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बरसात का गीत

गायक झींगुर को लंबी बरसात ने दुखी कर डाला था. कई महीनों से लगातार गाई जा रही एक ही गाने की धुन-‘जम के बरसों बरखा रानी...’ अब भला किस को अच्छी लगती? बरसात से पहले जो पशुपक्षी इस गीत की फरमाइश ले कर आए थे, वे भी अब उसे चुप होने को कह रहे थे.

सो झींगुर ने कहीं और जाने की ठान ली. सुस्त, सफेद घोंघे को जब यह बात पता चली तो उस ने भी साथ चलने की इच्छा प्रकट की. दरअसल पिछले तीन महीनों में चमेली के सभी पत्तों को चाट-चाट कर सफेद घोंघे ने उन्हें स्वादहीन बना डाला था.

अत: एक सुहानी सुबह झींगुर अपना नन्हा रेशम के तार का गिटार ले कर सफेद घोंघे के साथ निकल पड़ा. घोंघे ने चलने से पहले शर्त रखी थी कि यात्रा में वे कतई भी जल्दबाजी नहीं करेंगे. फिर भी घोंघे ने काफी फुर्ती दिखलाई और वे एक घंटे में एक इंच की रफ्तार से चलने लगे.

पूरे 17 दिन बाद वे थके मांदे एक छोटे से खेत में पहुंचे, जहां एक बेल पर तीन छोटे-छोटे कद्‍दू लटके थे. कद्‍दुओं को देखते ही घोंघा बोला, ‘‘ झींगुर, तुम संगीत से कद्‍दुओं का मन बहलाओ, तब तक मैं जरा छ: दिन की छोटी सी झपकी ले लूं.’’

अब झींगुर अपना गिटार लेकर एक कद्‍दू के आगे बैठ गया और एक नया गीत गाने लगा- ‘‘ बढ़े चलो, बढ़े चलो, तेजी से बढ़े चलो.’’

पहले दिन तो झींगुर ने यह गीत काफी धीमी आवाज में गाया, किंतु छठे दिन इतने जोर से अलाप लिया कि सुस्त सफेद घोंघे की भी नींद टूट गई. आंखें खोलते ही वह फूले कद्‍दुओं को देख कर चौंक गया. इस में कोई शक नहीं था कि झींगुर दो एक दिन और इसी तरह अपना गीत जारी रखता तो ये कद्‍दू फूलते-फूलते ‘धड़ाक’ से फूट जाते. सो घोंघे ने झींगुर से आगे चलने का कहा.

कई दिन और चल कर वे एक अच्छी जगह जा पहुंचे. वहां चारों ओर पेड़ पौधे थे और काफी ठंडक थी. यहां आ कर घोंघे को तो फौरन नींद आ गई, लेकिन गायक झींगुर गाना सुनने वालों को ढूंढने लगा. उस ने अपने आसपास चारों ओर देखा. नीचे से ऊपर. ऊपर देखते ही उस की नजर मधुमक्खियों के छत्ते पर जा पड़ी. बस फिर क्या था, उस ने गिटार संभाला और गाना शुरू कर दिया- ‘‘ काम करो अब झटपट-झटपट, धरती पर आने को है तूफान.’’

मधुमक्खियों ने यह सुना तो उन में खलबली मच गई. यह बात रानी मक्खी तक भी जा पहुंची. उस ने अपना दूत भेजकर गायक झींगुर को बुलवाया. झींगुर के साथ सुस्त घोंघा भी मधुमक्खियों की रानी के पास गया.

वहां पहले तो शहद और फूलों के पराग से दोनों की खातिर हुई. बातचीत से मधुमक्खियों को यह मालूम हुआ कि धरती पर तूफान आने की बात सच नहीं है, वह तो एक गाना ही है तो वे उस पर बुरी तरह बिगड़ी और दोनों को अपमानित कर छत्ते से बाहर निकाल दिया. खैर, वहां से निकल कर गायक झींगुर को एक बात समझ में आ गई कि हर गाने का वक्त होता है. और बेवक्त गए गीत की कोई कीमत नहीं होती.

मौसम तेजी से बदल रहा था. सर्दी अब नाममात्र को ही रह गई थी. इस बार उन की यात्रा में एक लंगड़ा टिड्‍डा भी उन के साथ हो लिया. लंगड़ा टिड्‍डा बहुत बढ़िया नाचता था. रास्ते में रूक कर जब कभी झींगुर कोई तान छेड़ता और लंगड़ा टिड्‍डा नाचता तो आसपास के जीव इकट्‍ठे हो जाते थे.

ऐसे में एक दिन उन्हें दीमकों के महल से बुलावा मिला. दरअसल रानी दीमक के छोटे बेटे का उस दिन जन्मदिन था. रानी दीमक के महल की शानशौकत देख कर उन की आंखें चुंधिया गई. सभी ने अपनी तालियां और दूसरों की पीठ बजा कर उन का स्वागत किया. खाने का एक से एक लाजवाब सामान था. एक साफसुथरे बिस्तर को देख कर सफेद घोंघे को इतनी जोर से नींद आई कि वह अपनी जगह पर खड़ा खड़ा ही खर्राटे भरने लगा.

झींगुर भाई ने सब से पहले एक गाना गाया-‘‘ जन्म दिन अच्छा दिन है. खुशी का दिन, यही एक दिन है.’’

लंगड़े टिड्‍डे ने इन गाने की ताल पर नाच दिखाया और इस तरह 15 दिनों में झींगुर ने लगभग सतरह दौ नए पुराने गीत गाए. दीमकों का जी नहीं भर रहा था, उन के गीत सुन कर. कई दिन और बीत गए. इस बीच घोंघा दो बार नींद से जाग कर फिर से सो गया था. जब भी वे चलने का नाम लेते, सारे दीमक उन्हें घेर लेते और कहते, ‘‘ कुछ दिन और ठहर जाओ.’’

धीरे-धीरे तीनों की समझ में आ गया कि वास्तव में वे दीमक रानी के महल में दीमकों के मनोरंजन के लिए एक तरह से कैद हो गए हैं.

इस कैद से निकलना अब निहायती जरूरी था. अत: लंगड़े टिड्‍डे, सफेद घोंघे और झींगुर तीनों ने तीन रातों तक सोचविचार किया और अगले दिन दीमकों की सभा में झींगुर ने एक डरा देने वाला गीत गया-

‘‘ मुर्गी का चूजा आएगा, महल तोड़ सब को खाएगा.’’

यह बात सुनते ही दीमकों के चेहरे फक्क पड़ गए.

झींगुर ने आगे गाया:

‘‘ पहले खाएगा छोटों को, फिर मोटों को.’’

रानी दीमक ने यह सुना तो वह गुस्से से कांपने लगी. उस ने अपने सैनिकों को हुक्म दिया कि इन तीनों बदमाशों को तुरंत महल से बाहर कर दिया जाए.

वे तीनों तो चाहते ही यही थे. दीमक महल से बाहर आ कर वे बड़े प्रसन्न हुए. बाहर का मौसम बड़ा सुहावना था. आकाश में चीलें नीचे उतर रही थी. चींटियां अपने अंडों को ले कर दूसरी जगह जा रही थी.

तभी हवा चली, बादल गरजे और वर्षा की बूंदें टपटप धरती पर पड़ने लगी. मोर मारे आनंद के अपने पंख फैला कर नाच उठे. तब झींगुर ने हल्के से अपनी पुरानी तान छेड़ दी-‘बरखा रानी ज़रा जम के बरसो!