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अजीब दास्तां है ये.. - 5

(5)

मुकुल अपने एक दोस्त नमित के साथ एक पार्टी में गया था। पार्टी नमित के कज़िन के नए घर के गृह प्रवेश के अवसर पर रखी गई थी। यहीं वह पहली बार नेहा से मिला था।

यह एक छोटी सी गैदरिंग थी। जिसमें सब एक दूसरे को जानते थे। मुकुल नमित के अलावा किसी को भी नहीं जानता था। उसे बहुत ऑकवर्ड लग रहा था। वह एक कोने में बैठा हुआ था।

नमित उससे कह चुका था कि वह संकोच ना करे। भाभी भैया बहुत फ्रेंडली हैं। वह भी औरों की तरह इंज्वॉय करे। बार काउंटर से अपने लिए कुछ पीने को ले ले। पर मुकुल फिर भी चुपचाप अपनी जगह पर बैठा था।

तभी एक लड़की पार्टी में आई। मुकुल की निगाह उस लड़की पर टिक गई। ब्लैक कलर की फ्लॉरल पैटर्न मिडी में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। वह सबसे हंसकर मिल रही थी। मुकुल ने देखा कि नमित उससे बड़ी गर्मजोशी के साथ मिला। कुछ देर बाद नमित उसके पास आकर बोला,

"आओ तुम्हें उससे मिलवाता हूँ।"

मुकुल समझ गया कि वह उसी लड़की से मिलवाना चाहता है। फिर भी अनजान बनते हुए बोला,

"किससे मिलवाना है ?"

"बनो मत.. मैं देख रहा हूँ तुम्हारी नज़रें उसी पर टिकी हैं।"

वह लड़की किसी से बात कर रही थी। नमित ने उसके पास जाकर कहा,

"नेहा..मीट माई फ्रेंड मुकुल नंदा। मेरी कंपनी में ईवेंट प्लानर है।"

मुकुल ने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया। नेहा ने मुस्कुराते हुए उससे हाथ मिलाया। तभी अंदर से किसी ने उसे पुकारा। वह अंदर चली गई।

नेहा के जाने के बाद नमित ने कहा,

"भाभी की बहन रश्मि की सहेली है। रश्मि तो मुंबई में है। पर भाभी इसे भी रश्मि की तरह ही मानती हैं। बहुत स्मार्ट है। अभी लास्ट मंथ इसने सुरक्षा फंड्स एंड फाइनैंस को ज्वाइन किया है।"

मुकुल अभी तक उसकी मुस्कराहट के बारे में सोच रहा था जो उसके साथ हाथ मिलाते हुए उसके चेहरे पर थी। मुकुल ने कहा,

"तुमको अच्छी तरह से जानती है।"

"भैया के घर पर ही दो एक बार मिला हूँ इससे।"

 

मुकुल नमित के साथ घर देखने लगा। घर बहुत सुंदर था। खासकर गार्डन। नमित ने उसे एक ड्रिंक लाकर दिया। वह यह कहकर अंदर चला गया कि देखूँ कोई काम तो नहीं है। ड्रिंक खत्म करके मुकुल गार्डन में टहलने लगा।

कुछ देर में नेहा उसके पास आई। एक प्लेट पकड़ाते हुए बोली,

"दीदी ने भिजवाया है। फ्रूट चाट है।"

मुकुल ने प्लेट पकड़ ली। वह बोला,

"थैंक्यू....पर आपने क्यों तकलीफ की ?"

"तकलीफ की कोई बात नहीं है। आप कुछ ले नहीं रहे थे तो दीदी ने कहा कि फ्रूट चाट दे आओ।"

मुकुल ने कहा,

"आप अपने लिए तो लाईं नहीं।"

"मैं खा चुकी हूँ। आप खाइए अच्छी लगेगी।"

मुकुल खाने लगा। नेहा बोली,

"कुछ और चाहिए तो संकोच मत करिएगा। हेल्प योर सेल्फ।"

यह कहकर वह हंस दी। मुकुल भी मुस्कुरा दिया। अब उसे काफी अच्छा लग रहा था। नेहा उससे बोली,

"पार्टी थोड़ी बोरिंग हो रही है। सब अपने अपने ग्रुप बनाकर बैठे हैं। मैं सोच रही थी कि कोई ऐसी एक्टिविटी कराई जाए जिससे सब एक साथ होकर इंज्वॉय कर सकें। आप कोई नई तरह की एक्टिविटी सजेस्ट कीजिए।"

उसकी बात सुनकर मुकुल सोच में पड़ गया। वह नेहा की मदद करना चाहता था। बहुत सोचने पर उसे एक गेम याद आया। उसने उसके बारे में कहीं पढ़ा था। उसने नेहा से कहा,

"कुल कितने लोग हैं ?"

"हम दोनों के अलावा बारह लोग हैं।"

"परफेक्ट....ऐसा करिए स्टिकी नोट्स और पेन लेकर आइए।"

नेहा और मुकुल ने मिलकर गेम की सारी तैयारी कर ली। सबको गार्डन में इकठ्ठा होने को कहा गया। गोलाकार पंक्ति में रखी कुर्सियों पर लोग बैठे थे। बीच में दो कुर्सियां एक दूसरे के आमने सामने रखी थीं। लोगों को दो दो के ग्रुप्स में बांट दिया गया था। एक प्लास्टिक जार में सारे स्टिकी नोट्स थे। नेहा और मुकुल गेम का संचालन कर रहे थे।

एक्टिविटी के अनुसार ग्रुप के दोनों मेम्बर्स को आमने-सामने बैठा दिया जाता था। उसके बाद दोनों को जार में से एक एक स्टिकी नोट निकालकर उसे इस तरह से अपने साथी के माथे पर चिपकाना होता था कि वह यह ना देख सके कि उसमें क्या लिखा है। दोनों साथी एक दूसरे के माथे पर चिपके स्टिकी नोट को पढ़ सकते थे। स्टिकी नोट पर किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का नाम होता था। उस नाम को पढ़कर अपने साथी से उस प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में इस प्रकार सवाल पूँछना होता था जिससे वह उस व्यक्ति को पहचान सके।

‌गेम खेलते हुए सभी बहुत खुश थे। जब कोई सही जवाब देता था तो सब ताली बजाकर उसका उत्साह बढ़ाते थे। माहौल में एक उत्साह आ गया था। उसके बाद कुछ और भी गेम खेले गए। उनका संचालन भी नेहा और मुकुल ने किया। सभी ने उनकी बहुत तारीफ की। गेम के दौरान वो दोनों भी एक दूसरे से खुल गए थे।

 

उस दिन पार्टी के बाद उनकी अगली मुलाकात मॉल में शॉपिंग करते हुए हुई थी। उसके बाद दोनों कई बार मिले। अपनी हर मुलाकात में दोनों एक दूसरे के नजदीक आते रहे।

कुछ महीनों में उन दोनों के बीच की रिलेशनशिप बहुत गहई हो गई। कुछ दिन एक दूसरे के साथ रहने के बाद उन लोगों ने शादी कर ली। शादी के बाद दोनों खुश थे।

शादी के कुछ महीनों के बाद एक दिन नेहा ने बताया कि वह गर्भवती है। दोनों के लिए यह चौंकाने वाली खबर थी। पर उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। शुरुआत में तो ठीक था ‌लेकिन जैसे जैसे प्रेग्नेंसी आगे बढ़ने लगी नेहा के स्वभाव में परिवर्तन आने लगा। पहले तो वह अपने आप में गुमसुम रहने लगी। उसके बाद छोटी छोटी बातों पर चिड़चिड़ाने लगी।‌

मुकुल के लिए मुश्किल हो रहा था। उसके पास ऐसा कोई था नहीं जो उसकी मदद करता। उसके पापा लखनऊ में थे। नेहा के मम्मी पापा का तलाक बहुत पहले हो चुका था। उनका नेहा से रिश्ता ना के बराबर था।

उसने गायनेकोलॉजिस्ट से संपर्क किया। उसने कहा कि वैसे तो कोई समस्या नहीं है।‌ पर इनके मन में कुछ बातें हैं। आप जानने का प्रयास करें।‌ मुकुल ने भी महसूस किया था कि नेहा माँ बनने से बिल्कुल भी खुश नज़र नहीं आ रही थी। उसने नेहा से इस बारे में बात की।

नेहा ने अपना मन खोलकर रख दिया। उसका कहना था कि वह अपनी इस स्थिति से ज़रा भी खुश नहीं है। उसे लगता है कि सब कुछ बहुत जल्दबाज़ी में हुआ। वह तो अभी ठीक से शादी के लिए भी तैयार नहीं थी। ऊपर से माँ बनने की ज़िम्मेदारी भी उस पर आ गई। जो कुछ उसने कहा उसे सुनकर मुकुल बहुत परेशान हो गया।

वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर नेहा उससे ऐसा क्यों कह रही है। उसने तो शादी के लिए उस पर कोई दबाव नहीं डाला था। वह अपनी खुशी से तैयार हुई थी। शादी के बाद भी उसने कभी यह नहीं कहा कि वह खुश नहीं है।

बच्चे का आना ज़रूर अचानक था। वह भी अभी परिवार शुरू नहीं करना चाहता था। लेकिन जब नेहा प्रैगनैंट हो गई तो उसने खुद को पिता बनने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था। नेहा ने पहले तो कुछ नहीं कहा था पर अब उसका कहना था कि ना तो वह शादी करना चाहती थी और ना ही माँ बनने के लिए तैयार है।

सही समय देखकर मुकुल ने एक बार फिर नेहा से बात की।

"नेहा... तुम कह रही हो कि तुम खुश नहीं हो। पर क्यों ? शादी के लिए रज़ामंदी तो तुमने भी दी थी। हाँ बच्चे की खबर सुनकर हम दोनों शॉक्ड थे। मैं मानता हूंँ कि हमें सावधानी बरतनी चाहिए थी। हमसे चूक हो गई। लेकिन जो हो गया था उसे बदला नहीं जा सकता था। मैंने तो खुद को बच्चे की जिम्मेदारी के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था। मुझे लगा था कि तुम भी अपने आप को मांँ बनने के लिए तैयार कर रही हो।"

नेहा ने कहा,

"मैं मानती हूंँ कि मुझसे भी गलती हुई है। पर सही से सोचो तो वक्त ही कहाँ मिला कुछ सोचने का। कुछ ही महीनों की जान-पहचान में हम एक रिलेशनशिप में बंध गए। और उसके कुछ ही दिनों बाद शादी कर ली। शादी का एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि मैं प्रैगनैंट हो गई। सब कुछ इतनी जल्दी में हुआ। मैं कुछ समझ ही नहीं पाई। अब जब शांत हो कर पाई हूँ तब लगता है कि हमें एक दूसरे को वक्त देना चाहिए था।"

"नेहा.... क्या तुम को लगता है कि मैं एक अच्छा जीवनसाथी नहीं हूंँ। मैं तुम्हारी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता हूँ।"

"मुकुल यू आर नॉट गेटिंग माई प्वाइंट। बात जरूरतों की नहीं है। बात यह है कि अभी तो सब कुछ शुरू हुआ था। अभी तो मैंने अपना करियर बनाना शुरू किया था। उसमें एक रुकावट आ गई।"

मुकुल कुछ देर के लिए चुप हो गया। वह नेहा की फिक्र समझ रहा था। उसे गलत नहीं ठहरा रहा था। उसने कहा,

"जब तक बच्चा दुनिया में नहीं आ जाता है तब तक तो मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ। लेकिन उसके जन्म के बाद उसे पालने में मैं तुम्हारी पूरी मदद करूँगा। दिक्कत होगी पर हम दोनों मिलकर सब संभाल लेंगे। यकीन मानो कुछ दिनों में सब सही हो जाएगा।"

नेहा अपने आप में खोई हुई थी। मुकुल को लग रहा था कि जैसे उसे उसकी बात पर यकीन ही नहीं हो रहा है। उसने कहा,

"ट्रस्ट मी नेहा... मैं तुमसे प्रॉमिस करता हूँ। अगर बच्चे की वजह से तुम्हारा करियर सफर करेगा तो मैं भले ही अपना करियर दांव पर लगा दूंँ पर तुम्हें आगे बढ़ने से नहीं रोकूँगा।"

नेहा ने कोई जवाब तो नहीं दिया पर उस दिन के बाद से उसका चिड़चिड़ापन कुछ कम हो गया था। फिर वह दिन भी आ गया जब अनय का जन्म हुआ। मुकुल ने जैसा वादा किया था उसके अनुसार अनय के पालन में उसकी पूरी सहायता करनी शुरू कर दी। जल्दी ही नेहा ने अपना जॉब फिर से शुरू कर दिया। दोनों ने अनय के लिए एक आया भी रख ली थी।

अनय चार महीने का हो गया था। पर अब या तो वह आया के पास रहता था या मुकुल के पास। नेहा को एक माँ के तौर पर अनय से कोई लगाव नहीं था। यह बात मुकुल को अच्छी नहीं लगती थी। एक दिन उसने नेहा से इस बारे में बात की। ‌ उसकी बात सुनकर नेहा ने कहा,

"मुकुल प्लीज़ मुझसे कोई उम्मीद मत रखो।"

"नेहा मैंने अपने लिए कोई उम्मीद नहीं रखी है। लेकिन अनय को उसकी माँ का प्यार मिले यह तो ज़रूरी है।"

"पर मैं नहीं कर सकती। मैं अपने आप में परेशान हूँ।"

"ऐसा क्या हो गया है ? कुछ दिनों से मैं देख रहा हूंँ कि तुम्हारा बर्ताव फिर से पहले जैसा हो गया है।"

नेहा ने गुस्से से कहा,

"बिकॉज़ आई एम नॉट फीलिंग गुड। मुझे लगता है कि मैं इन सब के बीच ट्रैप होकर रह गई हूँ।"

उसकी बात सुनकर मुकुल को धक्का लगा। कुछ देर तक वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था। उसके बाद अपने आप को संभाल कर बोला,

"तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम बंध गई हो। मैंने तो कभी भी तुम्हें किसी चीज़ के लिए नहीं रोका। अपने लिए तो कभी कुछ नहीं मांगा। लेकिन अनय तुम्हारा बेटा है। कम से कम कभी कभार उसे गोद में लेकर पुचकार लिया करो।"

नेहा कुछ देर तक चुप रही। उसके बाद बोली,

"मुकुल अब बात चली है तो मैं खुलकर अपने मन की बात करती हूंँ।"

उसने मुकुल के चेहरे की तरफ देखकर कहा,

"मैं अब और इस रिश्ते में नहीं रहना चाहती। इसलिए बेहतर होगा कि हम बिना किसी झगड़े के डिवोर्स ले लें। अनय की ज़िम्मेदारी तुम पर है। तुम चाहो तो उसे पालना। नहीं तो किसी अच्छे से कपल को देखकर गोद दे देना।"

नेहा की आखरी बात मुकुल को बहुत बुरी लगी। उसने कहा,

"तुम क्या अब मैं भी इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाना चाहता। हम कानूनी तौर पर तलाक ले लेंगे। पर एक बात अच्छी तरह से समझ लो। मेरे जिंदा रहते मेरा बच्चा किसी और के घर में नहीं पलेगा।"

उसके कुछ ही दिनों बाद नेहा ने घर छोड़ दिया था। जब वह घर छोड़कर जा रही थी तब अनय जोर जोर से रो रहा था। मुकुल ने उसे अपनी गोद में उठा लिया था। अभी भी उसके मन में एक उम्मीद थी कि रोते हुए अनय को छोड़कर जाना शायद नेहा के लिए आसान ना हो। पर नेहा ने एक बार पलट कर भी नहीं देखा।

उसके बाद उन दोनों के बीच तलाक की प्रक्रिया शुरू हो गई। मुकुल से तलाक मिलने के बाद नेहा बंगलौर से मुंबई चली गई थी। उसके बाद वह कहाँ थी उसका कोई पता नहीं चला।

अनय के दो साल का होने पर मुकुल उसे लेकर दिल्ली आ गया। मनीषा दीदी ने उसे अपनी देवरानी के बगल वाला फ्लैट दिलवा दिया।