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मंथन 8

मंथन 8

आठ

आपातकाल समाप्त हो गया। लोक सभा के चुनाव बीत गये। दिल्ली में नई सरकार बन गई। विधान सभा क चुनावों में बशीर साहब को भी तमाम प्रयत्नों के बाद भी किसी पार्टी से चुनाव लड़ने का टिकिट नहीं मिल पाया। बशीर साहब को निराश होकर घर बैठ जाना पड़ा। अब तो रवि उनसे कई बार कह चुका कि आप इस पार्टी को छोड़ दो। रश्मि भी बार-बार यही कहती-‘जो पार्टी ईमानदार लोगों की कद्र करना नहीं जानती है, वह देश का क्या हित करेगी ?‘

लेकिन बशीर साहब हर बार यह कहकर टाल देते हैं- ‘अरे वहाँ ईमानदारों की कमी थोड़ी है, तभी तो मैं उस रह गया। भई राजनीति मे अकेली ईमानदारी से ही काम नहीं चलता।‘

‘तो कैसे चलता है, रवि ने प्रश्न कर दिया।

‘छोड़ो, यह राजनीति है, हम तो अभी तक अपने गाँव की समस्याएं ही नहीं सुलझा पाये। देश की कैसे सुलझा पायेंगे। यह कमी तो अपने में ही महसूस कर रहा हूँ।‘

रवि ने प्रस्ताव रखा- ‘अब तो जनपद पंचायत के चुनाव आने वाले हैं।‘ रवि की इस बात पर ध्यान न दे बशीर ने अपनी बात आगे बढ़ाई ‘सारी जिन्दगी लगे रहने पर भी इस गाँव के लोगों ने भी हमें इस योग्य नहीं समझा, तो इसमें उनका कौन-सा दोश है।‘

‘साहब, आप कुछ भी कहें, बड़े बड़े नेताओं का का रवैया कुछ जम नहीं रहा है।‘

‘क्यों बरखुरदार, क्या कमी दिख रही है उनमें ?‘

‘यही, किसी दिन यह साझे की हाँडी बिखर न जाये।‘

‘अरे बरखुरदार, बिखरी तो कोई नया विकल्प खड़ा होगा, लेकिन अब तानाशाही नहीं चलेगी।‘

‘ रश्मि बोली, ‘आप जनपद पंचायत के चुनाव में अवश्य खड़े हों। हम दिन-रात एक कर देंगे ?‘

‘बेटी, तुम्हारा तो भरोसा ही है, लेकिन अब मैं चुनाव में खड़ा नहीं होऊंगा। चुनाव में तो तुम खड़ी होगी।‘

‘आप मुझे बेटी मानते हैं, इसलिए प्रेम के कारण ऐसा कह रहे हैं। देश की प्रगति भावुकता से नहीं, मेहनत, ईमानदारी और निश्ठा से होती है‘

‘हाँ चाचा जी आप संकोच न करें।‘

‘लेकिन मेरे कुछ प्रश्न हैं ?‘

‘क्या ?‘ दोनों ने प्रश्न किया।

‘जरा काम कठिन है।‘

‘ काम कितना ही कठिन हो‘ रश्मि बोली-

‘मुझे आज की चुनाव प्रणाली से विश्वास उठता जा रहा है।‘

छोनों ने प्रश्न किया-‘ क्यों?’

बेटी, चुनाव इतने मेहगे हो गये हैं कि जन साधारण की पहुँच से दूर हो गये हैं।’

डाक्टर रवि बोला-‘ चाचाजी मैं आपका मन्तव्य अच्छी तरह समझ गया। हम आप को चुनाव में उतारकर कम से कम खर्च पर चुनाव लड़कर और जीत कर दिखायेंगे।

रश्मि ने बात आगे बढ़ाई-‘-‘‘हम ऐसे प्रचार नहीं करेंगे जैसे अन्य लोग करते हैं।‘

‘फिर कैसे ?‘ रवि ने प्रश्न किया।

‘ हम चुूनाव में नई तकनीक से प्रचार करेंगे । बड़े बड़े पोस्टरों की आवश्यकता नहीं रहेगी।‘

‘ बशीर साहब बोले-‘ आप लोग मेरा मन्तव्य अच्छी तरह समझ गये हैं। इस तरीके को क्रियान्वित करना बहुत ही कठिन कार्य है?‘

श्रश्मि बोली-‘‘प्रचार की सादगी ! कम खर्च में सार्थक प्रचार !‘

अब रश्मि बोली, ‘ठीक है, आपकी बात का अक्षरशः पालन किया जायेगा।‘

‘शाबास मेरे बेटो ! मुझे ऐसे ही लोगों की जरूरत है। मैं जिस तरह की राजनीति करने के सपने देखता था, उसकँूो साकार करने का समय आ गया है, लेकिन मैं तो पंचायत जैसे चुनाव में हार खाये बैठा हूँ।‘

रवि बोला-‘‘मियां निराश न हो। बस आप तो चुनाव में खड़े होइए। प्रचार का कार्य कल से ही शुरू कर देते हैं।‘

रवि और रश्मि दूसरे दिन से प्रचार-कार्य में लग गये। बशीर साहब के पास पैसे की कमी थी। रवि और रश्मि को गांठ से पैसा खर्च करना पड़ रहा था। सादगी का पूरी तरह से ध्यान रखा जाता था। अब तो तीनों ने ही चुनाव ओने से पहले गाँव-गाँव जाना प्रारम्भ कर दिया।

चुनाव आ गये। महन्त साहब का प्रत्याशी लालजीराम भी चुनाव लड़ रहा था। अब की बार महन्त साहब ही चुनाव लड़ते, लेकिन बशीर मियां से हार जाने का डर उन्हें सता रहा था। इसी कारण उन्होंने अपना प्रत्याशी खड़ा किया था। इसकँूे अलावा ठा0 करतारसिंह भी खड़े हुए थे। त्रिगुट में टक्कर थी। ठा0 करतार सिंह जातिवाद पनपा रहे थे। ठाकुरों के वोट उन्हें ही मिलने वाले थे, उन्हें अपनी जाति पर पूरा विश्वास था।

महन्त साहब की वजह से लालजीराम भी जीतने की आशा लगाए थे। लालजीराम ने महन्त साहब द्वारा समर्थित होने का पर्चा भी छपवा लिया था। महन्त के प्रचारकों ने गाँव-गाँव जाकर प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया था। लालजीराम पर खुद इतने पैसे कहाँ थे कि चुनाव लड़ते। महन्त से उधार लेकर चुनाव लड़ा जा रहा था।

एक चुनाव सभा में महन्त ने इस चुनाव को अपनी प्रेस्टिज घोशित कर दिया। तब जनता के सामने लालजीराम की हार महन्त की हार बन गई। महन्त यह जानते तो किसी पर हाथ न रखते। लालजीराम पर हाथ रखना उनकी इज्जत का प्रश्न बन गया। वे यह पहले से जान जाते तो हाथ ही न रखते, पर अब क्या हो सकता था ? जी-जान से लालजीराम का साथ देना शुरू कर दिया। उससभाओं के मंच पर वे उपस्थित रहने लगे।

बशीर मियां के नाम पर कोई बोलता ही नहीं था। महन्त के डर से बशीर मियां के कोई प्रचारक भी न थे, लेकिन विरोध में बशीर की काट करने से बशीर का अपने आप प्रचार होता चला जा रहा था। रवि और रश्मि अस्पताल के मरीज निबटाकर प्रचार के लिए निकल जाया करते थे। बशीर मियां अपनी पुरानी साइकल के साहारे गाँव गाँव जाकर प्रचार कर रहे थे। पोस्टर भी छपवा नहीं पाये थे। चुनाव जीतने के लिए एक जीप की जरूरत थी। बशीर साहब उसे भी न जुटा पाये थे। साइकिल चलाकर जाना। जितने गाँव जा सकँूते थे, जाते थे। रात को भूखे प्यासे घर लौट आते थे।

बशीर मियां लोगों से मिलते। लोग कहते, मियां आप क्यों परेशान होते हो। सारी जिन्दगी नेतागिरी में खपा दी। क्या हम लोग आपको अब भी नहीं समझ पाये ?

‘जनता के मुझ पर विश्वास हो तो ही वोट मुझे दें।

एक दिन प्रचार के क्रम में बशीर साहब मीर मठाना के प्रत्याशी लालजीराम के गाँव में प्रचार करने पहंुचे। गाँव मे अर्जुन हरिजन तो लालजीराम का कट्टर विरोधी था। बशीर साहब अर्जुन से मिले। बशीर साहब उसे समझाते हुए कहने लगे-

‘देख बेटा, मैं तो गाँव-गाँव जाकर ऐसे लड़कों को खोजता फिर रहा हूँ, जो सीधे- सच्चे आदमी का साथ दे सकँूे। मेरे पास पैसा है नहीं जो पोस्टरों पर खर्च करता।‘

अर्जुन बोला-‘बिना पोस्टरों के चाचाजी चुनाव कैसे जीतोगे ?‘

‘देख भाई, मैं जातिवाद के आधार पर तो चुनाव लड़ नहीं रहा हूँ।‘

डसने उत्तर दिया-‘‘अरे मियां राजनीति के हथकंन्डों से काम लिया जाता है।‘

‘मैं चुनाव लड़ रहा हूँ मजदूरों और छोटे किसानों को संगठित करने, उन्हें भी आरक्षण दिलाने।‘

‘तब तो साहब आपसे नहीं पटेगी !‘

‘क्यों क्या बात हो गई ? क्यों नहीं पटेगी ?‘

‘आप तो हरिजन विरोधी हैं।‘

‘अल्हा-अल्हा, बेटा यह कहकर मेरे ऊपर पाप न पढ़ा, देख मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि हरिजनों की सुविधाएं बन्द कर देनी चाहिए।‘

‘तो क्या कह रहे हो ?‘

‘अरे मजदूर और छोटे किसानों का भी तुम्हारे साथ हित हो जाए तो क्या बुरा है ?‘ अब अर्जुन बोला-‘हाँ, मजदूरों को भी ये सुविधाएं मिलनी ही चाहिए।‘

‘और छोटे किसानों को ?‘

‘हाँ चाचाजी, उन पर भी क्या रखा है। वे भी तो मजदूर ही हैं। जब तक हम उन्हें संगठित कर आवाज नहीं उठायेंगे तब तक सरकार नहीं सुनने वाली !‘

‘विचार तो ठीक हैं आपके ! ऐसी बातें तो किसी ने सोची भी नहीं होंगी।‘

‘बेटा अगर लोगों को मेरी ईमानदारी पर विश्वास हो तो वोट मेरा ं ं ं।‘

अब अर्जुन बोला-‘आपका प्रचार करने के लिए डा0 रवि हैं ना,वे आये थे। उन्होंने भी यही बातें बताई थीं।‘

‘रश्मि मेरी बेटी है, इसकँूे पिता मेरे मित्र थे। वे भी मेरी ही पार्टी के आदमी हैं।‘

‘हाँ डाक्टरनी बाई भी डाक्टर के साथ थीं।‘

‘यही तो मैं कह रहा हूँ बेचारे जी जान से सेवा कर रहे हैं। मैं चाहता हूँ बेटा इस गंाव के लोगों को तुम समझाओ, उचित-अनुचित का इन्हें ज्ञान करा दो फिर भी वोट न दे ंतो मेरी किस्मत ?‘

‘ठीक है चाचाजी, आप चिन्ता न करें मैं आपका साथ दूंगा !‘

‘देख बेटा अब इस गाँव में चक्कर न लगा पाऊंगा, हाँ आ पाया तो ठीक, न आ पाया तो तुम जानो ं ं ं!‘

‘आप चिन्ता न करें !‘

‘तो बरखुरदार अब मैं चलता हूँ।‘

‘भोजन तैयार हो गया है।‘ दोनों चुपचाप भोजन करने चले पड़े। अर्जुन ने बात आगे बढ़ाई।

‘देखो चाचाजी, मैं आपकी पार्टी का आदमी बन गया हूँ। डा0 रवि और रश्मि मेड़म बना कर गए हैं।‘

‘अरे वे तो चाचाजी की मुफ्त में ही सेवा कर रहे हैं।‘

‘चाचाजी मैंने थोड़े से पम्फलेट छपवा लिए हैं उन्हें झोले में डाल देता हूँ।‘

‘अरे ं ं ं अरे, यह क्या बेटा ? देखो कुछ खर्च-वर्च मत करो, वैसे ही फसल कमजोर आई है।‘

‘चाचाजी इस वर्श कुछ पानी कम बरसा था !‘

‘बेटा, तो भी नहर है इसलिए नही ंतो दाना न होता। मैंने कलेक्टर से मिलकर पानी का उचित वितरण करवा दिया है।‘

‘नहर तो चाचाजी टाईम से पानी देती है, पर ं ं ं।‘

‘पर क्या ? कहने में संकोच क्यों कर रहे हो।‘

‘यही कि यहाँ के मास्टर जी पढ़ाते-लिखाते नहीं हैं।

‘भई यह तो आम शिकायत है। जिसकँूे मुँह सुना,े वह यही कहते मिलेगा। अरे हम मजे उड़ावें। दूसरों से त्यागी बनने की कहें। कौन बन जावेगा ? अरे पहले हम अपने को सुधारें तब दूसरों को सुधारने की बात करें।‘

‘फिर भी हमें गाँव की समस्याओं पर ध्यान तो देना पड़ेगा।‘

‘पहले तो समस्यायें यहीं के यहीं सुलझाईं जायें। जब गाँव की बांत गाँव में न सम्हले तो मैं किस काम के लिए बैठा हूँ।‘

‘यही तो मैं कह रहा हूँ। हम आपके पास तभी आया करेंगे जब हमारी समस्या का हल गाँव में नहीं निकलेगा।‘

‘हाँ तब मैं सेवा में कसर न छोड़ूंगा। अच्छा बरखुरदार अब चलता हूँ, आज चार गाँव निपटाने हैं।

‘रवि डाक्टर कह गये हैं कि मैं अपने मित्रों को भी पत्र डाल दूं। आप उनसे कह देना कि अर्जुन ने अपने मित्रों को पत्र डाल दिये हैं।‘

‘अरे वाह ! लेकिन तुम तो अभी मेरे से ऐसे बातें कर रहे हो जैसे तुम्हें कुछ भी मालूम नहीं।‘

तब अर्जुन झट से बोला, ‘दूसरों के कहने पर ही विश्वास नहीं कर लेना चाहिए, चाचाजी।‘

‘यह तो ठीक कहा बरखुरदार। अब मुझे तुम्हारा पूरा विश्वास हो गया कि तुम जो काम करोगे, निश्चय ही सफल होगे।‘

दोनों गाँव का चक्कर लगाते हुए, लोगों को अपनी बात समझाते हुए गाँव से बाहर आ गये। बशीर मियां दूसरे गाँव में जाने के लिए अब साइकिल पर सवार हो चुके थे।

सुबह से ही गाँव भर में चर्चा फैल गई थी कि महन्त जी चुनाव प्रचार के लिए अपने गाँव में आ रहे हैं। खेरा गाँव के सभी लोगों को सूचित कर दिया गया। कुछ लोग जाकर बशीर मियां से कह आये। रवि और रश्मि प्रचार के लिए आज सुबह से ही निकल गये थे। घर-घर में चर्चा का विशय था। महन्त प्रचार करने आ रहे हैं। चौपाल पर चुनाव मंच बनाया जा रहा है। रंगाराम सुबह से ही मंच की व्यवस्था में व्यस्त है।

सुबह के 10 बज गये। एक जीप चौपाल पर आकर रूकी। वहाँ बैठे सभी लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। जीप की आवाज सुनकर गाँव के सभी लोग आ गये। पोथी बशीर मियां के पास गया और बोला-मियां ,अपनों पूरो गाँव महन्त को भाशण सुनिवे गओ है। तुम काये नहीं गये ?‘

‘देख भइया, मेरी बातें तो तुम सुन ही चुके हो, अब जाकर उनकी बातें भी सुन आओ। जब तक तुम उनकी बातें नहीं सुनोगे,, तब तक मुझे भी नहीं समझ पाओगे। बिना समझे बूझे जो वोट तुम मुझे दोगे वह अन्धा वोट होगा। बिना सोचे-विचारे का तुम्हारा वोट मुझे नहीं चाहिए।‘

‘तो चला जाऊं ?‘

‘जाना ही चाहिए बरखुरदार। जल्दी जाओ, कार्यक्रम समाप्त हो गया फिर जाने से क्या फायदा ? भइया तुमसे ही नहीं, मैं तो सभी से यही कह रहा हूँ।

‘ःआप नहीं चलोगे।‘

‘मैं प्रत्याशी हूँ। मेरी बात अलग है।‘

‘अच्छा मियां तो मैं चलता हूँ‘ कहते हुए पोथी चला गया।

चौपाल पर सारा गाँव इकट्ठा था। नीम के पेड़ के नीचे तख्त पड़ा था। तकिया लगा था। सभी लोग बैठ चुके थे। महन्त बैठे थे। एक लम्बे पूरे कद के, सफेद वस्त्रों से सजे हुए। पचफेरा बन्दूक हाथ में थी। स्वास्थ्य अच्छा, रंग गोरा, अंग्रेजों की तरह आकर्शक चेहरा, जिसे देखने को जी ललचा उठे। उम्र 45 वर्श के आसपास होगी। उनके बगल में ही उनके प्रत्याशी लालजीराम बैठे थे। रंगाराम जब व्यवस्था से निवृत्त हुआ तो मंच के पास आकर कहने लगा।

‘आज बड़े हर्श की बात है कि बहुत लम्बे समय बाद हमारे गाँव के महन्त साहब हम लोगों के बीच में हैं। आप लोगों से कुछ कहना चाहते हैं। इसकँूे पहले आपके सामने हमारे लोकप्रिय प्रत्याशी लालजीराम जी कुछ कहेंगे और फिर महन्त साहब।’

यह कह कर वह मंच से हट गया। लालजीराम उठे और मंच के सामने आकर जनता को सम्बोधित करके कहने लगे- ‘भाइयो एवं बहनो, मैं आपके क्षेत्र से जनपद अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हुआ हूँ। मैं आप लोगों से वोट मांगने आया हूँ, मेरी इज्जत आप सब लोगों की इज्जत है। आप लोगों की इज्जत हमारे महन्त साहब की इज्जत है। इसलिए आप सब लोगों को मेहरबानी करके वोट अपने हिन्दू भाई को ही देना चाहिए। मेरी जीत हिन्दुओं की जीत होगी। बस अब मैं इतना ही कहूँगा कि आप लोग शान्तिपूर्वक अपने महन्त साहब को भी सुन लीजिये। वे आप लोगों से क्या अपील करते हैं ?‘

अब लालजीराम मंच पर जा बैठे। महन्त साहब नखरों से उठे और तख्त के अगले हिस्से पर पैर लटका कर बैठ गये और बोलना शुरू किया-

‘इस खेरी गाँव के लोग मुझे जितना मानते हैं उतना कोई न मानता होगा। इस विश्वास को लेकर आप लोगों से अपनी बात कहने आया हूँ कि आप लोग अपना वोट लालजीराम को ही देवें। लालजीराम आप लोगों की पूरी तरह से सेवा करेगा। यदि उससेवा में कमी दिखे तो आप लोग मेरे पास आकर इस बात की शिकायत कर सकँूते हैं यानी आप लोगों की सेवा करने के लिए ही उसे इस पद पर खड़ा किया गया है। लालजीराम एक न्यायप्रिय व्यक्ति है, उसन्यायप्रियता से आप लोग भी पूरी तरह परिचित हैं।‘

‘एक ठाकुर करतार सिंह जी भी इस चुनाव में खड़े हुए हैं। वे पढ़े लिखे भी नहीं हैं फिर कब-कब तुम्हारे बीच में आए हैं। कौन सा काम अभी तक उन्होंने तुम लोगों के लिए किया है। आप लोग भी शराबी-कबाबी लोगों को जिताना पसन्द नहीं करेंगे। ठाकुर साहब का जीतना तो अनिश्चित ही है, ठाकुरों के पूरे वोट भी उन्हें नहीं मिल पायेंगे। वैसे ठाकुर लोग ठाकुर जी की वजह से हमारे पक्ष में होते चले जा रहे हैं।

‘तीसरा प्रत्याशी आप लोगों के गाँव का है। आप उसकँूे चालचलन को निकटता से पहचानते हैं। मैंने तो जब से यह सुना है कि बशीर मियां डा0 रवि की पत्नी से गहरा सम्बन्ध है। यह सुनकर मुझे ठेस लगी है। डा0 रवि और रश्मि जाने क्यों उसकँूे जाल में फस गये हैं,ं तभी तो उनका प्रचार करते फिर रहे हैं। चरित्रहीनता की बात सुनकर, मुझे बड़ा क्रोध आया। बूढ़ा हो गया अभी भी कामुकता नहीं गई। अरे चुनाव क्या इन बातों से जीता जाता है ? उनका इसी कारण इस क्षेत्र में कोई भी साथ नहीं दे रहा है। सभी हमारी तरफ हैं।

‘मैं न आता, खबर ही भेज देता और काम हो जाता। लेकिन मैं इसलिए भी चला आया कि बशीर मियां से मुलाकात हो जाये। जिससे मैं उसे पाठ सिखा दूं। पाठ की बात पर बन्दूक हाथ में भिच गई। आगे बोलना जारी रहा- अब मैं आप लोगों से अधिक कुछ न कहूँगा। मैंने सारी बातें साफ-साफ कह दी हैं। बातें सुनकर आप लोगों की आंखें खुल गई होंगी। अन्त में इतना ही कहूँगा कि वोट लालजीराम को ही देवें। उसजीत मेरी जीत है और मेरी जीत आप सब लोगों की जीत है, आपके गाँव के ठाकुर जी की जीत है।’ भाशण बन्द होते ही ताली बजी और महन्त जी मंच से उठ खड़े हुए। रंगाराम ने भोजन के लिए रोकना चाहा, पर उन्हें दूसरे गाँव में जाना था।

एक बोला-‘‘यार महन्त की सब बातें ठीक हैं, पर दो बातें नहीं जचीं।‘

‘दो कौन सी ?‘ दूसरे ने प्रश्न कर दिया।

‘एक तो लालजीराम न्यायप्रिय आदमी है। आपुन सब जानतै कान्ती बारे मामले में जे पैसा खा गये।‘

‘और दूसरी बात ं ं ं ?‘

‘यार बशीर मियां ऐसो आदमी नाने। महन्त बिनिपै झूठो लाक्षन लगा रहो हैं।

‘हाँ यार ज बात कछु जची नहीं। अरे ज बात होती तो रवि तेज धरो है बशीर मियां ये माड़ातों।‘

‘सफा झूठी बात हैं ,जे काये के महन्त हैं जो ऐसी झूठी बातें कत्तैय।‘

‘तो जिन्हें वोट दे को रहो है।‘

‘महन्त के पिट््ठू तो देंगे।‘

‘देबे करें , मैं तो बशीर मियांये ही वोट देंगो।‘

अब तक चौराहा आ गया सभी अपने-अपने घरों को चले गये।

महन्त के जाते ही बशीर मियां के यहाँ लोगों की भीड़ जमा हो गई। लोगों ने सारी बातें बशीर मियां से कह सुनाईं। चरित्र हनन वाली बात पर बशीर मियां लोगों से बोले-

‘यदि आप लोगों को यह बात सच लगती हो तो वोट फिर मुझको देना ही नहीं चाहिये। ‘

बात सुनकर विशुना बोला-‘ज कहा कहतैओ। बाके कहिवे से का होतो, हम सब जानतैं, कै जे सब बातें झूठी हैं।‘

‘नहीं नहीं पता लगाओ, यदि बातें सच्ची हैं तो वोट मुझे न देना। ऐसे चरित्रभ्रश्ट आदमी को वोट देना भी न चाहिये। जिसे बेटी कहा है, उसकँूे साथ ऐसा करे।‘

‘अरे चाचाजी, हम सब जानतैं। तुम चिन्ता मति करो।‘

‘मैं कहाँ चिन्ता कर रहा हूँ।‘

‘तो ठीक है हम चलतैं। तुम तो अपनो प्रचार करो।‘

‘मैं करूं ं ं ं ?‘

‘तुम न करो न सही। चुपके चुपके हम कर रहे हैं नेक वाकी जमीन बटाई पै लयैं हैं, नही ंतो व हमाओ कहा कत्तो।‘ कहते हुए विशुना चला गया। अब धीरे-धीरे सभी अपने-अपने घर चले गये।

नवल किशोर को चांदपुर जाना था। महन्त के भाशण के चक्कर में देर हो गई थी। थोड़ी देर बशीर मियां के यहाँ भी रूकना पड़ा। धूप तेज हो गई थी इसलिए उसने अपने सिर से पंचा लपेटा और तेज कदमों से चांदपुर के रास्ते पर चल पड़ा। लगभग दो किलो मीटर ही चला होगा कि प्यास लग आई। पास में कुआं था, नीम का पेड़ था, घनी छाया थी। कुछ लोग धूप से बचने के लिए पेड़ की छाया में आ बैठे थे। नवल भी वहाँ पहुँच गया। रवि और रश्मि वहाँ मौजूद थे। रवि को देखते ही नवल बोला-

‘अरे डाक्टर साहब तुम तो झा हो, अपये गाँव में तो आज महन्त आये हैं।‘

रवि ने पूछज्ञ-‘‘क्या आज्ञा दे गये हैं गाँव वालों को ?‘

‘कह रहे थे लालजीराम न्यायप्रिय आदमी हैं।‘

‘अच्छा ?‘

‘देख लेऊ, ज कान्ती बारे मामलों में पैसा खा गये। सब गाँव ज बात जानतों।‘

‘और क्या कह रहे थे ?‘

‘और कहा, तुम्हें बदनाम कर रहे हैं।‘

‘हमें कैसे ?‘

‘जो कहि रहे थे बशीर मियां और रश्मि ं ं ं ।‘

‘अच्छा अच्छा। अरे कहने में क्यों शरमा रहे हो। हमें सब मालूम है, बेचारे बशीर मियां और बेचारी रश्मि को बदनाम कर रहे होंगे‘

यह बात रवि रश्मि की ओर देखते हुए कह गया। अब रश्मि बोली, ‘कुछ भी बकने से रश्मि बदनाम हो जावेगी क्या ?‘ रवि झट से बोला

‘देखो रश्मि, प्रचार से तो सब कुछ किया जा सकता है।‘

अब बात काटते हुए नवल बोला-‘बतो तुम्हें बदनाम करिवे की पूरी कोशिश कर रहो है।‘

रवि ने समझया-‘‘वह तो मूर्ख ह,ै अरे रश्मि को कोई भी कलंकित कर पाया है जो वह करेगा।‘

अब रश्मि ने नवल से पूछा- ‘अपने गाँव के लोग क्या समझ रहे हैं ?‘

नवल झट से बोला, ‘सब बातें झूठी हैं, नहीं तो डाक्टर रवि जियत माछी कैसे लीु लेतये।‘

बात सुनकर रवि हंसते हुए रश्मि से बोला-‘देखो रश्मि, लोगों को यह बात गलत ही लगती है।‘ अब रश्मि बोली, ‘सच तो सच ही होता है, कभी न कभी तो सच सामने आ ही जाता है, फिर असत्य के वातावरण से सत्य को कब तक छिपाये रखा जा सकता है।’

अब रवि बोला-‘मेडम, आप चिन्ता में न करंे। यह चुनाव का चक्कर है। चुनाव जीतने के लिए नए-नए तरीके निकाले जाते हैं।

‘ रश्मि बोली-‘वे अपने प्रत्याशी को अब जिता ही लें।‘

रवि झट से बोला, ‘देखो मेडम, जनता भी अब जागरूक होती जा रही है। फिर भी ये चुनाव है, परिणाम से पहले परिणाम के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकँूता।‘

‘यह तो ठीक है पर क्या जीत की आशा भी न रखी जाए।‘

‘प्रचारक केे लिए आत्मविश्वास आवश्यक है। प्रचारक की निराशा, प्रचार में बाधक बन जाती है।‘

‘अच्छा अब बातें ही करते रहोगे या चलना भी है।‘ चलने की बात सुनकर दोनों चल पड़े। नवल अभी भी छाया में ही बैठा रहाँ

ठाकुर करतारसिंह अपनी जाति के बल पर जीत निश्चित समझ रहे थे। उनकी जाति के सभी लोगों में गंगा उठ चुकी थी। ठाकुर साहब जहाँ भी प्रचार के लिए जाते, सभी उनकी हाँ में हाँ मिलाते । उन्हें लगता जाति के अलावा बाहर से भी कुछ वोट मिल ही सकँूते हैं। जीत के आसार बढ़ते जा रहे थे।

पटेल लालजीराम को भी अपनी जीत निश्चित लग रही थी। महन्त स्वयं गाँव-गाँव जाकर प्रचार कर रहे थे। खूब जीपें दौड़ रही थीं। कुछों को डराया-धमकाया भी जा रहा था। बोट के लिये लोभ-लालच भी दिया जाने लगा। प्रचारकों के पास वक्त-बे-वक्त के लिए रूपये भी भेज दिये गये। शराब इत्यादि की भी व्यवस्था कर दी गई।

महन्त अपना प्रतिद्वन्दी बशीर मियां को समझ रहे थे। उन्होंने चरित्रहनन जैसा अभिशाप लगाकर, अपने प्रतिद्वन्दी को ठण्डा करना चाहाँ बशीर मियां को सब की सब खबरें मिल जाती थीं। गाँव-गाँव जाकर बशीर मियां को बदनाम किया जा रहा था। बशीर मियां को जीत की आशा न रही। प्रचार के लिए जाना बन्द कर दिया। समझ बैठे पिछले सरपंची के चुनाव की तरह हारना ही है तो व्यर्थ क्यों परेशान होवें।

इसी चिन्ता में सारा दिन व्यतीत हो गया। शाम को रवि और रश्मि लौट कर आये। चाचाजी को घर पर देखकर रवि बोला-

‘देखो चाचाजी अभी तब तो स्थिति ठीक है पर तुम्हारा घर रहना कुछ जमा नहीं।‘

‘अरे जब जीतना ही नहीं है तो क्यों परेशान होवें। इस महन्त ने तो बुरी-बुरी हवाएं फैला दी हैं।‘

‘ओ ! अब समझा, इसीलिए निराश होकर बैठ गए हो।‘

रश्मि बीच में बोल पड़ी-‘अरे महन्त दुश्प्रचार करता जाता है। हम उस-उस जनता को सफाई पेश करते जा रहे हैं।‘

अब रवि बीच में ही बोला-‘‘मैंने लोगों से कह रहा हूँ ,रश्मि उनकी बेटी है। इसे उन्होंने गोद में खिलाया है। इसकँूे पिताजी बशीर मियां के पक्के दोस्त हैं। आज भी वे रश्मि को बेटी मानते हैं। मैं रश्मि का पति हूँ। सारे सम्बन्धों के बारे में मुझे अधिक ज्ञान हो सकता है या उन महन्त जी को। मैंने इस बात का पेंम्पलेट छपवाकर अपने सभी साथियों के पास भेज दिये हैं। ये सारी खबरें अपनी पार्टी के लोगों के पास भेज दी हैं।‘ अब बात रश्मि ने पूरी की-

‘हमने पम्फलेट भी छपबा लिए हैं। ‘

अब बशीर मियां बोले-‘अरे वाह ! तुम लोगों ने तो गजब ही कर दिया।‘

अब रवि उन्हें पेंम्फलेट दिखाते हुए बोला, ‘यह रहा वह पम्फलेट।‘ बशीर साहब ने उसे लिया और पढ़ने लगे-

भाइयो,

इस क्षेत्र के ईमानदार, कर्मठ और चरित्रवान आदमी वशीर मियां को बदनाम किया जा रहा है। मेरी पत्नी रश्मि से गलत सम्बन्धों की चर्चा करके ईमानदारी के ऊपर कलंक लगाने की कोशिश की जा रही है। हम दोनों यानी मैं रवि और रश्मि आपको विश्वास दिलाते हैं, ये सब बातें गलत हैं। रश्मि उनकी बेटी है। आप लोग उनकी बातो पर विश्वास न करें और अपने मत का सोच-समझकर उपयोग करें।

आपके विश्वसनीय

हस्ता0 डा0 रविकान्त शर्मा

श्रीमती रश्मि शर्मा

पम्फलेट पढ़ने के बाद वे कहने लगे-‘इसकँूा मतलब है वह सारे क्षेत्र में यह प्रचार कर रहा है।‘ अब रवि उत्तर में बोला, ‘छोड़ो साहब, हमें उसकँूे बारे में कुछ नहीं कहना। वह दुश्प्रचार कर रहा है कि बशीर मियां को वोट मत दो ! ऐसा कह कर वह हमारा प्रचार ही कर रहा है।‘

‘यह प्रचार है ?‘

‘और नही ंतो क्या ? अरे सभी जानते हैं बशीर मियां ऐसे नहीं हो सकँूते, महन्त झूठ बोल रहा है।‘

रश्मि बोली-‘‘ हमें अपनी बात लोगों तक पहुचाना है। वे कैसे सोचते हैं यह वे ही जानें।‘

रवि बीच में ही बोला-‘कैसे भी सोचते हों, पर मेरे से और रवि से तो ये बातें लोग पूछने से रहे। हम दोनों अपने आप ही बात का स्पश्टीकरण देते चल रहे हैं।‘

अब रश्मि बोली- ‘जब हम ये सब बातें वोटरों को समझाते हैं तो वोटरों के चेहरे पढ़ने लायक होते हैं, लेकिन चाचाजी, आप ठीक नहीं कर रहे हैं।‘

‘क्या ठीक नहीं कर रहा हूँ बेटी ?‘

‘यही कि घर आराम कर रहे हो।‘

‘आराम न करूं तो क्या करूं ? जिसकँूे बेटे-बेटी सपूत हों वह आराम नहीं करेगा तो और क्या करेगा ?‘

अब रवि बोला, ‘ठीक है, आप आराम करें। हमें तो कल से खाना खाने के लिए फुर्सत ही नहीं मिली है।‘

‘अरे ! तो मैंने टिक्कर बनाए हैं।‘ यह कहते हुए वे उठे और दोनों को दो-दो टिक्कर लाकर दे दिये।

और बोले, ‘बस यही बचे हैं, पहले पेट की भूख मिटा लो फिर घर जाना।‘

दोनों को टिक्क्र खाने ही पड़े। चैन से पानी पिया, तब घर के लिए छुट्टी मिल पाई।

चुनाव का दिन आ गया। बशीर मियां आज भी घर पर ही रहे। सभी मत पड़ गये। पांच बजे मत पेटियां खुलने लगीं। अपने गाँव में वे भारी मतों से ंिजययी हुए। रंगाराम उन्हें यह सूचना देने आया और कहने लगा, ‘मियां बधाई हो, आप यहाँ से तो जीत गए। मैंने सोचा, यहाँ आपका कोई एजेन्ट नहीं है। आप मतदान केन्द्र पर ही नहीं गये, इसलिए सोचा आपको खबर दे आऊं।‘

‘अच्छी बात है जीत गया तो ं ं ं !‘

‘क्यों खुशी नहीं हुई ?‘

‘पहले और दूसरे गाँवों के परिणाम तो आ जाने दो ? तब सही पता चलेगा।‘

‘अरे मियां जब महन्त के ही गाँव में तुम भारी मतों से जीत गये, तब दूसरे गाँवों में महन्त को कौन पूछता है ?‘

‘यह तुम कह रहे हो !‘

‘क्यों न कहूँगा मियां ! जे लालजीराम कान्ती बारे मामले में कितैक पैसा खा गयो। मोय तो बस पचास रूपये दये बाने। अरे वा दिना मैं चुप रह गयो। नहीं ंतो वही दिना जाय ठिकाने लगा देतो।‘

अब बशीर मियां बोले-‘बेचारे महन्त साहब भी तो अब की बार गाँव-गाँव चक्कर लगाते फिरे हैं।‘

रंगाराम बोला-‘अरे बात ज है, तुम्हाये जीतवे से महन्त को ही तो खतरा है।‘

उन्होंने उत्तर दिया-‘‘महन्त को ही नहीं बल्कि उन सब लोगों को है जो गलत तरीके से जनता का शोशण करते रहते हैं।‘

‘देखो मियां, मेरी क्या है ? मैं तो उनका थोड़ा बहुत उनका काम मन्दिर की वजह से कर देता हूँ। अरे धर्म के काम में कौन मरा ही जाता हूँ ?‘

‘देख पटेल, यही बात सच नहीं है। अरे थोड़ा बहुत मिल भी जाता होगा।‘

‘यह तो मियां तुम सब जानते हो, कभी-कभार महन्त साहब काम चला देते हैं सो ब्याज लेते हैं कौन मुफ्त में देते हैं।‘

‘पटेल, तुम गाँव के मुखिया हो। जब तुम्ही गलत रास्ते चलोगे तब दूसरों को गलत रास्ते पर जाने से कैसे रोक पाओगे।‘

‘देखो मियां, अब मैं महन्त के चक्कर में आवे बारो सोऊ नानें।‘ दोनों की बातें चल रही थी, उसी समय रवि और रश्मि वहाँ आ गये। उनके साथ विभिन्न गाँवों से आये हुए बहुत से लोग थे। कुछ लोग वहाँ शहर से भी आ पहुँचे थे। सभी अस्पताल पर चल दिये थे। बशीर साहब के घर से जलूस निकल पड़ा। नार लगाये जाने लगे !

‘मजदूरों का मसीहा - बशीर मियां।‘

‘मजदूरों का मसीहा - बशीर मियां।‘

इधर बशीर मियां किसी का हाथ चूम रहे थे। किसी का कन्धा थपथपा रहे थे। बराबरी वाले को गले लगा रहे थे। आंसू निकल रहे थे। लोग उनके चरण छूने को बढ़ते तो वे उन्हें छाती से लगा लेते। मौन-सब कुछ मौन चल रहा था। अब जलूस अस्पताल पर पहुँच गया। रवि ने चाय नाश्ते की व्यवस्था की। सभी बैठ गये। बशीर मियां एक ही बात कहे जा रहे थे ‘मजदूरों और छोटे किसानों को संरक्षण दिलाने के लिए लोगों संगठित करने का कल से ही काम शुरू कर देता हूँ। प्रधानमंत्री व लोकसभा अध्यक्ष को भी सूचना भेज दूंगा। इस छोटे से पद पर रह कर आरक्षण आर्थिक आधार पर कराने के लिए संघर्श करता रहूँगा‘ बातों ही बातों में चाय बन गई। नाश्ता आ गया। सभी ने चाय पी, नाश्ता किया और लोग शुभ कामनायें देते हुए अपने घर एक एक कर जाते गये। रात्रि के 12 बजे तक बैठक जमी रही। 

सुबह के पांच बजे थे। बशीर मियां रश्मि को साथ लेकर क्षेत्र की यात्रा पर निकल पड़े। रवि ने अपना अस्पताल संभाल लिया। चुनाव जीतने के बाद आठ- दस दिनों में सारे क्षेत्र का लोगों का आभार व्यक्त करने भ्रमण कर डाला।

एक दिन रवि अखबार लेकन बशीर मियां के यहाँ पहुँचा। उनकी ओर अखबार बढ़ाते हुए बोला-चाचाजी ये लो अपनी जीत का चिट्ठा।

‘जीत का चिट्ठा।‘

‘हाँ, आप का सारे देश में नाम हो गया है।‘

‘अरे! कैसे ?‘

‘ सबसे कम पैसे खर्च कर देश में आप ही जीते हैं। गरीबों का प्रजातन्त्र लाने के लिए आपने देश में एक नया आदर्श प्रस्तुत किया है।‘ यह सुनते हुए बशीर साहब अखबार खोल चुके थे। अखबार के मुखपृश्ठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था।

‘जनपद अध्यक्ष के पद पर अनोखी जीत‘- विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि बशीर साहब एक ईमानदार और नेक इंसान हैं। यही कारण हैं कि उन्होंने कम से कम पैसा खर्च करके भारी मतों से जीत हासिल की है। बताया जाता है कि उनका कुल एक सौ इकत्तर रुपया ही खर्च आया है। यह देश के चुनाव में, एक नया स्वरूप प्रदान करने वाला अनुकरणीय उदाहरण है। कहा जाता है कि बशीर साहब के अधिक प्रचारक भी नहीं थे, पर रश्मि नामक महिला ही उनके प्रचार में अग्रणी रही है।‘ अब उन्होंने अखबार बन्द किया तो रवि बोला, ‘देखा चाचाजी, इसमें रश्मि की भी प्रशंसा, छप गई। अपने राम तो यों ही रहे।‘

‘यह बात नहीं है बेटे, ये अखबार वाले जैसा मन में आता है वैसा करते हैं। पूरी छानबीन किये बिना ही समाचार छाप देते हैं। जैसा चाहा लिख देते हैं।‘

‘अच्छा चाचाजी, चलात हूँ, अस्पताल पर मरीज प्रतीक्षा कर रहे होंगे। मैं तो आपको अखबार पढ़वाने चला आया। ‘