Ankaha Ahsaas - 17 books and stories free download online pdf in Hindi

अनकहा अहसास - अध्याय - 17

अध्याय - 17

कौन सी नई लत लग गई उसको ? रमा आश्चर्य से पूछी।
प्रेम की लत, रमा। प्रेम की लत।
अच्छा वैसा। मतलब तुमको भी वही लत लग गई है। किससे ? बताओ ना किससे ?
वो तो नहीं बताऊँगा, है एक लड़की अनुज के ही शहर की। मुझे बहुत पसंद है। हम दोनों परिचित है और मुझे लगता है वो भी मुझे पसंद करती है।
अच्छा ये तो बहुत अच्छी बात है। रमा बोली
उसी वक्त गगन उसके कमरे में बात करने आने ही वाला था कि उनकी आवाज सुनकर बाहर ही रूक गया और छिपकर उनकी बात सुनने लगा।
पर प्राबलम क्या है शेखर अगर तुम उसको पसंद हो वो तुमको पसंद है तो कोई दिक्कत होनी नहीं चाहिए। रमा बोली।
दिक्कत है ना रमा। मुझे ये बात अच्छे से नहीं मालूम कि वो मुझे पसंद करती है कि नहीं।
अरे फिर तो तुमको उसे जल्द ही बता देना चाहिए। हाँ बताना तो चाहता हूँ रमा पर समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कहूँ। इसीलिए तो तुमसे मद्द मांगने आया हूँ। तुम बताओ ना कैसे कहूँ।
अच्छा मुझे पहले ये बताओ तुम उससे मिले कैसे ?
मैं तो उसको जानता भी नहीं था रमा। एक दिन उसके शहर में कार एक्सीडेंट हो गया था और मैंने उस कार चलाने वाले शख्स की मद्द कर दी थी। जब मैं उनको घर लेकर गया तो उनकी बेटी ने मेरा धन्यवाद किया और दोस्त की तरह हाथ बढ़ाया। मुझे उससे तभी प्यार हो गया था। इसके बाद हमारी तीन चार मुलांकाते भी हो चुकी हैं। परंतु अब तक ना मैंने ना उसने एक दूसरे को अपनी पसंद के बारे में कहा है।
ये तो पक्का है ना शेखर कि तुम अगर उसको प्रेम प्रस्ताव दोगे तो वो स्वीकार कर लेगी।
मुझे ऐसा लगता तो है इसीलिए तो तुमको पूछने आया हूँ रमा। तुम बताओ ना क्या बोलूँ कि वो मान जाए।
हम्म !!! देखो मुझे तो कोई अनुभव नहीं है किसी को ऐसा बोलने का पर ऐसा लगता है कि तुमको दिल से उसको आई लव यू बोलना चाहिए वो मान जाएगी।
हाँ तो उसी की प्रैक्टिस करा दो ना प्लीज। शेखर बोला।
कब बोलना है शेखर तुमको ? रमा पूछी।
कभी भी, बोलने की प्रैक्टिस हो जाए तो मैं उसी काम के लिए चला जाऊँगा। उसमें क्या है।
आखिर वो काम तो सबसे ज्यादा जरूरी है।
ठीक है कर लो प्रैक्टिस। रमा बोली।
पर मैं तुम्हारे साथ प्रैक्टिस कना चाहता हूँ रमा ।
मेरे साथ। मेरे साथ क्यूँ, तुम दर्पण के सामने खड़े होकर कर लो पैक्टिस।
गगन अब भी कान लगाकर ध्यान से सुन रहा था।
तुम्हारे साथ इसलिए रमा कि मैं एक असल लड़की के साथ आत्मविश्वास हांसिल करना चाहता हूँ और तुम्हारे अलावा मैं किसी और के साथ कम्फर्टेबल नहीं हूँ।
रमा थोड़ा हिचकिचाने लगी। अरे यार माला के साथ कर लो ना ?
मेरी और माला की दोस्ती थोड़ी है। मतलब तुम मेरी दोस्त हो ना ? हैं ना ? शेखर नाराज होते हुए बोला।
देखो इमोशनल ब्लैकमैल मत करो। बताओ कहाँ प्रैक्टिस करानी है तुम्हारी। यही करते हैं ना। माला भी मद्द कर देगी तुम्हारी।
अरे यार। सबको बताना रहता तो लाऊड स्पीकर लगाकर नहीं चिल्लाता मैं। शेखर नाराज होते हुए बोला।
अच्छा ठीक है भई नाराज मत हो। बताओ कहाँ करना है। रमा हंसते हुए बोली। कांफ्रेस रूम में चलते हैं ना।
अभी, नहीं आज नहीं। आज मुझे काम है।
कल करतें हैं। रमा बोली।
कल कितने बजे ?
कल 12 बजे। ठीक है।
ठीक है थैंक्स रमा। कहकर शेखर उठा और जाने लगा।
थैंक्स की कोई बात नहीं शेखर।
शेखर को बाहर आता देख गगन वहाँ से तेजी से हट गया।
शेखर बाहर निकला तब तक गगन जा चुका था।
शेखर भी वहाँ से निकलकर अपने ऑफिस चला गया।
गगन रमा से मिलने की बजाय वापस स्टोर में आ गया। वो विचार करने लगा कि ये शेखर और रमा की इतनी गहरी दोस्ती कब और कैंसे हो गयी। क्या इसकी खबर अनुज को नहीं है और है तो उसे क्या कोई आपत्ति नहीं है। अचानक उसके दिमाग में विचार कौंधा। क्यों ना इस अवसर का लाभ उठाया जाय और अनुज और रमा के बीच दरार पैदा की जाए। आखिर अनुज को थोड़ी पता है कि शेखर रमा के साथ प्रैक्टिस करने वाला है। उसे तो यही लगेगा कि शेखर उसको प्रपोज कर रहा है और रमा उसको स्वीकार कर रही है। हाँ ये सही मौका है लाभ उठाने का। इससे रमा भी टूट जाएगी और मेरी जाँच भी अधूरी रह जाएगी। ऐसा ही करता हूँ। सोचकर वो उठा और ऑफिस की ओर निकल गया।
ऑफिस पहुँचकर वो पूछतांछ में जाकर पूछा मालती सर हैं क्या ?
कौन सर ? अनुज सर कि शेखर सर।
अनुज सर ? अनुज सर हैं क्या ?
हैं ना। सर बैठे हैं। मालती ने कहा।
अकेले हैं कि कोई और भी है।
शेखर सर के साथ बैठे हैं। सर शायद दिल्ली यूजीसी कार्यालय कुछ दिनों के लिए जाने वाले हैं इसलिए शेखर सर को शायद कार्यभार कुछ दिनों के लिए देने वाले हैं।
ओह !!! अनुज सर बाहर जाने वाले है क्या ? गगन ने पूछा।
हाँ। सर दिल्ली जाने वाले हैं।
कब ?
ये तो पता नहीं। शायद दो चार दिन में। मालती बोली।
ओके। मुझे उनसे बात करनी है। जब वो अकेले हो जाए तो मुझे बुलवा लेना। आवश्यक काम है।
ठीक है सर। मैं बुलवा लूँगी।
गगन बाहर निकल गया।
अंदर अनुज शेखर को बता रहा था।
शेखर मुझे कुछ दिनों के लिए दिल्ली जाना है एक सप्ताह या दस दिन के करीब लग जाएंगे। तब तक तुम संभाल लेना कॉलेज को, और स्टोर में कुछ गड़बड़ी की शिकायत थी तो मैंने रमा मैडम को जाँच समिति का अध्यक्ष बना दिया है। उसकी भी रिपोर्ट देख लेना, और बाकी कोई तकलीफ हो तो मैं तो फोन पर उपलब्ध रहूँगा ही।
ठीक है। कब निकलोगे ? शेखर ने पूछा
चार दिन बाद की टिकिट है।
ठीक है। अभी तो चार दिन हो ना। मेरे ख्याल से तब तक रिपोर्ट आ जाएगी।
तुम उसे सुलझा कर ही जाना।
चलो देखते हैं। ठीक है फिर मैं चलता हूँ। कहकर शेखर निकल गया।
मालती ने शेखर के निकलते है गगन को बुला भेजा।
मे आई कम इन सर। गगन पूछा।
ओ आईये गगन सर। अंदर आ जाईए। बैठिये।
थैंक्यू सर।
बताईये।
सर वो स्टोर की जाँच के लिए कमेटी बनाई है।
हाँ मुझे कुछ शिकायतें मिली थी इसलिए निष्पक्ष जाँच हो करके कमेटी बना दिया हूँ।
पर ये तो मेरी ईमानदारी पर शक है सर।
अरे। ऐसी बात नहीं है गगन सर, हो सकता है नीचे के कर्मचारी कुछ गड़बड़ करते हो और आपको पता नहीं चलता हो। इसलिए जाँच होने दीजिए, अगर आप ईमानदार हैं तो आपको किस बात का टेंशन है।
हाँ वो तो ठीक बोल रहे हैं सर आप तो। पर अभी तो मैं आपको कुछ और भी जानकारी देने आया था।
हाँ तो बताईये।
बताऊँगा नहीं सर आपको स्वयं सुनना या देखना है।
मैं समझा नहीं। अनुज बोला।
सर अभी मैं कुछ बोलूँगा तो आप यकीन नहीं करेंगे इसलिए कल 12 बजकर 5 मिनट पर आप कांफ्रैस रूम के बाहर खड़े होकर स्वयं सुन लीजिएगा।
मुझे क्लीयर बताओ गगन सर। क्या बात है।
मैं क्षमाप्रार्थी हूँ सर परंतु आपको स्वयं देखना होगा।
मैं अभी कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं हूँ सर।
अच्छा मैं आपकी बात पर यकीन क्यूँ करूँ। अनुज बोला।
देखा सर। आप अब ही मेरी बात पर यकीन नहीं कर रहे हैं तो अगर बताऊँगा, तब तो बिल्कुल भी यकीन नहीं करेंगे। गगन बोला
चलो ठीक है मैं आपकी बात पर यकीन कर लेता हूँ परंतु सिर्फ एक बार के लिए। अगर मुझे वहाँ कुछ नहीं मिला तो आपके ऊपर दुबारा यकीन नहीं कर पाऊँगा।
मुझे मंजूर है सर। गगन बोला।
ठीक है मैं कल जाऊँगा वहाँ। अब आप जा सकते हैं। यह सुनकर गगन वहाँ से निकल गया।
रात भर अनुज सोचता रहा कि ये गगन भी ऐसा क्या सुनाना चाहता है, और सिर्फ मुझे क्यों? ऐसा क्या होने वाला है वहाँ जिसको वो मुझे आज नहीं बताना चाह रहा था। चलो ठीक है एक बार उस पर भी यकीन करके देख लेता हूँ। कल चला जाऊँगा वहाँ देखता हूँ क्या होता है।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।