी हरसी चिल्लाई
"नहीं संजू नहीं ये नहीं। अब एक और नकटी नहीं।"
संजय ने गुस्से से बिमला की ओर देखा और हाथ वापस खींच लिया। हरसी भी उठ खड़ी हुई।
सुबह गाँव की पंचायत की बैठक हुई। वार्ड पंचों ने सर्व सम्मति से केदार को सरपंच पद से हटाने का प्रस्ताव पास कर सरकार के पास भिजवा दिया। पंचायत के दुबारा चुनाव हुए। हरसी को नया सरपंच चुन लिया गया।
गाँव मे फिर पंचायत हुई। पंचायत के सामने केदार को हाजिर किया गया। केदार पंचों में शामिल होने के लिए ऊपर जाने लगा तो पंचों ने रोक दिया।
"इस बार नहीं केदार। इस बार आरोप तुम्हारे ऊपर हैं।"
विनोद कुमार भी बेटी सहित गाँव आ गये थे। उन्होंने आरोप लगाया
"केदार ने मेरी जमीन दबा ली और मारपीट की। इसके गुंडों के डर से मुझे बेटी सहित शहर भागना पड़ा।"
एक व्यक्ति खड़ा हुआ "इसके गुंडों ने मेरे घर मे मारपीट की और मोटरसाइकिल उठा ले गये।"
एक औरत खड़ी हुई "इसने मेरे साथ कई बार छेड़खानी की है।"
बहुत सी औरतों और लोगों ने शिकायत की झड़ी लगा दी। आरोप सुनने के बाद एक बुजुर्ग पंच ने कहा
"केदार तुम्हें कुछ कहना है?"
केदार को उस रात की घटना याद अभी तक याद थी। वह हाथ जोड़ कर बोला "मैंने जिसकी भी जमीन दबाई है लौटा दूँगा।"
"और इज्जत?" हरसी बोली।
वह गर्दन झुकाये खड़ा रहा। पंचों में मंत्रणा हुई। अंत में हरसी खड़ी हुई और बोली
"पंचों ने सर्व सम्मति से यह फैसला लिया गया है कि गाँव की सजा की परिपाटी के अनुसार जिस जिस महिला से केदार ने दुर्व्यवहार किया है उनकी जूती वह सिर रखकर रखकर पंचायत के चार चक्कर लगाएगा।"
चप्पलों का ढेर लग गया। लोगों ने उनकी एक पोटली बना दी।
केदार ने काँपते हाथों से पोटली उठा कर सिर पर रख ली और धीरे धीरे पंचायत के चक्कर लगाने लगा।