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एक दुनिया अजनबी - 35

एक दुनिया अजनबी

35-

मनुष्य को अकेलापन खा जाता है, वह भुक्त-भोगी था | भविष्य का तो कुछ पता नहीं लेकिन अभी वह जिस घुटन से भरा हुआ था, उसकी कचोट उसे चींटियों सी खाए जा रही थी जो नन्ही सी जान होती है पर हाथी की सूँड में भी घुस जाए तो आफ़त कर देती है |

उसका क्रिस्टल क्लीयर जीवन नहीं था | वैसे किसका होता है क्रिस्टल क्लीयर जीवन ?

"तुम लोग नहीं जानते, मेरे घर मृदुला जी आया करती थीं, उन्हें मम्मी-पापा से न जाने क्यों, कितनी और कैसी मुहब्बत थी ? मैं उस समय कितना चिढ़ता था उनसे ! मुझे लगता, न जाने मेरे माता-पिता को उनमें ऐसा क्या दिखाई देता है ? कैसी दोस्ती थी उन लोगों की जिससे मैं और मेरी पत्नी बहुत चिढ़ते थे | फिर देखो न, मैं अपने स्वार्थ के लिए उनको ही ढूँढने निकला जहाँ बहुत कुछ नया मिला |"

" इस कम्युनिटी को कौन सही समझता है ? सब इसे अजीब सी निगाहों से ही देखते है जैसे जान-बूझकर ये ऐसे पैदा हुए हैं --कोई उनके दिल से पूछे तो सही !" सुनीला उदास सी हो चली थी|

"और मेरी माँ--उन्होंने तो एक मिसाल क़ायम की यहाँ रहकर, तुम्हें तो सब पता ही होगा ? "

"क्या ---? "प्रखर कहाँ कुछ जानता था ? माँ-पापा ने कभी कुछ शेयर ही नहीं किया उसके साथ | वह खुद भी तो कहाँ बैठता था उनके पास ? एक घर में, एक चूल्हा होते हुए भी उस घर में दो दुनिया बसती थीं |

"तुम्हें नहीं पता मेरी माँ की कहानी ? "

"तुम्हारी माँ ? मतलब ? मैं कैसे जानूँगा तुम्हारी माँ को -----? "

वातावरण कुछ भारी सा, गुम सा होने लगा |सुनीला को प्रखर की बातों से लगा, वह झूठ नहीं बोल रहा | सुनीला समझ रही थी कि वह उसकी मखौल उड़ा रहा था लेकिन ऐसा नहीं था|

सुनीला के मन की धरा पर बहुत प्रहार पड़ चुके थे, उसे हर स्थान पर गढ्ढे नज़र आ ही जाते, यह बड़ा स्वाभाविक था |

"मृदुला मेरी माँ थीं प्रखर ----"उसने स्पष्टता की |

"क्या --तुम्हारी माँ ? "प्रखर चौंका |

"पर---वो तो ----" आगे वह बोल नहीं पाया | उसकी ज़बान तालू से चिपक गई |

उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कैसे ? प्रश्नचिन्ह मन पर लकीर सा खुद गया था | एक नहीं न जाने कितने प्रश्नों की क़तार ---एक के बाद एक | अचानक उसके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया, ठस्स सा हो गया |

"मेरी माँ एक साधारण स्त्री थीं, मैं उनके गर्भ में आई, उनके गर्भ में पली, उन्होंने मुझे जन्म दिया | वो मेरी अपनी माँ थीं | "सुनीला गर्व से बता रही थी |

आश्चर्य में अनमना हुआ प्रखर कुछ भी समझने की स्थिति में नहीं था |उसने निवि के चेहरे पर प्रश्नवाचक दृष्टि गडा दी | वह भी चुप थी, सुनीला की तरफ़ देख रही थी |

"निवि से कुछ छिपा नहीं है, और किसीसे कुछ भी छिपाने की ज़रुरत क्या और क्यों होनी चाहिए ? " सुनीला ने दबंग स्वर में प्रखर की ओर प्रश्न उछाल दिया |

बात तो सच है क्यों किसीसे कुछ भी छिपाने की ज़रुरत होनी चाहिए ? प्रखर क्या उत्तर देता इस बात का ? चुप्पी से उसने अपने होठ सी लिए थे |

"अगर तुम शर्मा अंकल के बेटे हो तब तुम्हारे माँ -पापा को मेरी माँ की सारी सच्चाई पता थी|"

"हाँ, हूँ तो मैं शर्मा परिवार का ही ----'उत्सव पार्क'सोसाइटी में घर है हमारा ---"

"हाँ, तो मैं तो मृदुला माँ के साथ तुम्हारे मम्मी-पापा से मिली हूँ, तब तुम तो दिखाई नहीं दिए थे |"

"मैं अधिकतर ऊपर ही रहता था, अपने कमरे में !बस खाना खाने नीचे आता था, कभी कभी वो भी नहीं | ऊपर ही पड़ा रहता था ---ड्रिंक ज़्यादा होने से मैं पापा-मम्मी के साथ बैठने में कतराता था, वैसे भी अपने आपको बहुत होशियार समझता था न मैं !" प्रखर अनमना था |

‘क्या पाया? ’ से ‘क्या खोया? ’ की सूची इतनी लंबी थी कि वह पीछे मुड़कर देखने में भी घबराता था | वैसे तो अपने कर्म का लेखा-जोखा देखकर तय करने में आदमी को संकोच नहीं होना चाहिए किन्तु होता है, बहुत होता है | आदमी पीछा छुड़ाकर भाग जाना चाहता है |

कैसा होता है न जीवन ? एक समय हम अपने अहं में इतने भरे रहते हैं कि अपने अलावा कोई भी हमें बेहतर लगता ही नहीं, हम कहाँ किसी की बात सुनना चाहते हैं ? प्रखर जब तक यह बात समझता, तब तक तो सब कुछ समाप्त हो चुका था| आदमी जब तक अपनी वास्तविकता को रियलाइज़ करता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | यह दुनिया के हर दूसरे आदमी के साथ है |

एक उम्र के नशे में वह समझने की कोशिश भी तो नहीं करता, आईना बार-बार उसके सामने आता है और वह अपने आपको खूबसूरत ही देखता है | मन के आईने में झाँकना न तो उसे ज़रूरी लगता, न वह कोशिश ही करता है | जब ज़रूरी ही नहीं तो कोशिश करने में क्यों समय व ऊर्जा बर्बाद करना !

मृदुला सुनीला की माँ थी, यह बात उसे बेचैन कर रही थी, यह कैसे संभव हो सकता है ?

"तुम मुझे मृदुला जी के बारे में बताओ न ? "उसके मन की उत्सुकता उसे बेचैन कर रही थी |

"मृदुला मेरी माँ थीं, मुझे गर्भ में पालकर जन्म देने वाली माँ ! मेरा लालन-पालन यहीं, इन सबके बीच में ही हुआ है --ये ही सब मेरे सगे-संबंधी हैं ---बस --- "

प्रखर के बार-बार ज़िद करने पर सुनीला ने उसे अपनी माँ के जन्म की व उसके बाद की सब घटनाएँ खुलकर बता दीं ---"

"अब पापा के बारे में पूछोगे ? "एक लंबी साँस लेकर वह बोली ;

"मेरे पापा बहुत अच्छे इंसान हैं , हम एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं, वो मुझे बहुत प्यार करते हैं ---"उसने अपने पिता को गर्व से याद करते हुए अपनी आँखें एक बार फिर भर लीं थीं | अपने पिता के बारे में बताते हुए वह एक भीनी सी ख़ुशबू से जैसे महक़ रही थी, जैसे उसका मन हिलोरें ले रहा था |