loc-love oppose crime - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

एलओसी- लव अपोज़ क्राइम -16

अध्याय -16

भोजनोपरांत नंदिनी और रीनी हॉल में बैठे थे । नंदिनी को कॉफ़ी की तलब हुई । रीनी कॉफी बनवाकर ले आई, दोनों कॉफी पी रही थी कि नंदिनी के मां -पिता और भाई बाहर से आ गए । रीनी ने उनके लिए भी कॉफ़ी बनवाई । भाई का चेहरा नंदिनी को देखकर चमक उठा । नंदिनी भाई से बातें करने लगी । कॉफी पिने के बाद नंदिनी के पिता जी ने अपने कमरे में जाते हुए कहा,- " नंदिनी, में अभी तक बतरा साहब को मिल नहीं पाया हूं तो आज शाम को हम उनसे मिलने चलेंगे । "
नंदिनी और रीनी अपने कमरे में पहुंची । रीनी ने कमरे की खिड़किया खोल दी ।-"नंदिनी, बहुत उमस हो रही है । " नंदिनी ने कहा,-"ठीक है ।"नंदिनी खिड़की के पास खड़ी हो गई । वृक्षो की परछाईयां और धुंधले आकर, छोटे चौकोर बगीचों का फैलाव । चपटी छतें जिन पर गुबंदों की शक्लों वाली बड़ी पानी की टंकिया और इट में दरिया का अहसास, कभी उस में पक्षियों के उड़ते झुंड भी दिखाई देते । नंदिनी ने एक गहरी सांस ली, मानों दुनिया भर का वक़्त उसकी अगली अदा के लिए थमा है। अपने खुले बालो को बांधते हुवे उसने कहा -"रीनी, अब तुम अपने कमरे में जाकर आराम करो । थोड़ा मैं भी आराम करूं । और हां जाते समय खिड़किया बंध कर देना ।"रीनी ने आदेश का पालन किया ।
नंदिनी ने बतरा साहब को फोनकर उनकी खैर खबर पूछी । बतरा साहब से उसका भावनात्मक लगाव बन गया था । उसे एक गीत के बोल याद आ रहे थे :
तुम आ गए हो, नूर आ गया है
नहीं तो चिरागो से लौ जा रही थी
जीने की तुमसे वजह मिल गई है
बड़ी बेवजह जिंदगी जा रही थी ।
बतरा साहब से बात करना नंदिनी को खूब अच्छा लगता था । थोड़ी देर बात करने के बाद नंदिनी आराम करने बिस्तर पर लेट गई ।
पिछले कई दिनों से नंदिनी सुकून से सो नहीं पाई थी । बिस्तर पर अधलेटी अवस्था में वह सोच रही थी कि उसके जीवन में यह सब जो रहस्यमय घट रहा है, कब ख़त्म होगा । कब वो अभिनव से मिल पाएगी? कहां जिंदगीभर साथ रहने के वादे? और कहां कई दिनों से उनकी यादो में हरपल तिल-तिल कर दुखी होना । यह बात किसीने सच ही कही है कि प्रेम का मार्ग हरदम समतल और राजमार्ग नहीं होता, उबड़ खाबड और झाड़ झखाडो से भरा कंटकयुक्त पथ है, लेकिन प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे की बांह थामे इस पथ को किसी सौम्य उद्यान या मनोरम वाटिका की तरह सुहाना बना देते है । लेकिन अभिनव तो नंदिनी से बिछड़ चुका था । उसे देखे हुए नंदिनी को आज कई दिन बीत चुके थे । उसे उस दिन की बात याद आने लगी जब वह अभिनव से आखिरी बार मिली थी । उसके सामने अभिनव का चेहरा आ गया । उसकी आखें भर आई । अभिनव की याद तेजी से सताने लगी ।एक मुलाक़ात में उसके लिए अभिनव ने 'इब्ने इंशा ' की जो कविता पढ़ी थी वो एकदम से याद आ गई -
"हम घूम चुके बस्ती-बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।"
नंदिनी का तकिया भीगने लगा । भीगता रहा ।उसे वो दिन याद आ गया । दिल की धड़कने बढ़ गई । उस दिन इतवार था । सुबह में गजब की चमक थी । खिली धूप फर्श और दीवारों पर कई आकृटियां बना रही थी । नंदिनी तब घर में थी । तभी अभिनव का फोन आया, " नंदिनी, मेरी जान...!लोंग ड्राइव पर चलते है । फटाफट तैयार हो जाओ । "
नंदिनी तैयार होकर बाहर आई । अभिनव कार लेकर खड़ा था । नंदिनी के बैठते ही अभिनव तेज गति से कार चलाने लगा । उस वक़्त सडके शांत थी । नंदिनी ने दोनों तरफ की खिड़की के शीशे इंच भर गिरा दिए । सर्द हवा की एक सीधी लहर आर -पार गुजर रही थी । उसके प्रवाह में नंदिनी के बालों की लटे बार -बार उसके चेहरे पर झूल रही थी । एक मोहक प्रागैतिहासिक अदा से वह हर मिनट दो मिनट में अपना सर झटक देती । अभिनव उसकी यह अदा चोर नजर से देखकर मुस्कुराता । अभिनव पर एक नशा सा चढ़ गया था ।वह अपना फोकस ड्राइविंग पर किए हुए था, फ़िर भी वह हतप्रभ सा उस दुबली -पतली सुंदर लड़की के खुलते बंद होंठ देख रहा था । गुलाब की पंखुड़ियों से होंठ । ये लड़की उसके जीवन में बेहद गहरे से उत्तर चुकी थी । उसने गाड़ी को लोहिया पार्क के फूड लाऊंज में रोक दिया । अभी दस ही बजे थे । ब्रेक फ़ास्ट आर्डर किया, बड़े से लाऊंज में तब एक्का दुक्का की ग्राहक थे । अभिनव नंदिनी के ख्याल और चेहरे में डूबने लगा। वो हल्के से मुस्कुराती हुई नंदिनी से नजर हटा नहीं पा रहा था । नंदिनी भी उसे ताकती रही । अभिनव कब उसे आवाज देने लगा वह भी होश नहीं रहा ।
" ओये मैडम, ऐसे मत देखो...। मर ही जायेंगे । " दिल पर हाथ रखते अभिनव ने फ़िल्मी अंदाज से कहा ।
" अभी... बस देखने दो... क्या पता कल तुम कही..."नंदिनी बोली ।
" जान...,तुम्हें छोड़कर कही नहीं जाऊंगा । कभी नहीं ।" नंदिनी की बात काटते हुवे अभिनव ने कहा ।
" अभी तो फिर क्यों दूर चले गये । " नंदिनी का मन पुकारने लगा । यह सोचते ही नंदिनी की रुलाई फूट पड़ी । इतने में किसीने दरवाजा खटखटाया । नंदिनी ने अपने को संभाला । मुंह पर पानी के छींटे मारे । संयत होकर दरवाजा खोला । रीनी थी ।
" तुम रो रही थी न? "
नंदिनी चुप रही ।
"अभिनव की बहुत याद आ रही थी न? " रीनी का प्रतिप्रश्न ।
नंदिनी फ़िरभी चुप रही ।
तकरीबन पांच मिनिट तक दोनों के बीच मौन का विंध्याचल तना रहा । फिर नंदिनी ने ही चुप्पी तोड़ी, " क्या तुम्हें राघव की याद...? "
" आती है । आती है न!! बहुत आती है । वो भले ही धोकेबाज था, पर मै उसे कभी भुला नहीं पाई । नहीं भूल सकती मैं उसे । " यह कहकर रीनी नंदिनी से लिपट गई ।
कमरा दोनों के रोने की सिसकियों से भर गया ।
* * *
शाम का धुंधलका छाने लगा था । सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में कॉफी पी रहे थे । पिताजी ने सभी को तैयार होने के लिए कहा ।
थोड़ी देर में नंदिनी, रीनी, मां -पिताजी बतरा साहब से मिलने के लिए रवाना हुए । नंदिनी ने मां से बतरा साहब की तारीफ करनी शुरू कर दी । यह सुनकर पिताजी बेहद ख़ुश हुए क्योंकि अब तो प्रोजेक्ट की कामयाबी सुनिश्चित हो गई । इतने में मां की नजर रास्ते में पानी पूरी के एक स्टॉल पर गई और उनकी बातों का रुख बदल गया ।
"नंदिनी, देखो पानी पूरी... तुम्हें पता है नंदिनी पानी पूरी का शौक मुझे स्कूल के दिनों से है । उसके चक्कर में स्कूल के बाद घर पहुंचने में लेट हो जाता था । मेरी पसंद का पानीपुरी वाला 2 किमी दूर अपना स्टोल लगाता था । इसलिये तुम्हारी नानी मुझे खूब डाटती थी ।" यह कहकर मां हस पड़ी ।
नंदिनी मां का यह रूप पहली बार देख रही थी । पर और ज्यादा देखे उससे पहले पिताजी ने कहा ।
" चुप बैठो । बहुत बोलती हो तुम । दिखाई नहीं दे रहा है क्या की में प्रोजेक्ट फाइल पढ़ रहा हूं । " पिताजी मां पर झुंझला गए । पर नंदिनी को देख बोले " बेटी, तुम्हारी मां भी न... कहा क्या बात करनी वो सोचे बिना ही बोल पड़ती है । ठीक है आते वक़्त पानीपुरी खा लेना । "कहकर मुस्कुराये ।
यह नंदिनी की समझ के परे था । वो बस निशब्द देखती रही ।
मंज़िल आ गई थी । अब बतरा साहब होटल में रहने की बजाय एक बंगले में सिफ्ट हो गये थे । एस वी रोड पर । सब वहां पहोचे । अंदर जाने पर पता चला कि बतरा साहब को अर्जेन्ट किसी काम से बाहर जाना पड़ गया था । इसलिये आज नहीं मिल पाएंगे । इसलिये सभी से माफ़ी भी मांगी है ।
फिर यह काफिला घर की और लौट पड़ा ।
* * *
घर पहुंचने के आधे घंटे बाद नंदिनी को बतरा साहब का फोन आया, " बेटा नंदिनी... सोरी हम आज मिल नहीं पाए । हा बेटा दरअसल रघु का पता चल गया है । इसलिये मुझे घर से बाहर अचानक निकलना पड़ा था बेटा । अभी 9 बजे रधु से मिलना है । हमें ही जाना होगा वहां! स्टार सिटी के थोड़ा आगे । तुम तुरंत आ जाओ बेटा फिर साथ चलते है । "
" जी अभी निकलती हूं । " कहकर नंदिनी ने फोन रखकर रीनी को पुकारा, " रीनी... फटाफट तैयार हो जाओ । बतरा साहब का फोन था । उनके साथ एक पार्टी में जाना है । वहां किसी के साथ एक मीटिंग है । यह बात पिताजी को बता दो । "
रीनी और नंदिनी ने बतरा साहब के बंगले के पास पहोच कर ड्राइवर को घर जाने को कहा । वे दोनों बतरा साहब की कार में बैठी । कार आगे बढ़ी । डी एन रोड पर स्थित मिलन मॉल के सामने कार रुकी । वहां पर अपने चेहरे को रुमाल से बांधे हुए एक आदमी कार में सवार हुआ । नंदिनी और रीनी डर गई । बतरा साहब ने यह भांप लिया । बोले, " बेटा चिंता न करो । यह अपना ही परिचित है सूर्यभान । इसी ने हमें रघु की खबर दी है । " यह सुनकर नंदिनी- रीनी की जान में जान आई । फिर बतरा साहब सूर्यभान के मुख़ातिब हुए, " हां तो सूर्यभान! ताज़ा खबर क्या है? और कुछ पता चला? "
" जी! मेरी खबर पक्की है । "तब तक सूर्यभान ने चेहरे से रुमाल हटा लीया था ।" रघु ठीक 9 बजे रॉयल बार में आने वाला है । किसी से मिलने । हम उसे वही पकड़ेंगे । मेरी ऑफीसर्स वहां पहुंच चुके हैं । " यह सुनकर बतरा साहब ने चेन की सांस ली । " थैंकयू ऑफिसर! "
रॉयल बार की रौनक शबाब पर थी । वर्दी धारी वेटर ग्राहकों को विभिन्न आर्डर सर्व कर रहे थे । तकरीबन हर टेबल भरी हुई थी । लोग मस्ती में खा पी रहे थे । बार में हल्का -हल्का संगीत बज रहा था । वातावरण में वहींस्की, शैपेन, बियर की मादकता के साथ बर्फ, कबाब, तंदूरी मशरूम, फ़िरदौसी कुरमा, बुखारा दाल, बिरयानी अनारकली, कश्मीरी पुलाव, बुखारा दाल, पुदीना पराठा, शाही टुकड़ा, रोगनी नान वगेरे लाजवाब व्यंजनों बीच कांटे -छुरी का स्वर भव्यता को एक अनुपम माहौल प्रस्तुत कर रहा था । न तो नंदिनी,-रीनी -बतरा साहब और न सूर्यभान पर एस माहौल का कोई असर पड़ा । वहां मौजूद कटीले बदन का एक आदमी सूर्यभान के पास आया । उसने सूर्यभान के कान में फुसफुसाकर कुछ कहा । सूर्यभान की नजर ब्लू कलर की शर्ट पहने हुए एक आदमी की और गई । बतरा साहब संकेत समझ गए । वे नंदिनी से बोले, " वही रघु है । "
नंदिनी ने उस तरफ देखा पर उस आदमी क़ी पीठ ही दिख रही थी । नंदिनी रघु की ओर जाने लगी तो सूर्यभान ने उसे रोक दिया, " नो मैडम! हम है न! आप चिंता मत करो । " यह कहकर सूर्यभान अपने साथी के साथ उस टेबल की ओर बढ़ने लगे जहां रघु बैठा था । तब तक रघु को शंका हो गई, वह अचानक खड़ा होकर दूसरे दरवाज़े की ओर जाने लगा । नंदिनी पूरा मांजरा समझ गई । वह समझ गई की रघु भागने की फिराक में है । उसने बतरा साहब से कहा कि ' सर रघु को पकड़ना जरूरी है, वर्ना हम सच्चाई की तह तक नहीं पहुंच पाएंगे । बतरा साहब ने कहा कि, " बेटा तुम चिंता न करो । सूर्यभान व उसके ऑफिसर यहां मौजूद है । "
सूर्यभान को भी भान हो गया कि रघु फरार होने के चक्कर में है । उसने आवाज लगाई -" रघु! " अपना नाम सुनकर रघु ने उस तरफ देखा जहां से आवाज आई । सूर्यभान की नजरें एक पल को मिली । रघु की नजरो में निराशा के भाव थे । एक उदास सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आई । शायद उसका खेल ख़त्म होने वाला था, यह उसे पता चल चुका था । इतने में लाइट चली गई । पूरा बार अंधेरे में डूब गया ।
रीनी ने नंदिनी का हाथ पकड़ लिया । " नंदिनी... नंदिनी... वो... वो... ब्लु सर्ट वाला आदमी राघव है । रघु नहीं । " रिनी ने कहा ।
"क्या? क्या कहा तुमने? राघव?"
" हां नंदिनी! ये राघव है । " अंधेरे में रीनी ने साफ महसूस किया कि रीनी कांप रही थी । उसकी आवाज मानो गहरे कुए से आ रही थी ।
तब तक लाइट आ चुकी थी । रघु गायब हो चुका था । सूर्यभान व उसके ऑफिसर के चेहरे निराशा में डूबे थे । बतरा साहबभी चिंता में थे ।
" क्या ? रघु ही राघव है?? " नंदिनी क़ी इस तेज आवाज ने सभी को भोंचक्का कर दिया ।
* * *