dosto se parivar tak - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

दोस्ती से परिवार तक - 9

राहुल के कदम वहीं जम गए और पीछे मुड़कर वो अटकते हुए रिया से बोला-ओ.... हाँ.... वो.... है ना एक्सप्लेनेशन.... एक्सप्लेनेशन क्या प्रूफ भी है....


रिया बिना कुछ बोले बस उसे घूरे जाने रही थी और राहुल घबराहट के मारे पसीना-पसीना हुए जाने रहा था….और कुछ ही दूरी पर चुप-चाप खड़े होकर मनीष सब के मज़े लूट रहा था।


राहुल-अच्छा तो सुनो तुम दोनों….


रिया-सुना...कब से उसी का इंतजार कर रहे हैँ….

मनीष, रिया की हाँ मे हाँ मिलाते हुए-हाँ, हाँ सुना ना अब की स्वाति को कॉल करूँ मै….


"मै उस से कल मिलने गया था बस और कुछ नहीं" राहुल एक सांस मे जल्दी से ये बोल गया।


रिया-क्याआ…..साले हरा...ी…..

मनीष भी मजे लेते हुए-सच मे…

राहुल-क्या? सच मे….

मनीष-हरा….ी


रिया-तुझे सब पता होने के बाद भी गया तू उस डायन से मिलने...तू रुक अभी तेरे बाप को बताती हूँ…


मनीष रिया को टोकते हुए-रिया योर लैंग्वेज…


अब चुप तो करो तुम दोनों तब तो आगे बताऊँ की पूरी बात क्या है...सुना है नहीं बस कुत्ते बिल्ली की तरह शुरू हो गए….राहुल दोनों पर चिल्लाते हुए बोलता है…


रिया-क्या बे कुत्ता किसे बोला?... हाँ….. तू कुत्ता, तेरी स्वाति कुत्ता...तेरा खानदान….,... :रिया, रिया….लैंग्वेज यार मनीष फिर रिया को शांत करता है….

मनीष-हाँ बे क्या कह रहा था तू कुत्ता….


राहुल-अरे भाई पहले मेरी बात तो सुन ले….


मनीष-चल तेरे पास आखिरी 5 मिनट हैँ जो बकना है बक…...बस आखिरी पांच मिनट…..


रिया भी गुस्से मे बोली-और अब ये आखिरी 5 मिनट बताएँगे की तू हमारे साथ आज घर जाएगा या नहीं….


राहुल-तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक हैँ, इतना सब होने के बाद भी तुम मुझसे ये क्या कह रहे हो?


रिया-तेरे 20 सेकंड खत्म….


राहुल-अच्छा तो ठीक हैँ सुन…..कल सुबह मेरे पास स्वाति का कॉल आया था….बहुत रो रही थी….बार बार सॉरी बोल रही थी….उसने खुद ये बोला की उसे उसकी गलती का एहसास है। उसने हमारे बीच लड़ाई करवाई क्योंकि उसे लगता था मेरा तेरा साथ कोई सीन चल रहा है….और वो बोल रही थी क्या हम दोबारा पहले जैसे हो सकते हैँ?


रिया और मनीष एक साथ-फिर तूने क्या बोला?


राहुल-मैंने कुछ नहीं बोला….मै तो बस सुन रहा था...फिर वो मुझसे दोपहर मे मिलने के लिए कहने लगी...लेकिन मैंने मना कर दिया...उसने ज़िद पकड़ ली….लेकिन मैंने भी हाँ नहीं की थी...पर फिर वो कहने लगी की नहीं मिलना तो कोई बात नहीं….मै अपनी फ्रेंड के हाथों से एक लेटर भिजवा रही हूँ उसे पढ़ कर तुम्हें जो ठीक लगे वो करना…..बस यही बात हुयी थी मेरी और कुछ नहीं…और मेरे दिमाग़ मे भी कल से बस यही सब घूम रहा था और हमारे यहाँ आने से पहले भी उसका कॉल आया था मेरे पास बस इसलिए उसका नाम निकल आया मेरे मुँह से अचानक और कोई भी बात नहीं हैँ….तुम दोनों की कसम।


राहुल की बात सुनकर दोनों ने कोई रिएक्शन ही नहीं दिया बस मुंडी घुमा कर एक दुसरे को देखने लगा और अचानक से हंस पड़े…..


वाह! वाह! वाह! क्या स्टोरी थी यार तेरी राहुल मज़ा आ गया….क्यों मनीष क्या कहता है?.....


हाँ यार सच मे...और सुन बे चू….मनीष लैंग्वेज!.....सुन सब तू निकल ले यहाँ से….


राहुल-मेरा यकीन तो करो यार…..अच्छा रुको तुम्हें वो लेटर दिखाता हूँ तब तुम मानोगे की मै सच बोल रहा हूँ……


राहुल अपनी शर्ट और पेंट की जेब टटोलने लगता है….अरे कहाँ गया???....


मनीष-क्या हुआ...शायद घर पर है लेटर हैँ ना, यही बोलेगा ना अब तू…..


राहुल-नहीं यार वो मेरे पर्स मे रखा था….मेरा पर्स कहाँ गया….


मनीष अपनी जेब से राहुल का वो खून से सना पर्स आगे करते हुय्र बोलता है...ले यही ढूंढ रहा था ना….


राहुल पर्स देखकर थोड़ा सोच मे पड़ जाता है….ये किसका….है…..ओ मै तो भूल ही गया था वो आदमी लेकर भागा था….पर इसकी हालत क्या कर दी….मनीष ऐसा कर तेरे हाथ तो गंदे हैँ ही ऐसा कर तू खुद निकाल ले ना लैटर….


राहुल लेटर निकालने ही लगता है की तभी उसका फ़ोन बज उठता है….वो फ़ोन देखता है...अबे तेरी माँ का….


रिया-मनीष लैंग्……


मनीष-फ़ोन रिया…..इसकी माँ का कॉल है….चलो अब बहुत घूम लिए...इस हुतिये की ट्रीट भी मिल गयी...अब निकलते है...गाडी मे देख लूँगा लेटर….


रिया-हाँ चल नहीं तो इसके साथ हमारी भी वाट लगेगी….लेकिन राहुल!अगर लेटर नहीं निकला ना तो तेरी माँ कसम वहीँ नीचे फ़ेंक दूँगी तुझे गाडी से…


राहुल-हाँ! हाँ! चल तो तू पहले….पता चले हमारे माँ-बाप ही यहाँ आ जाएं….चलो अब जल्दी…..


और तीनो जाकर गाडी मे बैठ जाते हैँ और वापस घर की तरफ़ जाने लगते हैँ….