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तिलचिट्टा जो मौत से डरता था



एक तिलचिट्टा था जिसे पैदा होते ही बता दिया गया था कि एक दिन उसे मार डाला जाएगा. क्योंकि तिलचिट्टों के दुश्मन हजार होते हैं और सभी तिलचिट्टे एक न एक दिन मार दिए जाते हैं. तिलचिट्टा जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने पाया कि उसे चेतावनी देने वाले खुद कहीं गायब हो गए है. शायद उन्हें भी किसी ने मार डाला था.

इससे तिलचिट्टा घबरा गया और बेहद डरा-डरा रहने लगा. उसे बात-बात पर अपने मारे जाने की चिंता सताती और वह रोने लगता तथा घंटों तक रोता रहता.

ऐसे ही एक दिन जब वह रो रहा था, सामने से एक गोल-मटोल चूहां निकला. वह हंसमुख चूहा था. उसे बड़े अचरज से देखते हुए एक गोल चक्कर काटकर हंसमुख चूहे ने पूछा, ‘‘ वाह! तुम क्या गा रहे हो भाई?’’

तिलचिट्टे ने आंसू बहाते हुए कहा, ‘‘ मैं तो रो रहा हूं’’

-मगर यह तो गाना है.

-नहीं , यह मेरा रोना है.

चूहे को यह जानकर हैरानी हुई. वह हाथ जोड़कर बोला, ‘‘ माफ करना तिलचिट्टे भाई, तुम्हारे रोने को गाना समझकर मैं तो ताली बजाने वाला था. मेरे ख्याल से तो तुम रो नहीं रहे थे, बल्कि गा रहे थे.

तिलचिट्टा चूहे की बात से परेशान हुआ. उसने पूछा, ‘‘ चूहे जी ये गाना क्या होता है?’’

‘‘ वही जो मेंढक गाता है.’’ चूहा बोला.

इस बात पर मेंढक का गाना सुनने दोनों तालाब की ओर चल दिए . वहां एक बड़े से सफेद कुकुरमुत्ते के नीचे बैठा मेंढक मस्ती से टर्रा रहा था.

यह सुन र तिलचिट्टा ने भी वही काम शुरू कर दिया, जिसे वह तो आज तक रोना समझता आया था, पर चूहे के अनुसार वह गाना था.

उसका यह कार्यक्रम सुनकर मेंढक चौंक गया फिर उछलता हुआ पास चला आया और ताली बजाकर बोला, ‘‘तालाब की कसम, क्या लाजवाब गाते हो. लेकिन साथ कुछ बजाते नहीं. जैसे मैं पेट पर ढोल बजाता हूं. गाना बिना संगीत के कब भला लगता है.’’

‘‘मैं भला क्या बजाऊं?’’तिलचिट्टे ने मासूमियत से पूछा.

‘‘ वाह, तुम्हारे पैर तो खुद गिटार हैं, जरा इन्हें आपस में रगड़ कर तो देखो.’’ बड़बोला मेंढक बोला.

तिलचिट्टे ने वैसा ही किया! और आश्चर्य! हाथों को आपस में रगड़ते ही इतनी महीन मीठी आवाज निकली कि तिलचिट्टा खुद ही वाह कर उठा.

चूहे ने भी सिर हिला कर दाद दी. फिर तो तिलचिट्टे ने हाथ रगड़-रगड़ कर और मेंढक ने पेट पीट-पीट कर गाना शुरू कर दिया. दोनों गाने लगे तो यूं लगने लगा जैसे आर्केस्ट्रा बज रहा हो.

घंटों तक गा लेने के बाद वे थक कर चूर हो गए तो चुप हो गए. तब तिलचिट्टे ने मेंढक से पूछा, ‘‘ मेंढक भाई-मेंढक भाई, एक बात बताओ!’’

‘‘ पूछो ’’ मेंढक ने कहा.

‘‘ तुम क्यों गाते हो?’’

‘‘ बरसात के लिए ! या यूं कहो मैं सूखे के डर से गाता हूं.’’ मेंढक ने जवाब दिया और पूछा, ‘‘ मगर तुम क्यों गाते हो?’’

‘‘ मैं मौत के डर से गाता हूं.’’ तिलचिट्टे ने जवाब दिया.

‘‘ तब तो ठीक है. गाने का कोई कारण होना ही चाहिए.’’ मेंढक ने कहा. बस इस तरह तिलचिट्टे और मेंढक में मित्रता हो गई. चूहा तो पहले ही दोस्त बन गया था. सो तिलचिट्टे के गाने की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी.

फिर एक दिन चीटियों का सेनापति तिलचिट्टे के पास आ कर बोला, ‘‘ गायक जी, हमारी सेना दीमकों से लड़ने जा रही है. हमें ज़रूरत है एक ऐसे गायक की जो लड़ाई के मैदान में जोशीले गाने गा-गा कर हमारी सेना का मनोबल बढ़ा सके. क्या तुम हमारे साथ चलोगे? तुम्हारी सुरक्षा तथा खाने-पीने का जिम्मा हम पर रहा.’’

तिलचिट्टे यूं तो लड़ाई-चड़ाई से डरता था, पर जब उसे सुरक्षा का भरोसा मिला तो वह उनके साथ चलने को तैयार हो गया.

और शायद कोई यकीन ही न कर पाए कि चींटी सेना जब दीमकों से हारने लगी थी और हजारों की संख्या में दीमकें आगे बढ़ने लगी तब तिलचिट्टे ने एक बड़ा ही खतरनाक संगीत बजा कर उन्हें इतना पीछे खदेड़ दिया था, जहां से वे फिर कभी लौट नहीं सकते थे.

वहां से लौटकर तिलचिट्टा टिड्डों के शांतिदल के साथ उपद्रव जगत की यात्राओं पर भी गया. जहां उसके भजनों ने धूम मचा दी. आश्चर्य तो यह था कि उसका गाना सुन कर हिंसक प्राणी की भी आंखें बंद हो जाती थी और सिर डोलने लगता था.

एक बार उसके मित्र मेंढक पर एक सांप लपकने ही वाला था कि उसने तुरंत गाना शुरू कर दिया और तब तक गाता ही रहा जब तक मेंढक बहुत दूर न चला गया. सांप तो इस बीच आंखें बंद करने को मजबूर हो गया था.

वह तिलचिट्टा बहुत दिनों तक जिंदा रहा. सारी उम्र वह गाता रहा. बाद में तो वह तालाब के किनारे मेंढक के साथ रहने लगा था. उसने और मेंढक ने मिलकर एक संगीत विद्यालय भी खोला था, जहां छोटे-छोटे मेंढकों और तिलचिट्टों को संगीत की शिक्षा दी जाती थी.

कहते हैं मरने से पहले उस तिलचिट्टे ने दूसरे सभी तिलचिट्टों के नाम एक लंबी चिट्ठी लिखी थी, जिसमें मौत के डर को फालतू कहा था और गाने की ताकत का गुनगान किया था.

वह चिट्ठी आज तक तिलचिट्टों को नहीं मिली है, कभी मिल जाए तो देखना ....

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