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माता का चमत्कार

सृष्टि का आधार विश्वास है ,यदि आपको जगत जननी माँ पर अटूट विश्वास है तो वो आपका विश्वास कभी टूटने नहीं देती। माँ ,एक ऐसा शब्द है जो सृजनकर्ता है ,संचालक है ,पालनहार है इस जगत की। एक माँ वो ,जो हमारी पालनहार है।दूसरी वो ,जो इस चराचर की पालनहार है। जो उसको अपना कर्ता


मानकर चलता है वो कभी दुखी नहीं होता।


ऐसी ही सोच रखती है हमारी कहानी की नायिका ' गौरी'।


गौरी बालपन से ही माता रानी में श्रद्धा, भक्ति भाव रखती थी। हर समय उसके मन में माता रानी का नाम सुमिरता रहता।वो अपनी ही दुनिया में खुश व मगन रहती।समय के साथ उसका विवाह हो गया। घर -परिवार से सम्पन्न व सुखी थी गौरी ,उसकी गोद में भी माँ की कृपा से एक बाल - गोपाल खेल रहा है। उसका बेटा प्रखर ,अपने नाम के ही अनुरूप।शक्ल सूरत इतनी भोली जैसे बाल स्वरूप कान्हा। जो भी उसे एक बार देख ले उसे स्नेह करने से अपने को रोक न पाये , इतना मनमोहन व प्यारा।


जब प्रखर पांच वर्ष का हुआ ,तो गौरी ने बहुत धूमधाम से उसका जन्मदिन मनाया। कुछ दिन ही बीते होंगे ,प्रखर बाहर अपने हमउम्रों के साथ खेल रहा था। सन्ध्या का समय हो रहा था। तभी दरवाजे पर एक दस्तक हुई - अलख निरंजन। सुनकर गौरी भिक्षा लेकर आयी और विनयपूर्वक उन साधु बाबा को देने लगी। उसी समय प्रखर भी खेल कर अंदर आया। गौरी ने उसे रोक कर बाबा जी का आशीर्वाद लेने को बोला ।प्रखर ने तुरंत माँ की बात मानते हुए साधु बाबा के चरण स्पर्श किये। जैसे ही उन महात्मा की नजर प्रखर के चेहरे पर पड़ीं ।उनके माथे पर चिंता की गहरी लकीरें दिखाई देने लगी।


प्रखर के सिर पर हाथ फेरते हुए ,उन्होंने उसे अंदर जाने को बोला । तपश्चात गौरी से बोले- पुत्री यदि विश्वास कर सको तो एक बात बता रहा हूँ। तुम्हारा पुत्र अल्पायु है। उसके जीवन के आने वाले तीन वर्ष बहुत विशेष है। उसका बहुत ध्यान रखना। यदि तीसरा वर्ष आराम से निकल गया तो फिर उसे कोई परेशानी नहीं होगी। वो बहुत नाम कमाएगा जीवन में। गौरी को सुनकर बहुत धक्का लगा । वो बोली - बाबा ,आप कैसी बात कर रहे हो। अरे मेरे बेटे को कोई बीमारी नहीं है। हम लोग उसके स्वास्थ्य के प्रति बहुत जागरूक हैं। उसका बहुत ध्यान रखते हैं। फिर बिना किसी बीमारी के ------- ।न,न,न,------ । आपको और भी कुछ चाहिए ,वो सब मैं देने को तैयार हूँ । पर आप ऐसी बात न करो। प्रखर मेरा एकलौता बेटा है। वो महात्मा बोले- बेटा , अपनी तपस्या के बल पर मैं जो जान सका । वो तुमको बता दिया। समय रहते यदि कुछ कर पाओ तो कर लो उपाय। सुना हैं 'माँ' में बहुत शक्ति होती है। वो अपनी संतान के लिए किसी से भी लड़ सकती है। इतना बोल वो महात्मा वहाँ से चले गए।


इधर गौरी के मन में उधेड़बुन शुरू हो गयी। वो उन महात्मा के कथन पर विश्वास करे या नहीं। आज के युग में इस तरह के नकली बाबा बहुत घूमने लगे हैं। पर अगले ही पल उसका अंतर्मन सोचने लगता - आखिर उन्होंने मुझसे कुछ और माँगा ही नहीं ,तो ये तो बोल नहीं सकती कि इसमें उनका कोई स्वार्थ होगा। पर बात उसके बच्चे के जीवन की थी तो वो इस बात को हल्के से भी नहीं ले सकती थी।


रात को जब उसके पति आये तो उसने ये बात उनको बात बतायी। सुनकर वो गौरी की बातों को हल्के में लेते हुए बोले- अरे वो तुम्हारे दिमाग से खेल कर अपनी धाक जमाना चाह रहे थे।इसलिए ही मनगढंत बात बता गये। तुम बेबजह परेशान मत हो। फिर भी तुमको लगता है तो कल ही चलकर प्रखर का पूरी तरह से मेडिकल जांच करवा लेते हैं। ताकि तुमको पूरी तसल्ली हो जाये। यदि कोई भी लक्षण होंगे तो समय रहते पकड़ में आ जाएंगे।


गौरी को ये बात सुनकर जरा भी शांति न मिली । उसने अपने पति से बोला- सुनो, कल डाक्टर के पास जाओ या न जाओ पर कल शीतला माता के मंदिर जरूर चलना ।पूजा करके माँ से प्रार्थना करेंगे कि सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हों। पतिदेब ने भी अपनी स्वीकृति दे दी। पता था उनको की शीतला माता के प्रति गौरी के मन में विशेष भक्ति भावना है।


अगले दिन गौरी परिवार के साथ माता रानी के दर्शन को पहुँची। गौरी अक्सर ही उस मंदिर में जाया करती थी। जिस कारण पंडित जी के साथ - साथ बहुत से लोग उसे जानते थे। आज माँ के चरणों में शीश नवाते हुए पता नहीं क्यों उसके नयनों से झर झर अश्रु धारा बहने लगी। पंडित जी की नजर जब उस पर पड़ी तो वो पूछने लगे- क्या हुआ बिटिया, हर दम प्रसन्न रहने वाले मुखड़े पर आज ये मलिनता क्यों है? कोई बात हो तो माता रानी से कह दो । मन भी हल्का हो जाएगा और उन्होंने चाहा तो कोई समाधान भी निकल आएगा।


कल से जो मन भरा हुआ तो था ही । स्नेह पा कर कंठ अवरूद्ध ही हो गया। हिचकियों के साथ रोते हुए उसने सारा घटनाक्रम बता दिया। पंडित जी ने स्नेह से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा," बिटिया जीवन - मरण सब उस माता के हाथ में है।" पर उन महात्मा की बात कितनी सच है ,ये पता करने का रास्ता जरूर बता सकता हूँ। मेरे एक परिचित हैं हरिद्वार में ,उनके यहाँ शीतला माता का दरबार लगता है। माँ वहां अपनी सेविका के माध्यम से भक्तों के कष्ट दूर करती हैं। यदि तुम चाहो तो मैं उनका पता दे सकता हूँ। तुम जाकर अपनी समस्या का समाधान पा सकती हो। अंधा क्या चाहे दो आँखे, गौरी ने झट से आंसू पोछकर पंडित जी से पता लिया और अपने पतिदेव को सारी बात से परिचित करवा दिया। आखिर थे तो वो भी पिता ही, अपने बच्चे की सलामती के लिए बिना किसी ना नुकुर के जाने को तैयार हो गये।


अगले दिन उन्होंने दिए गए पते पर फोन कर आने की आज्ञा मांगी । माता रानी की सेविका ने उनको दो दिन बाद आने को बोल दिया । दो दिन बाद शीतला सप्तमी थी और दरबार शीतला सप्तमी को ही लगता था। नियत समय पर दोनों दरबार में पहुँच गए । वहाँ तो भक्तों की भीड़ लगी थी। उनका नम्बर आने पर दोनों प्रखर को ले माता के चरणों में पहुँचे। प्रणाम कर अपनी सारी बात बताई और गौरी ने पूछा- वो महात्मा सच बोल रहे थे कि झूठ। माता ने कहा-- वो सही बोल रहे थे। वो कोई साधारण पुरुष नहीं ,सिद्ध पुरुष थे।


तेरा पुत्र अल्पायु ही है। जब इसका समय पूरा हो जाएगा तो ये बिना किसी बीमारी के ही साधारण ताप में ही चला जायेगा। सुनकर तो दोनों पति -पत्नी निशब्द हो गए। कुछ देर मौन रहने के बाद गौरी ने पूछा-- कोई उपाय नहीं हैं माँ। आप तो स्वयं एक माँ है । सारा जगत आपकी सन्तान है । एक सन्तान का प्रेम , उसकी ममता क्या होती है ।ये आप अच्छे से जानती हैं । कोई तो उपाय बाताइये ताकि इस विपदा का उपाय हो सके।


कुछ देर मौन रहने के बाद माता बोली- पुत्री उपाय न होता तो तुम यहाँ तक न आ पातीं। तुम्हारा मेरे ऊपर अटूट विश्वास ही तुमको समय रहते मेरे पास खींच लाया है। इस समस्या के समाधान के लिए एक माँ को अपनी पूरी ताकत से लड़ना होगा ।डगर बहुत कठिन है ,बहुत सी बाधाएं आएंगी । पर यदि तुम बिना रुके मुझ पर विश्वास कर आगे बढ़ती रही तो सफल हो जाओगी। ये पुत्र दीर्घायु होगा , परिवार की वंश वर्द्धि करेगा । बहुत नाम कमाएगा।


माँ मुझे पूरा विश्वास है आप पर ,राह कितनी भी कठिन हो आप कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ेगी , न कभी गिरने देंगी। एक लाल चंदन की माला देते हुए माता ने कहा - ठीक है ,तो सुनो इस माला से प्रतिदिन नियत समय पर एक बर्तन में जल लेकर मेरा मंत्र जाप करना और माला को बर्तन में कुछ समय के लिए डुबो देना। फिर वो जल बच्चे को पिला देना। माला का नियम नियत समय पर लगातार तीन वर्षों तक करना है । समय का बदलाव नहीं होना चाहिए । कहीँ यात्रा में हो तब भी नहीं। हां ,यदि कुछ विशेष दिन में समस्या हो तो वो पांच दिन पिता द्वारा ये कार्य किया जाए । पर एक बार भी नियम भंग नहीं होना चाहिए। वो जल लगातार बच्चे को मिलना चाहिए। चौथे वर्ष उसके जन्मदिन तक करना है। इतना हो गया निर्बाध रूपसे ,तो समझ लेना बालक ये लड़ाई जीत गया। फिर इसके जीवन में कोई बाधा नहीं आएगी।


माता की बात को शिरोधार्य कर गौरी कमर कस कर तैयार हो गयी अपने बेटे के जीवन को बचाने की अग्निपरीक्षा के लिए। बहुत बाधाएं आयीं इस कार्य में ,पर गौरी ने हार नहीं मानीं ।हर बाधा के समय माँ का स्मरण कर बाधा को पार कर जाती। तीन साल पूरे होने को थे कि एक दिन अचानक खेलते हुए प्रखर गिर कर बेहोश हो गया। सभी घबरा गए कि कहीं वो बात सच तो नहीं होने वाली। पर गौरी के मन में माता रानी पर अटूट विश्वास था कि वो कोई अनिष्ट नहीं होने देंगी ।बस गौरी ने आंख बंद कर माँ के दिव्य स्वरूप का ध्यान किया और कुछ ही क्षणों में उसे प्रखर की आवाज सुनायी दी-- माँ----बोलते हुए वो गौरी के गले में झूल गया । गौरी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। प्रखर उनको पोछते हुए बोला -- पता है माँ, मैं जब खेलते हुए गिर गया तब मेरी आँखें बंद हो गयी थीं । फिर कुछ देर में मुझे एक काला सा आदमी दिखा ,जो मेरा हाथ पकड़ कर ले जाने लगा । मैं जोर जोर से रोते हुए आपको पुकारने लगा। तभी वहां एक औरत आयी ,उसने मेरा हाथ उस आदमी से छुड़ाते हुए, उसे डांट कर भगा दिया। फिर मुझसे बोली - जाओ ,तुम्हारी माँ तुम्हारा इंतजार कर रही हैं। उनको खूब खुश रखना । जब तुम बड़े हो जाओगे तो उनका वैसा ही ध्यान रखना ,जैसा वो आज तुम्हारा रख रहीं हैं। फिर मैंने आंख खोली तो आप मेरे पास थीं।


इतना सुनते ही गौरी के मुंह से माता रानी के लिए लाख- लाख धन्यवाद निकला। कुछ समय बाद गौरी ने प्रखर का नौंवा जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाया । जन्मदिन की सार्थकता को दिखाते हुए वो परिवार के साथ मंदिर गयी।माँ का आशीर्वाद लिया व विशाल भंडारे का आयोजन कर जन्मदिन को जरूरत मन्दों के साथ मनाया।।
💐💐जय माता दी💐💐