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प्रायश्चित - भाग -5

उस दिन के बाद दिनेश उसका और ज्यादा ध्यान रखने लगा था। ऑफिस जाने के बाद दिन में कई बार ,उसे फोन करके हालचाल पूछता। कई बार तो वह दिनेश के बार-बार फोन कॉल करने से खीज भी जाती थी लेकिन मन ही मन खुश भी बहुत होती । दिनेश की उसके प्रति यह फिक्र देखकर।

किरण भी जब तब उसकी सहायता करवाने के लिए आ जाती । वह तो उसे बहुत मना करती थी लेकिन वही जिद करके खुद काम करने लग जाती।
कहती "दीदी इस बहाने मेरा मन लगा रहेगा। मेरा खुद का काम ही कितना है और वैसे भी मां कहती थी, गर्भवती स्त्री की मदद करने से भगवान बहुत खुश होते हैं ।शायद इससे ही मेरे पिछले जन्मों के पाप धुल जाए।"
"क्या हमेशा अपने आपको कोसती रहती है। अरे, कितनी प्यारी सी तो है तू । जो एक बार तुझे देख ले, अपना बना ले। मैं भी तो उसमें से एक हूं। छोटे-मोटे झगड़े तो पति पत्नी के बीच होते रहते हैं ।देखना धीरे धीरे तेरे पति को भी तेरी कद्र हो जाएगी। कई बार समय लग जाता है। मुझे पूरा विश्वास है, तू अपने प्यार से उसका दिल जीत ही लेगी।"

"पता नहीं दीदी, वह दिन कब आएगा। मैं तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही हूं लेकिन कहां कमी रह जाती है ।पता ही नहीं चलता। कभी तो इतना प्यार करेंगे, बस पूछो मत और कभी! वैसे भी उन्हें मुझपे प्यार कम गुस्सा ही ज्यादा आता है। कोई ना कोई कमी तो होगी ना मुझमें! जो अब तक मैं, उन्हें अपना ना बना पाई।"
"फिर वही बात! अरे, बहुत अच्छी है तू। चल छोड़ इन बातों को और बता, तेरी बहनें कितनी बड़ी है! मां कैसी है! क्या करती है!"
"बताया तो था दीदी उस दिन कि दोनों पढ़ती है और मां सिलाई कढ़ाई करती है।"
"वैसे किरण कहां के रहने वाले हो तुम और कुमार को तुम ने पसंद किया था या तुम्हारी मम्मी ने।" शिवानी ने बड़ी उत्सुकता से उससे पूछा !
शिवानी की बात को अनसुना करते हुए किरण बोली
" दीदी, रिया क्या कर रही है। दिखाई नहीं दी अब तक। मैं तो उसके साथ खेलने के लिए आई थी। अभी उसे पकडकर लाती हूं।" कह वह रिया को लेने अंदर चली गई।

शिवानी को उसकी यही बात बड़ी अजीब लगती थी। जब भी उसके घर परिवार के बारे में कुछ पूछो। हमेशा बात को टाल जाती थी।
अंदर से रिया और उसके जोर-जोर से हंसने की आवाज सुन, वह भी खुश हो गई और मन ही मन सोचने लगी, हर किसी की अपने घर परिवार की कुछ खास बातें होती हैं। पता नहीं, मैं भी क्यों बार-बार उन बातों को पूछने बैठ जाती हूं। सोचते हुए शिवानी भी अंदर रिया और किरण के पास जा उनकी हंसी ठिठोली में शामिल हो गई।
यूं ही धीरे-धीरे समय बितता गया। शिवानी की डिलीवरी में
एक महीना ही रह गया था।
शिवानी के लिए अब चलना फिरना काफी मुश्किल हो गया था ।डॉक्टर ने चेकअप कर बताया कि बच्चा काफी नीचे है इसलिए आप भारी काम बिल्कुल मत करो और हो सके तो बेड रेस्ट करो। वही आपके व बच्चे के लिए सही रहेगा।

दिनेश ने जब अपनी मां से इस बारे में बात की तो वह बोली "बेटा अभी तो तेरे पापा की तबीयत सही नहीं है। मैं चाह कर भी नहीं आ पाऊंगी। तू ऐसा कर बहू को यही ले आ। मैं दोनों की देखभाल कर लूंगी ।डिलीवरी भी यही करा लेंगे। अब सारी सुख सुविधाएं तो है ही अपने गांव में।"
"मां वो तो ठीक है लेकिन रिया का भी तो स्कूल है ना और फिर इतनी छुट्टियां कैसे ले।"

"अब बता बेटा मैं क्या करूं! तेरे पिताजी को भी देखना जरूरी है।"
"अच्छा आप फिकर मत करो। मैं कोई ना कोई इंतजाम करता हूं ।दीदी को भी तो नहीं बुला सकता। उनके बच्चों के भी पेपर होंगे। चलो जैसा भी कुछ होगा। मैं आपको एक-दो दिन में बता देता हूं।" कहकर दिनेश ने फोन रख दिया।

शिवानी सारी बातें सुन रही थी‌। दिनेश को चिंतित देखकर बोली "क्यों ना हम 2 महीनों के लिए फुल टाइम मेड रख ले।"

"हां, मैं भी यही सोच रहा हूं। चलो आज मैं अपने ऑफिस में 1-2 से बात करता हूं इस बारे में। मेड भी तो सही मिलनी जरूरी है।"
अगले दिन किरण शिवानी के यहां आई तो शिवानी लेटी हुई थी। घर भी कुछ बिखरा सा नजर आ रहा था।
देखकर किरण ने कहा "क्या बात है दीदी, आपकी तबीयत सही नहीं है क्या!"
"तबीयत तो बस 1 महीने अब ऐसे ही रहेगी। डॉक्टर ने बताया, बच्चा काफी नीचे की तरफ है इसलिए भारी काम नहीं कर सकती। मेड लगाने की सोच रहे हैं। मुझसे तो आप ज्यादा देर खड़ा भी नहीं हुआ जाता। आज खाना बनाने लगी, वह भी बीच में ही छूट गया। बड़ी मुश्किल से बाप बेटी को टिफिन पैक करके दिया है।"
"क्या दीदी, आपने मुझे कुछ बताया ही नहीं। कल भैया घर पर थे इसलिए मैं नहीं आई। "
"अरे, तो भैया तुझे क्या कह रहे थे। आ जाती। मैं तो तुझे कितना याद कर रही थी।"
"नहीं दीदी, एक छुट्टी का दिन होता है। जब आप दोनों साथ होते हो । उसमें भी मैं कबाब में हड्डी बनने के लिए आ जाऊं।" किरण मुस्कुराते हुए बोली।
"हमारी गूंगी गुड़िया को पता सब कुछ है । बस बोलती नहीं। क्यों सही कह रही हूं ना मैं।" शिवानी हंसते हुए बोली।

"वैसे यह तेरे मन का वहम है। कई साल हो गए हैं, हम दोनों की शादी को। तुम्हारी तरह नया जोड़ा नहीं हम। कहे तो दो दो बच्चों के माता-पिता है।"

"दीदी, एक के ही तो हो अभी।"
"अरे बहना , दूसरा भी आने ही वाला है इसलिए उसे भी जोड़ दिया लगे हाथों।" सुनकर किरण हंस पड़ी।

"दीदी आपने कुछ खाया पिया या नहीं!"

"नहीं थोड़ा सुस्ताने के लिए ही लेटी थी। थोड़ी जान आ जाए ।उसके बाद अपने लिए कुछ बनाऊंगी।"

"क्या दीदी, आप इतनी देर तक भूखे मत रहा करो। आपके साथ साथ आने वाला नन्हा मेहमान भी भूखा रहता है ना!"

"अच्छा दादी अम्मा आगे से ध्यान रखूंगी। तू बता चाय पिएगी क्या! " शिवानी उठने की कोशिश करते हुए बोली।

"दीदी, आप लेटे रहो। मैं लाती हूं, आपके लिए चाय नाश्ता बना कर।"
"अरे, तू क्यों परेशान होती है। मैं कर लूंगी। क्या पता आज कोई मेड मिल ही जाए।"
"दीदी, आप मेड से खाना बनवाओगी!"

"क्या करूं! मजबूरी है।"

"नहीं मेरे कहने का मतलब यह है कि मैं खाना बना दिया करूंगी। "
"नहीं नहीं । तू मेरे लिए इतना कष्ट क्यों उठाएगी और वैसे भी कहीं तेरे पति को बुरा लग गया तो!"

"दीदी , आप जो मेरे लिए इतना कुछ कर रहे हो, वह क्या कम है!"
"अब मैंने तेरे लिए क्या कर दिया!"

"दीदी ,आप बताओगे नहीं तो क्या मुझे पता नहीं चलेगा! कुमार ने आपको पिछले महीने का किराया नहीं दिया ना अब तक!"

" नहीं किराया तो उसने मुझे दे दिया! और क्या मैं तुम्हें बिना किराया लिए यहां रहने दूंगी। धर्मशाला थोड़ी ना है यह।"शिवानी हंसते हुए बोली।
"दीदी झूठ मत बोलो। मैंने कुमार को फोन पर किसी से बात करते सुन लिया था कि उसने किराए के पैसे खर्च कर दिए हैं । मैंने जब उससे इस बारे में बात की तो वह गुस्से से बोला, किसको क्या देना है यह मुझे तुमसे ज्यादा पता है। दे दूंगा मैं किराया । कहीं भागे नहीं जा रहे हम! और पता है मुझे! आज तक उससे पैसो का जुगाड़ नहीं हुआ है।"

" दे देगा! तू ज्यादा परेशान मत हो । "

" बस तो दीदी, आप भी ज्यादा परेशान मत हो। मैं सारा काम संभाल लूंगी। अगर आपको लगता है कि वह नाराज होगा तो उसके जाने के बाद काम कर दिया करूंगी। शाम की सब्जी जल्दी बनाकर , आटा लगा दूंगी । रोटियां
आप सेंक लेना। आप ही तो कहते हो कि मैं आपकी छोटी बहन हूं । छोटी बहन, इतना तो अपनी बड़ी बहन के लिए कर सकती हैं ना!"
"वह तो सही है लेकिन!"

"लेकिन वेकिन कुछ नहीं! आप इस बारे में सोचो मत बस आराम से बैठो और खाओ पियो।" कहकर किरण रसोई में चली गई।
क्रमशः
सरोज ✍️