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स्वप्ननिलय

स्वप्ननिलय

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उखड़े मन से विनी उठती है ,नजर बेड के दूसरे किनारे तक घूम जाती है ।उतारे हुए कपड़े बेड पर फैले पड़े हैं।कुछ अजीब-सी शक्लें लिए ….सलवार का एक पैर उल्टा तो एक सीधा ,कुर्ते की बाँहें बेड से नीचे बेजान-सी लटक रही हैं...बाकी कुर्ते का हिस्सा कपड़ों के ढेर के ऊपर पड़ा है ।

अचानक मन सिहर उठता है, लग रहा था हाथ की हड्डिया टूट गई हैं और बेजान हाथ नीचे लटके हैं या बिना हाथों के शरीर से कुर्ते की खाली बाँहें नीचे लटकी हैं ।घबरा कर विनी ने नजर दूसरी तरफ घुमा लीं ।उसका बिल्कुल मन नही हो रहा था कि कपड़ों को तहाकर सलीके से रख दे या बेड से उठाकर अलग ही रख दे ।कितना उचाट हो गया है मन ….कभी यह बेतरतीबी कितनी नागबार हुआ करती थी उसे ….।

निरूद्देश्य नज़रें घूमते हुए खिड़की से बाहर जाती हैं ... दाने की प्लेट के पास केवल ‘बैठू’ बैठा था।आज सारे पक्षी कहाँ गए ?ओह….वह रात को फिर दाना डालना भूल गई ।घड़ी की तरफ नजर घूमती है ,सुबह के नौ ...उफ...आज सब निराश ही लौट गए होंगे ।आज फिर देर हो गई ...आजकल अक्सर ही देर से उठने लगी है वह।इसी से दाना रात में ही डाल देती है लेकिन रात भूल गई ।बस यह ‘बैठू’है जो बैठा रहता है इंतजार में ...।काफी परच गया है ,सुबह-शाम जब दाना डालती है तो उड़ता नही है ...वरना पहले उसके बालकनी में निकलते ही सारे तोते-कबूतर फड़फड़ाते हुए उड़ जाते थे ।लेकिन धीरे-धीरे उसने ध्यान दिया कि उसके जाने पर बाकी सब उड़ जाते लेकिन एक, बाकी तोतों से थोड़ा छोटा तोता उड़कर सामने के पेड़ पर बैठ जाता और लगता जैसे वह उसे ही देख रहा है ।उसे इस तरह बैठे देखकर वह उसे पुचकार कर बुलाने लगी ।पहले तो वह उसके पुचकारने पर उड़ जाता लेकिन फिर बैठा रहने लगा और धीरे-धीरे तो उसके हाथ से लेकर खाने भी लगा ।इसी से उसने उसका नाम बैठू रख छोड़ा है ।

बैठू के चिल्लाने की आवाज लगातार आ रही है ।वह दाने वाला डिब्बा उठाकर बाल्कनी में आती है ।

“सॉरी बैठू ….सॉरी यार ,आज फिर लेट हो गई ।”दाना डालते-डालते विनी के मुँह से लगातार सॉरी निकल रही है।बैठू भी जैसे बड़े मान से भरा बैठा है।एक झटके से उड़ जाता है ।विनी चौंकती है और आँख में दो बूँद झिलमिलाने लगतीं हैं। “मेरी गलती पे तू भी नाराज है ,बैठू ! आजा प्लीज ...आजा ...बैठू ...प्लीज ।”मुख से एक दबी सिसकी निकल जाती है ।एक गहरी सांस लेकर वह बाल्कनी से हट जाती है ।शायद थोड़ी देर में सब आ जाएं….।

उफ, कितनी लापरवाह हो गई है वह ... ध्यान कहाँ रहता है ...कितने दिन हुए सुमित के साथ नाश्ता किए ,कब सुमित उठते हैं ,कब तैयार होते हैं ,कब सुमित ऑफिस चले जाते हैं ….उसे पता ही नही चलता ।अब तो स्लिपिंग पिल्स भी काम नहीं करतीं ।नींद को वही तीन-चार बजे आना है ।स्वाभाविक है सुबह आँख न खुलना ।


मन में घबराहट -सी उठती है ….पूरा पहाड़ -सा दिन ...उफ...।कैसी बेजान हो गई है वो ...जो घर कभी शीशे की तरह चमकता था ,उसकी चमक जैसे कहीं खो गई है ...कभी घर का कोना-कोना गुंजायमान रहता था खिलखिलाहटो से और आज वही घर काटने को दौड़ता है।घुटे-घुटे गले से एक सर्द आह निकल जाती है ।

डोरबेल की तेज चीख से विनी चौंकती है ।कमला थी ,दरवाजा खोलकर वह फिर बाल्कनी की तरफ मुड़ गई ,मगर बाल्कनी में न जाकर सड़क की तरफ खुलने वाली खिड़की से लगकर खड़ी हो गई ।नीचे आते-जाते लोगों को खोई-खोई नजरों से देखती रहती है ।कौन हैं ये लोग ...कहाँ जा रहे हैं...ऐसा कौन-सा काम है ,जिसके लिए दौड़ लगा रहे हैं ।वह तो पूरा-पूरा दिन बाल्कनी में बैठे-बैठे थक जाती है ।कोई काम नजर नही आता ।उसकी सहेलियां कितनी व्यस्त रहती हैं ,न जाने कहाँ की जल्दी रहती है ।जो जॉब नहीं करतीं वो भी इतनी हड़बड़ाहट में रहती हैं ...मानो दुनिया उनके बिना रूकी जा रही है ।

सुमित को उसकी यही आदत पसंद नहीं,अपने में खोए रहना ।अरे भाई ,सबसे मिलो -जुलो ..समय निकलेगा ।एक-दूसरे को दिखावे के चक्कर में ही सही ,पर आदमी काम में तो लगा रहता है ...जिन्दगी को व्यवस्थित करता रहता है ।कोई क्या कहेगा ?ये एक सवाल लोगों को सब कुछ ठीक करने में जुटाए रखता है ।अगर दुनियादारी न हो तो आदमी और पशु में फर्क ही क्या है ।यह तो मानवीय जरूरत है ।इंसान ,इंसान के साथ सुख -दुख नहीं बाँटेगा ...तो जीवन तो भार बन जाएगा ।

विनी उकता जाती है सुमित के इस प्रवचन से।

“मुझसे नही होता यह सब ।औरतें आएं ,बैठें ,मेरे दुख पर चार झूठे आँसू बहाएं और बाहर जाकर मेरे पागलपन पर चर्चा करें ।”

“ये तुम्हारी गलत सोच है ,विनी!ऐसा कोई नहीं करता ।पहले तो तुम ऐसी न थीं ।तुम किसी के दुख में जाती थीं तो क्या वो तुम्हारे झूठे आँसू होते थे ।तुम तो किसी दुखद घटना से इतना द्रवित हो जातीं थी कि कई-कई दिन खुद परेशान रहती थीं और मुझे भी परेशान कर डालती थीं ।क्या तुम सोचती हो बाकी सब संवेदनारहित हैं ।ऐसा नही है वीनू ,....लोगों से मिलोगी … तो ...दुख से निकलोगी ...न भी निकल सको तो दुख में हंसना सीखोगी ….दुख के साथ कंधा मिलाकर कैसे जी सकते हैं ,जानोगी …..।क्या मुझे दुख नहीं है …..लेकिन मैं लोगों से मिलता हूँ न ...ऑफिस जाता हूँ …..काम भी करता हूँ…...दुख एक ओट में रहता है ।रहता हमेशा है लेकिन हरवक्त बरसने को तैयार नहीं ।अब दुख को मैंने अपने नियंत्रण में ले लिया है …।”सुमित के मुख से एक गहरी सांस निकलते-निकलते रह गई ,यह साफ विनी ने सुमित के चेहरे पर देखा ।

जब सुमित इस तरह अपने दुख को जताकर भी छिपाता है वह चिड़ जाती है उसके महानपन पर ।काश ,सुमित की तरह वह भी अपने दुख को नियंत्रण में कर लेती ...उसका दुख तो उसे नियंत्रण में करके चलता है ।उसी के वशीभूत होकर चलती है ,सोती है ,रोती है ,खाती है ।दुख के अलावा जिन्दगी में कुछ भी मजेदार नहीं है अब उसके लिए ।सच ही क्या उसे

अपने दुख से प्यार हो गया है ।कभी एक क्षण को उसका मन किसी खुशी की तरफ ललकता भी है ,तो अचानक दुख उसे एक पटखनी देकर फिर याद दिला देता है और वह ग्लानि में डूब जाती है ।

कितने अपराधबोध भरे हैं उसके मन में ।पक्षियों को दाना डालना भूल गई ,यह कोंच आज दिन भर रहेगी मन में ...।सुमित के प्रति भी वह अपने को अपराधी समझती है।लेकिन इस जाल से निकलने का वह जरा भी प्रयत्न नही करती।जाल में फंसकर तड़पती मछली बनी रहती है ।अपने को कष्ट देकर ही जैसे उसे आनंद आने लगा है ।


कमला हाथ में चाय का कप देकर चली गई है ।विनी पीछे से उसे जाते देखती रहती है ।कितनी मस्त रहती है यह कमला ,दुखों से जैसे कोई वास्ता ही नहीं है उसका ।मगर ऐसा है क्या?...


आजकल तो हर दूसरे दिन उसकी जबान पर अपना एक नया किस्सा होता है -”अब बीबीजी ,...हम इस आदमी के साथ नहीं रहेंगे ।बहुत अंधेरगर्दी मचाए है ससुरा ...।”

विनी पूछती नहीं है पर कमला जिस दिन भरी होती है,उसे भरे मेघों की तरह विनी के सामने बरसना ही होता है ।और बरसकर वह हल्की हो आती है जैसे ।रो-धोकर फिर काम में जुट जाती है ।जिस दिन शराब पीकर खूब मारपीट करता है ,खूब गालियां देती है ।दो-चार दिन दोनों में अबोला चलता है ,घर में न बोलने की कमी कमला उसका दिमाग चाट कर करती है।काम करते-करते रह-रहकर गालियां निकलती रहती हैं उसके मुख से ।


एक दिन विनी झल्ला पड़ी - “तू छोड़ क्यों नहीं देती उसे ,घर में घुसाती ही क्यूँ है ?घर तूने बनाया है ,तू चलाती है ।क्यों भूल जाती है उसके दिए जख्मों को ?तेरे पेट में सौगात देकर वह फिर रफूचक्कर हो जाएगा ।हर बार वही गलती …।”

लेकिन कमला उसकी बात पर बस मुस्करा कर रह गई।तो क्या सुमित की तरह कमला ने भी दुख को अपने नियंत्रण में कर लिया है ...

उसे याद है कमला जब उसे शुरू-शुरू में मिली थी ,बहुत बुरा हाल था उसका...कमजोर... ,बीमार ,मुरझाई-सी ।कितनी सीधी-सादी सी थी और कितना डरी -घबराई रहती थी ।


सुमित जब इस शहर में स्थानांतरित होकर आया था कोई लगभग पाँच साल पहले ...और वह कामवाली के लिए परेशान थी ।कोई ढंग की कामवाली मिल ही नही रही थी जो उसके समय पर आ सके ।असल में ट्रांसफर का सबसे बुरा पक्ष यही था ।सुमित को ऑफिसर कॉलॉनी में ऑफिस की तरफ से ही फ्लैट आबंटित होता । ऑफिसर कॉलॉनी में ऑफिसर तो आया राम -गया राम थे लेकिन मेड्स का एक तरह से राज चलता था ।उन्होंने अपने ग्रुप बना रखे थे ,अपने घर भी डिसाइड किए रहतीं ।जैसे ही नए लोग आते उनके घर पर चक्कर लगाना शुरू कर देतीं ,उनकी कोशिश रहती कि नए लोगों की कॉलॉनी वालों से जानपहचान होने से पहले ही वो काम हथिया लें ।विनी कभी ऐसे कॉलॉनी कल्चर में रही नहीं थी ,सो पहली बार जो उसके घर काम पूछने आई विनी ने उसी को रख लिया ,लेकिन कुछ समय बाद ही उसकी असलियत उसके सामने आने लगी ,वह काम कम और बाकी घरों की चर्चा में ज्यादा रस लेती ।एक-दो बार विनी ने टोका भी ,तो उस वक्त सँभल जाती ,कुछ समय पश्चात फिर वही हाल ।रहती भी बडी ठसक में ,...गहरी लिपस्टिक ,कपड़ें भी जरा स्टाइलिश होते उसके ,ब्लाउज इतना तंग पहनती कि वह सोचती रह जाती कि यह सांस कैसे लेती है ,ऊपर से ब्लाउज के अंदर मोबाइल रख लेती ,अक्सर मोबाइल की बैटरी ऑन हो जाती और अंदर से मोबाइल की स्क्रीन चमचमाने लगती ।कई बार विनी ने मोबाइल वहाँ रखने के नुकसान भी बताए पर वह एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती।बाद में पास-पडो़स में जानपहचान होने पर उनलोगों ने भी विनी से यही कहा कि आपने बड़ी जल्दबाजी की बबीता को रखने में ,यह तो लीडर बनी हुई है यहाँ की ।नीचे पार्क में बैठकर मीटिंग करती रहती है ।इससे तो सब आज़िज़ आ चुके हैं ।कॉलॉनी में नई बाईयों को आने नही देती ।जितनी हैं सबके घर बाँट दिए हैं इसने ।हटा भी नही सकते बुरी तरह झगड़ा करके सीन खड़ा कर देती है । विनी ने भी उपाय यही निकाला कि जब वह काम करती ,वह वहाँ से हट जाती या उसके सामने गम्भीर मुँह बनाए रहती,जिससे उसकी ज्यादा हिम्मत न पड़ती उसके सामने बोलने की । उससे मुक्ति तो मिली पर कैसे…


दो माह बाद ही कम्पनी की तरफ से सुमित को अमेरिका भेजे जाने का ऑर्डर आ गया।तीन माह का प्रोजेक्ट था ,जिसमें पत्नी को अपने साथ ले जा सकते थे ।विनी अमेरिका के नाम से ही उछल पड़ी ।अभी बच्चे थे नही ,पारिवारिक जिम्मेदारी भी नही थी कुछ,सुमित अकेला ही था ।माँ-बाप काफी समय पहले ही भगवान को प्यारे हो चुके थे । शीघ्र ही सुमित के साथ विनी भी अमेरिका चली गई ।तीन माह पश्चात विनी ,सुमित के साथ अमेरिका से लौटी ।तीन माह में घर बहुत ही गंदा हो गया था , चारों तरफ धूल की मोटी परत चढ़ी थी ।काफी सामान तो वह चादरों से ढककर ही गई थी ।लेकिन फर्श पर धूल ही धूल ,दीवारों पर जाले -धूल छाए थे।इस बात का अहसास उसे था ही इसी से दिल्ली एअरपोर्ट पर पहुंच कर ही उसने बबीता को फोन मिलाना शुरू कर दिया था लेकिन फोन लगा ही नहीं ,दिल्ली से गुडगांव पहुंचने तक वह ट्राई करती रही ,लेकिन बार-बार कम्प्यूटराइज्ड रिकॉर्डडेड वॉइस आती रही , चेक योर नम्बर ,दिस नम्बर डज नॉट एक्जिस्ट…।

गुडगांव पहुँचकर घर का हाल देखकर विनी परेशान हो गई ।घर खुला देखकर सामने वाली पड़ोसिन आ गई ,फॉरेन रिटर्न पड़ोसी की कुछ ज्यादा ही पूछ हो रही थी ।

“अरे रे रे...घर तो बड़ा गंदा हो रहा है ।आप चाबी भी नही दे गए थे न किसी को ….।”-उन्होंने उलाहना सा दिया। “ खैर ..आप अभी मेरे घर आ जाइए ...फ्रेश हो लीजिए ।मेरी कामवाली अभी आकर सफाई कर देगी ।”उदारता दिखाते हुए वो बोलीं।

इतना लम्बा सफर करने के बाद विनी की भी हिम्मत नही हो रही थी कुछ करने की ।पड़ोसी के यहाँ चाय पीते हुए ही उसने पूछा -”ये बबीता आ रही है न काम करने भाभी जी ?उसका फोन ही नही लगता ।”

“अरे ...आपको नही पता ,बबीता को तो कॉलॉनी से निकाल दिया गया । ”

“क्या….?”आश्चर्य से विनी का मुँह खुला रह गया ।

“हाँss…”आँखे नचाते हुए बड़ा सा हाँ निकला उनके तिर्यक होठों से । “जानती हैं आपके साथ ही मिस्टर भार्गव ट्रांसफर होकर आए थे ...इ-15 में ।उनकी मिसेज साथ में नहीं आई थीं ,बच्चों के कारण वो मुम्बई ही रह रही थीं ।”

“हाँ-हाँ ,याद आया. ..।उनके यहाँ भी शायद बबीता ही काम करती थी ।”

“शायद नही जी ...करती ही थी ….पर कुछ ज्यादा ही काम कर गई ।”पडोसिन के चेहरे की मुस्कान कुछ ज्यादा ही चौड़ी हो गई ।

“मतलब?”

“मतलब ...चोरी करते पकडी गई वह उनके यहाँ ….बीच में मिसेज भार्गव आईं थीं ,उन्होंने उसे रंगे हाथों पकड़ा ।”

फिर कुछ और पास खिसककर उसके कान में बुदबुदाईं-”बड़ी खास चोरी….।”

विनी जबतक कुछ पूछती वो बरतन समेटते हुए उठ खड़ी हुईं “अरे आइए विनी, हम लोग बॉलकनी में बैठते हैं ….इनको और भाईसाहब को मैच देखने दो ...तबतक आपका घर भी साफ हो जाएगा ।”


बालकनी में बैठकर पड़ोसिन ने जिस तरह बबीता और मिस्टर भार्गव की कहानी चटकारे लेकर सुनाई और सिद्ध किया कि जमाना कितना खराब है और पति को अकेले छोड़ना कितना खतरनाक हो सकता है ।आदमी जात ही ऐसी है ,इसपर कभी भरोसा नही किया जा सकता ।विनी अंदर तक हिल गई और अंदर ही अंदर सुमित को कभी अकेला न छोडऩे का प्रण कर लिया ।


बहरहाल विनी के सामने अभी सबसे बड़ी समस्या कामवाली की थी सुमित की नही ।दो-चार दिन पड़ोसिन मिसेज़ गुप्ता की कामवाली ने थोड़ा बहुत काम किया ।उसके पास पहले ही काफी काम थे ।बबीता के जाने से लोग खुश भी थे लेकिन कामवालियों का अभाव भी था ।अचानक एक दिन पडो़स की ही कामवाली अपने साथ एक औरत को लेकर आई ।औरत बहुत ही कमजोर लग रही थी ,साधारण सी साड़ी ,नजरें झुकाए खड़ी थी ।देखने से ऐसा लग रहा था जैसे किसी बडी बीमारी से उठी हो ।


“मैडम ,आपको कामवाली की जरुरत है न।यह कमला है ,अकेली रहती है ।इसको भी काम की जरुरत है ।


विनी ,बबीता के समय जैसी जल्दी नही करना चाहती थी ।

“क्यों ,अकेले क्यों रहती हो ?”


वह हकला उठी - “ज...ज...जी...आदमी छोड़ गया ।”


“बच्चे नहीं हैं ?”इस सवाल पर उसने सिर झुकाकर ना में सिर हिला दिया था ।


“अरे मैडम, बेचारी बड़ी दुखी है,आदमी इसका ससुरा बड़ा हरामी है ।शराब पीकर मारता-पीटता है ।खर्चा कुछ देता नहीं ...बस पेट से हुई नहीं ,भाग लेता है।” तब तक पड़ोसी कामवाली ने उसका इतिहास बता डाला ।


“तो बच्चे…..”विनी ने सिर झुकाए खड़ी कमला की तरफ आश्चर्य से देखा ।


“बड़ी किस्मत की पोच है,बच्चा रुकता ही नही ,मैडम !दो-तीन महीना चढ़ता ,खोटी हो जाता।”जबाब इसबार भी पडो़सी कामवाली ने ही दिया ।

उसके कृशकाय शरीर को देखकर ही विनी को अंदाजा हो गया था कितना मिसयूज झेला है उसके इस बेदम शरीर ने ।इस शरीर में बच्चा रुकता भी कैसे ? यह काम कर पाएगी इस कमजोर शरीर को लेकर ,इसमें विनी को संदेह ही था पर न जाने क्या था कमला की उन पीली-निस्तेज मगर ईमानदार आँखों में कि विनी ने निर्णय दे दिया-”अच्छा ठीक है ,कल से आओ ।पर मुझे कोई झमेला नही चाहिए ।”


कमला की आँखें चमकीली सी हो आईं ।होठों के किनारे हल्की हँसी से फैल गए ,चेहरे के ऊपर जो कष्टों की कालिख-सी पुती थी ,अचानक वहां उजास फैल गई ।और इस बार उसने जबाब पड़ोसिन को नहीं देने दिया ।


“आप एक बार काम तो देखिए ,दीदी ।आपको निराश नहीं करेंगे “


कमला के बोलने के तरीके से विनी ने अचकचा कर उसे देखा ।बड़ा नपा-तुला सा सलीके वाला अंदाज था ।


“हममम,...पढ़ी-लिखी हो “


“जी, थोड़ा-बहुत ,”नजरें झुकाए-झुकाए ही कमला बोली ।


वो तो धीरे-धीरे ही विनी को पता चला कि कमला थोड़ा -बहुत

नहीं ,अच्छा -खासा पढ़ लेती थी ।पिता की मृत्यु हो जाने की वजह से हाईस्कूल की परीक्षा नहीं दे पाई थी वह ,फिर आगे कभी पढ़ नहीं पाई ,वरना पढाई में वह अच्छी थी ।काफी दिनों बाद जब वह विनी के सामने खुलने लगी थी तब कभीकभी विनी को अपने बारे में बता बैठती ,मगर कुछ-कुछ ही।कमला अन्य कामवालियों से बहुत अलग थी ।बड़ा सलीके से हर काम करती, इतना कमजोर होने के बाबजूद लगी रहती और सच ही कमला अपनी बात पर खरी उतरी ।विनी को भी इस बार अपनी पारखी नजर पर गर्व हो उठा था ।कमला की आँखों में जो ईमानदारी उसे उस दिन दिखाई दी थी ,उससे कुछ ज्यादा ही ईमानदार थी वह ।उसकी ईमानदारी और स्वाभिमान की पराकाष्ठा ही थी कि शुरु-शुरु में जब विनी उसको कुछ खिलाना-पिलाना चाहती तो वह नानुकूर ही करती रहती तब वह जबरदस्ती उसे टिफिन में खाना रखकर दे देती जिससे घर पर ही आराम से खा लेगी और कमला ...उसके लौटाए टिफिन में जब विनी को दस रुपए मिले तो उसने यही सोचा था कि वह टिफिन में नोट रखकर भूल गई है ,लेकिन कमला का जबाब सुनकर विनी भौंचक्की हो उठी , “खाली टिफिन नहीं लौटाया जाता ,दीदी !अच्छा नहीं मानते ।”


मन हुआ डाँट दे कि “ दस रुपए खाने के टिफिन में रोज लौटाएगी तो बाकी गृहस्थी कैसे चलाएगी ।एक मेरे घर के अलावा कहीं काम भी नहीं करती ।”


काम तो कमला अच्छा क्या बहुत अच्छा करती थी मगर धीरे-धीरे ,आराम से करती हड़बड़ाहट में नहीं ।जल्दी करने को कितना भी कहो मगर उसका जबाब होता , “हम शैतान नहीं हैं ।”शुरू में तो विनी के समझ में ही नहीं आता था कि उसका कहने का मतलब क्या है ।एक दिन पूछने पर खिलखिलाते हुए बोली , “मतलब दीदी !जल्दी का काम शैतान का होता है ।”


“इसका मतलब मैं शैतान हूँ ।” विनी के नकली गुस्से पर वह और जोर से हँस पड़ती ।


धीरे-धीरे खुल रही थी कमला । हमेशा गुनगुनाते हुए काम करती ।विनी का म्यूजिक सिस्टम चलता रहता था ,विनी खुद संगीत का जबरदस्त शौक रखती थी ।लेकिन कमला का नृत्य देख तो वह आश्चर्यचकित ही रह गई थी ,एक दिन विनी अचानक रसोईघर में पहुंची तो ‘रंगीला रे ssssतेरे रंग में ...यूँ रँगा है...मेरा मन... ’पर कमला अपनी सुधबुध खो नृत्य करने में मगन थी ।विनी अचम्भित थी कि कमला लय-ताल न समझते हुए भी बही जा रही थी गीत के साथ ,उसकी आँखे न जाने कहाँ देख रही थीं ...चेहरे पर अंदर की सारी पीड़ा निकल कर बही जा रही थी जैसे ...सुधबुध खोए नृत्य के बोलों पर उसके पैर चलते जा रहे थे ।चेहरे और हाथों की मुद्राओं पर गीत के बोल जैसे लिखे जा रहे थे ।


‘दुख मेरा दुल्हा है,बिरहा है डोली

आंसू की साड़ी है ,आहों की चोली ’


गीत की इन पंक्तियों पर कमला अपने आंचल को सर पर डाल लहराते हुए लहराई तो सच ही उसका आंचल आंसुओं के तारों से बना ही लगा विनी को ।


‘आग मैं पीऊं रे जैसे हो पानी

नारी दीवानी हूँ ,पीड़ा की रानी

मनवा ये जले है ,जग सारा छले है

सांस क्यों चले है पियाsssss...वाह रे प्यार ...वाह रे वाह’


पीठ के पीछे की तरफ झुककर जब कमला ने आग पीने का अभिनय किया , विनी से रुका नहीं गया और मोबाइल से उसका वीडियो बनाने लगी ।कमला नृत्य करते हुए झूम कर लहराते हुए रसोई के दरवाजे से आ टकराई तो उसकी नजर दरवाजे पर खड़ी विनी से मिली ।


“ओssss….माँँssss.”कहते हुए कमला चेहरा हाथों में छिपाते हुए फर्श पर बैठ गई ।


“अरे !!कमला!!!तुम तो कमाल का डांस करती हो ...वाह बहुत खूब ।”


“अरे नहीं दीदी !!!पता नहीं हमें क्या हो जाता है ,ये गाना जब आता है तो हम सुध खो बैठते हैं ।”


कमला की आँखों में नमी आते देख विनी उसे विडिओ दिखाने लगी ।कमला हँस-हँस कर दोहरी हो गई ।एक साल में कमला में गजब बदलाव हुआ था । उसकी हंसी में , बातों में और बदन में ,विनी की जिद से जो थोड़ा -बहुत उसके बदन में जा रहा था ,वह दिख रहा था । अभी तक ये चीजें उसकी दबी थीं शर्म-संकोच में ...मगर विनी की जरा -सी पुचकार से उसमें जान आने लगी थी,वह जिन्दगी जीने लगी थी जैसे।कमला को गाना, नाच ,टीवी ,फिल्म सभी का जबरदस्त शौक था ।फिल्में ,सीरियल देखते हुए वह फैंटेसी बुनती ,अपने को नायिका से रिलेट कर लेती ...सब्जी काटते -छीलते उसका प्रिय शग़ल था टीवी देखना ।नायिका खुश तो कमला भी खुश और नायिका दुखी तो वह भी दुख में डूब जाती ।लेकिन अपने बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहती थी कमला,एक सुरक्षा-घेरा बनाया हुआ था उसने अपने इर्दगिर्द ।कभी विनी कुछ पूछना -कहना चाहती भी तो हल्का-फुल्का जबाब दे इधर-उधर हो जाती।कमला के बारे में विनी को कमला से नहीं अपनी पड़ोसिन से ज्यादा पता चलता ,पड़ोसिन की कामवाली जो किस्से कमला के बारे में उसे बताती थोड़ा नमक-मिर्च के साथ वो किस्से विनी के पास पहुँचते ।


कमला की सुघड़ता की तो विनी कायल थी ही ,उसका घर देख वह उसकी कल्पनशीलता की भी मुरीद हो गई थी ।एकबार दो-तीन दिन कमला के न आने पर वह उसके घर पहुंच गई थी ।क्योंकि न उसका कोई मैसज था ,फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था ।दरअसल मोबाइल तो वह विनी के यहाँ ही चार्ज कर पाती थी उसके घर में बिजली की सुविधा नहीं थी ।कमला के कई दिन न आने पर ,विनी घबरा कर कमला के यहाँ जा पहुँची क्योंकि ऐसा तभी होता था जब या तो कमला बीमार होती ,जो अक्सर हो ही जाती थी कमजोर शरीर के कारण या फिर उसका आदमी आ जाता और दो -चार दिन रहकर ,कमला के अंजर-पंजर ढीले कर फिर चलता बनता ।उस दिन विनी ने सोच ही लिया था कि कमला के आदमी की क्लास ले ही ली जाए ।


विनी के अपार्टमेंट से ज्यादा दूर नहीं थी कमला की बस्ती ...बस्ती क्या ,पास ही एक सरकारी मैदान में बेघर लोगों ने घर के नाम पर जगह की घेरा-घारी की हुई थी ...कच्चे-पक्के , माचिस की डिब्बियों जैसे छोटे-छोटे दड़बे नुमा कुछ घर बने थे।जिनकी दीवारें मिट्टी-गारे से और छतें दोचार बांस के टुकड़ों या पेड़ की टहनियां तोड़ उनके ऊपर प्लास्टिक सीट डालकर तैयार कर ली गई थी ,जहाँ प्लास्टिक सीट मयस्सर न थी वहाँ फूस ,लकड़ी के टुकड़े, टाट ,बोरी आदि से छत नाम की चीज बना ली गई थी ।लेकिन जिन्दगी फिर भी गुलजार थी । कल्पनाशीलता को गरीबी से खास मतलब नहीं होता,कुछ घरों को देखकर ही पता चल जाता है ।थे वो घर दड़बे ही ,मगर कुछ बड़ी सुघड़ता से बने हुए ,चिकनी मिट्टी से प्लास्टर की गईं

दीवारें सीमेंट को मात देती लग रही थीं ।कुछ घरों की सामने की छोटी-सी दीवारें सजी थी कल्पनाओं के अनोखे रंगो से , सफेद चूने से पुती ,कहीं हालात थोड़े अच्छे होने से चूने में नीला -पीला रंग मिला दिया गया था ।और उनपर उकेरी गई थीं कहीं अनगढ़, तो कहीं सुघड़ हाथों से कुछ तस्वीरें ,आकृतियाँ ,फूल-पत्तियां।


मैदान में घुसते ही सामना एकदूसरे पर मिट्टी उछाल-उछाल कर खेलते बच्चों से हो गया,धूल का एक बबंडर बना था बच्चों के चारों ओर ।विनी असमंजस में पड़ गई वहाँ पहुँचकर ,दिन के दस-ग्यारह बजे ही सन्नाटा पसरा था ,समझ नहीं आ रहा था कौनसा घर होगा कमला का ।कोई नजर भी नहीं आरहा था किससे पूछे ।काम का समय था ,इस वक्त कौन मिलेगा?ये कुछ ऐसे भाग्यशाली बच्चे थे शायद जिनपर काम की मार नहीं पड़ी थी अभी तक,जिन्हें ना दुनिया की फिकर थी ना भविष्य की चिन्ता। ना स्कूल जाना था ना होमवर्क का पचड़ा ,न नहाने की फिक्र न डाँट का डर ।एक पल को विनी उनके इस स्वच्छंद, स्वतंत्र, बेफिक्र जिन्दगी से ईर्ष्या कर उठी ...इतनी बेफिक्री और इतना सुकून ।उसे अपने संभ्रांत दोस्तों का ख्याल आ गया जिनके बच्चे सोने के पिजरों में कैद से मैदानों में खेलना भूल ही गए थे ।मगर इस बेफिक्री का मोल इनके भविष्य से लिया जाएगा ।


विनी ने उनकी बेफिक्री में खलल डाल दिया था शायद ।उसे देख संकोच में जो जैसा था कुछ क्षणों को वैसा ही रह गया ...कोई लुढका था ,कोई बैठा था ,कोई खड़ा था ।कुछ पल को वहशत -सी फैली रही और सही पोजीशन में आने की जद्दोजहद होने लगी ...जो लुढके थे ,बैठने ...बैठे ,खड़े होने … खड़े ,अपने कपड़ों की धूल झाड़ने लगे ।एकदूसरे को खिसियाहट से देख विनी को चोर नजरों से देख लेते ।अभी धूल थोड़ा दब गई तो सब साफ-साफ नजर आने लगे ।उनमें जो उम्र में थोड़ा बड़ा दिख रहा था नजर उसी की तरफ गई ,-


“ये कमला कहाँ रहती है ,बेटा ? ”


जब तक वह जबाब देता ,एक छोटी उम्र का लड़का कूदकर सामने आ गया ,-“आइए...आइए आंटी ,मैं ले चलता हूँ ।”


विनी उसकी नजर पकड़ मुस्करा उठी ,जो उसके हाथ में पकड़े फल-बिस्किट के पैकेट पर थी ।


“अच्छा-अच्छा ,तुम ही चलो ...बताओ तो कहाँ है !”


वह शान से इधरउधर देखते हुए विनी के आगे-आगे चल एक साफ-सुथरे दरवाजे के सामने आ खड़ा हुआ ।दरवाजा क्या था ,जमीन से लगी छोटी खिड़की जैसा था ।घर की ऊंचाई ही उसके कंधो तक थी ।घर के अंदर सीधे खड़े होकर चलने की कल्पना ही की जा सकती है ,कमला की लम्बाई कम थी गनीमत है ।अमीरों के यहाँ कुत्तों के लिए बनाए घरों की ऊँचाई भी शायद इनसे ज्यादा होती होगी ।दीवार गोबर से लिपी होने के बाबजूद खूब चिकनी की गई थी और दरवाजे के दोनों तरफ सफेद चूने या खड़िया से बेलबूटे बनाए गए थे।दरवाजे पर एक पल को विनी ठिठक कर रह गई… फिर अपनी लम्बी काया मोड़ सर झुका अंदर प्रवेश कर गई ।एक नजर में समा जाने वाला कमरा शुरु होते ही खत्म हो गया ,मगर बड़ा व्यवस्थित -व्यवस्थित-सा... ,साफ-सुघड़।


विनी अंदर सीधी खड़ी थी ,बीच कमरे में एक लम्बा बाँस छत की प्लास्टिक से अड़गाया था ।दरवाजे के बगल की दीवार के सहारे ईंटों से ऊँचा करके रक्खा गया एक लकड़ी का पटरा ,जिसपर उसकी सारी रसोई समाई थी ।एक बर्नर का पुराना मगर रगड़ -रगड़ कर चमकाया हुआ गैसस्टोव ,पटरे के नीचे खाली जगह में छोटा सिलेंडर और सिलेंडर के ऊपर भी एक लकड़ी का छोटा पटरा जिसपर विनी के यहाँ से लाए हुए डिब्बे-डिब्बी में उसका सीमित-सा राशन पानी ...एक पतला लकड़ी का पटरा गैस प्लेटफार्म के थोड़ा ऊपर भी जिसपर छोटे-छोटे डिब्बे रखे थे।बगल में एक पांव की टूटी कुर्सी ,जो विनी ने कबाड़ी को देने के लिए दी थी ,कमला ने उसके एक पांव की जगह ईंटें रख उसे ठाठ से बैठने लायक बना दिया था ,कुर्सी के बगल में रखी स्पेशल मेज देख तो वह चौंक ही गई ,उसके यहाँ से ले जाए गए पुराने छोटे कूलर के स्टैंड के ऊपर उसकी किचेन से बचे ग्रेनाइट के टुकड़े जिन्हें विनी ने फेंकने को बोला था ,कमला की चमकीली काली मेज बने खिलखिला रहे थे ।कमला की गजब कल्पनाशीलता ने विनी को कई जगह कायल किया।


कपड़ें रखने का भी बड़ा फंटास्टिक इंतजाम था कमला का ,उसके घर से लाए गए कार्टन को दीवार के सहारे ईंटों पर रख कपड़ें रखने का काम ले रही थी और बंद करने के बाद वो उसकी छोटी मेज का काम भी देते थे शायद।इस खास मेज के बगल में ही कमला का जमीन पर दीवार से लगा बिस्तर बिछा था ,पहचाने गद्दों को देख विनी एक झुरझुरी से भर उठी ।उसके अमेरिका प्रवास के दौरान चूहों द्वारा एक तरफ से कुतर दिए गए गद्दों को कमला ने पुरानी चादरों का कवर बनाकर चढ़ाया हुआ था ।कमला के बुखार से तपते माथे पर हाथ रखते हुए विनी कमला के बगल में गद्दे पर बैठी तो वह भी एक ताप से भर उठी थी ।भरपूर गरीबी के बाबजूद कमला का घर कहीं से अव्यवस्थित नहीं था ,अपनी मेहनत और कल्पनाशीलता से विनी के घर में अप्रासंगिक हो चुकी चीजों को कमला ने कितना प्रासंगिक बना दिया था ।विनी सच ही ईर्ष्या से भर उठी थी ।कितने आश्चर्य की बात है ,हम जो अपना यूज्ड ,बेकार हो चुका सामान किसी जरूरतमंद को बिना हिचक दे देते हैं ,बाद में उसी के प्रति इतना मोहसिक्त हो उठते हैं ।विनी अपने इस छोटेपन पर अंदर ही अंदर सिकुड़ गई।

विनी को वह जगह कुछ ज्यादा ही भा गई थी ।अब वह अक्सर वहाँ जाने लगी थी।और कुछ समय बाद तो कमला के घर के सामने लगे पेड़ के नीचे वह अपनी छोटी-सी पाठशाला भी चलाने लगी थी ।कमला ने अपनी मेहनत से पेड़ के नीचे ईंट -मिट्टी गारे से एक चबूतरा सा बना दिया और गोबर से लीपलाप कर विनी का बढिया बैठने का आसन बना दिया और विनी के यहाँ से तेल -पेंट आदि के खाली कंटेनर ला ,उनमें पौधे लगा माहौल हराभरा कर डाला ।और उसके छात्र बने ...वही धूल में खेलते बच्चे ।


विनी को कमला हमेशा एक आश्चर्य में छोड़ देती थी कितना कुछ था उसके अंदर लेकिन सारा कुछ एक आदमी के कारण निरर्थक हो जाता था।कमला जिसतरह अपने घर को व्यवस्थित रखती थी जिन्दगी को भी सँवारना चाहती ।मगर हमेशा उसका पति उसकी इस ख्वाहिश के अन्त का सबब बनता ।जब तक उसकी नाजायज जरूरतें पूरी होतीं रहतीं सब ठीक रहता , कमला का इंकार उसे पागल कर देता ।सारा प्रेम लात-घूँसों में बदल जाता ।कमला लात -घूँसे फिर भी सहन कर लेती लेकिन गालियों से उसे बड़ी घिन आती ।वह विनी के सामने बिलख उठती ।हालाँकि कमला भी अब पहले जैसी चुप्पू नहीं बल्कि अक्सर गालियां उसके मुँह से निकलने लगी थी ,मगर पति की गालियों से मर्माहत हो उठती ।पति की बात आने पर तो अक्सर गाली निकल जाती उसके मुँह से ,फिर शर्मिंदा हो उठती , “आप भी क्या सोचती होंगी दीदी ,यह कमला खुद कितनी गाली देती है और पति की शिकायत करती है ।लेकिन ...सच दीदी ...मुझे अपने से भी नफरत होती है ...कहाँ से कहा पहुंचा दिया इस आदमी ने मुझे ,मैं बस उससे यही कहती हूँ तू गाली मत दिया कर ...जब वह मेरी माँ-बहन को अपने ही नहीं कुत्तों तक से जोड़ गाली देता है तो….सच ,दीदी!मन करता है उसको खत्म ही कर दूँ या खुद को मार डालूँ ।एक औरत कितनी मजबूर ,कमजोर होती है ।आदमी ऐसी गाली देकर अपनी मर्दानगी दिखाता है ।मैं जब उसे पलटकर गाली देती हूँ ना ...तो हँसहँसकर दोहरा हो जाता है ,मुझे और उकसाता है गाली देने के लिए।इसमें भी उस बेहया को मजा आता है ।सच दीदी!उस वक्त तो मन होता है...मर जाऊँ या इसे मार दूँ।”

विनी के दो घंटे स्कूल चलाने से कमला की जिन्दगी भी थोड़ी स्थिर हुई थी ।कमला का पति भूषण विनी के वहाँ आने से थोड़ा घबराने लगा था ।विनी ने उस बिगड़े साँड को थोड़ा सलीके से ही काबू में किया था ।


“अरे भूषण भैय्या!!आप जरा बाजार से कुछ किताबें-कॉपियां ला देंगे बच्चों के लिए।”


या कभी, “भूषण भैय्या ,आप जो पिछली बार कॉपियां लाए थे ,बहुत सही थीं ….पेज अच्छे ,साफ ...और रेट भी कितना सही ।कुछ और ले आइए ।”कभी पेन -पेन्सिल ,रंग या खाने-पीने का सामान ही ,वह कुछ न कुछ सामान की लिस्ट पकड़ा देती ।और शायद विनी की प्रसंशा पाने के लिए ही वह हमेशा तैयार रहता उसके काम के लिए । या विनी हमेशा उसे अलग से कुछ पैसे देती ,इसका लालच रहता ।पता नहीं ,मगर कभी एक पैसे का भी घपला नहीं किया उसने ।


विनी के तरीके का भूषण पर काफी असर हो रहा था, यह उसे कमला से ही तब पता चला जब कमला हँस हँसकर उसे बताती, “अरे दीदी!आपके स्कूल चलाने से बच्चों की जिन्दगी सँवरे न सँवरे पर मेरी तो सँवर रही है ।अरे बड़ा दीवाना हुआ पड़ा है आपका।”


“चल कुछ भी बकती है ।”विनी उसे झिड़कती ।


“नहीं ,सच में दीदी ..कहता है मैडम तो दुर्गा रूप हैं ।कितना प्यारा बोलती हैं ,आप-आप ,भूषण भैय्या करके ।गरीबों को इतनी इज्ज़त से बुलाने वाला तो भगवान ही हुआ न।मैडम के लिए तो कुछ भी कर सकता है ।….अब तो शराब भी कम कर दी है और गाली तो भूल ही गया है ।”कहते-कहते कमला की आँखों में ढेर आदर -प्यार उमड़ आता विनी के लिए।


सब कुछ ही तो कितना अच्छा हो गया था उन दिनों ।सुबह -शाम तेज रफ्तार ट्रेन जैसे भागते हुए कब निकले जा रहे थे ,पता ही नहीं चला।वो सुमित के साथ आसमान में थी ।जिन्दगी भरपूर खिलखिला रही थी ।झुग्गियों वाली वो बस्ती अब पहले से ज्यादा गुलजार हो उठी थी ।विनी का और ज्यादा समय वहाँ बीतने लगा था ,लड़कियों-औरतों को सिलाई-कढ़ाई , पढ़ना -लिखना भी सिखाने लगी ।विनी के वहाँ पहुँचते ही बच्चे-बूढ़े ,औरत-मर्द सबके चेहरे खिल जाते ।विनी को भी उनकी छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने में अच्छा लगता ।मगर उनकी गरीबी-अज्ञानता कहीं अंदर उसे अपनी सीमित सीमाओं का आभास कराता और वह मायूस हो जाती ।

इस बीच कमला एक प्यारे- से बच्चे की माँ भी बन गई ।जहां कमला का शरीर जर्जर हो चुका था ,विनी के प्यार-सहयोग से वही शरीर खिल उठा था ,मरते हुए पौधे को विनी ने जिला ही लिया था आखिर, सोचकर विनी सुखद आश्चर्य से भर उठती ।भूषण भी उसका कायल हो चुका था और जिन्दगी सही ढंग से जीने का मतलब उसे समझ आने लगा था ।कमला के छोटे -से,गलगुथना-से बच्चे को देख विनी भी प्यार से सराबोर हो उठती और ममता की हिलोरें उसके कलेजे को हिलाने लगतीं।


और ऐसे ही खुशबूदार हवा वाले दिनों में एक नई

खुशबू ने अचानक विनी को चौंका दिया ,शुरू में काफी दिन उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था ,वह अंदर -अंदर, गहरी -गहरी सांसें लेकर उस खुश्बू की वास्तविकता को तौलती ,नापती और जब ..खुश्बू लबालब हो मन से छलक -छलक जाने को हो उठी ,वह सुमित के आगे खुश्बू उड़ेल उसकी छाती में छुप गई ,सिमट गई ।सुमित तो बौरा ही गया था ।आखिर शादी के आठ साल बाद खुशी मिलने वाली थी। उसके बाद तो विनी के हाथ में जैसे कुछ रहा ही नहीं ,सुमित और कमला की डिक्टेटर शिप लागू हो गई उसके ऊपर ।क्या खाना है ,क्या पीना है ,कब सोना है ,कब उठना है ,डॉक्टर के निर्देश ,नेट की सारी जानकारी, सुमित उसपर उड़ेले दे रहा था और जो कसर रह जाती कमला पूरी कर देती ।मगर विनी को बड़ा मजा आ रहा था इस डिक्टेटर शिप में ,ऊपर-ऊपर गुस्सा करती मगर मन आसमान में होता ,वह इतराई-इतराई घूमती ।न जाने कितने सुरक्षा घेरे विनी के चारों ओर बना दिए थे सुमित और कमला ने ।इन घेरों में भी विनी मस्त रहती बस अफसोस बस्ती न जा पाने का होता ।पर कमला उसके इस अफसोस को यह कहकर छूमंतर कर देती कि उसके बिना भी विनी की लगाई दोनों लड़कियां स्कूल बढ़िया चला रही हैं और भूषण भी सही से सारे काम सँभाले है ।अतः वह न भी जाएगी तो कोई गजब नहीं हो जाएगा ।


डॉक्टर के अनुसार उसे सामान्य ही रहना था जैसी रहती आई थी ,बस कुछ एहतियात के साथ, मगर सुमित ने अपने बौराएपन में उसकी हर भागदौड़ पर रोक लगा दी थी ।ऑफिस से लगातार फोन करता रहता , “कैसी हो ,...ठीक हो?...नीचे तो नहीं उतरीं ?...जूस पिया ?,...फ्रूट्स खाए ?,...दोपहर वाली दवाई ली ?,...”ऐसे अनगिनत सवाल वह थोड़ी-थोड़ी देर में पूछता रहता ।कभी-कभी वह परेशान हो जाती , “अरे सुमित!आपने तो मुझे बिल्कुल बच्चा बना दिया है ,डॉक्टर ने सब नोर्मल ही बताया है ,नोर्मल ही रहने को कहा है।”


“जी नहीं, आप बच्ची ही रहेंगी ,जब तक मम्मी नहीं बन जातीं ...और अगर तुमने कुछ इधरउधर किया तो मैं ऑफिस से छुट्टी लेकर बैठ जाऊँगा ।”


विनी हँसकर अपना सर पकड़ लेती और सुमित की नाक अँगूठे-उंगली के बीच पकड़ प्यार से हिला देती ,”ओकेेएएए,होनेवाले पापाजी !!” अच्छे समय को भागते देर नहीं लगती ।समय बड़ी तेजी से पंख लगा उड़ा जा रहा था । आठवां माह शुरु भी हो चुका था ।


“याद रखना ,विनी !रुटीन चैकअप के लिए डॉक्टर के यहाँ शाम को जाना है ।अपॉइंटमेंट ले लिया है ,मैं ऑफिस से जल्दी आ जाऊँगा ।”ऑफिस जाते हुए ही सुमित बोला।


“ठीक है, तुम ऑफिस से निकलो तो फोन कर देना ,मैं तैयार रहूँगी ,नीचे ही आजाऊँगी ।”


“अरे नहीं, मैं ऊपर ही आऊंगा ,फिर साथ ही चलेंगे।”


“सुमित!लिफ्ट है ना!!!....क्या प्रोब्लम है नीचे आने में,...तुम भी ना...।”विनी हँस पड़ी थी।


“नो ,कोई चांस नहीं ...वुड वी मॉम !”विनी के अंदाज में ही सुमित ने अँगूठे-उंगली के बीच उसकी नाक पकड़ लाड़ से भर ,हल्के से हिला दी ।


शाम पांच बजे ही सुमित का फोन आ गया था ,उसे तैयार रहने के लिए ।विनी ,सुमित के उतावलेपन को जानकर समय से ही तैयार थी ।ऑफिस से निकलते वक्त ही सुमित ने फोन कर दिया था ।ऑफिस से घर का रास्ता लगभग पैंतालीस-पचास मिनट का था ,जिसे रोजाना तो सुमित मुश्किल से तीस-पैंतीस मिनट में पार कर लेता था ,नित्य उसके लौटने का समय रात्रि दस-साढे दस रहता ।मगर यह शाम छ:-सात के बीच का समय ,भयंकर रश ,दस -पन्द्रह मिनट बाद ही वह जबरदस्त जाम में फँस गया ।पंद्रह मिनट तो गाड़ी को हिला भी नहीं सका ।परेशान हो विनी को फोन लगा दिया ,- “अरे विनी ,यार जाम में बहुत बुरी तरह फँसा हूँ ।कहीं अपॉइंटमेंट का समय निकल न जाए ।यहाँ से गाड़ी आगे खिसक ही नहीं रही ,बडा़ लम्बा जाम लग गया है ।”


“ऐसा करते हैं न ,सुमित !तुम डॉक्टर के यहाँ सीधे पहुँचो ,मैं टैक्सी करके डॉक्टर के यहाँ पहुंच जाऊँगी ,समय भी बचेगा ।वरना पहले तुम घर आओगे ,फिर यहां से डॉक्टर के यहाँ जाएंगे ।


“अरे नहीं-नहीं, मैं घर आता हूँ ,साथ ही चलेंगे ।”सुमित की आवाज थोड़ी कमजोर थी ।


“देखो सुमित ,जिस जगह तुम जाम में फँसे हो और जिस तरह तुम हालात बता रहो हो ,दो ढाई घंटे से कम समय नहीं लगेगा तुम्हें घर पहुँचने में ,उससे मुझे यही सही लग रहा है ,कि मैं इधर से सीधे पहुँचू और तुम इस वक्त जहाँ हो क्लीनिक वहां से पास है ,तुम वहाँ जल्दी पहुंच जाओगे।”विनी ने थोड़ा जोर देकर कहा ।


“मैं आता हूँ न यार ...नहीं होगा तो किसी और दिन दिखा लेंगे ।”सुमित कमजोर आवाज में ही बोला ।


सुमित की आवाज से ही विनी समझ गई अब वह मान जाएगा ।ऐसा तभी होता है जब वह मजबूरी में बात मानने वाला होता है ।बस एक दो बार जोर लगाने की जरूरत होती है।


“सुमित !कुछ नहीं होता… आराम से आ सकती हूँ ।तुम मुझे इतना कमजोर मत बनाओ ,प्लीज् !प्रैग्नेंसी है ,कोई बीमारी नहीं।औरतें प्रेग्नेंसी के दौरान कितना काम करती हैं।...अच्छा सुनो ,मैं कमला को ले आती हूँ ।”


“हम्म्म्… अच्छा ...देख लो वीनू !पर मेरा मन नहीं मानता ।”


विनी मुस्करा पड़ी ।बस अब सुमित मान ही गया ।


“अरे सुमि डार्लिंग !मुझपर भरोसा रक्खो मेरी जान !तुम क्लीनिक पहुँचो ,बेबी ,मैं भी पहुँचती हूँ ...ओकेएएए....।”


“ओके …”


सुमित मरी-मरी आवाज़ में बोल रहा था ,मगर विनी उत्साह से भर उठी थी ।आठ माह से सोने की जेल में बंद थी जैसे और अकेले जाने का निर्णय ,कोई भारी फतह हासिल की हो मानो ।फटाफट ओला बुक की ,दस मिनट में टैक्सी फ्लैट के नीचे थी ।बैग में जरूरी सामान और डॉक्टर की फाइल ले वह लॉक लगा लिफ्ट के सामने उसका ऊपर आने का इतंजार करने लगी ।कमला के बेटे को बुखार था सो वह पहले ही घर जा चुकी थी ,अगर सुमित को बताती ,वह फिर तनाव में आ जाता सो वह कमला के जाने की बात दबा गई थी।लिफ्ट आने में समय ले रही थी ।

वह बार-बार बटन दबाए जा रही थी ,“क्या हुआ लिफ्ट को?”


“अरे भाभी जी ,लिफ्ट खराब है । ”सीढ़ियों से मिस्टर शर्मा हाँपते हुए चढ़ रहे थे।


मिस्टर शर्मा की बढ़ी तोंद और चढ़ी हँफनी देख वह दया से मुस्करा दी ,तभी अपने बढ़े पेट पर ध्यान चला गया ।फिर लगा तीन ही तो फ्लोर हैं ,उतर जाऊँगी ।मिस्टर शर्मा के कुछ सवाल करने से पहले ही वह जल्दी से सीढियों की तरफ बढ़ गई, अगर फिर सुमित का फोन आ गया तो वह झूठ नहीं बोल पाएगी ।लेकिन मिस्टर शर्मा ने पीछे से पुकार ही लिया, “अरे भाभी जी !आप कहाँ जा रही हैं ,सुमित कहाँ है ?”


उसने सीढी पर पैर रखने के लिए पहला कदम उठाया ही था कि मिस्टर शर्मा की आवाज सुन वह पलटी जबाब देने के लिए …


आजतक उसे याद नहीं आता कि उस क्षण हुआ क्या था ।उसका पैर साड़ी में फंसा था या अचानक मिस्टर शर्मा की आवाज से पलटी तो संतुलन नहीं रख पाई या उसे चक्कर आया या...या…,आखिर क्या हुआ उस एक पल में ...जिसने उसकी जिन्दगी बदल कर रख दी ।दिमाग पर बहुत जोर डालने पर ,बहुत सोचने पर भी बस इतना ही याद आता है

,वह सीढियों से तेजी से लुढ़कती जा रही है ,मिस्टर शर्मा की चीखने की आवाजें पीछे से आ रही हैं और उसके मुँह से डरावनी लम्बी चीखें ...सुमितssss...सुमितsssssss...सुमितssssssss…..


किस तरह उसका शरीर एक फुटबॉल बन गया था और हर सीढी एक खिलाड़ी ...वह लुढ़कती जा रही थी ,लुढ़कती जा रही थी ।उसके बाद क्या हुआ ,कुछ पता नहीं, कुछ याद नहीं ...कैसे अस्पताल पहुँची ,कैसे सुमित जाम से निकला ,कैसे अस्पताल पहुँचा ।ये तो कॉलॉनी की औरतें दुख की रस्में अदा करने आती तो पता चलता रहा कि सुमित का क्या हाल हुआ था ,वह तो समझो पागल ही हो गया था ,फोन जाने पर वह जाम में ही गाड़ी छोड़ दौड़ पड़ा था ,वो तो गुप्ता जी ने उसे समझाया कि वह अस्पताल पहुँचे ,वे विनी को लेकर पहुँच रहे हैं ।अरे कॉलॉनी वालों ने बड़ा साथ दिया उस वक्त भई ...तुरन्त ही उसे अस्पताल ले गए ओला भी खड़ी थी ,मगर गुप्ताजी अपनी ही गाड़ी से लेकर गए ।


विनी औरतों की यह सब गाथा नहीं सुनना चाहती ,वह आँखे मूँदे लेटी रहती ।अजीब मुर्दनी छा जाती उसपर। शरीर पत्थर-सा पड़ा रहता और अंदर चीखें गूँजती ...क्यूँ ...आखिर क्यूँ...मेरे साथ ही क्यूँ...जब अंदर की चीखें शरीर झेलने से इंकार कर देता ,सहन नहीं कर पाता तो वह झटके से उठ बैठती,फटी निगाहों से सबको तकती रह जाती और उत्तेजित हो कुछ भी उटपटांग करने -बोलने लगती , “ओह वाकई …थैंक्यूयूऊऊऊऊऊ मिसेज गुप्ता ,...थैंक्यू मिसेज शर्मा ,आपने बहुत हेल्प की , कितने महान हैं आप लोग...आप हमेशा ऐसे ही हेल्प करिए ...औरतें गिरेंगी ...मरेंगी ...आपको मौके मिलते रहेंगे ….मौके …”


सुमित मुश्किल से नियंत्रण कर पाता स्थिति ….नर्स के नींद के इंजेक्शन के बाद ही वह धीमे -धीमे शान्त हो पाती ।

“अरे भाईसाहब !विनी के दिमाग पर असर हुआ है ।सही भी है भई ,इतने समय बाद तो खुशी मिली वह भी ईश्वर को मंजूर नहीं हुई ।सबसे बड़ा दुख तो इस बात का है कि आगे चांस भी ….”सुमित घबराकर उनकी बात काट देता ,मगर विनी के दिमाग में नींद में डूबते-डूबते भी आखिरी शब्द गूँजते रहते , आगे चांस भी ...आगे चांस भी ….।


धीरे-धीरे वह अपने खोल में सिमटती चली गई ,कोई आए ...कोई जाए उसे फर्क नहीं पड़ता ,नींद की गोलियां उसके मस्तिष्क को सुन्न सा किए रहतीं ...घर आए लोगों को वह सूनी निगाहों से देखती रहती ,उनकी पहचान भी उसकी आँखों में न उभरती ।हौले-हौले लोग किनारा करते गए उससे ...सुमित और कमला के भरोसे गाड़ी हिचकोले खाते हुए चल रही थी ।समय के साथ विनी सँभल तो रही थी मगर जीने का उत्साह जैसे कहीं खो गया था ।कमला उसके समक्ष उलजलूल हरकतें करती ,भूषण को गाली देती ,जबरदस्ती भूषण की बेरहमी की कहानियां बना-बना उसे सुनाती कि कहीं से तो उस पाषाण को पिघला सके मगर पत्थर बनी विनी पर कमला की बातें पानी सी फिसल जातीं ।लेकिन कमला ने हार नहीं ही मानी वह विनी की संवेदनाओं को जगाने के लिए जमूरा बन नाचती ही रही और जब विनी झुंझला उठती तो कमला के चेहरे पर हंसी खिल जाती ।विनी गुस्सा करे ,हंसे चाहे रोए मगर कुछ रिएक्ट करे बस यही कमला की कोशिश रहती ...न जाने कहाँ के मेडिकल से पढ आई थी कमला ।

सुमित सीधे-सीधे प्रवचन सुनाता है और कमला कम पढ़ीलिखी होने के बाबजूद उसके जख्मों को नहीं उघाड़ती ,न जता -जताकर मरहम रखती है बस उसके जख्मों को समय के साथ भरने का मौका दे रही है और हौले-हौले अपने स्नेह धागों में उलझा उसे वही विनी बनाने की कोशिश में लगी है जो उसके दुखों से दुखी होती थी और खुशियों से खुश ।


दरवाजे की घंटी लगातार बज रही थी ,मगर कमला विनी के सिर की मालिश में लगी है ,मुश्किल से तो खिड़की से हटा पाई थी उसे ,वरना घंटों वहीं खड़ी रहती विनी ।घंटी बजाने में तीव्रता आती जा रही थी ...विनी के चेहरे पर झुंझलाहट आ रही थी और कमला अनदेखा कर रही थी ।


“जाती क्यों नहीं ?देख कौन है?” विनी कसमसा उठी ।


कमला मुस्करा पड़ी - “अरे देखती हूँ ,दीदी !पता नहीं कौन है ...मार आफत मचाए है ।”


कहने के बाद भी बड़े आराम से ही कमला उठी और रसोई में हाथ धोने लगी जाकर ।दरवाजे पर घंटी के साथ अब तेज-तेज थाप और जोर-जोर से चिल्लाने की आवाजें भी आने लगी थीं ।विनी झटके से उठ खड़ी हुई ।“तेरा दिमाग खराब हो गया है ,कमला ...दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है ।”विनी गुस्से से चिल्ला दरवाजे पर पहुंच गई और झटके से दरवाजा खोल दिया ।कमला भीगी आँखों से मुस्करा उठी ।मगर दरवाजे पर भूषण को देख चौंक पड़ी , “अरे क्या हुआ ,तुम क्यों आए हो यहाँ ?”

भूषण का चेहरा भट्टी से तुरन्त निकली ईंट सा लाल हो रहा था क्रोध से वह विनी को भूल चीख उठा कमला के ऊपर ,-“तू पगला गई है क्या ?लड़के को इतने तेज बुखार में अकेले छोड़कर चली आई है ...लड़का बेहोश पड़ा है घर में और यहाँ बैठी हँसी ठठ्ठा कर रही है ससुरी ,फिर दरवाजा खोलने में भी मर गई ।”

“सुबह तो हल्का-सा बुखार था ।”कमला की आवाज की लापरवाही से विनी चौंक उठी ।


“हल्का बुखार ...एक सौ दो बुखार तुझे हल्का लगे है ...यहां आना तेरा बहुत जरूरी है ,वहां अपनी औलाद मर रही है उसका होस नहीं हरामजादी को ...दूसरों के दुखड़े दूर करने निकली है ।तेरे इन्हीं लक्छनों से पिटती है तू ...।”


“भूषण भैय्या…”विनी चीख कर बोलना चाह रही थी मगर उसके शब्द फुसफुसाहट बन कर रह गए ।


“अरे मैडम ...आप तो अपने दुखों से निकलने से रही ...पर इस औरत ने हमें दुखों की आग में झौंक दिया है ,आपके अलावा इसे कुछ नहीं सूझता ...जब देखो छूट भागती है बिछड़ी गाय सी ...न घर देखेगी न द्वार ...दीदी ...दीदी ,बस यही रट ।”


“चुप रह कम्बखत ...शरम नहीं है तुझे ,दीदी के आगे बोले जा रहा है ...भूल गया ...जब बिगड़ैल बच्चे की तरह मुझे अधखाई रोटी सा छोड़ जाता था ,बीबी बनाकर लाया था यह कहकर कि रानी बनाकर रखूंगा और किया क्या तूने ?मुझे गन्ने की पोरी सा चूसकर खोई बनाकर फैंक दिया ... तेरी भूख पूरी न कर पाई तो मेरी माँ पर ही हाथ साफ करने लगा ।और ताने मुझे क्या देता दीदी !जानती हैं ...कि तेरे शरीर का सारा रस तेरे पहले आदमी ने ही निचोड़ लिया ...मुझे तो चिचुडी हड्डी मिली है जैसे मैं सड़क का कुत्ता होऊँ...तुझसे जादा नमक तो तेरी माँ में है ,तेरा बाप जल्दी मर गया था न इसी से ।”कमला रोते-रोते बोले जा रही थी ,-

“यही दीदी हैं जो मेरी चिचुडी हड्डियों में भी रस भर बैठी और मेरे शरीर के खतम नमक को ...जाने किस समन्दर से निकाल लाईं ...और तू ...बात बनाता है बेहया ...तू भी जीने का सलीका सीख बैठा इनसे ...जो रोज-रोज भाग छूटता था ,मेरे सूखे -कमजोर शरीर से उकताकर ।वही है न तू जो दीदी को दुर्गा रूप बताते नहीं थकता था ,उनके बोलने ,उनके स्वभाव के गुण गाता फिरता था। ”कमला बुरी तरह सिसक उठी ,पता नहीं अपने सारे घाव उजागर कर बैठी इस लज्जा से या विनी के समक्ष पहली बार इतनी कमजोर पड़ गई यह सोचकर ।विनी स्तब्ध खड़ी थी ,भूषण का सिर भी शरम से गरदन पर लुढ़क गया ।

धीरे -धीरे चलते हुए विनी ,रोती हुई कमला के एकदम सामने आकर बैठ गई ,कमला के आँसुओं से भीगे चेहरे को अपनी हथेलियों में भर ,ऊपर उठाया ,कमला की आँसुओं से लबालब आँखों की उफनती नदी में झांकते हुए विनी तड़प उठी - “किस जनम का रिश्ता निभा रही है री कमला ...कौन है तू मेरी ?माँ...बहन ...बेटी ...बोल तो ...इतनी स्वाभिमानी तू ...अपने दर्दो की किरच-किरच तक को तो तूने छिपाकर रखा था मुझसे ,अपने जीवन के जिन काले अध्यायों को तूने मेरी सहानुभूति लेने के लिए भी कभी मेरे सामने नहीं दिखाया ...और- और लोगों से तेरी कहानी मालूम चलती थी मगर तू कभी अपनी जबान पर अपने दर्द नहीं लाती थी ...तेरे स्वाभिमान का सम्मान मेरे दिल में भी हमेशा रहा ,इसीलिए कभी तेरे जख्म नहीं कुरेदे ।मगर आज तूने ...मुझे ठीक करने के लिए मेरी डॉक्टर बन सारे गुर आजमा लिए ...सात तालों में छिपाई अपनी गाथा के सब ताले तोड़ डाले ...बस मुझे ठीक करने के लिए ...।ऐसा कौन-सा रिश्ता है री हमारा ...अपना कहने को न माँ ...न बाप ...भाई न बहन ...एक पति का रिश्ता है जो अब रिश्तों का भग्नावशेष ही है ...।तू तो मेरी माँ,बहन ,बेटी सब बन बैठी ,इतना तो कोई अपने सगों के लिए भी नहीं करता ...।”विनी ने कमला को जोर से गले लगा लिया और दोनों जाने कब की बिछुड़ी आत्माओं-सी गले मिल हिलक उठीं ।


“दीदी आप मेरी माँ ,बहन ,बेटी से भी बढ़कर हो ,सब कुछ हो आप मेरी ,आपने मुझे जो दिया है वह मेरे सगे रिश्तों ने भी ना दिया ,पहली शादी बाप के मरने के बाद भाई ने बुड्ढे से कर दी ,बुड्ढे ने मेरे शरीर का जो हाल किया ,कभी न बता पाऊँगी ...वहां से मुक्ति तो उसके एक रोड एक्सीडेंन्ट में मरने पर हुई ...शादी से इतना डर गई थी मैं ,मगर भाई-भाभी को मेरी दो रोटी फिर भारी पड़ने लगीं और इससे रुपया ले ब्याह दिया इसके साथ ।जो नरक बाकी था भोगना, वो इससे शादी करके भोग लिया ...मगर शायद भगवान जी का पुराना हिसाब चुकता हो गया था ,जो आप मुझे मिल गईं ...कुछ अच्छे करम तो जरूर रहे होंगे पिछले जनम के खाते में मेरे,...तो आपके लिए तो मैं पूरी दुनिया से लड़ जाऊं दीदी ,भले मेरी औकात चिउंटी बराबर न हो ।मैं तो उस दिन को रोती हूँ कि शिवा की तबियत खराब होने की वजह से मैं आपके पास ना रुकी ...तब शायद ऐसा होता ही नहीं ...मैं तो उस परमात्मा से भी नाराज हूँ जिसने आप जैसी इंसान को ये दुख दिया...दीदी मैं किसी लायक नहीं हूँ पर आपके इस पहाड़ जैसे दुख को थोड़ा भी कम कर सकूँ तो मेरी जान भी हाजिर है ...प्लीज् दीदी ...पहले जैसी हो जाओ ना ...बस्ती में सब आपकी राह देखते हैं ...हम सबको आपकी जरूरत है ...वहाँ के सारे बच्चों की आप माँ हैं ...मेरा शिवा तो आपका ही है ...हे माँ !हम अनाथों की फिर से हो जाओ ना ...।”कमला फूट-फूट कर रोते हुए विनी की गोद में गिर गई ।भूषण भी जुड़े हाथों को सिर से लगा जमीन पर लोट गया ।


विनी ने कमला के दोनों हाथों को अपनी हथेलियों से उठा होठों से लगा लिया और बार-बार चूमते हुए सिसक उठी - “हाँ री ,आऊँगी ...जरूर आऊँगी ...अब बस्ती ही आऊँगी ...न जाने किस झूठे मोह के पीछे भाग रही थी ...तूने मुझे इस अघोरी नींद से जगा दिया कमला ...अब ...अब बस्ती ही मेरा अन्तिम स्वप्ननिलय है ...और वही मेरा स्वप्नफल है री...।”

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