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उनका ऐरावत


सारा गांव ही परेशान था. थानेदार जी भी हार गए थे. लेकिन बूढ़े- बूढ़ियों में धैर्यअब भी बाकी था, तभी तो वह जीभ को दांतों के तले दबा कर कहते -ना भई ना, इंद्र देवता को नाराज करना ठीक नहीं.

असल में बात यह थी कि बरसों में गांव में गेरूए वस्त्र धारी हट्टे-कट्टे बीस पच्चीससाधुओं का एक दल एक-एक विशालकाय हाथी को लेकर आता और डंके कीचोट पर दान-दक्षिणा वसूल करने लगता. इंद्र देवता की पूजा के नाम पर बोरों मेंआटा, गुड़ और घी आदि इकट्ठा किया जाता. और जो उन्हें कुछ देने में आनाकानीकरता, उसका कुछ कुछ नुकसान वे अपने हाथी से करवाने से बाज आते.

इस प्रकार ये साधु नकद भी खूब कमाते.बूढ़ों को शाप का भय दिखाकर चुप करादेते तो औरतों और बच्चों को लाल आंखें दिखाकर डराने का प्रयास करते.

गांव के नौजवान भी इन चालाक भिखारियों के आगे घुटने टेक गए थे. उनकाकहना था कि इन साधुओं को तो हम मार-पीट कर भगा दें, पर अगर हाथी बिगड़गया तो सारा गांव उजाड़ देगा. इसलिए इनको दान देकर चलता करने में हीअक्लमंदी है. थानेदार जी भी कहते, ‘‘ इन कामचोर आलसी साधुओं को तो मैंहवालात में चक्की पिसवा कर दो दिन में ठीक कर दूं. लेकिन सारी दिक्कत इसजानवर को लेकर है. इसे कैसे पकड़ा जाए? और कहां रखा जाए?

महीने में एक बार जब साधुओं का दल हाथी लेकर गांव में जाता तो दीपू, सोनू, हेमा, पिंकू, लता, मिन्टू, रेवा, बबली, शम्पा, मीनू सब जमा हो जाते औरहाथी को भगाने की तरह-तरह की सलाहें करने लगते, किंतु कभी किसी नतीजे पर पहुंच पाते और साधुओं का दल डाकूओं सा महीने भर का अपना भोजन जुटाअगले महीने फिर आने का वायदा कर लौट जाता.

हाथी लेकर साधु फिर आए थे. लेकिन इस बार बच्चे भी कुछ दिखाने को सोचेबैठे थे. इधर जाड़ा अभी खत्म नहीं हुआ था. और पानी बरस रहा ता यानी मौसममतलब का था. गांव के बड़े-बूढ़ों को बच्चों पर भरोसा जरा कम ही था, फिर भीउन्होंने वायदा किया था कि वे वही करेंगे जो बच्चे चाहेंगे.

सो ज्यों ही साधुओं ने गांव में प्रवेश किया, बच्चों की इच्छा के अनुसार गांव केसभी बुजुर्ग पुरूष साधुओं के पास जाकर हाथ जोड़कर बोले, महाराज, दो दिनपहले एक ज्योतिषी जी यहां आए थे. वे कहकर गए हैं कि इस गांव पर कुछ बुरीग्रह दशा है इसलिए दो दिनों तक किसी किस्म का कोई दान ना दिया जाए. नहींतो देने और लेने वाले दोनों का बुरा होगा. अत: आप सभी से प्रार्थना है कि दो दिनरुककर ही दुगुना दान लेकर जाएं.

लालची साधुओं को गांव वालों की यह बात बुरी तो जरूर लगी, पर दुगुने दान केलोभ में वे कुछ नहीं बोले.

मैदान में उन्होंने अपना डेरा डाल दिया और हाथी के पैरों में जंजीर बांध एक पेड़ सेजंजीर का दूसरा सिरा कस दिया.

इधर बच्चों ने अपनी योजना के अनुसार हाथी के सामने गन्नों का ढेर डाल दियातथा थोड़ी-थोड़ी देर बाद उसे कभी गुड़ तो कभी गूंधे हुए आटे के गोले खिलानेलगे. हाथी बड़ी प्रसन्नता से कान हिला-हिलाकर बच्चों की सभी भेंट स्वीकारनेलगा.

शाम तक बच्चों की हाथी से थोड़ी दोस्ती हो ही गई थी और दो एक बच्चों ने हाथीके मस्तक सूंड पर हाथ भी रखा था.

अगली सुबह बच्चे जब हाथी के लिए ईख और रोटियां लेकर मैदान में पहुंचे तोउन्होंने देखा कि सारे साधुओं का जाड़े के मारे बुरा हाल है, पर हाथी उन्हीं कीइंतजार कर रहा है. वे साधुओं की उपेक्षा कर फिर से हाथी की सेवा में जुट गए.

हाथी को साधुओं से कभी इतना प्यार नहीं मिला था, उल्टे वे तो उसको भरपेटखाना भी नहीं देते थे. सो बच्चों से इतना प्यार पा हाथी भी गदगद हो उन्हें बारी-बारी से सवारी कराने लगा.

इधर रात को अचानक ही काले मेष उमड़ आए और ओलों के साथ वर्षा होनेलगी. साधुओं ने वर्षा से बचने के लिए हर घर का दरवाजा खटखटाया, पर किसीने भी दरवाजा नहीं खोला. साधु सारी रात भीगते रहे.

तीसरी सुबह बच्चे जब हाथी के लिए खाना लेकर मैदान में पहुंचे तो हाथी ने सूंडउठाकर चिंघाड़कर उनका स्वागत किया, पर साधु सभी गुस्से में थे.

एक साधु ने कहा, ‘‘ जाओ, हमारी दान-दक्षिणा तुरंत यहां ले आओ. हम औरअपमान नहीं सह सकते.’’

इस पर सभी बच्चे एक साथ बोल उठे,‘‘ कैसी दान दक्षिणा?’’

साधु बोले, ‘‘ पहले जैसी!’’

बच्चे हंस कर बोले, ‘‘ वह जमाना गया.’’

तब साधु चिढ़ कर चिल्लाए, ‘‘ हमें पहचानते नहीं तुम, अगर हमें नाराज किया तोहाथी से गांव उजड़वा देंगे.’’

‘‘ कोशिश कर के देख लो.’’ बच्चे बोले.

इस पर सभी साधु ्रो से उठ खड़े हुए. इस समय वे पूरे डाकू लग रहे थे. एकने हाथी की जंजीर खोलकर उसके मस्तिष्क पर अंकुश मारते हुए कहा, ‘‘ उठऐरावत और उजाड़ दे इस महसूस गांव को. जहां साधुओं का अपमान हो, मिला देधूल में वहां के लोगों को .’’

किंतु ऐरावत चुपचाप गन्ने खाता रहा. बच्चों के प्यार में ऐरावत उसका हो गया था.

इस पर बच्चे खुश हो, जेबों और थैलों से गुड़ की डलियां और केले निकाल-निकाल कर उसे देने लगे.

गुस्से से पागल हो उस साधु ने तब ऐरावत के माथे पर कस-कस कर 6-7 अंकुशजड़ दिए. जिसका परिणाम यह हुआ कि ऐरावत भयानक गर्जन करता हुआ उठखड़ा हुआ और सूंड उठाकर साधु की तरफ लपका. जिसे देख सभी साधु अत्यंतहैरान हो गांव से भाग खड़े हुए, उन्होंने सपने में भी कभी ऐसा सोचा था.

इस घटना के दो दिन बाद जब साधु अपना हाथी वापस लेने आए तो उन्होंने देखाकि सारा गांव ही ऐरावत की सेवा में जुटा है और ऐरावत भी उनके बीच बहुत खुशहै.

इधर ऐरावत की नज़र जब साधुओं पर पड़ी तो वह गुस्से से उनकी तरफ लपका.

पाखंडी साधुबचाओ-बचाओ करते जंगल की ओर दौड़ पड़े और उस दिन केबाद अपना हाथी वापस लेने गांव में कभी नहीं आए.

उस दिन से ऐरावत गांव भर का हाथी हो गया है. और हां गांव में अब कोई भीभिखमंगा गेरूए वस्त्र पहनकर घुस नहीं सकता. ऐरावत उसे देखते ही बाहर तकखदेड़ आता है. गांव के हर घर में उसे रोजी रोटी और गुड़ मिलता है और इसकेबदल में वह गांव भर के बच्चों को पीठ पर बैठा कर स्कूल तक छोड़ आता है तथासामान ढोने में सहायता करता है.

गांव ऐरावत से खुश है और ऐरावत गांव से.