BALI KA BETA-angad ki vidai books and stories free download online pdf in Hindi

बाली का बेटा - अंगद विदाई

जामवंत समझ रहे थे कि अब रावण को ठीक रास्ता समझ में आ जायेगा और वह लड़ाई छोड़ कर आत्मसमर्पण कर देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अगले दिन रावण खुद सेनापति बन कर युद्ध के मैदान में हाजिर था।
रामादल की ओर से राम सेनापति थे।
दोनों की अच्छे धनुर्धारी और बहादुर योद्धा थे। शाम तक लड़ाई चलती रही। न तो रावण का कोई नुकसान हुआ न ही रामादल की कोई हानि हुइ्र।
रात को विभीशण ने बताया कि रावण ने अपने सिपहसालारों से लोहेका एक ऐसाकवच बनाया है जो गरदन से पेट तक और कमर से घुटनों तक पहना जाता है। अतः उसका यह हिस्सा बहुत सुरक्षित है। यदि रावण को नुकसान पहुंचाना हे तो उसके कवच के ऊपरी व निचले हिस्से के बीच यानी कि नाभि में तीर मारना होगा।
राम ने यह बात अच्छी तरह गांठ बांध ली।
अगली सुबह ज्यो ही लड़ाइ्र आरंभ हुई राम ने अपने नाराच नाम के बाणों से भरा तरकश उठाया। ये बाण सबसे खतरनाक विश में डुबा कर बनाये गये थे। रावण की तरफ सेपहला बाण ही आया था कि राम ने रावण की नाभि में निशाना लगा कर अपना एक बाण छोड़ दिया । वह बाण इतनी तेजीसे गया कि रावण संभल ही नहीं पाया और तीर ने अपना काम कर डाला। रावण जोर की चीख मार कर अपने रथ से नीचे आ गिरा।
रावण के गिरते ही दोनों ओर से युद्ध बंद हो गया।
लंका में बचे आखिरी सिपहसालार विभीशण के बेटे तरूण सेन ने सुलह का प्रतीक सफेद झण्डा लंका पर फहरा दिया।
जैसा कि बाली के साथ किया था राम ने विभीशण को आदेश दिया कि उनके शरीर को पूरे सम्मान के साथ लंका लेजाकर अंतिम संस्कार किया जाय।
उधर विभीशण जाकर रावण के अंतिम संसकार में व्यस्त हुए इधर राम के सुझाव पर जामवंत और सुशेन ने मिल कर दोनो ंपक्षों के घायल लोगों का इलाज आरंभ कर दिया।
अगले दिन लक्ष्मण अपने सारे मित्रों के साथ लंका नगरी पहुचे और राजा के सिंहासन पर विभीशण को बैठा कर उनका राजतिलक कर दिया। फिर वे तुरंत ही लौट आये।
विभीशण ने राजाबनते ही पुराने अत्याचारी और बुरे मंत्रियों को हटा कर नये लोगों को मंत्री बनाया और सबसे पहला आदेश यह दिया कि सीताजी को पूरे सम्मान के साथ एक डोली में बेठा कर श्रीरामको सोंप दिया जाये।
सीताजी का डोला रामादल में पहुंचा तो सब लोग प्रसन्न हो उठे।
अंगद ने पहली बार सीताजी को देखा उन्हे लगा कि उनकी शक्ल-सूरत अपनी मांँ की सूरजसे बहुत मिलती जुलती है। उनहोने झुककर सीताजी के पंाव छू लिये।
रामादल के अनेक वीर उस रात लंका में गये और विभीशण द्वारा किये गये संधि प्रस्ताव के अवसर पर दिये गये भोज में शामिल हुए।


वापसी


अगले दिन
बहुत सुबह विभीशण राम के सामने हाजिर थे।
वे चाह रहे थे कि राम कुछ दिन लंका में चल कर मेहमान की तरह रहें, लेकिन राम नही माने।वे कह रहे थे कि उन्हे अयोध्या से चौदह बरस का वनवास मिला था, जो पूरे हो चुके है, अब वहां उनके छोटे भाई भरत उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे। इसलिए जल्दी से जल्दी लौटने का इंतजाम किया जाये।
विभीशण ने लंका के विमान घर में दिखवाया तो पता चला कि वहां कई्र तरह के ऐसे विमान हेेै जो बहुत सारे लोगोें को बैठा कर तेज गति से आसमान के रास्ते कहीं भी जा सकते हैं।
अब राम ने लौटने की तैयारी की तो सारे बानर उनके साथ अयोध्या चलने को तैयार थे। हुआ यह था कि रात का ेजामवंत ने सबसे कहा था कि हो सकता है चौदह साल तक राज संभालने वाले भरत को राजगद्दी अच्छी लगने लगी हो और वे राम का राज्य न दें । इसलिए हम लोग राम की तरफ से दूसरी लड़ाई लड़ने के लिए साथ चलेंगे।
राम क्या कहते ?
उन्होने विभीशणजी से कहा कि अब उन्हे बहुत सारे विमान देने होंगे। विभीशण तो कहते थे राम जी अयोध्या न जाकर लंका के ही राजा बनें, विमान क्या चीज थे।
तब रामादल के लोग अलग-अलग विमानों में बैठ कर अयोध्या के लिए चल दिये।
विभीशण और सुग्रीव एक साथ एक अलग विमान में बैठे।
बहुत तेज गति से चलते विमान से नीचे की धरती तेजी से पीछे भागती लग रही थी।
अयोध्या में तो राम के इंतजार में हजारों की भीड़ अयोध्या नगर के बाहर खड़ी थी। अंगद को ताज्जुब हुआ कि राम की तरह शकल सूरत के एक दूसरे तपस्वी उन सबके आगे खड़े आसमान की ओर देख रहे थे। अंगद ने अनुमान लगाया यही भरतजी होंगे। लक्ष्मण जैसी सूरत के दूसरे व्यक्ति जरूर शत्रुहन होंगे अंगद ने सोचा।
राम के विमान से उतरते ही सबसे पहले भरतजी व्याकुल हो कर आगे बढ़े। राम उनसे गले मिले। फिर वे लगभग हर आदमी से गले मिलने लगे।
अंगद ने देखा कि राम हरेक से ऐसे मिल रहे थे जैसे वह उनके बराबर का हो। न तो यहां कोई राजकुमार था न कोई नागरिक।
अंगद को एक नया सबक मिला, जनता में लोकप्रियता पाना है तो इतना सरल और सहज होना चाहिए कि हर आदमी से गले लगकर मिल सके।।
गुरू वशिश्ठ से राम ने अपने सुग्रीव,विभीशण, जामवंत, हनुमान और अंगद आदि का परिचय यह कर दिया कि इनकी सहायता से ही हम लोगों ने अत्याचारी रावण को मारा और हम सीता का वापस पा सके।
उधर गुरू वशिश्ठ के बारे में राम का कहना था कि इनकी बताई धनुर्विद्या के कारण ही हमने लंकेश को मार गिराया है।
अंगद बहुत कुछ सीख रहे थे। राम हरेक को भरपूर सम्मान देते थे। अपनी जीत का जिम्मा वे कभी बानरों को दे रहे थे तो कभी गुरू वशिश्ठ कों।
भेंट -मिलन के बाद भरत ने सब लोगों को राजा के अतिथिगृह में ठहराया।
अंगद,गद और नल,नील को अयोध्या देखना था, वे लोग नगर में घूमने निकल गये। पूरे नगर में उन्हे जगह-जगह अयोध्या के नागरिकों की तरफ से जलपान लेना पड़ा। सारे अयोध्या वासी उन्हे अपने सबसे प्रिय मेहमान मान रहे थे।
रात में वे लोग सरयू के तट पर गये।
सरयू के किनारे बने बड़े मकानों में अच्छी रोशनियां जलाई गई थीं जिनकी छांया नदी के पानी में बहुत सुंदर लग रही थी।
अतिथिगृह में लौटे तो पता लगा कि अंगद को सुग्रीव और विभीशण के साथ ठहराया गया है। वे चाहते थे कि अपने दोस्तों के साथ ठहरें, लेकिन मेहमान की अपनी कोई मर्जी नहीं होती। वे चुपचाप अपने महल की ओर बढ़े। एक बडे़ से कमरे के बाहर से निकलर रहे थेे कि भीतर से चाचा सुग्रीव क आवाज सुूनाई दी ‘‘ विभीशण जी, श्रीराम ओर उनके भाइयों का आपसी प्रेम देख कर हमे बड़ी शर्म आ रही है। देखिये कितना प्रेम है इन चारों में।’’
विभीशण की आवाज थी ‘‘ मैं तो बहुत ही शर्मिन्दा हूं इनके सामने। हम लोगों ने जरा से स्वार्थ के कारण हमने अपने भाइयों से विद्रोह किया और उन्हे जान से मरवा कर राजगद्दी पर बैठगये। इधर ये लोग हैं कि एक दूसरे की ओर इतना बड़ा और भव्य राज्य संभालने के लिए धकेलरहे हैं।’’
अंगद चुपचाप निकल गये और अपने बिस्तर पर जा पहुंचे।
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विदाई


अगले दिन पता लगा कि दो-चार दिन में ही श्रीराम का राजतिलक होगा। अंगद को लगा कि हमारे यहां तो हाल के हाल राजतिलक कर दिया जाता है, यहां इतनी देर क्यों हो रही है?
सारा अयोध्या नगर दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था।
जाने कहां कहां से राजे-महाराजे इस समारोह में शामिलहोने के लिए पधार रहे थे। सबकी अपनी शान शैाकत थी।
भरत, लक्ष्मण और शत्रुहन बहुत व्यस्त थे। वे सबका इंतजाम कर रहे थे।
निर्धारित दिन बहुत बड़े समारोह में एक बहुतविशाल सिंहासन पर श्रीराम और सीता बैठे। गुरू वशिश्ठ ने उनका राजतिलक किया।
इसके बाद अलग-अलग राज्यों के राजा-महाराजा श्रीराम के सामने आने लगे वे अपनी ओर से बड़े कीमती तोहफे उन्हे भेंट कर रहे थे।
सारा दिन यह समारोह चला।
संाझ समय सब लोग राज दरबार से वापस हुये तो अपने अतिथिग्रह में पहुंचे। आज घूमने की हिम्मत न थी, सब थक गये थे।
अगले कई दिन यों ही बीत गये। अंगद को लग रहा था कि वे अपने सपनों में देखे गये स्वर्ग जैसे नगर में आ गये हैं बस अब जीवन भर यहीं रहना है।
कभी वे लोग अकेले अयोध्या की यात्रा पर निकल जाते तो कभी श्रीराम के किसी भाई को विनम्रता से रोक लेते ओर अयोध्या के बारे में , श्रीराम के बचपन केे बारे में, उनके अनूठे बयाह के बारे में नये किस्से सुनाने का आग्रह करते।
पन्द्रह दिन बीत गये बाकी सारे राजा एक-एककर विदा हो गये तो सोलहवें दिन हवा फैली कि अब बानर वीर विदा किये जायेंगे। अंगद घबरा गये। वे कहां जायेंगे? पिता की मौत केबाद राम ही उनके पिता थे, अन्यथा किश्किंधा में तो चाचा सुग्रीव ने उन्हे कभी पंसंद नहीं किया। वहां लौटे तो उनका जीवन खतरे मेंरहेगा। क्योंकि चाचासुग्रीव अंगद की जगह अपने बेटे गद को राजाबनाना चाहेंगे।
भरे दरबार में श्रीराम ने मल्लाहों के राजा निशाद, लंका के राजा विभीशण, किश्किंधा के राजा सुग्रीव और दूसरे बानरवीरों को उचित भेंट, कपड़े आदि देकर सम्मानित किया। बाद में दूसरे बानर वीरों को भेंट दी गई।
अंगद एक ओर चुपचाप खड़े थे। उनक दिल बहुत घबरारहा था। कहीं उन्हे विदा न कर दिय जाये, यदि किया गयातो क्या कहेंगे वे भरे दरबार में।
राम ने उनका संकोच समझ लिया, वे खुद राजसिहासन से उठे और अंगद को हाथ पकड़ कर अपने पास लाये। अंगद को काटो तो खून नहीं ।
वे रोते से स्वर में बोले ‘‘आप मेरे धर्म पिता है। मेरे पिता मुझे आपकी गोद में छोड़ गये है।इसलिए मुझे मत छोड़िये।’’
राम बोले ‘‘तुम एक राज्य के राजकुमार हो, तुम्हारा किसी दूसरे राज्य में तुम्हारा रहना न तो सम्मानदायक है न ही उचित।’’
उन्होने अंगद के सिर पर हाथ फेरा और सुग्रीव से बोले ‘‘ महाराज सुग्रीव, याद रखना अंगद मेरा दत्तकपुत्र है। आप इनका ख्याल रखना । इन्हे जरा सी भी तकलीफ हुइ्र तो आप ये समझ लें कि अयोध्या राज्य से दुश्मनी मोल ले रहे हैं।’’
सुग्रीव की तो डर के मार घिग्धी बंध गई । वे क्या कहते?
राम ने अपने हाथ से अंगद को भेट में दिये वस्त्र पहनाये, भेंट सोंपी।
फिर सब अपने अतिथिग्रह लौट आये।
अंगद रात भर जागते रहे। कभी सोचते कि क्येां न माता सीता से मिल कर अपने अयोध्या में रहने के लिए उनसे कहलाया जाय। या फिर श्रीराम की माता माँ कौशल्या से निवेदन किया जाय। संभवतः गुरू वशिश्ठ भी मददकर सकते हैं।
लेकिन हर बात लगता कि श्रीराम की बात को कोई नही काट सकता, इसलिए ऐसा लगता है कि अब जाना ही पड़ेगा। यह समझते ही वे रेेाने लगे।
रात भर वे जागते रहे , रोते रहे।
कहीं किश्किंधा में सुग्रीव ने कोइ्र षड़यंत्र करके उनका नुकसान किया तो क्या होगा?
जैसे-तैसे रात बीती।
सुबह सारी तैयारी थी।
सबके लिए विमान तैयार थे।
एक एक कर सब अपने विमानों में बैठे तो बिलखते हुए अंगद एक बार फिर राम के पैरों में गिरे राम ने उन्हे पीठ पर हाथर ख कर खूब ’प्यार किया ओर बोले ‘‘तुम वहां रहकर भी मेरे पास हो। मेरे जासूस तुम्हारी हर खबर मुझे भेजेंगे।’’
थ्बलखते हुए अंगद अपने विमान में बैठ गये। हनुमान अंत में उनके पास आये । वे अभी वापस नही जा रहे थे। अंगद उनसे बोले ‘‘ प्रभु को आप लगातार मेरी याद दिलाते रहना और मेरी दंडबत प्रणाम उनसे कहते रहना। बताना कि उनका यह बेटा बहुत असुरक्षित हैं।बस उनका ही दूर का भरोसा है।’’
हनुमान ने कहा ‘‘श्रीराम को पल-पल की खबर हेै। आप वहां भी सुरक्ष्ति हैं। फिर जब मन चाहे आप अयोध्या चले आया करना।
विमान उठा तो अंगद को लग रहा कि कि कोई उन्हे कैद में भेज रहा है, उनका शरीर वापस जा रहा है प्राण तो अयोध्या में ही रह गया है।
अंगद फूट-फूट कर रोते हूए दूर होता अयोध्या नगर देख रहे थे और उनका विमान किश्किंधा की ओर उड़ा जा रहा था।
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