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क्लीनचिट - 18

अंक - अठारह/१८

अब तो अंकल भी चक्कर खा गए।

'मान गए बेटा, तुम्हारी बात सोलह आने सही है। इस स्थिति को क्या कहेंगे, सरप्राइज़, सस्पेंस या फिर ऊपरवाले की अदम्य लीला?'
'संजना सब से पहले मैं तुम्हारे पापा को कॉल करके कह दूं कि आप लोगों को घर पहुंचने में देर होगी तो कोई चिंता न करें। क्योंकि मुझे लगता है कि अब येे डिस्कसन थोड़ा लम्बा चलेगा इसलिए।'
'हां, ओ. के. अंकल।'
इसलिए अंकल ने चिमनलाल को कॉल करके बता दिया।
पल पल पझल जैसे भ्रामक स्थिति के साथ साथ स्वाति की अधीरता का ग्राफ भी बढ़ रहा था। इसलिए स्वाति ने पूछा, 'अंकल अब क्या कुछ हाे सकता है? अब इस यूनिक महा लुढ़काव की स्थिति का आप ही कोई हल निकाल सको ऐसा है? हल्की मुस्कान के साथ आंटी की ओर देखते हुए अंकल ने कहा,
'तुम्हें नहीं लग रहा है कि,. अब चाय-कॉफी का एक राउंड ज़रूरी है?'
'जी मेरे सरकार' इतना कहकर आंटी किचन की ओर जाने लगी तो,.
'संजना ने कहा, 'मैं आऊ आपकी हेल्प करने आंटी।'
'नहीं बेटा तुम स्वाति के पास बैठो।'

'अंकल मैं पापा के साथ दो मिनट के लिए बात कर लूं उसके बाद हम बातों का दौर आगे बढ़ाते है।'
'ओ श्योर बेटा। तब तक मैं भी कुछ सोच लूं।'
'हेल्लो,. पापा'
'हेल्लो.. स्वाति, कैसी हो बेटा?'
थोड़े भरे हुए आवाज़ में बोली, 'पापा एक गुड न्यूज़ दूं?'
'ओह यस बोलो बोलो.. लेकिन आर यू ओ. के.? क्योंकि तुम्हारी आवाज़..'
'पापा.. आलोक का पता चल गया है, पापा।'
'ओह थैंक गॉड। लेकिन किस तरह?'
'मैं आपको थोड़ी देर बाद सब बातें डिटेल में बताती हूं। अभी आलोक के बारे मैं ही डिस्कसन हाे रहा है औैर संजना भी मेरे साथ ही है। ममा कैसी है?'
'शी इज़ फाइन बेटा।'
'मैं थोड़ी देर बाद कॉल करती हूं, पापा।'
'ओ. के. स्वाति मैं तुम्हारे कॉल का वैट कर रहा हूं। टेक केर।'
कॉफी पीते पीते अंकल किसी डीप थिंकिंग में थे। थोड़े समय की चुप्पी के बाद अंकल बोले..
'स्वाति, संजना लिसन, अदिती औैर आलोक दोनों की हालत को ध्यान में रखते हुए एक रास्ता सूझ रहा है लेकिन..'
'लेकिन.. लेकिन क्या अंकल?'स्वाति बोली।
'बेटा अभी की हालत के चलते दोनों ओर की सिचुएशन की ध्यान में रखते हुए हम किसी भी रास्ते पर आगे जायेंगे तो पग पग पर "लेकिन".. तो आयेगा आयेगा और आयेगा ही। अभी हम दोनों ओर से ऑलमोस्ट बहुत कुछ खो ही चुके हैं। इसलिए हमारे पास कोई रिस्क लेने के सिवाय दूसरा कोई उपाय नहीं है, रिस्क लेंगे लेकिन कैल्क्युलेटेड एण्ड वेल प्लान्ड रिस्क।'

'अंकल, अदिती के लिए मैं किसी भी हद का रिस्क उठाने के लिए तैयार हूं। उसके लिए मुझे किसीसे पूछने की भी ज़रूरत भी नहीं है। अदिती मेरी जान है। अगर ईश्वर ने अदिती की सांसें कम करने का फ़रमान किया होगा तो मैं मेरे उधार सांसों की ईश्वर को एक्सचेंज ऑफर के लिए अरज करूंगी औैर..' इतना बोलकर स्वाति रोने लगी।
'प्लीज़ स्वाति कंट्रोल योरसेल्फ।'
'स्वाति मैं थोड़ा कन्फ्यूज़्ड हूं कि जाे मैं सोच रहा हूं वो तुम्हें किस तरह कहूं?'
संजना बोली, 'अंकल मैं कुछ कह सकती हूं?'
'ओह श्योर बेटा। व्हाय नॉट।'
'अंकल, अभी तक की सब बातें ध्यान से सुनने के बाद मेरी समझ के लेवल से सोचू तो आलोक या अदिती दोनों की ओर से अभी की स्थिति में कोई कुछ कर सके या सोच सके ऐसा हाे तो वो मेरे औैर स्वाति के सिवाय कोई भी नहीं है राइट। औैर अगर आपका साथ मिला तो मुझे आशा है कि कोई उपाय जरूर मिलकर रहेगा। औैर मुझे स्वाति पर पूरा भरोसा है, वाे अदिती के लिए कुछ भी कर सकती है, उसमें दोराय नहीं है।'

'देखो स्वाति, सबसे पहले हम आलोक पर फोकस करें ऐसा मैं सोचता हूं, लेकिन उसके लिए..'इतना बोलकर अंकल रुक गए।
तब स्वाति बोली,
'प्लीज़ अंकल अब इस "लेकिन" शब्द को हमारे मिशन में से परमानेंटली अभी डिलीट ही कर देते है तभी हम किसी टार्गेट तक पहुंच पायेंगे, प्लीज़।'

स्वाति के दृढ़ मनोबल के साथ भरपूर आत्मविश्वास से भरे हुए निवेदन से अंकल में भी हिम्मत आ गई इसलिए बोले..

'देखो अब जाे मैं कहूं वो पूरे ध्यान से सुनो, स्वाति अब तुम कुछ समय के लिए अपने आप को भूल जाओ। अब से तुम्हें अदिती के अवतार में आलोक को नॉर्मल स्थिति में लाना होगा। अगर हम हमारे प्लान में सक्सेसफुल हुए तभी हम अदिती को पा सकेंगे क्योंकि मेरे इतने सालों के अनुभव के आधार पर आलोक औैर अदिती दोनों की अभी की स्थिति को देखते हुए आई थिंक कि आलोक को फिर से नॉर्मल सिचुएशन में आने मेें ज्यादा समय नहीं लगेगा। औैर अगर आलोक एकदम सामान्य हो गया तो अदिती को नॉर्मल होने मेें आलोक का ही सब से बड़ा योगदान होगा वो बात श्योर है। तुम समझ गई मैं क्या कहना चाहता हूं? तुम्हें समझ में आ रहा है इसके बाद का तुम्हारा किरदार? सोच लेना कि तुम्हें किस हद तक औैर कहां तक आलोक से जुड़ना है? आई थिंक यू बैटर अंडरस्टैंड।'

'अंकल एक ओर पूरी दुनिया है औैर एक ओर मेरी जान अदिती है। उसके लिए तो पलभर के लिए भी सोचना नहीं है। आप तो कह रहे हो कि थोड़े समय के लिए अपने आप को भूल जाऊं, अरे.. मेरी अदि की जीवनभर की खुशियों के लिए मैं अपने आप को भूलना तो क्या मिटाने को भी तैयार हूं।'
थोड़ी देर चुप्पी छा गई।
'देखो स्वाति,.' अंकल को आगे बोलने से रोकते हुए स्वाति बोली,.
'सॉरी अंकल स्वाति नहीं,. अदिति कहिए।'

इतना सुनते ही अब अंकल औैर आंटी दोनों की आंखें भर आईं।
स्वाति ने अपना अदिती के लिए समर्पण की विराट प्रसार की परिभाषा का परिचय पल में ही दे दिया। भीगी आंखों से अंकल बोले,

'बेटा मेरी ५० साल की ज़िन्दगी में किसी के बलिदान को इतने बड़े स्वरूप में कभी भी नहीं देखा या न तो कल्पना की। तुम्हारे इस अडिग निर्णय के सामने एक बार तो ईश्वर भी हारकर हथियार डाल देंगे, उस बात अब कोई शंका का कोई स्थान नहीं है। सही में मुझे तुम्हारे पेरेंट्स के लिए औैर उससे ज़्यादा तुम्हारे लिए प्राउड फील कर रहा हूं। सही में तुम्हारे आत्मविश्वास को सैल्यूट करने का मन हो रहा है।'
रोते रोते स्वाति बोली,
'अंकल आपने जो कुछ भी कहा सही में उसकी हकदार मेरी अदि है। मैं तो निमित्त मात्र हूं। येे जिस्म स्वाति का है आत्मा तो अदि की है।' अंकल बोले, 'कौन नसीब वाला? तुम्हारे माता, पिता, अदिती या आलोक?'
'अंकल, नसीब वाले नहीं निमित्त, क्योंकि, मेरा तो सौभाग्य है कि मैं किसी की मुस्कान के पता का निमित्त बन सकी।'
उसके बाद अंकल स्वाति को समझाने लगे।

'क्यूं? कब? किसके साथ? कहां? कितना? किस तरह क्या क्या करना है औैर अभी की आलोक की स्थिति औैर जगह की एक एक बातों से स्वाति को अवगत कर दिया। औैर जो कोई भी शर्तें रखेंगे वो शर्तें भी बता दी।'

स्वाति को अंकल ने कहा, 'बेटा जैसे संजना मेरी बेटी जैसी है वैसे तुम भी मेरी बेटी ही हाे। इसलिए हमारे प्लान के मुताबिक तुम एकदम निश्चिंत होकर आलोक के साथ जा सकती हो और हम सब एनी टाईम तुम्हारे साथ ही है। अपने पेरेंट्स के कॉन्टेक्ट नंबर मुझे देना। वाे इसलिए कि तुम्हारे इस बलिदान को नादानियत की नज़रों से नहीं देखें। मैं डिटेल में उनके साथ बात करके सब समझा दूंगा। इट्स माय रिस्पांसिबिलिटी।'
'अब संजना तुम कल दोपहर १२ बजे के आसपास स्वाति को.. सॉरी अदिती को लेकर केअर यूनिट पर आ जाना। तुम्हारी आंटी वहीं पर ही होंगी। औैर बाद में हम आलोक के साथ उसकी अदिती का मेल करवायेंगे।'

स्वाति को संबोधन करके अंकल ने कहा, 'बेटा अभी भी एक बार फाइनल सोच लेना, क्योंकि तुम्हें किसी पेशेंट को, किसी व्यक्ति को नहीं मिलने जाना है। तुम्हें अपने प्रेमी से मिलने जाना है। औैर जाे ऑलरेडी किसी का प्रेमी है। तुम मेरी बात की गहराई को ठीक से समझ रही हो न?'

भीगी हुई आंखों से स्वाति ने जवाब दिया,
'अंकल बस इतना समझ लीजिए कि अदिती के लिए स्वाति ने स्वयं अपने अस्तित्व का दाह संस्कार कर दिया है। अब इससे ज़्यादा तो क्या कहूं? अंकल दोनों हाथ जोड़कर बोले, 'नाउ आई एम स्पीचलेस।'
आंटी बोले, 'बेटा बहुत देर हो गई है। आप आराम से घर पहुंचो। कल १२ बजे केर यूनिट पर मिलते हैं।'
समय हुआ रात के ११:४५
कार में बैठते हुए स्वाति ने संजना से पूछा, 'तुम्हें कुछ आश्चर्य नहीं लगा?'
'आश्चर्य? किस बात का? कुछ गलत हुआ है? संजना ने पूछा।
'संजना तुम सोचो कि सिर्फ़ दो से तीन घंटे के समय में तुम्हारे अंकल, आंटी वो जिन्हें मैं आज पहली बार मिल रही हूं जिनके साथ पिछले जनम के ऋण बंधन जैसे एक अनन्य आत्मीयता मिलने के बाद भी मैं उन दोनों के नाम से अंजान हूं। येे मेरे लिए शर्म की बात है यार।'

'ओह... आई एम सो सो सॉरी यार.. मि. अविनाश जोशी एण्ड मिसेज स्मिता जोशी। अंकल इज़ साइकियाट्रीक एण्ड आंटी इज़ न्यूरोलॉजिस्ट।'

घर जाकर स्वाति ने एकदम शांति से सारी बातें विस्तार से कहकर विक्रम औैर देवयानी को वाकीफ किया। विक्रम औैर देवयानी को येे रणनीति कुछ अजीब औैर जटिल लगी। दोनों को इस बात का डर था कि ईश्वर पग पग पर बनाए हुए अभिमन्यु के चक्रव्यूह से भी चार कदम आगे इस भुलभुलैया के खेल में अंजाने शहर में अंजाने लोगों के बीच रहकर इस मोर्चे पर अकेले कैसे और किस दिशा में लड़ेगी? बहुत लंबे समय तक विचार विमर्श का दौर चला। अंत में स्वाति के मज़बूत मनोबल से सिद्धि औैर आत्मविश्वास से भरपूर प्रत्युत्तर से दोनों संतुष्ट होते हुए स्वाति को पूर्ण रूप से स्वंतत्रता की सम्मति के साथ साथ शुभकामनाएं भी दी।

अब नेक्स्ट डे दोपहर के १२ बजे के आसपास डॉक्टर अविनाश की केर यूनिट पर....

डॉक्टर अविनाश के चैम्बर में कान के परदे तोड़ दे ऐसी छाई हुई खामोशी के बीच अविनाश, स्मिता, संजना औैर शेखर से थोड़ा दूर...

एक कम से कम मर्यादा की सब हदें तोड़कर जमे हुए जल के जैसे सुन्न बनकर एकदम गुमसुम से पुतले जैसे बनकर आलोक से स्वाति ने पूछा..

'अब बोलिए मि. आलोक अब आपके किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए हम सब तैयार है, पूछिए क्या पूछना है आपको? औैर कितना सत्य जानना है? यही था षड़यंत्र औैर जाल आपको धोखा देने का बोलो। क्या बोलना है आपको अब? आपको धोखा देकर हमने क्या पा लिया बताएंगे आप ज़रा?' इतना बोलकर रोते हुए स्वाति दौड़कर अविनाश के पर्सनल केबिन के अंदर जाकर डोर क्लोज़ कर दिया।

आलोक को लगा कि धरती फट जाए तो समा जाऊं। जिन्दगी की शतरंज की बाज़ी पर कुदरत इतनी बड़ी ऐसी सोच से उल्टी दिशा जैसी चाल चलेगी ऐसी तो किसको कल्पना होगी? सिर्फ़ चार से पांच घंटे की मिलन की घड़ी में से दोनों के जन्मोजन्म के ऋणानुबंध के अंकुरमात्र मेें से असंख्य विस्फोटक फूटेंगे ऐसा कौन सोच सकता है? क्या देखकर ऐसी क्रूर, मुंहतोड़ औैर जानलेवा वीरता से भरी शर्त की शरारत ईश्वर को सूझी होगी? ऐसे कलेजा चीर के रख दे ऐसे दिन देखने के लिए हम दोनो की मिलन की क्षण बनाई होगी?

ऐसी कौन जाने कितनी अकल्पनीय सोच की निरंतर उलट पलट आलोक के दिलो दिमाग में चलती रही।

'आई हेट माइसेल्फ' आलोक ऐसा बोलने के बाद आलोक शेखर के गले लगकर फूटफूट कर रोने लगा। अविनाश ने शेखर की ओर इशारा करके बोला कि आलोक को रोने दे।
संजना औैर मिसिस जोशी स्वाति को शांत करने के लिए उनके रूम में जाने के लिए डोर पर नॉक करते उससे पहले स्वाति ख़ुद बाहर आई तभी...

शेखर बोला,
'अरे.. कौन कह रहा है कि येे अदिती नहीं है? औैर येे अदिती नहीं है तो समझो कि दूसरा कोई अदिती है ही नहीं।'
शेखर की बात सुनकर सभी सुन्न रह गए।
तब डॉक्टर अविनाश ने शेखर से पूछा, 'अब अभी आप कहना कया चाहते हैं?'

शेखर की नज़दीक जाकर स्वाति बोली, 'मैं अदिती नहीं स्वाति हूं शेखर, अदिती की जुड़वा बहन, येे देखो हम दोनों की तस्वीरें।'
'लेकिन मैं नहीं मानता।' शेखर ने जवाब दिया। 'लेकिन क्यूं,? इसमें न मानने जैसी कौनसी बात है? कमाल हो शेखर तुम भी।' आश्चर्य से स्वाति ने पूछा।
शेखर की बात सुनकर सब दंग रह गए, इसलिए कि शेखर ऐसा कौन से मुद्दे के आधार पर इतनी ठोस दलील कर सकता है कि यही अदिती है स्वाति नहीं?
अविनाश बोले,
'शेखर ऐसी कौन सी बात है जिसके आधार तुम कह सको कि येे स्वाति नहीं अदिती है?'

'सर, शायद आलोक, अदिती को पहचानने में गलती कर सकता है लेकिन मैं नहीं। क्योंकि मैंने जिस दिन पहली बार अदिती को देखा उस दिन आलोक एक हद से ज्यादा अपनी याददाश्त खो चुका था। आलोक कुछ भी ऑब्जर्व करने में समर्थ नहीं था, लेकिन डॉक्टर साहब उस दिन से लेकर आज सुबह तक आलोक के एक एक सांस पर इस अदिती ने एक पहरेदार के परिवेश में प्रहर दर प्रहर पहेरा देकर नियमों का पालन करते मैंने देखा है। आलोक के अस्तित्व को टिकाए रखने के लिए उसने अपना खुद पूरा अस्तित्व दांव पर लगाया है। आलोक को प्यास बाद में लगती थी उससे पहले उस प्यास पता लगाते हुए देखा है मैंने इस अदिती को। एक बिन मां के नवजात शिशु के जैसे उसके आत्मा को संभालकर हथेली में रखा है, आलोक को इस.. इस स्त्री ने। कितनी रातों तक सोई नहीं है येे। औैर आप कह रहे हो कि येे अदिती नहीं है? कैसे मान लूं? बस मेरा इतना ही कहना काफ़ी है कि इस अदिती ने अपने अपने सब दुःख, दर्द, सपना, घर, परिवार सबकुछ भूलकर इस आलोक में उसने ऐसी जान डाल दी कि जैसे किसी पत्थर की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा की हाे। औैर अगर ये अदिती नहीं है येे आलोक भी नहीं है। बस मुझे अब दूसरा कुछ भी नहीं कहना। देट्स इट।'
लंबे समय से शेखर के अंदर दबे हुए असंख्य अभिमान अव्यक्त भ्रम की स्थिति को लेकर शब्द औैर आंसु दोनों साथ बाहर आए। तेज़ औैर धारदार सत्य से भरे हुए शब्दबाण से कुछ देर सबकी विचारशक्ति को सच्चे तरीके से लक्ष्य वेध करती हुई शेखर की अस्खलित बातों से थोड़ी देर के लिए सब सन्न रह गए।

'जस्ट ए मिनट' ऐसा बोलकर स्वाति ने अपने मोबाइल में हाॅस्पिटलाइज पोजिशन मेें अदिती के सभी फोटोग्राफ्स आलोक औैर शेखर को दिखाते कहा,
'अब मुझे बताओ कि कौन है अदिती? येे फोटोस में दिखाई दे रही है वाे या जाे तुम्हारी नज़र के सामने खड़ी है वाे?'

आलोक औैर शेखर दोनों विचारशून्य हो गए। अदिती के फोटोग्राफ्स देखकर आलोक जम सा गया। क्या सोचे? क्या बोले? या क्या करना है औैर उसका होश आलोक को नहीं रहा।

अब स्वाति ने बोलना शुरू किया....

'सुनो आलोक..२९ अप्रैल से लेकर इस घड़ी तक बीते हुए एक एक उतार चढ़ाव का निरीक्षण करेंगे तो अदिती के द्वारा सहज रूप से राखी हुई शर्त वो तो विधाता का पूर्व नियोजित किस्से का एक हिस्सा था। वो शर्त तो निमित्त मात्र औैर पूर्व भूमिका थी आप दोनों को किसी भी स्थिति में एक करने की। अभी हमने शर्त के सिक्के के एक पहलू के बारे में पता है, दूसरे पहलू का रहस्य तो अभी अदिती की अप्रत्याशित चुप्पी में कैद है। इस समय तो हम सब विधि के शर्त के शतरंज के प्यादे मात्र है। आप दोनों शर्त की शरारत में चढ़ गए उसके बाद के एक के बाद एक ईश्वरीय इंडीकेशन के सेंसेक्स के ग्राफ पर तुम एक बार नज़र तो डालो।
मेरा बैंगलुरू का कनेक्शन,
संजना का डॉक्टर अविनाश के साथ का कनेक्शन,
डॉक्टर अविनाश का शेखर के साथ कनेक्शन औैर अंत में अदिती द्वारा लिखा हुआ वो अंतिम शब्द "आलोक"

'आप के पांच घंटे छोटी से परिचय के बाद शायद..
शायद, इसलिए क्योंकि अभी मैंने शर्त के सिक्के के दूसरे पहलू की शकल नहीं देखी है। इसलिए शायद मुझे कहना पड़ रहा है, दिल की लगी को एक दिल्लगी के जैसे परखने के लिए अदिती को शर्त का जोश चढ़ा औैर... आज आप दोनों के साथ साथ हमारे दिल औैर दिमाग की बाज़ी कितनी हद तक दांव पर लग गई है, उसका कोई अंदाज़ा है तुम्हें?'

स्वाति बोली, 'आलोक तुम्हें पता है? ईश्वर ने मुझे एक मात्र अदिती के रूप में सबकुछ दिया है। सुख, दुःख, वैभव, ऐश्वर्य, नाम, शोहरत, गर्व, संतोष, प्रेम इन सभी शब्दों की मेरे लिए एक ही परिभाषा है, अदिती। मैं हमेशा ईश्वर से पहले अदिती का स्मरण करती हूं। बस आज तुम्हें दो हाथ जोड़कर बिनती करती हूं कि, मुझे मेरा ईश्वर वापस वापस दे दो बस...'

इसके साथ स्वाति फूट फूट कर रो पड़ी।

आगे अगले अंक में.....


© विजय रावल

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