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फूलों की खोज


एक घने जंगल में बूढ़ा चौकीदार अपनी पत्नी और नन्ही बेटी सोना के साथ रहा करता था. चौकीदार शिकारियों और लकड़हारों से वन के पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की रक्षा करता. इसकी पत्नी सारा दिन घर के कामकाज में जुटी रहती. नन्हीं सोना दिन भर उन जंगलों के बारे में सोचती रहती, जिसके बारे में उसने अपने पिता से सुना था कि वहां सतरंगे फूल खिलते हैं.

हर वर्ष सोना के जन्म दिन पर उसके पिता और मां उसे कुछ न कुछ भेंट अवश्य देते थे. उसकी मां उसके जन्मदिन के लिए अभी से पंखों वाली टोपी बना रही थी. पिता का कहना था कि वह उसे गाने वाली चिड़िया लाकर देंगे.

सोना चाहती थी कि वह अपनी मां के जन्मदिन पर उन्हें कुछ उपहार देकर चकित कर डाले. मां के फूल बड़े प्रिय थे. अत: जन्मदिन वाले दिन सोना बड़े सवेरे उठकर फूलों की खोज में जंगल के अंदर की ओर चल दी.

एक नदी के किनारे पीले ही पीले फूल खिल रहे थे. सोना खुश हो गई. लेकिन जैसे ही फूल तोड़ने को आगे बढ़ी, पीछे से एक आवाज आई-‘ ठहरो.’

सोना पीछे मुड़ी तो देखा कि एक भेड़िया खड़ा है. वह सामने आकर बोला- ‘‘ फूल बाद में तोड़ना, पहले यह बताओ कि तुम लोग दांत कैसे साफ करते हो? मैं पिछले छ: दिनों से दांत में दर्द से परेशान हूं.’’

सोना को बड़ी शर्म महसूस हुई. उसके माता-पिता एक पेड़ की टहनी से दांत साफ करते थे. लेकिन सोना तो कभी दांत साफ करती ही न थी. वह धीरे से बोली-‘‘ मुझे नहीं मालूम.’’

सोना का उत्तर सुन कर भेड़िया चिढ़ गया. वह गुर्रा कर बोला-‘‘ लड़की, फौरन यहां से दफा हो जाओ. अगर एक भी फूल पर हाथ लगाया तो मैं तुम्हें अच्छा सबक सिखलाऊंगा.’’

सोना आगे बढ़ी एक पहाड़ के सामने चारों और नीले रंग के फूल खिले थे. सोना फूल तोड़ने के लिए तैयार हुई . लेकिन तभी एक आवाज आई-‘‘ ठहरो.’’

सोना ने देखा कि सामने एक शेर खड़ा है. शेर की गर्दन के बाल उलझे हुए थे, उनमें कीचड़ लगा था. शेर सामने आकर बोला-‘‘ लड़की, तुम अपने सिर के बाल उलझने पर कैसे सुलझाती हो? जरा मुझे भी बताओ.’’

सोना शेर की बात का जवाब न दे सकी. उसने कभी अपने बालों में स्वयं कभी न की थी. उसके बाल हमेशा उसकी मां ने ठीक किए थे.

उसे चुप देखकर शेर ने कहा- ‘‘ अगर तुम मेरी सहायता नहीं कर सकती तो एक भी फूल पर हाथ न लगाना.’’

बेचारी सोना आगे बढ़ गई. थोड़ी ही दूर पर एक तालाब के चारों ओर लाल-लाल फूल खिले थे. सोना ने ऐसे लाल चटक फूल पहले कभी नहीं देखे थे. वह पहले से भी ज़्यादा प्रसन्न हो उठी. लेकिन इससे पहले कि वह फूल तोड़ने आगे बढ़ती, सामने एक विशाल मगरमच्छ को देखकर घबरा गई. मगरमच्छ ने अपना विशाल जबड़ा फैला कर कहा-‘‘ ऐ लड़की, मेरी बच्चियां आदमियों के खेल खेलना चाहती है. जाओ तुम उन्हें झाड़ू लगाना और चूल्हा जलाना सिखाओ. इसके बदले में मैं तुम्हें ढेर सारे फूल दूंगा.’’

सोना को न तो झाड़ू लगाना आता था न ही चूल्हा जलाना. वह मगरमच्छ की फटकार सुनने से पहले ही आगे बढ़ गई.

अब दोपहर को चली थी. सोना चलते-चलते थक गई थी. उसे भूख भी लगने लगी थी. लेकिन वह बिना फूलों के घर जाना नहीं चाहती थी. काफी देर तक चलते रहने के बाद वह ऐसी जगह पहुंची जहां सफेद और गुलाबी फूल थे. और हां, तरह-तरह के रसीले फल भी पेड़ों पर लटक रहे थे.

बस वह फूलों की ओर झपटी. लेकिन एक छोटे बंदर ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘ दीदी फूल बाद में तोड़ना, पहले मुझे जरा पढ़ना सिखाओ.’’

छोटे से बंदर ने उसे दीदी कहा था. पर वह उसे क्या पढ़ाए, कैसे पढ़ाए? उसे तो खुद पढ़ना नहीं आता. एकाएक सोना फूट-फूट कर रोने लगी और तब तक रोती रही जब तक उसको ढ़ूंढते हुए उसके माता-पिता उसके पास न पहुंच गए.

उनके साथ लाल आंखों वाला भेड़िया, उलझे बालों वाला शेर और मगरमच्छ भी थे. इन सबने सोना को ढूंढने में उसके माता-पिता की सहायता की थी. क्योंकि उसके माता-पिता ने भेड़िए को दांत साफ करने का तरीका बतलाया था. शेर के बालों में कंघी की थी और मगरमच्छ के बच्चों के घर में झाड़ू लगाई और उनका चूल्हा जलाया था.

नन्ही सोना को उसके माता-पिता ने गले लगाया. सोना के कहने पर उन्होंने छोटे बंदर को पढ़ना भी सिखलाया. सोना ने भी उसके साथ ही किताब पढ़ी.

लौटते समय सभी जानवरों ने सोना को ढेरों फूल दिए और वायदा किया कि उसके जन्मदिन पर इससे भी ज़्यादा फूल लेकर उसके घर आएंगे.

इधर सोना ने भी मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह जल्दी ही सारी अच्छी आदतें सीख लेगी ताकि किसी को उससे कोई शिकायत न हो.

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