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प्रायश्चित भाग-1

अक्टूबर का महीना आते आते अंधेरा कुछ जल्दी ही घिरने लगता है। ऊपर से इस महीने में त्योहारों की भरमार। कितना भी समय ज्यादा लेकर चलो बाजार में, फिर भी कम पड़ जाता है।
शिवानी ने सोचते हुए जैसे ही अपनी घड़ी पर नजर दौड़ाई।
ओहो! 6:00 बजने वाले हैं और अभी कितनी खरीदारी करनी बाकी है। हे भगवान! क्या आज ही सारी दुनिया को खरीदारी के लिए निकलना था। मैंने तो कितनी प्लानिंग की थी कि आज वर्किंग डे है तो बाजार में कम भीड़ होगी लेकिन इतनी भीड़ देखकर तो कोई भी यही सोचेगा कि आज संडे है!
अब रोज-रोज तो घर से निकलना पॉसिबल नहीं। आज ही कर लेती हूं बाकी खरीदारी भी। कोई बात नहीं खाना थोड़ा लेट बन जाएगा। वैसे भी कुछ ही खरीदना सामान बाकी रह गया है। दिनेश ने भी कहा था कि जल्दी घर आ जाएगा। आ ही गया होगा। फोन कर लूं! चलो रहने देती हूं।

इसी उहापोह में शिवानी जैसे ही एक गारमेंट शॉप में घुसी उसे एक पहचानी हुई सी महिला बिल काउंटर पर खड़ी दिखी। ये, ये तो उसके जैसी ही लग रही है कुछ! कहीं वो ही तो नहीं ! नहीं वो यहां कैसे हो सकती है!

सोचते हुए जैसे ही वह उसके पास जाने के लिए आगे बढ़ी, तभी एक सेल्स गर्ल बीच में आ गई और शिवानी के पास आकर बोली " मैडम आपको क्या चाहिए!"
शिवानी ने उसे बताया तो वह बोली "मैडम लेडीज कपड़े उस तरफ हैं।"
शिवानी उस महिला के बारे में सोचती हुई अपने लिए कुर्ता पसंद करने लगी। 2-3 कुर्ते देखने के बाद ही उसे उनमें से एक पसंद आ गया। वह मन ही मन खुश थी, चलो समय बच गया।
वह बिल काउंटर पर गई ।उसे वहां वह महिला नहीं दिखाई दी। तभी एक महिला उसके पीछे आकर खड़ी हो गई।
शिवानी ने जैसे ही मुड़ कर देखा तो उससे नजरें मिलते ही दोनों एक दूसरे को देख कर चौंक गई।
कुछ ही पलों में शिवानी के चेहरे पर छाए हैरानी के भाव नफरत में बदल गए। वह गुस्से से उसे देखते हुए बोली "तुम! इतने सालों बाद फिर से तुम से सामना होगा, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। क्या तुम मेरा पीछा करते हुए यहां तक आई हो!"
इतनी देर में ही शिवानी का नंबर आ गया। उसने जल्दी से पेमेंट की और वहां से निकल गई। पीछे पीछे वह महिला भी तेजी से दौड़ती हुई उसके पास आई।
"सुनो, दीदी मुझे तुमसे बात करनी है। मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहती हूं। मैं कब से तुम्हें ढूंढ रही थी लेकिन आज! रुको तो सही!"
"मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी, चली जाओ । मेरे जीवन को बर्बाद करके, अब क्या रह गया बताने के लिए।" कहते हुए शिवानी ने जल्दी से ऑटो रुकवाया और उसमें बैठ चली गई।
पीछे से आती, उस महिला की आवाज शिवानी दीदी रुको, रुको! उसके कानो में शूल सी चुभ रही थी। धीरे धीरे आवाज पीछे छूटती गई।
शिवानी की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया। ऑटो चालक की नजर से बचा उसने अपने आंसुओं को पोंछा और अपने आपको संयत करने की कोशिश करने लगी। बाहर से तो वह शांत हो गई लेकिन अंदर उस तूफान का क्या करें, जो इतने सालों से उसने दबा कर रखा था और आज फिर से उसे देखते हवह व वजूद को मिटाने के लिए रह-रहकर तेजी से उस पर प्रहार कर रहा था।

"मैडम आपका घर आ गया।" ऑटोवाले की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। उसने उसे पैसे दिए और अपने घर की डोर बेल बजाई।
दरवाजा खोलते ही उसकी तेरह साल की बेटी ने उसके हाथ से बैग लेते हुए कहा "अरे मम्मी, बड़ी देर कर दी आपने मार्केट में! भीड ज्यादा थी क्या!"

हूं! उसने बुझे से स्वर में कहा।

अपनी मां का चेहरा देखते हुए वह फिर बोली "लगता है मम्मी, आप बहुत थक गए हो। मैं आपके लिए कॉफी लेकर आती हूं। तब तक आप हाथ मुंह धो लो।"

"पापा आ गए क्या तुम्हारे!"

"हां मम्मी, पापा किचन में सब्जी की तैयारी कर रहे हैं।"

शिवानी कुछ नहीं बोली और वही सोफे पर धंस गई। तभी उसका 10 वर्षीय बेटा रियान, दौड़ता हुआ आया और उसके गले में झूलते हुए बोला "मम्मा,जो जो मैंने बोला था मेरे लिए लाए आप।अरे, आप तो मुझे बहुत टायर्ड लग रहे हो। सिर दुख रहा है क्या आपका मम्मा। लाओ मैं दबा देता हूं।"

कहते हुए वह शिवानी का सिर दबाने लगा।

"मैं ठीक हूं बेटा! आप जाओ अपना काम करो। "
इतनी देर में शिवानी की बेटी रिया दो कप कॉफी लेकर बाहर आ गई।
"आप अभी तक फ्रेश नहीं हुए क्या!"

"क्या बात है शिवानी! तबीयत ठीक नहीं है क्या तुम्हारी। चेहरे से बहुत थकी हुई लग रही हो।"
शिवानी के पति दिनेश ने बाहर आते हुए कहा।

शिवानी ने उनकी ओर बुझी सी नजर डालते हुए कहा "नहीं ठीक हूं, बस बाजार में भीड ज्यादा थी, देर लग गई इसलिए थोड़ा थक गई हूं।"
"तुमसे कहा तो था कि संडे को मैं तुम्हारे साथ चलूंगा। पता नहीं क्यों तुम घर की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ही लेना चाहती हो। चलो कॉफी पी लो, कुछ आराम मिल जाएगा।" कह उन्होंने एक कप शिवानी को पकड़ा दिया।

कॉफी पीते हुए शिवानी चुप थी। वैसे तो वह अक्सर उसके सामने चुप ही रहती थी लेकिन आज दिनेश को लग रहा था कि कुछ तो बात है ,जो वह बता नहीं रही। पर उससे कुछ भी पूछने की हिम्मत या कहो अधिकार वह बहुत पहले ही खो चुका था।
कॉफी खत्म करने के बाद वह बोला "अच्छा तुम आराम करो। दाल तो बन ही गई है, चावल बना लूंगा मैं।" सुनकर शिवानी कुछ नहीं बोली और चुपचाप उठकर अपने कमरे में चली गई।
"बेटा कुछ बात हुई थी क्या आज मम्मी से।" दिनेश ने रिया से पूछा।
"नहीं पापा! जब हम स्कूल से आए, तब तो मम्मी बहुत खुश थी। मार्केट जाते हुए भी उनका मूड सही था। "

"हां लगता है, मार्केट में शॉपिंग करते हुए काफी थक गई होंगी। आराम करेंगी तो सही हो जाएगी।"

"ठीक है पापा, किचन में, मैं आपकी हेल्प करा देती हूं।"

"अरे, नहीं बेटा, सब हो गया है। तुम अपना बचा हुआ होमवर्क पूरा करो ।मैं सब मैनेज कर लूंगा।"

कहकर दिनेश किचन में चला गया। डिनर तैयार होने पर जब वह शिवानी को बुलाने आया तो शिवानी ने बहाना बनाते हुए कहा "दिनेश सिर में दर्द है। खाने का बिल्कुल मन नहीं। प्लीज मैं आराम करना चाहती हूं।"

"थोड़ा सा खाकर दवाई ले लो। तभी आराम पड़ेगा शिवानी। खाली पेट तो दर्द बढेगा ना।"

"मैंने मार्केट में हल्का-फुल्का खा लिया था। अब भूख नहीं। प्लीज जिद मत करो।"
दिनेश कुछ नहीं बोला और वापस चला गया।
उसके जाते ही शिवानी की आंखों में फिर से आंसू उमड़ पड़े।
दिनेश ने उसकी जिंदगी में जो ना भरने वाला घाव दिया था , वो अब रिसते रिसते नासूर बन गया था और वह आज फिर से किरण को देखते ही हरा हो गया।
हां, मार्केट में मिलने वाली वो महिला किरण ही तो थी। उसने तो किरण के साथ हमेशा अच्छा ही किया था। उसके जीवन को संवारने में, उसे दुखों से उबारने में कैसे वह आगे से आगे रहती। अपनी छोटी बहन ही तो मान लिया था उसने उसे। और उसने मेरी अच्छाई का क्या सिला दिया!
मेरे ही आशियाने में आग लगा दी! मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगी किरन मरते दम तक नहीं!

माफ तो मैं तुम्हें भी नहीं करूंगी दिनेश! हां बच्चों की खातिर एक छत के नीचे रहना मजबूरी है मेरी। पति हो तुम मेरे लेकिन पति के सारे अधिकार उस दिन ही खो दिए थे तुमने! अब तो मुझे तुम्हारी पत्नी कहलाने में भी शर्म आती है! क्या कमी थी मेरे प्यार में! दिलों जान से तुम्हें कितना चाहती थी मैं। आंख मूंदकर तुम पर भरोसा करती थी और तुमने मेरे भरोसे को तार-तार कर दिया! वो तो पराई थी, तुम तो मेरे अपने थे!
क्रमशः
सरोज ✍️