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नविता की क़लम से ... - 2

🎼बचपन की यादों की क़िताब का पन्ना 🎼

सबसे सुनहरा पल है बचपन
बीते कल का सुकून है बचपन।
बैर, द्वेष से कोसो दूर
कोई चिंता की न थी होड़
केवल खेल-खिलोने थे भाते,
दोस्तो संग खुब समय थे बिताते।
वो बचपन के खेल खूब याद आते।

बचपन के वो दिन , जब ना था मोबाइल फ़ोन, ना होता था कलर टी.वी. l कितना अच्छा था वो बचपन , जिसको याद कर वो बचपन फिर से जीने का मन करता है l

" बेटा मोबाइल मत देखो , आँखें ख़राब हो जायेगी ." कहा सुनते है ये बच्चे l. हर समय टी. वी. ,मोबाइल और विडिओ गेम्स l कैसा है ये बचपन ? जिस में कोई मज़ा नहीं l. बेटा हर समय बोलता है " मम्मी बोर हो रहा हूँ , आप नहीं बोर होते थे , जब आप छोटे थे ."बोर , हमने तो ये शब्द कभी बोला ही नहीं " मैंने अपने बेटे से कहा l बेटा बोला कि मम्मी फिर आप को नानी नहीं डाँटती थी , जब आप फ़ोन देखते थे l ."

मैंने अपने बेटे को अपने पास बुलाया और बताया कि तब हमारे पास तुम जैसे मोबाइल , टी. वी. नहीं थे l. वो सुन हैरान हुआ और बोला फिर क्या करते थे आप सारा दिन ?

सच कहो तो आज मेरे बेटे ने मेरा वो बचपन याद दिला दिया, जिसकी बहुत सी यादें कही दिल मे दबी है l आज के बच्चों का बचपन याद करने के लिए मोबाइल, टी. वी . के सीवा कुछ नहीं है l . पर हमारे बचपन मे मोबाइल, टी. वी. नहीं थे ,फिर वी अपने बचपन को याद कर दुबारा उस बचपन को जीने का मन करता है l काश , बचपन क़िताब का कोई पन्ना होता , जिसे बार बार खोल कर जी सकते अपने बचपन को l

बेटे ने मुझे फिर दुबारा पूछा," कि क्या सोच रहे हो ? बताओ ना क्या करते थे आप ? " बात कैसे करते थे ?अगर मोबाइल फ़ोन नहीं थे l
मैंने अपने बेटे को बताया कि पहले फ़ोन नहीं होते थे , किसी को संदेशा देना होता तो चिठ्ठी लिखते थे l. वो चिठ्ठी ८-१० दिनों तक पहुँचती थी l मुझे याद है जब बचपन मे मुझे मेरी मम्मी न बताया था की जब मेरे मामा जी का जन्म हुआ था , तब चिठ्ठी २० दिन बाद मिली थी l . फिर भी जब हम छोटे थे, तब हमारे घर लैंडलाइन फ़ोन लग गया था l लैंडलाइन फ़ोन पुरे गाँव मे एक दो घरों में ही थे l हमारे घर पर आसपास के घरो के फ़ोन भी आते थे l जब भी कोई फ़ोन आता ,मेरे और मेरे भाई की लड़ाई हो जाती ,की में फ़ोन उठाऊगी l फिर अगर किसी पड़ोसी का फ़ोन होता , हम तब फिर लड़ाई करते की में बुलाने जाऊगी l फिर जब पड़ोसी को बुलाने जाते, तो वो भी सब काम छोड़ भागते थे 😊 l तब सब के नंबर दिमाग़ मे ऐसे ही याद रहते थे l . आज कल किस नाम से मोबाइल मे सेव है जे याद रहता है l. मोबाइल अगर घर भूल जायो ,तो किसी को फ़ोन करने मे पेरशानी रहती है l. इसलिए हम सब भूल सकते है ,मोबाइल फ़ोन नहीं l😔

मेरा बेटा बोला मम्मी आप फिर तो मोटू -पतलू नहीं देख सकते थे , जब मोबाइल नहीं थाl, मैं हसीं और बताया कि बेटा मोबाइल फ़ोन तो दूर की बात टी. वी . किसी किसी घर होता था ,वो भी ब्लैकन वाइट l जिस के घर टी. वी . होता, रविवार को उसके घर सब बच्चे टी.वी . देखने जाते l एक ही नाटक देखते थे सब ,किसी तरह की कोई लड़ाई नहीं होती थी बच्चों मे l जो चल रहा होता वही देखते सब l तभी चैनल भी एक ही चलता था दूरदर्शन l

मेरे घर टी. वी . नहीं था l इस लिए हम बाहर किसी के घर जाते थे l . तब दादी जी ने मेरे चाचा जी को डाँटा ,की बच्चे बाहर जाते है टी.वी . देखने l फिर चाचा जी घर टी. वी . लेकर आये l जिस पर एंटीना लगा होता था l जब टी. वी . ख़राब होता ,छत पर जा कर एंटीना घूमते , एक जाना नीचे से आवाज़ लगता " चल पड़ा , फिर गया , चल पड़ा "😀 वो भी क्या दिन थे ... फिर एंटीना टूट गया ,तो हमने उसका एक हिंसा टी. वी . के साथ जुड़ दिया l. अब एंटीना नहीं , टी. वी . ही पुरे घर मे घूमने लगा 😊 जहा जरूरत होती वही एंटीना और वही टी. वी . लग जाता l जब इलेक्शन होते तब टी.वी . दुकान पर लग जाता l सब बड़े लोग हमारी दुकान पर आ कर न्यूज़ सुनते और साथ साथ अपने विचार देते l


मेरी बातें सुन मेरा बेटा हँसने लगा l . फिर मैने उसे बताया कि जब हम स्कूल जाते तो तेरी नानी मुझे एक रुपया देती थी , चीज़ खाने के लिए l जब स्कूल मे आधी छुट्टी होती , तब हम उस रुपए की चीज़ लेने के लिए बाहर भागते l जहा पर टॉफ़िए , चॉकलेट नहीं होती थी l. चीज़ के नाम पर अमरूद , बेर , जामुन मिलते थे l हम एक रुपए के २ अमरुद लेते , जिस मे अंकल एक अमरुद के चार हिसे कर उस पर नमक लगा देते l जा फिर छोटे छोटे , लाल रंग के बेर, जिस पर भी अंकल नमक लगा कर देते l. उन जैसा स्वाद आज की चॉकलेट खा कर भी नहीं मिलता l. आज भी जब भी वो बेर याद आते है , मुँह मे पानी आ जाता है l

मेरा बेटा खुद तो बाहर खेलने चला गया और मुझे वो मेरे बचपन मे छोड़ गया l कितनी अच्छी है वो बचपन की अलग अलग यादे , जो आज कल के बच्चों के लिए बस एक मोबाइल मे है l काश मेरा बेटा मेरी तरह बचपन की वो यादें बना सकें l

वो छुपन-छुपाई, वो नदी-पहाड़
कभी गिल्ली-डंडा तो कभी पिट्ठू
या याद आती कभी पतंग की बाज़ी।
कट जाती थी जब पतंग दौड़
आज भी मन को खूब ललचाती।

वो राजा, मंत्री, चोर, सिपाही, वो कैरम की गोटी,
वो भँवरे का घूमना या घोड़ा-बादाम छाई कर भागना।


हमारा वो बचपन,, जिस मे मोबाइल , टी. वी . का इतना महत्त्व नहीं था l हर समय एक दूसरे के साथ नए नए खेल खेलना , पेड़ पर चढ़ कर फल तोड़ने , खेत में जा कर ठंडी हवा के साथ फ़सल के साथ खेलना , छोटी छोटी इच्छा को पूरा करने के लिए टूटते तारों से इच्छा मांगना , चलते तारो को गिणना , रात को सब के साथ बैठ पहेलियाँ , कहानियाँ सुननिआ , छुट्टी मे नानी घर जाना , स्कूल दोस्तों के साथ मस्ती करते पैदल जाना , स्लेट की जगह साही के साथ फटी पये लिखना , कोई नंबर, परसेंटेज की ना थी टेंशन , बस पास होने पर सब घरों मे गुड़ से मुँह मीठा करवना , बहुत सी यादें बनाता है जे बचपन l . जिसकी यादें किसी मोबाइल मे नहीं बल्कि दिलों मे कैद हैं , जो कभी डिलीट नहीं हो सकती l. इन्ह यादों को , कागज़ के पन्नो पे उतरने के लिए, जे पन्ने कम पड़ जाते है l


To be continued.....☺️


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Navita 🎼