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बूद्धू चूहा पलटू



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एक था नन्हा सा नटखट चूहा, नाम था उसका पलटू. पलटू की दादी का नाम था लोहाचबाई. ऐसा अजीब नाम इसलिए था क्योंकि वह लोहे के मजबूत जालों को अपने तेज दांतों से चबाकर काट डालती थी. लेकिन उसको दिखाई बिल्कुल कम देता था. क्योंकि उसकी एक खराब थी. बताओ तो क्या खराब थी?

हां, उसकी एक आंख खराब थी. इसलिए वह खाना ढूंढने बाहर नहीं जाती थी. बस सारा दिन अपने बिल में पड़ी रहती थी और पलटू और सात पोतों को कहानियां सुनाती थी.

दादी चूहिया को खूब कहानियां आती थी. वह रोज एक से बढ़कर एक कहानिया सुनाती थी. कभी जंगल की कहानी, कभी शहर की कहानी, तो कभी जानवरों की कहानी, मतलब यह कि रोज एक नई कहानी.

उसके पोते बड़े ध्यान से कहानिया सुनते और कहानी सुनते-सुनते सो जाते.

दादी चूहिया ने एक दिन डरपोक हाथी की कहानी सुनाई. हाथी जिसके मुंह पर लंबी-सूंड थी और खूब मोटा पेट था. और हां दादी चूहिया ने अपने छोटे-छोटे हाथों को पूरा फैलाकर बताया भी था कि हाथी कितना बड़ा होता है. बिल्ली से भी बड़ा. दादी ने पोतों को समझाया था बिल्ली और बाज से कभी दोस्ती मत करना, क्योंकि ये बड़े धोखेबाज होते हैं

एक दिन दादी ने बच्चों को बतलाया कि शेर जंगल का राजा होता है. उसकी मूंछें और पूंछ लंबी होती है और दांत के तो कहने ही क्या-ब्लेड से भी ज़्यादा तेज. लेकिन अक्ल ज़्यादा होती है लोमड़ी और खरगोश में. पलटू रोज-रोज दादी की कहानियां सुनता था, इसलिए एक दिन उसने सोचा कि उसे भी दुनिया की सैर करनी चाहिए. बहादुरी का कोई काम करके नाम कमाना चाहिए.

बस फिर क्या था, किसी को बताए बिना वह फौरन बिल से बाहर निकल आया और मूंछें हिलाता हुआ दीवार के किनारे-किनारे चलने लगा. थोड़ी दूर चलने पर उसे एक छोटा सा छेद दिखाई दिया. पलटू उस छेद के अंदर घुस गया और इस तरह पहुंच गया एक सजी-सजाई रसोई में.

रसोई में घुसते ही पलटू की नजर सबसे पहले बोतल साफ करने के ब्रश पर पड़ी, उसने सोचा कि ज़रूर यह कोई खतरनाक जानवर है. बस यही सोचकर वह चुपके से जाकर ब्रश पर झपट पड़ा और अपने दांतों से ब्रश के सारे बालों को काट फेंका.

इसके बाद उसने एक कोने पर एक छोटी सी मूली पड़ी देखी. पहले तो पलटू डरा कि कहीं यह लोमड़ी तो नहीं है, फिर हंसते हुए उसने अंदाज लगाया. नहीं यह खरगोश होगा. और यही सोचते ही वह उस मूली पर झपटा और उसने मूली के टुकड़े-टुकड़े कर दिए.

अब तो पलटू अपने को सचमुच बहादुर समझ रहा था. वह बड़े रौब से रसोई का चक्कर लगा रहा था, और जो चीज दिखाई देती उसी पर मुंह मार देता. बस ऐसे ही समय उसे सुनाई दी एक अजीब सी आवाज-गुड़-गुड़-गुड़-गुड़. उसने घबराकर आगे देखा, पीछे देखा, दाएं देखा, बाएं देखा, नीचे देखा और सबसे आखिर में ऊपर देखा. जब उसने ऊपर देखा, उसे ऊपर अंगीठी पर केतली दिखाई दी, लेकिन बुद्धू चूहे को क्या मालूम कि केतली क्या होती है?उसने केतली की लंबी नली को देखकर समझा कि ज़रूर यह सूंडवाला हाथी है और गुड़-गुड़ कर मुझे चिढ़ा रहा है,

लटू ने भी उसे चिढ़ाते हुए कहा- ओ बुद्धू ऊपर बैठ कर गुड़-गुड़ कर रहा है, नीचे आ तो मजा चखाऊं!

जवाब में केतली से फिर आवाज आई-गुड़-गुड़-गुड़.

‘‘हां-हां डरपोक दूर से ही चिल्लाते है. मैं किसी से नहीं डरता. शेर से भी नहीं, हाथी तो है ही क्या?’’ पलटू ने सीना तान कर कहा और साथ ही मुंह बिचका कर केतली की तरफ थूक भी दिया.

केतली पर रखा पानी काफी देरी से उबल रहा था और अब बाहर भी गिरने लगा. दो-तीन गर्म बूंदे पलटू की खाल पर भी पड़ी और गर्म पानी पड़ते ही पलटू उछल पड़ा. उसकी खाल झुलस गई थी.

वह जोर से चिल्लाया और ‘कूं-कूं’ करता रसोई की नाली के छेद से निकल कर सीधा अपने बिल को भागा. और जब वहां उसने सबको बताया कि एक हाथी ने उस पर गर्म थूक फेंका है तो वे सब उसका मजाक उड़ाने लगे और बद्धू-बुद्धू कहकर चिढ़ाने लगे. लेकिन दादी को उस पर दया आ गई और उसने सबको चुप कराते हुए पलटू को बताया कि उसने जिसे हाथी समझा वह पानी गर्म करने का एक बर्तन था जिसे केतली कहते है