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सपनों का राजकुमार - 5

भाग 5

सबसे पहले वह सनराइज कॉलोनी पहुंचा। कॉलोनी के बाहर के मेडिकल स्टोर से दो चॉकलेट और एक लिप बाम  खरीदी। बाइक दुकान के बाहर छोड़कर अंदर चला गया। धीरे- धीरे टहलते हुए वह दायें बाएं देखता चला जा रहा था। सेकेंड रो में जब मुडा तो दो औरतें घर के बाहर बात कर रही थीं। रंजन ने मोबाइल निकाल लिया और स्क्रीन की ओर नजर कर ली। पीली साड़ी पहनी आंटी दूसरी कह रही थी, रत्ना को तो पढ़ने और टीवी देखने से ही फुसर्त नहीं है। मैं चाहती भी नहीं कि वह अभी से घर के कामों में लगे। अरे जीवन भर तो यही करना है।

रत्ना का नाम सुनते ही रंजन के कान खड़े हो गए। उसने आंटी की ओर गौर से देखा तो उसे इनकी आंखें हूबहू रत्ना के ही जैसी लगीं। जरूर ये उसकी ही रत्ना की मम्मी होंगी, उसने सोचा। वह धीरे – धीरे आगे बढा और रूक कर फोन कान से लगा, बात करने की एक्टींग करने लगा।

दूसरी आंटी कह रही थी कि चाहती तो मैं भी हूं पर सोनम की दादी और पापा कहते हैं घर के काम भी साथ ही साथ सीखाती चलो। उसे ज्यादा घूमने भी नहीं देते। कल रत्ना शलभ के साथ बड़ी झील गई थी, हमारी सोनम जा ही नहीं सकती। छुट्टी के दिन दादी उसे सिलाई सिखाती रहती हैं।

इतना सुनते ही रंजन के मन में लड्‌डू फूटने लगे, उसे पक्का यकीन हो गया ये रत्ना की ही मम्मी हैं और घर यही होगा या अगल बगल वाला।

उसने संदीप को फोन लगा कर धीरे- धीरे अपनी सफलता के बारे बताया, तभी उसने देखा, दूसरी आंटी बगल वाले घर में चली गई और रत्ना की मम्मी उसी घर के अंदर गईं जिसके बाहर वे खड़ी थी। रत्ना घर में नहीं है, पढ़ने की बात हो रही है तो जरूर कॉलेज गई होगी। सोचता हुआ व कॉलोनी के बाहर निकल आया। उसने तय किया कि वह अपनी बाइक के पास ही उसका इंतजार करेगा।

उसे लंबा इंतजार करना पड़ा। कई बार उसे लगा पता नहीं कब आएगी, कहीं उसे समझने में कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई ऐसा न हो कि रत्ना आए ही न। पर हर बार वह इस ख्याल को झटक देता। आएगी तो क्या बात करूंगा सोचने लगा। पहले तो रत्ना तक अपना नंबर पहुंचाना चाहिए। कागज या पैन तो उसके पास नहीं था। वह पान गुमटी की ओर बढ़ा। पेन तो वहां मिल गया पर कागज नहीं था। उसने सिगरेट के खाली रैपर में अपना नंबर लिखा। करीने से फाड़ कर उसे छोटा टुकड़ा बना दिया और जेब में रख लिया। तभी वहां सेंट लौरेंस की स्कूल बस रूकी और उसकी उम्मीद से बिल्कुल अलग रत्ना इसी बस से उतरी और कॉलोनी के अंदर चल दी।

रंजन भी जल्दी से उसके पीछे हो लिया। रत्ना को लगा कोई उसके पीछे आ रहा है उसने मुड कर देखा। रंजन को देखते उसकी धड़कन बढ़ गई। उसकी समझ में नहीं आया, अभी उसे क्या करना चाहिए। उसने चाल धीमी कर ली। मोड़ से मुडते ही रंजन उसके करीब आया और जल्दी से उसके हाथ में कुछ पकड़ा कर आगे बढ़ गया। उसने देखा फोन नंबर लिखा पेपर था। उसने मुट्‌ठी बंद कर ली। रंजन की ओर देखा तो वह उसे ही देख रहा था। वह धीरे से मुस्कुराई और चाल तेज कर ली। घर पहुंच कर वह दरवाजे के पास रूक गई। रंजन उसके घर से थोड़ा पहले रूक कर उसे ही देख रहा था। उसने मुस्कुराते हुए गेट बंद किया और अंदर चली गई।

अपने कमरे में जाकर रत्ना ने उस नंबर को बार बार देखा। रंजन ने किस फुर्ती से उसके बगल में पहुंचकर उसकी हाथ में ये नंबर दिया था सोच- सोच कर उसे झुरझुरी हो जा रही थी। अब सवाल था बात करे या न करे, करे तो कैसे? रत्ना के पास अपना कोई मोबाइल नहीं था। न मम्मी ने दिया न ही उसे अलग से मोबाइल की कोई जरूरत महसूस हुई थी। गेम खेलना हो या किसी से बात करना हो, सब कुछ वह मम्मी के मोबाइल से कर लेती थी। उसके पास अलग से लैपटॉप भी नहीं था। घर में एक लैपटॉप था। जिसे भी कुछ काम होता उससे ही कर लेता था। पर अब उसे मोबाइल की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी।

खाना खाते समय उसने मम्मी से कहा, मम्मी अगर इस बार भी एक्जाम में मैं फस्ट आउंगी तो मुझे क्या दोगी?

मम्मी हंसकर बोली, जो तुम चाहो, वैसे हमलोग तुम्हारे लिए स्कूटी खरीदना चाह रहे थे। तुम जो कहोगी वो खरीद देंगे।

थैंक यू मम्मी। स्कूटी आप खरीद देना और मैं पापा से मोबाइल मांग लूंगी, उसने हंसते हुए कहा।

दो- दो गिफ‌्ट? ठीक है मिल जाएगा। मन लगा के पढ़ाई करो अगले महीने ही है फाइनल एक्जाम मम्मी ने कहा तो रत्ना चुप रह गई। खाना खाकर उसने मम्मी का फोन उठाया और छत पर आ गई।

नंबर डायल किया तो रिंग होते ही कॉल रिसीव हो गया। रंजन मोबाइल हाथ में लेकर बैठा ही था इसी इंतजार में। हलो, सुनते ही उसने कहा मैं रंजन, पहचाना न, मैंने ही तुम्हें नंबर दिया था।

रत्ना ने कहा, मुझे आपका नाम नहीं मालुम था।

रंजन ही नाम है मेरा। कल जब से तुम्हें देखा है, पागल हो गया हूं। कैसी जादूगरनी हो तुम। एक सेकेंड के लिए भी तुम्हारा ध्यान नहीं जा रहा मेरे मन से।

मैं जादूगरनी नहीं हूं। तुम जादूगर हो। पता नहीं कैसे तुमने मुझे कल देखा, कि मेरा दिल हर समय धक धक कर रहा है।

सचमुच? वाह! यही तो प्यार है, जो हमें एक दूसरे से हुआ है।

दोनों इसी तरह बातें करते रहे। तुमने अपने घर में बताया कल क्या – क्या हुआ था रत्ना ने पूछा।

नहीं, पागल और तुमने?

नहीं मैंने भी नहीं बताया, मुझे डर लग रहा था कि कहीं भइया तुम्हें पीट न दे। अब बता दूंगी, रत्ना ने भोलेपन से कहा।

पागल ही हो तुम भी एकदम से। प्यार की बात भी कोई घर में बताता है क्या? अभी अपने दोस्तों से भी मत बताना। किसी को भी नहीं। पहले हमें खुद तो अपने प्यार का मजा चखने दो।

ऐसा क्यों? मैं तो सब दोस्तों के बारे में बताती हूं। रत्ना ने पूछा।

बहुत भोली हो तुम। हम दोनों दोस्त नहीं, प्रेमी हैं। तुमने सुना नहीं है क्या, सारी दुनिया प्यार की दुश्मन होती है। अभी किसी को मत बताना, जब मैं कहूं तब बताना। ठीक है। कल मिलो मुझसे।

कैसे मिलूंगी? मम्मी क्या कहेगी? इसलिए तो बोल रही थी बता देती हूं फिर मिल सकते हैं।

अरे यार! कैसी हो तुम। बताने के बारे में भूल जाओ। कितने बजे स्कूल से छुट्टी होती है।

सवा दो बजे, रत्ना ने कहा।

ठीक है कल बस से मत आना, मैं स्कूल की गेट पर मिलूंगा। सवा तीन में तुम्हें कॉलोनी के गेट पर छोड़ दूंगा।

रत्ना ने ओके तो कह दिया था पर उसे रात भर नींद नहीं आई। कैसे होगा यह सब। अगर मम्मी को पता चला कि मैं बस से नहीं आई हूं तो?? सोच- सोच कर वह परेशान होती रही।