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जिराफ चला अपनी तलाश में


दो चित्र कथाएँ

पहली कहानी

जिराफ चला अपनी तलाश में


सजधज कर लंबू जिराफ निकला घर से.

स्केटिंग करता आया बंदर,पूछा-कहां चले?

जिराफ चलते-चलते बोला-यह ढूंढने कि मैं चाहता क्या हूं?

बंदर बोला- दूसरों की नकल करो.यही अकलमंदी का काम है.

सामने से गुजरते ऊंट ने कहा-नाम के हिसाब से काम करना चाहिए.जैसे मैं ऊंट,करूं काम ऊट-प-टांग.

मेरा चलना,उठना,बैठना,खाना-पीना सब ऊट-प-टांग.

जिराफ ने उसे अनसुना किया और आगे बढ़ा.

आगे एक शुतुरमुर्ग तेज दौड़ते हुए हवा में उड़ने की कोशिश कर रहा था.

जिराफ की बात सुनकर वह बोला-शाबाश,नाकामियों से घबराना नहीं,कोशिश करते जाना.

जिराफ मुस्कराकर आगे बढ़ गया.

आगे एक भालू मिला जो पैर फैलाकर जमीन पर लेटा ऊंघ रहा था.

जिराफ की बात सुनकर बोला-तुम्हारी तुम जानो. मैं तो बस आराम करना चाहता हूं.

जिराफ और आगे बढ़ गया.

और एक गुस्सैल भेड़िए से टकरा गया.भेड़िया गुर्राते हुए बोला-बेढंगे जानवर तुम भाड़ में जाओ.

जिराफ डरकर जल्दी से आगे बढ़ गया. तभी पीछे से हंसी की आवाज सुनी.पीछे मुड़ा तो देखा बंदर,ऊंट,शुतुरमुर्ग सब पीछे-पीछे चले आ रहे थे.

और आगे नजर आया, एक बोर्ड.उस पर लिखा था-डांस स्कूल.

यह देखते ही जिराफ जोर से चिल्लाया-अरे यही तो मैं चाहता हूं.मैं झूम-छूम कर ,घूम-घूम कर नाचना चाहता हूं.

तभी डांस स्कूल का दरवाजा खुला,और डांस मास्टर शेर ने गूंजती आवाज में कहा-तो देखते क्या हो,अन्दर आओ और शुरू हो जाओ.

लंबू जिराफ ने देर नहीं की,वह हॉल में गया और जोर-जोर से नाचने लगा. वहां हाथी बैंड बजा रहे थे, गैंडे ढोल बजा रहे थे.

और मोर, हिरन,हंस सब नाच रहे थे. मगर हॉल की छत नीची थी.इसलिए एक दो बार छत से सर टकराने के बाद लंबू जिराफ ने गर्दन को झुकाकर और घुमाघुमाकर नाचना शुरू किया.

यह सबसे निराला नाच था.सब रुककर उसे देखने लगे.

मिठास की तलाश


चींटीटोला की सतरंगी चींटी के उस दिन की शुरूआत गन्ने की फांक से मीठा रस चूसते हुए हुई.

यह देख टांयटांय तोता आम के पेड़ को दिखाता हुआ बोला,‘‘ मीठे में आम का जवाब नहीं.’’

सतरंगी चींटी बोली,‘‘ अच्छा,तो वहां तक पहुंचूं कैसे?’’

तोता बोला,‘‘ मेरे पंजे के ऊपर टिक जाओ,मैं तुम्हें एक पके आम पर टिका दूंगा.’’

और अगले ही पल सतरंगी चींटी एक पके आम का रस लपालप चूस रही थी.’’

मगर तभी तेज हवा चलने लगी. आम जोर-जोर से हिलने लगा.चींटी छिटक कर एक पत्ते पर आ गिरी.हवा और तेज चली,पत्ता डाल से टूटा और हवा में उड़ने लगा.संग-संग चींटी भी.

चींटी को डर लगा,उसने पत्ती से पूछा,‘‘हम कहां चले.’’

पत्ती बोली,‘‘जहां हवा ले चले.’’

और पत्ती जा गिरी एक तालाब में. जहां अनेक कमल खिले थे.

चींटी पानी देख रोने लगी.यह देख एक मधुमक्खी पास आकर बोली,‘‘ चुप हो जाओगी तो मीठा-मीठा कमल का रस पिलाऊंगी.चींटी चुप हो गई.

मधुमक्खी उसे अपने पंख पर बिठाकर एक कमल पर ले गई.

चींटी अब सब कुछ भूलकर कमल का मीठा पराग-रस पीने लगी.

थोड़ी देर बाद कमल बोला,‘‘ ऐ चींटी घर जाओ,शाम हो रही है.अब मैं पंखुड़ियां समेट रहा हूं.’’

चींटी बोली,‘‘मगर मेरा तो पेट नहीं भरा,और पानी में मुझे तैरना भी नहीं आता.’’

कमल बोला,‘‘ तो मैं क्या करूं.कूदो पानी में.निकलो यहां से.’’

चींटी जोर-जोर से रोने लगी.यह देखकर एक भौंरे को दया आ गई.

वह बोला,‘‘ चुप हो जाओ और मेरे सिर पर बैठ जाओ.मैं हलवाई की दुकान जा रहा हूं.चलो तुम्हें सबसे मीठा रस पिलाता हूं.जलेबी का रस.’’

भौंरा चींटी को हलवाई के यहां ले गया.वहां उसने छक कर जलेबी का रस पीया.जब पेट भर गया तो उसे घर की याद आई.मगर भौंरा तो गायब हो गया था.चारों तरफ घना अंधेरा छाया था.

चींटी रोने लगी.

तभी एक चूहा आया.उसने पूछा.‘‘तुम चींटीटोला में रहती हो ना?मेरी पूंछ पकड़ कर बैठो.मैं तुम्हें वहां पहुंचा दूंगा.’’

और चूहे ने दौड़ते हुए उसे घर पहुंचा दिया.

घर पहुंच कर सतरंगी चींटी ने मां चींटी की महीन डांट और पिता चींटी की धमाकेवाली डांट खायी.

और उसने जाना कि मां-बाप की डांट में भी कम मिठास नहीं.

और वह देर तक नाचता रहा.

जब रूका तो सबने खूब ताली बजाकर उसको बधाई दी.

मगर थोड़ी देर बाद, उसने गर्दन में दर्द महसूस किया,और गर्दन थोड़ी अकड़ भी गई थी.पहला दिन था ना?

दूसरी कहानी