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मेरी बेटी जिंदा है...


'मेरी बेटी मुझे नहीं, औरों को तो अपनी आंखों से देख रही है। वह जिंदा है। उसने मृत्यु का वरण किया दूसरे का भला कर..।' वंदना ने पति सुकेश से धीरे से कहा। ' हां तुमने सच कहा। तुम्हारा यह फैसला बिल्कुल सही था'। सुकेश ने वंदना की बात का प्रतिउत्तर दिया। 'आपलोग फिर से उन्हीं बातों को लेकर बैठ गए ? जो चीज आपलोगों की किस्मत में नहीं थी, उसके बारे में विषाद करने से क्या फायदा!' वंदना की दोस्त विनी ने उनके घर में कदम रखते ही कहा।
सुुकेश एक सरकारी बैंक में कार्यरत थे, तो पत्नी वंदना एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स। अभी छह महीने पहले ही दोनों को पहला बच्चा हुआ था। वह फूल- सी सुंदर एक बेटी थी। पति-पत्नी ने बहुत प्यार से बच्ची का नाम रूही रखा था। शुरुआत में तो सब ठीक-ठाक रहा, लेकिन 2 महीने बीतते ही रूही के शरीर में कुछ ऐसे कॉम्प्लिकेशन उभरे कि वह दिन-रात सिर्फ रोती रहती। अस्प्ताल में दिखाने पर डॉक्टर कभी बताते कि उसे पेट में कुछ दिक्कत है, तो कभी बताते कि उसकी सांस की नली में कुछ समस्या है। जब शहर के बड़े अस्पताल में रूही का इलाज कराया गया, तो डॉक्टर ने रोग का बड़ा सा नाम बताया। इस रोग के बारे में डॉक्टर्स की एक टीम ने जानकारी दी कि यह बीमारी 50 हजार बच्चों में से किसी एक बच्चे को होती है। ऐसे बच्चों की जान बचाना मुमकिन नहीं हो पाता है। इसका इलाज भारत भर में संभव नहीं है। जितने दिन तक ईश्वर चाहेंगे, उतने दिन तक बच्ची जीवित रहेगी।
बस उसी दिन से सुकेश और वंदना सिर्फ ईश्वर से प्रार्थना करते और किसी चमत्कार की आस करते रहते। वंदना ने तो काम पर जाना भी छोड़ दिया। बस दिन भर रूही की सेवा में व्यस्त रहती और शाम में बैंक से वापस आने पर सुकेश से रूही की दिन भर के क्रियाकलापों के बारे में चर्चा करती। सुकेश की तरह रूही की आंखें भी बड़ी और काली थीं। सोकर उठने के बाद जब वह अपनी बड़ी-बड़ी पलकों के साथ आंखें खोलती और मुस्कुराती, तो वंदना निहाल हो जाती। शायद हम सभी में से ज्यादातर ने बचपन में यह सुना होगा कि छह माह तक का बच्चा जब नींद में या नींद खुलने के बाद मुस्कुराता है, तो इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि वह अपने पिछले जन्म की घटना को याद कर हंस रहा है। नींद में बच्चे के रोने का भी पिछले जन्म की दुखभरी यादों से जोड़कर हम देखते हैं। एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता कि वंदना सुकेश से रूही के नींद में हंसने या रोने की बात नहीं बताती। साथ में उसे वह यह भी बताना नहीं भूलती कि रूही की आंखें बिल्कुल तुम्हारी तरह हैं। तुम्हारी तरह ही यह मुझे बड़े प्यार से देखती है। जब भी रूही पेट दर्द या किसी और दर्द की वजह से रोने लगती, तो वंदना यंत्रवत उसे गोद में उठाकर बच्चों के अस्पताल ले जाती और वहां दर्दनिवारक सुई दिलवाकर घर वापस आ जाती। यह क्रम रूही के छह माह की उम्र होने तक चला, लेकिन कुछ दिन पहले अचानक उसकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई और अस्पताल पहुंचते ही उसने दम तोड़ दिया। डॉक्टर ने सुकेश और रूही को यह सूचना धीरे-से कहकर दी, ' आपकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है।' इतना सुनते ही वंदना ने कहा, 'ऐसा न कहें, मेरी बेटी जिंदा रहेगी। वह इतनी जल्दी इस दुनिया को नहीं छोड़ सकती। भले ही वह मेरे पास न रहे, लेकिन किसी और रूप में वह इस जगत को देख सकती है।' इतना कहते ही वंदना सुकेश के गले लगकर रोने लगी। रोते हुए ही उसने कहा, ' सुकेश देर मत करो। हमने जो प्रण लिया था उसे पूरा करने का समय आ गया है। रूही की आंखें डोनेट करने की प्रक्रिया पूरी करो।' सुकेश कुछ क्षण मौन रहे। उन्हें वे सारी बातें याद आ रही थीं जब फोन पर वंदना अपना निर्णय सुकेश की मां को सुना रही थी। आंखें दान करने की बात पर उसकी मां ने कहा था, ' वंदना ऐसा हरगिज मत करना। इस जन्म में तो बच्ची ने बहुत छोटी उम्र पाई, लेकिन अगले जन्म में भी वह अंधी पैदा होगी। फिर वह तुम्हें बद्दुआएं देगी।हमारे पुरखे कह गए हैं कि मरने के बाद कभी कोई अंग नहीं निकालना चाहिए। अगले जन्म में उस व्यक्ति को उस अंग की कमी रह जाती है।' वंदना मां की बात से थोड़ा भी प्रभावित नहीं हुई और उन्हें अपनी बात समझाने के प्रयास में जुटी रही। मां कितना समझ पाई, यह तो सुकेश नहीं जान पाए, लेकिन जो भी वंदना के निर्णय से अवगत होता, एक बार उसे ऐसा करने से जरूर मना करता, पर वंदना अपनी बात पर अडिग रही। उसने सुकेश की मनःस्थिति को भी टटोला और अन्तोगत्वा उसे मना लिया। सुकेश पिछली बातों के जाले से बाहर निकले और थोड़ा दूर हटकर आई डोनेशन सेंटर को कॉल करने लगे। कुछ ही घण्टों में यह प्रक्रिया पूरी हो गई और रूही की कॉर्निया को सुरक्षित कर लिया गया। आज सुबह दस बजे ही सुकेश को यह समाचार मिला कि रूही का कॉर्निया एक दस साल के बच्चे को लगा दिया गया है। उस बच्चे की आंखें पिछले साल पटाखे जलाते वक्त बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थीं। इसी बारे में सुकेश और वंदना बातें कर रहे थे कि वंदना के साथ अस्पताल में काम करने वाली विनी उनके घर आ गई थी। वह समझा-बुझा कर वंदना को दोबारा अस्पताल जॉइन करने के लिए राजी कराने आई थी। उस समय सुकेश से वंदना कह रही थी, 'मेरी बेटी जिंदा है...'
स्मिता