Lost in Hindi Love Stories by Shubham Rawat books and stories PDF | खो दिया

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खो दिया

"भाई, ऐसी शराब देना जिसका एक घूट पीते ही नशा जड़ जाये।" पियूष भट्टी के खिड़की के बाहर से खड़ा होकर शराब खरीद रहा है।
"क्याें भाई पहली बार शराब ले रहा है?" दुकानदार ने पूछा।
"हा।" पियूष ने थकी हुई आवाज में जवाब दिया।
"छह सौ पचास रुपये।" दुकानदार ने शराब की बोतल को अखबार में लपेटकर पियूष के हाथ में देते हुए कहा।
पियूष शराब को अपने बैग में रखता है और दुकानदार को रुपये थमाता है फिर सीधा अपने घर को चला जाता है।
"क्या सोचा फिर तूने शादी के बारे में।" पियूष के पापा ने उससे पूछा।
"मैंने एक बार कह दिया ना कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है।" पियूष ने चिड़चिडे़ पन से कहा।
"क्याें।" पियूष के पापा ने ऊची आवाज से कहा।
"अभी मैं सिर्फ बाईस साल का हूं और सेविंग के नाम पे दस हजार रुपए भी नहीं है मेरे बैंक में।"
"बाईस का है तो क्या? सरकारी नौकरी है और क्या चाहिए तुझे। लड़की के पिता मेरे अच्छे दोस्त है। और लड़की बारवी पास है। घर के काम भी करेगी और तेरी मां की मदद भी किया करेगी खेतो के काम में।" पियूष के पापा ने समझाते हुए कहा।
"हा, तो, आप को खेतो में काम में काम करनी वाली चाहिए ये कहो ना। मम्मी ने पूरी ज़िन्दगी खेतो में काम करते हुऐ बरबाद कर दी और एक लड़की की जिंदगी और खराब करनी है।" पियूष ने गुस्से में कहा।
तिवारी जी ने पियूष को मारने के लिए हाथ उठा ही दिया था पर फिर वो रुक जाते है: 'उनके मन में ख्याल आता है इतने बड़े लड़के पे हाथ उठा कर इसे बिगाड़ ना होगा।'
रात का खाना खा कर पियूष अपने कमरे में चला जाता है। अपने बैग से बोतल निकाल कर: दो ग्लास शराब पीता है और फिर सीधा रजाई औड़ कर सो जाता है।
बहुत समझाने-बूझाने के बाद पियूष शादी करने के लिए तैयार हो जाता है।
चार महीने बाद पियूष और निशा की अच्छे से शादी निपट जाती है।
दोनों के बीच पति-पत्नी से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता बन जाता है। पर ये दोस्ती के रिश्ते को ना जाने किस की नजर लग जाती है। शादी को एक साल भी नहीं हुआ था कि निशा को कैंसर की बिमारी है मालूम पड़ता है। कैंसर अाखरी स्टेज का।
डॉक्टरो ने निशा का नाइलाज बता दिया था। डॉक्टरो ने पियूष को सलाह दी: 'अगर तुम अपनी बीवी को लंदन के अस्पताल में ले जाओ तो सायद कुछ हो सके।'
"मुझे जमीन के कागज चाहिए।" पियूष ने अपने पापा से कहा।
"क्याें चाहिए?" तिवारी जी ने पूछा।
"निशा के इलाज के लिए लगभग एक करोड़ रुपये चाहिए इसलिए बैंक से लोन लेने के लिए कुछ तो सिक्योरिटी चाहिए।"
"और लोन कैसे चुकाऐगा?" तिवारी जी ने पूछा।
"वो बात कि बात है।" पियूष ने जवाब में कहा।
"मैं नहीं दे सकता। वैसे भी कैंसर का कोई ईलाज नहीं है।" तिवारी जी ने पूरे मामले को निपटाते हुए कहा।
पियूष ने आगे फिर अपने पिता से ना कोई मदद मांगी और नाही कोई बात करी।
उसने एक निजी बैंक से लोन लिया और एक महीने के अंदर वह लंदन के लिए रवाना हो गया।
किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। उसने अपनी निशा को खो दिया।