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झागवाला साबुन

दोस्तो! आज हम तुम्हें एक नया खेल सिखाते है. खेल दिमाग का है और खेल का नाम है-बुनो कहानी.

कोई भी दो लोग मिलकर इसे खेल सकते हैं. खेलने के लिए चाहिए सिर्फ़ एक कॉपी और कलम.

खेल में एक बनेगा लेखक और दूसरा प्रति-लेखक. लेखक कहानी की शुरूआत करेगा एक वाक्य से. और प्रति लेखक उसे समाप्त करने या कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा, अपने अगले वाक्य से. प्रत्येक को अपना वाक्य दो मिनट में लिखना होगा. निर्धारित समय के अंदर प्रति-लेखक को कोई वाक्य नहीं सूझा तो उसका स्थान खाली छूट जाएगा और लेखक अगला वाक्य लिखेगा, किंतु यदि लेखक को भी कुछ नहीं सूझता तो खेल वहीं समाप्त हो जाएगा.

नियमानुसार लेखक और प्रति-लेखक एक-दूसरे की बातों को काटेंगे नहीं, और न ही असंबद्ध या ऊल-जलूल या अर्थहीन वाक्य लिखेंगे. उनका वाक्य कहानी को आगे बढ़ाने वाला या समाप्त करने वाला होना चाहिए.

कौन जीता, कौन हारा-इसका फैसला करने के लिए अंक गिनने पड़ेंगे. कहानी में जितने वाक्य लिखे गए उतने अंक लेखक को मिलेंगे. यदि प्रति-लेखक ने कोई वाक्य छोड़ा है तो उसके लिए दो अंक लेखक को मिलेंगे. लेकिन यदि अंत में लेखक अटक जाता है और कहानी को पूरी नहीं कर पाता तो उसे उस कहानी के लिए कोई अंक नहीं मिलेगा. यदि कहानी पूरी हो जाती हो, उसके लिए लेखक को अंक दिए जाएंगे. इस तरह दो-तीन चक्र खेलकर जीत-हार का फैसला किया जा सकता है. हां एक बात और, इस प्रकार बनी कहानी लेखक (प्रति-लेखक नहीं) की संपत्ति होगी. अगर कहानी अच्छी बन जाए तो उसे छपने के लिए भी कहीं भेजा जा सकता है. अब नीचे हम तीन कहानियों को नमूने के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं.

कहानी 1

लेखक : एक था राजा

प्रति-लेखक: एक बार वह बहुत बीमार पड़ा.

लेखक: राज चिकित्सक ने उसके प्राण बचा तो लिए.

प्रति-लेखक: पर राजा को गूंगा-बहरा और अंधा होने से न बचा सका

लेखक: ऐसी स्थिति में राजा के पास जीने की अदम्य शक्ति थी.

प्रति-लेखक: अब रानी और दरबारी भी राजा की पेक्षा करने लगे थे.

लेखक: ऐसे में सहायक था तो क विदूषक.

प्रति-लेखक: किंतु विदूषक था महा आलसी.

लेखक: एक दिन आलसी विदूषक ने बैठे-बैठे एक मक्खी पकड़ी.

प्रति-लेखक: मक्खी ने विदूषक के हाथ में आते ही दम तोड़ दिया.

लेखक: और दम तोड़ते ही बन गई एक परी.

प्रति-लेखक: परी ने राजा को देखते ही मुंह फेर लिया.

लेखक: तब विदूषक ने कहा, ‘ क्यों परी रानी, फिर से मक्खी बनना तो नहीं चाहोगी.

प्रति-लेखक: नहीं-नहीं, मुझे और कुछ भी नहीं बनना’ परी चीख पड़ी.

लेखक: तो फिर बताओ हमारे राजा का इलाज, जिसे सिर्फ़ तुम ही जानती हो.

प्रति-लेखक: विदूषक इसके लिए तुम्हें अपनी जान देनी होगी, परी बोली.

लेखक: ‘मुझे मंजूर है.’ कह कर विदूषक ने अपनी गरदन आगे बढ़ा दी.

प्रति-लेखक: और तब परी ने अपनी छड़ी से विदूषक पर एक वार किया.

लेखक: पर आश्चर्य, विदूषक को जरा भी चोट न पहुंची, उधर राजा की बीमारी भी जाती रही.

प्रति-लेखक: इसके साथ ही परी भी गायब हो गई.

लेखक: और फिर स्वस्थ राजा अपनी प्रजा के साथ पहले की तरह आनंद से रहने लगा.

इस कहानी में लेखक से प्रति-रोधक के अवरोधों को बड़ी चालाकी से पार करते हुए कहानी सफलतापूर्वक पूरी की है. अत: उसे कुल वाक्यों के 21 अंक मिले.

कहानी 2

लेखक: एक था कुत्ता.

प्रति-लेखक: दुमकटा और अकड़ू.

लेखक: एक दिन वह गया जंगल

प्रति-लेखक: वहां के जानवरों और उनके अजीब व्यवहार को देख कर वह यह सोचता हुआ लौट आया कि अपना शहर ही भला है.

इसमें प्रति-लेखक ने अपनी चतुराई से कहानी ऐसे समाप्त कर दी कि लेखक को सिर्फ़ चार अंक मिले.

कहानी 3

लेखक: अंजू की जिद से हार कर आखिर उसके माता-पिता को उसे मेले में ले ही जाना पड़ा.

प्रति-लेखक: मेले में खूब भीड़ थी.

लेखक: और भीड़े में अंजू को एक धक्का लगा. वह अपने माता-पिता से बिछुड़ गई.

प्रति-लेखक: तभी एक शोर गूंजा-‘आग-आग’

लेखक: भगदड़ मच गई.

प्रति-लेखक:....

लेखक: अंजू दौड़ते-दौड़ते एक तंबू में घुस गई.

प्रति-लेखक: जहां एक भालू कुर्सी पर बैठा, शायद उसी का इंतजार कर रहा था.

लेखक: भालू की लाल आंखे देख कर अंजू चीख पड़ी.

प्रति-लेखक: पर भालू ने मुस्कराते हुए अपनी खाल उतार फेंकी.

लेखक: अंजू को बड़ी हैरानी हुई, जब उसने अपने सामने एक बौने को खड़ा देखा.

प्रति-लेखक: बौना बोला, ‘चलो तुम्हें शेर से मिलवाता हूं. वह मेरा बड़ा भाई है’.

लेखक:???????

इस कहानी में लेखक अंत में अटक गया है और निर्धारित समय दो मिनट के अंदर वाक्य नहीं बना सका. अत: इसके लिए उसे कोई अंक नहीं मिलेगा.

दोस्तो! है न मजेदार खेल. खेल का खेल भी और कहानी लिखने का मजा भी.

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