dosto se parivar tak - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

दोस्ती से परिवार तक - 10

"ला मनीष कहाँ है वो लेटर दियो ज़रा, मै भी तो देखूँ इसकी स्वाति दीदी ने क्या लिखा है। "

"हाहाहाहाहा...हाहाहा...ये मस्त था रिया हैशटैग स्वाति दीदी"

"अबे सालों भाभी है तुम्हारी।"

रिया मनीष से लेटर लेते हुए…"हम्म्म...क्या बोला बे? "

"कुछ नहीं...भाभी थी...भाभी थी तुम्हारी….तू लेटर पढ़ ना रे"

रिया लेटर खोलती है…."छी यार...इसमे से स्मेल आ रही है।"

"अच्छा तो फिर मत पढ़ फ़ेंक दे।"

"नहीं नहीं ऐसे कैसे फ़ेंक दूँ…..तेरी दीदी का लेटर है। "

"हाँ अब तो पढ़ना बनता है...ज़रा ज़ोर से पढ़ियो रिया….दीदी का लेटर हाहाहाहा...हाहा"

"ओये तू ड्राइविंग पर ध्यान दे सुबह होने वाली है मम्मी गेट पर ही खड़ी होंगी बन्दूक लिए…..और हाँ मेरा फ़ोन कहाँ है...वो चार्ज हुआ की नहीं? "

"अच्छा अच्छा सुनो अब स्वाति की प्रेम गाथा…...राहुल, आई लव यू!"

"वोऊ दीदी अभी भाभी ही है"

"अबे चुप रह ना यार मनीष…..राहुल, आई लव यू! देखो मै तुमसे बस एक लास्ट बार मिलना चाहती थी लेकिन अगर तुम नहीं चाहते तो ठीक है। देखो मै समझती हूँ, तुम्हें लग रहा होगा की मैंने तुम्हारी तुम्हारे दोस्तों से लड़ाई करवाई लेकिन उसकी एक वजह थी जो तुमने पूछना भी ज़रूरी नहीं समझा…."

"अच्छा अब एक्सप्लेनेशन दे रही है ये जो इसने रायता फैलाया था उसका….कितनी बड़ी वाली है यार ये, इसमे ज़रा सी भी सेल्फ रेस्पेक्ट नहीं है।"

"अरे मनीष तू पहले मुझे पूरा पढ़ तो लेने दे की ये चुड़ैल आखिर कहना क्या चाहती है...अब बीच मे मत बोलियो बिलकुल भी…..हाँ तो...ज़रूरी नहीं समझा...लेकिन मै बताना ज़रूरी समझती हूँ इसलिए तुमसे बस एक आखिरी बार मिलना चाहती थी। खैर छोड़ो, देखो मुझे लगता था...जैसा की तुमने बताया था…"खून लगा है यार!"

"क्या? कहाँ खून लगा है बे...क्या बताया तूने उसे? "

"अबे इस लेटर पर खून लगा है, मनीष!"

"अच्छा अब आगे सुन...तुम….लाइक करते हो लेकिन…..रहे हो की कहीं…...दोस्ती ना टूट जाए….लेकिन मै नहीं चाहती थी की तुम, ….और मनीष के साथ ज़्यादा टाइम स्पेंड करो...मै तुम्हें अब भी लाइक करती हूँ एंड आई ऍम रियली सॉरी राहुल...लेकिन रिया तुम्हा…."

और राहुल रिया से लेटर छीन लेता है "बस अब बहुत हो गया, तुम्हें पता चल गया ना मैंने शुरुआत नहीं की थी, उसने खुद कॉल कियाँ था अब बस"

"ये कोई बात नहीं हुयी राहुल!लेटर दे यार, मुझे पूरा पढ़ना है। मनीष ले ना इस से लेटर। "

"हाँ यार राहुल देख ये डील नहीं हुयी थी, गलत बात..वापस दे दे चुप चाप...नहीं तो…"

"ओये डील वील गयी भाड़ मे, तुम्हें जितना जानना चाहिए था तुमने पढ़ लिया...बाकी बातें बाद मे अब घर भी आने वाला है ना तो चुप चाप बैठो दोनो"

बातों बातों मे मनीष ने सारे शीशे चढ़ा दिए।

"साले! कमीन! अभी रुक" और मनीष एक हाथ से स्टेरिंग पकड़ कर दुसरे हाथ से राहुल से वो लेटर छीनने लगा…."मनीष देख बचपना मत कर तू गाड़ी चला आराम से नहीं तो एक्सीडेंट हो जायेगा हमने सीट बेल्ट भी नहीं लगा रखी है"मनीष ने राहुल की एक ना सुनी और उस लेटर के पीछे पड़ गया...."अब तो लेटर मिलने के बाद ही गाड़ी सम्भलेगी"....3राहुल ने लेटर बाहर फ़ेंकने की कोशिश की लेकिन शीशे बंद थे तो उसने फटाफट शीशा खोलने की कोशिश की, राहुल को ऐसा करते देख रिया भी लेटर लेने के लिए पीछे से ही हाथ चलाने लगी"

"मनीष तू गाडी संभाल इसे मै देखती हूँ"
"तू रुक रिया मै लेता हूँ इस से अभी"
"मनीष तू गाडी संभाल आगे चौराहा है…"
"अरे तू रुक अभी…"मनीष दोनों हाथ छोड़ कर लेटर झपटने लगा….और गाडी तेज़ी से चौराहे की तरफ भागती जा रही थी….
"मनीष तू गाड़ी संभाल ना" रिया चिल्लाते हुए बोली …..

"आ! अरे फट जाएगा लेटर यार क्या कर रहे हो?"…".मनीष तू पहले गाड़ी संभाल और स्पीड कम कर मनीष"
अब गाड़ी लहरती हुयी बस चौराहे से कुछ ही दूरी पर थी…

बैलेंस ज़्यादा बिगड़ते देख मनीष ने तुरंत कण्ट्रोल सँभालने की कोशिश की लेकिन ब्रेक नहीं लगी और वो घबरा गया इधर राहुल और रिया दोनों चीखने लगे...मनीष के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया उसे समझ नहीं आया की वो क्या करे ...गाड़ी चौराहे पर जा पहुंची...मनीष ने थोड़ा बैलेंस बनाते हुए गाडी की स्पीड कम की लेकिन वो चौराहे पर पहुँच गया….तभी अचानक राहुल के चेहरे पर साइड से तेज़ रौशनी पड़ी…...उसने देखने की कोशिश की तो बस एक तेज़ रोशनी उसकी तरफ तेज़ी से आयी और ज़ब वो कुछ सोच समझ पाता तब तक…… बेलगाम आते हुए ट्रक ने हॉर्न मारते हुए उनकी गाड़ी को उड़ा दिया….और बीप---------------------------------------------

गाड़ी तीन चार बार पलटते हुए, बड़ी दूर उलटी घिसटती हुयी जाकर गिरी, पूरी सड़क पर राहुल, रिया और मनीष का सामान बिखेरती हुयी। उसके सारे शीशे टूटकर रेत की तरह पूरी तरह सड़क पर बिखर गए….ट्रक की लाइट सीधा उनकी गाड़ी पर पड़ रही थी...जिसका बोनट अलग हो चुका था और इंजन मे से धुआं निकल रहा था….मानो जैसे किसी मूवी का कोई स्टंट सीन हो लेकिन था नहीं, चौराहे पर कोई भी नहीं था वक़्त जैसे थम सा गया हो...आवाज़ आ रही थी तो बस कार के डिपर और उसके हॉर्न की जो शायद किसी चीज़ से दबा हुआ रह गया था….लग नहीं रहा था की तीनों मे से कोई भी ज़िंदा बचा होगा फिर थोड़ी देर बाद एक खून से सना हुआ हाथ गाडी से बाहर आया और उस हाथ को देखकर कोई उस गाड़ी की तरफ़ बढ़ा…………