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झूठी शान

सन 1998, जहां भारत एक परमाणु देश बन चुका था। वहीं दूसरी तरफ निहारिका, 16 साल की लड़की, जिसकी शादी तय कर दी गई थी। निहारिका ने अभी-अभी आठवीं की परीक्षा पास करी थी और वह आगे की पढ़ाई करना चाहती थी। निहारिका के खुद के अपने सपने थे। वह एक सिंगर बनना चाहती थी। निहारिका ने अपने भविष्य की पूरी तैयारी करके रखी हुई थी। उसने यह सोचा था कि वह 12वीं पास करने के बाद मुंबई को चले जाएगी। जहां वह कोई भी छोटा-मोटा काम करके अपना खर्चा निकाल लेगी और साथ ही साथ गायिका बनने के लिए ऑडिशंस भी देगी।

पिता का साथ उसे कभी भी नहीं मिला जब कि उसकी मम्मी उसका हमेशा साथ दिया करती थी। निहारिका की मम्मी उसके पापा को कहती, "आजकल शहरों की लड़कियां कितनी तरक्की कर रही है, कितना नाम कमा रही है, और आप कौन से जमाने में रह रहे हो।" यह सब सुन निहारिका के पापा अपना आपा खो बैठते है और निहारिका की मम्मी को जोर से थप्पड़ मार देते है। "गांव में लड़कियों की जिंदगी बस यही है, 16 की उम्र में आते-आते उनकी शादी कर दी जाए और ससुराल में वह अपने खेतों में काम करें, अपने पति का ध्यान रखें बस यही है लड़कियों की जिंदगी गांव में!" निहारिका के पापा गुस्से में बोलते हैं।

रोहित, 18 साल का लड़का जिसकी शादी निहारिका से तय हुई है। उसने भी दसवीं के आगे पढ़ाई नहीं करी है, वह भी आगे की पढ़ाई करना चाहता था पर उसके पापा ने उसकी पढ़ाई छुड़वा दी और खेतों में काम करवाना शुरू करा दिया। अब वह एक किसान है और साथ ही साथ मजदूरी भी किया करता है।

2 महीने बाद निहारिका और रोहित की शादी करा दी गई. सुहागरात की रात दोनों ने बातें करी। एक-दूसरे से कहा, 'हमारी शादी जिन भी परिस्थितियों में हुई है, पर अब हमें इस रिश्ते को निभाना होगा, और हम एक-दूसरे के बातों को बराबर नजरिए से देखेंगे।' "वैसे तुम सिंगर बनना चाहती थी, कोई गाना गाकर सुनाओ ना!" निहारिका शर्मा जाती है, फिर धीमी आवाज में गुनगुनाने लगती है।

रोहित के पिताजी शादी को लेकर थोड़ा नाराज थे, क्योंकि उनको मन मुताबिक दहेज नहीं मिला था। आज निहारिका की पहली रसोई थी, घर में खाना सबको पसंद आया, और बाबू जी ने निहारिका के खाने की तारीफ भी करी। अब बाकी की जिंदगी रोहित और निहारिका ने खेतों में ही गुजारनी थी।

रात को निहारिका, रोहित से पूछती है, "वैसे आपने नहीं बताया कि आप अपनी जिंदगी में क्या करना चाहते थे?" तब रोहित कहता है, "कि वह जिंदगी में..... वह एक लेखक बनना चाहता है, उसने कुछ कहानियां भी लिखी है।" फिर निहारिका कहती है, "कुछ सुनाओ ना अपना लिखा हुआ!" "एक गांव की कहानी है, हमारी ही तरह एक छोटा सा गांव........., तो कैसी लगी तुम्हें मेरी कहानी?" "बहुत अच्छी!" निहारिका ने बोला।

निहारिका सुबह की चाय रोहित के लिए कमरे में ही ले गई। रोहित चाय पीते-पीते बोला, "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
"हां बोलो ना।" निहारिका ने कंबल को तय करते हुए बोला।
"मेरा एक दोस्त है, जिसका नाम दीपक है, वह कुमाऊनी गाने गाता है, अगर तुम कहो तो तुम्हारे लिए बात करूं उससे।"
"हां-हां, क्यों नहीं!"

"आज 'मकर सक्रांति' मेले का आखरी दिन है, तुम मेला चलोगी?" रोहित ने निहारिका से पूछा।
"बाबू जी से पूछना पड़ेगा?"
"नहीं-नहीं पूछने की कोई जरूरत नहीं है, मां ने कहा है, 'तुम मेला घूम आओ'।"
"ठीक है, मैं तैयार हो जाती हूं!" निहारिका ने कहा।

'जो कोई भी प्रतिभाग करना चाहता है वह मंच में आ जाइए।' मंच में खड़ा व्यक्ति माइक में बोल रहा था। निहारिका मंच में चले जाती है, और एक बहुत ही अच्छा गीत गाती है। गीत पूरा होने के बाद हर कोई जोर-जोर से तालियां बजाता है। निहारिका बेहद खुश नजर आती है। मेले में अतिथि के तौर पर आए मंत्री जी, निहारिका को ₹21 पुरस्कार में देते हैं।

शाम को घर लौटने पर बाबूजी, निहारिका को जोर से थप्पड़ खींच देते है, कहते है, " हमारी घर की इज्जत को यू सरेआम मेले में उड़ा के आ रही है तु!" निहारिका रोने लगती है.
रोहित जोर से बापूजी चिल्लाता है।
"नालायक जबान चलाता है!" बापूजी गुस्से में बोलते है और रोहित को दनादन मारने लगते है। घर के बाकी के सदस्य बापू जी को और मारने से रोक देते हैं।

रात को रोहित और निहारिका घर से भागने का विचार करते है। वह दोनों कुछ जरूरी सामान एक बैग में पैक करते हैं, और कुछ रुपए लेकर घर से भाग जाते हैं। उन दोनों को घर से भागते हुए बाबूजी देख लेते है, और जोर से चिल्लाते हैं, "रुक जाओ घर से भागकर मेरी इज्जत खराब मत करो!"
"हमें जाने दो बाबूजी!" रोहित कहता है।
"अगर तुम घर छोड़कर भाग जाओगे, तो गांव वाले मेरे पर थू-थू करेंगे!"
रोहित और निहारिका कुछ ना कह कर चुपचाप जाने लगते हैं. यह देख बाबू जी अपना आपा खो बैठते हैं. गुस्से में आकर लकड़ियों के पास रखी कुल्हाड़ी उठाते है, और पीछे से रोहित और निहारिका को काट देते हैं।