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रहस्यमयी टापू--भाग(१)

रहस्यमयी टापू.!!--भाग(१)

काला घना अंधेरा, समुद्र का किनारा, लहरों का शोर रात के सन्नाटे में कलेजा चीर कर रख देता है, तभी एक छोटी कस्ती किनारे पर आकर रूकती है, उसमें से एक सख्स फटेहाल, बदहवास सा नीचे उतरता है, समुद्र गीली रेत में उसके पैर धसे जा रहे हैं,उसके पैरों में जूते भी नहीं है, लड़खड़ाते से कदम,उसकी हालत देखकर लगता है कि शायद कई दिनों से उसने कुछ भी नहीं खाया है, उसके कपड़े भी कई जगह से बहुत ही जर्जर हालत में हैं।।
उसे दूर से ही एक रोशनी दिखाई देती है और आशा भी बंध जाती है कि यहां कोई ना कोई तो मिलेगा ही।।
वो धीरे धीरे उस रोशनी वाली दिशा की ओर बढ़ने लगता है,आकाश में तारे भी इक्का-दुक्का ही नजर आ रहे हैं और चांद भी बादलों में कभी छुपता है तो कभी निकलता है,वो सख्स बस उस रोशनी की ओर बढ़ा चला जा रहा है।।
कुछ टीलों को पार करके वो आगे बढ़ा,बस अपनी धुन में बेखबर उसे तो बस उस रोशनी तक पहुंचना है,इधर जंगल की ओर झींगुरों की झाय-झाय और उधर समुद्र में उठ रही लहरों का शोर, बहुत ही भयावह दृश्य हैं, तभी उसने देखा उस रोशनी की ओर अंदर जंगल की तरफ एक पतली सी पगडंडी जा रही है जो अगल-बगल घनी झाड़ियों से ढकी हुई है,उस सख्स का ध्यान सिर्फ उस रोशनी की ओर है तभी उसे महसूस हुआ कि उसके पैर ने शायद किसी को कुचल दिया, उसने नीचे की ओर देखा तो एक कीड़े को उसने कुचल दिया था, जिसमें से कुछ सफ़ेद, गाढ़ा और लिबलिबा सा पदार्थ निकल रहा था, उसने अपने पैर को देखा तो उसके पैर में वो लिबलिबा पदार्थ लग गया था जिससे उसका मन घिना गया, उसने अपने पैर को सूखी रेत में रगड़ा जिससे वो पदार्थ पैर से छूट गया,अब उसका ध्यान फिर रोशनी की ओर गया और वो फिर से उस ओर बढ़ने लगा।।
वो उस रोशनी तक बस पहुंचने ही वाला था,वो चलता ही चला जा रहा था,बस रोशनी अब उससे ज्यादा दूर नहीं थी,उसे अब एक घर दिखाई दे रहा था और वो रोशनी,उस घर के आगे लगे लैंपपोस्ट में जल रही मोटी सी मोमबत्ती की थी,अब उसके दिल को कुछ राहत थी कि चलो ठहरने के लिए एक छत तो मिली, इतना सोचते सोचते वो घर तक जा पहुंचा।।
इसने डरते डरते दरवाजे को खटखटाया,साथ में पूछा भी कि कोई हैं?
तभी किसी ने दरवाज़ा खोला__
वह देखते ही चौंक पड़ा,एक बूढ़ी, बदसूरत सी बुढ़िया दरवाजे पर खड़ी थीं___
घबराओ नहीं,कौन हो तुम? बुढ़िया ने पूछा।।
मैं एक व्यापारी हूं, मेरा नाम मानिक चंद है ,जहाज से सफर कर रहा था,कम से कम एक साल से बाहर हूं, व्यापार के सिलसिले में, पन्द्रह सालों से मेरा जीवन जहाज पर ही व्यतीत हो रहा है,एक दिन समुद्र में बहुत बड़ा तूफ़ान आया,पूरा जहाज डूब गया लेकिन पता नहीं मुझे कहां से एक छोटी कस्ती मिल गई और मैं उस पर सवार हो गया,दो तीन से ऐसे ही समुद्र की लहरों के साथ थपेड़े खा रहा हूं,दो तीन दिन का भूखा प्यासा हूं,आज इस किनारे पर कस्ती खुद-ब-खुद रूक गई,तब आपके घर के सामने लगे लैंप पोस्ट की रोशनी दिखाई दी और मैं उसी के सहारे यहां तक चला आया,मानिक चंद बोला।।
मैं चित्रलेखा इस घर की मालकिन, वर्षों से यहां अकेले रह रही हूं,हर रोज किसी का इंतज़ार करती हूं लेकिन वो आता ही नहीं,आज तुमने दरवाजे पर दस्तक दी तो लगा वो आया है,चलो अंदर आओ मैं तुम्हें कुछ खाने को देती हूं।।
चित्रलेखा ने कुछ भुना मांस और पीने का पानी मानिक चंद को दिया।‌
मानिक बोला, लेकिन मैं मांसाहारी नहीं हूं!!
लेकिन यहां तो यही मिल सकता,जंगल में जो मिलता है, खाना पड़ता है,घर के पीछे एक कुआं है लेकिन उसका पानी पीने लायक नहीं है, पीने का पानी भी मैं एक झरने से लाती हूं।।
मानिक बोला, कोई बात नहीं!!
और दो तीन से भूखा रहने के कारण उसने वो भुना हुआ मांस खा लिया और पानी पीकर चित्रलेखा का धन्यवाद किया।।
चित्रलेखा ने मानिक को एक बिस्तर दिया और बोली__
तुम यहीं सो जाओ और कोई भी आवाज हो,ध्यान मत देना, मैं तुम्हें विस्तार से तो नहीं बता सकतीं लेकिन कुछ भी हो खिड़की से मत झांकना, फिर मत कहना कि मैं ने आगाह नहीं किया।‌
मानिक बोला, ऐसा भी क्या होता है रात को यहां?
चित्रलेखा बोली, मैंने जो कहा,उस पर ध्यान दो ज्यादा बहस मत करो।।
मानिक बोला,ठीक है जो आप कहें।।
और मानिक बिस्तर बिछाकर आराम से हो गया।।
करीब आधी रात को कुछ आवाजें सुनकर उसकी नींद खुली, कोई मीठी धुन में मस्त होकर गाना गा रहा था फिर उसे चित्रलेखा की बात याद आई लेकिन अब उससे रहा नहीं गया और उसने पीछे वाली खिड़की खोलकर देखने की कोशिश की।।
क्या देखता हैं कि एक खूबसूरत सा लड़का,चार सफेद घोड़ों के रथ पर सवार हवा में आसमान से उतर कर गाना गाते हुए चला आ रहा,नीला आसमान तारों से जगमगा रहा और चांद की खूबसूरती भी देखने लायक है।
लड़के की पोशाक देखकर लग रहा है कि जेसे वो कोई राजकुमार हो और घर के पीछे के कुएं से एक खूबसूरत सी लड़की गाना गाते हुए निकली, देखकर ये लग रहा था कि दोनों प्रेमी और प्रेमिका हैं लेकिन जैसे ही उनलोगों ने मानिक को देखा तो देखते ही देखते राख में परिवर्तित होकर उड़ गए और उसी राख का एक झोंका जोर से मानिक के चेहरे पर लगा जिससे मानिक दर्द से चींख उठा।
मानिक की आवाज सुनकर चित्रलेखा भागकर हाथों में लैंप लेकर आई और पूछा___
कि क्या हुआ?
मानिक फर्श पर मुंह के बल पड़ा था, चित्रलेखा ने मानिक को सीधा किया और बोली।।
मना किया था ना कि किसी भी आवाज पर ध्यान मत देना,अब भुगतो,उस राख ने तुम्हारा सारा चेहरा झुलसा दिया,मना करने के बाद भी तुम नहीं माने।
अब चलो मेरे साथ,तुम्हारा इलाज करती हूं___
और चित्रलेखा ने रसोईघर से कुछ लेप लाकर मानिक के चेहरे पर लगा दिया जिससे मानिक को कुछ राहत हुई__

क्रमशः__
सरोज वर्मा__🌹