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दीपक बनाम झालर

कुछ दशकों पूर्व तक दीपक तथा झालर की अनन्य मित्रता थी। दोनों में अभूतपूर्व तारतम्य था। दोनों का अपने अपने क्षेत्र में वर्चस्व था। दोनों के मध्य कोई व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा नहीं थी। किन्तु कुछ वर्षों से झालर अपना रूप बदलने लगी। कुछ विदेशी मित्रों के साथ मिलकर अपने क्षेत्र का विस्तार किया। यहाँ तक कि दीपक के क्षेत्र में भी घुसपैठ कर ली। दीपक को यह बात बर्दाश्त नहीं हुई, परिणामतः दोनों में दूरियां बढ़ने लगी।

दीपक ने सोचा, मेरा व्यवसाय तो कुछ खास त्यौहार तथा विभिन्न खास अवसरों तक ही सीमित रहता है। किन्तु यह झालर १२ महीने धनोपार्जन करती है। भारत में विदेशी त्यौहार मनाने का प्रचलन अपने जोरों पर है अतः यह झालर तो शादी विवाह के अलावा देशी विदेशी त्यौहार पर भी आकर्षण का केंद्र बिंदु है।

दीपक अपनी व्यथा लेकर धन की देवी लक्ष्मी जी के समक्ष उपस्थित हुआ। लक्ष्मीजी अपने सहयोगी श्री गणेशजी के साथ दीपावली के त्यौहार की योजना बनाने में व्यस्त थी। जैसे ही छोटा सा टिमटिमाता दीपक दोनों के समक्ष उपस्थित हुआ, दोनों ने मुस्कुराकर उसका हार्दिक स्वागत किया तथा उसके बुझे हुए इस रूप का कारण पूछा। दीपक ने झालर की खतरनाक रणनीति से अवगत कराया तथा श्रद्धालुओं की अपने प्रति बढ़ती उदासीनता तथा झालर के प्रति पनपते आकर्षण के बारे में बताया।

विषय चिंतनीय जानकर लक्ष्मी जी और गणेश जी ने झालर को उपस्थित होने का आदेश दिया। झालर ने अपना पक्ष रखा। तेल, घी की महंगाई, दीपक की अल्पायु तथा बाहर के झंझावातों को सहने की अक्षमता के कारण श्रद्धालुओं की पसंद बनने का तर्क प्रस्तुत किया। अपने सौंदर्य और टिकाऊपन को भी दंभपूर्वक प्रदर्शित किया। झालर की बात में भी दम था।

लक्ष्मीजी और गणेशजी परस्पर राय मशविरा करने लगे। दीपक व झालर निर्णय की प्रतीक्षा करने लगे। सर्वप्रथम गणेशजी ने कहा तुम दोनों अपनी अपनी जगह एकदम सही हो। किन्तु मैं तुम दोनों में पूर्व की भाँति स्नेह देखना चाहता हूँ। परंपरा से इस त्यौहार का नाम दीपावली है, अतः इस त्यौहार पर दीपक को महत्व मिलना चाहिए। तुम दोनों पहले की भाँति अपने अपने क्षेत्र पर ही काबिज रहो। दीपक, तुम पूजाघर, आँगन, चौबारा घर की चारदीवारी के अंदर सुशोभित रहो क्योंकि तुम वहाँ सुरक्षित हो। झालर, तुम कंक्रीट के जंगलों में कुकुरमुत्ता सी उग आयी बहुमंज़िला इमारतों पर चढ़ सकती हो। अतः वह तुम्हारा क्षेत्र है। लक्ष्मी जी ने झालर को आगाह किया कि अपने विदेशी मित्र से किनारा कर ले अन्यथा उसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है। दीपक को भी सलाह दी कि तेल घी के विकल्प भी उपलब्ध करें और अपने सौंदर्यीकरण पर ध्यान केंद्रित करें ताकि वह भी श्रद्धालुओं को आकर्षित कर सके।

दोनों निर्णय से संतुष्ट थे। झालर ने विदेशी मित्र से मित्रता समाप्त करने का प्रण कर लिया। झालर और दीपक की मित्रता अब पहले से भी ज्यादा मजबूत हो गयी।

नोट - पाठकगण, मेरी इस कहानी का तात्पर्य व सन्देश आप समझ गए होंगे। त्यौहार संस्कृति और सौहार्द के प्रतीक होते हैं। इसके बढ़ते व्यवसायीकरण को रोकना हम सब प्रबुद्ध नागरिक एवं बुद्धिजीवी वर्ग का प्रथम कर्त्तव्य है।