dosto se parivar tak - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

दोस्ती से परिवार तक - 7

राहुल-आह बहुत ज़ोर से लगा यार! पागल हो गयी है क्या तू।…

मनीष राहुल की बात काटते हुए बोला-हाँ हो गयी है और मै भी….

और फिर आगे आकर मनीष ने राहुल का कॉलर पकड़ते हुए बोला…"अबे साले। कितनी देर से ढूंढ़ रहे हैँ तुझे, तुझे पता भी है….और हमें भी पता है यहाँ एक काण्ड हुआ था...और तुझे पता है क्या? हमें तो लगा की काण्ड किसी और का नहीं बल्कि तेरा ही हुआ है"

रिया-नहीं इसे कहाँ से पता होगा ये महाशय तो घूमने मे ही इतने बिजी थे…..या शायद इसे ही सबसे ज़्यादा खुशी हो रही है इसके एडमिशन की।



राहुल ने मनीष के हाथों से अपना कॉलर छुड़ाया और रिया से थोड़ी नाराज़गी जताते हुए बोला…"देख रिया! ऐसा है ख़ुशी तो मुझे है ही रही बात घूमने की तो तुम लोग मुझे यहाँ छोड़ कर गए थे और मेरा फ़ोन भी तुम्हारी कार मे ही रह गया था जो मै तुम्हें कॉल कर के कुछ बता भी पता….और मै भी यहाँ कोई मज़े नहीं कर रहा था…..और तुम्हें लगा था ना की कोई और नहीं बल्कि वो मेरा एक्सीडेंट था तो शायद अभी उस इंसान की जगह मै ही मर गया होता…और वैसे तो मै जानना चाहता था की तुम्हें ऐसा क्यों लगा की कांड मेरा हुआ है लेकिन अब मुझे इस बात मै कोई दिलचस्पी नहीं"

रिया-सच मे अब मैंने बोल दिया तो तू उसकी जगह मरने लगा….मुझे तुझसे ये उम्मीद नहीं थी राहुल…कोई और बहाना बना लेता वैसे भी तू उसमे एक्सपर्ट है।

"मुझे भी राहुल!" मनीष भी रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला…."शायद गलती हमारी ही थी रिया जो हम इसे वापस लेने आये….चल कोई नहीं अब वो गलती दोबारा नहीं होगी..चल रिया बैठ गाडी मे….."

राहुल को इतनी सुनाकर मनीष और रिया कार की तरफ बढ़ने लगे….तभी मनीष का फ़ोन बजा, उसने फ़ोन देखा तो वो राहुल की मा का कॉल था….वो वापस मुड़ा और राहुल की तरफ फ़ोन बढ़ाकर ताना मारते हुए बोला ...."ले तू पहले बड़ा हो जा"......
राहुल ने झटके से मनीष से फ़ोन लिया और कॉल उठाकर अपनी माँ से बात करने लगा….

सुशीला के चिल्लाने की आवाज़ फ़ोन के बाहर तक सुनाई दे रही थी जिसे सुनकर मनीष और रिया हँसने लगे और राहुल बेबस खड़ा बस उनकी शक्ल देख रहा था…

सुशीला-राहुल तुम कहाँ हो?

राहुल-मनीष और रिया के साअ…..बस यहीं हूँ माँ.

सुशीला-यहाँ कहाँ राहुल...उस जगह का कोई नाम भी होगा?

राहुल-पता नहीं माँ...बस घर से करीब 3 किलोमीटर दूर शायद...दरअसल हम किसी रोड पर खड़े हैँ….क्या हुआ आप गुस्से मे क्यों हो?

सुशीला-तुम्हारा दिमाग़ तो ठिकाने पर है ना राहुल….सुबह के चार बज रहे है….और पिछले 3 घंटों से मैं तुम्हें फ़ोन कर रही हूँ, और तुम्हारा फ़ोन है कहाँ….मैंने रिया को भी कई बार कॉल किया पर उसने भी कोई जवाब नहीं दिया….सब ठीक तो ना…

राहुल-माँ बहुत लम्बी कहानी है, मैं आपको घर आकर सब समझता हूँ….फिलहाल आप फ़ोन रखो और आराम करो।

सुशीला-अगले 30 मिनट मे मुझे तुम घर पर चाहिए हो और अपना फ़ोन चालू करो...तुम बस अभी घर आओ...फिर मै बात करती हूँ तुमसे….और सुशीला फ़ोन रख देती है….इधर फ़ोन कटते ही मनीष और रिया अपनी हंसी रोक ही नहीं पाते और ठहाके मार कर हंसने लगते हैँ….

"मेरा फ़ोन कहाँ है रिया" राहुल बड़े प्यार से पूछता है….लेकिन रिया बस उसे देख कर हंसती जाती है और राहुल को "मम्मी का बेटा कहकर चिढ़ाने लगती है और रिया के साथ साथ मनीष भी उसे यही kehkr चिढ़ाने लगता है।

राहुल दो-तीन बार उस से पूछता है और फिर वो रिया पर चिल्ला ही पड़ता है…"मेरा फ़ोन कहाँ है #स्वाति "......