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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 39

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

39

उन्होंने तब मुझे सुझाव दिया कि मैं उनकी इस्टेट लिम्पने में चला जाऊं जहां मुझे भरपूर शांति मिलेगी और मैं लोगों से दूर रह पाऊंगा। मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब मैंने वहां पहुंच कर पाया कि मेरे कमरे में पीले और सुनहरी रंग के पेस्टल परदे थे।

उनकी इस्टेट असाधारण रूप से खूबसूरत थी। घर को चमक दमक से सजाया गया था। फिलिप इसे कर पाये क्योंकि उनकी अभिरुचि बहुत ऊंची थी। मुझे याद है कि मैं ये देख कर कितना प्रभावित हुआ था कि मेरा सुइट विलासिता की सभी सुविधाओं से लैस था। अगर रात को कहीं मुझे भूख लगे तो सूप गरम रखने के लिए आग से गरम रखी जाने वाली तश्तरी। सवेरे के वक्त दो अनुभवी बटलर तरह तरह के व्यंजनों से लदी एक ट्राली ले कर आते जिस में तरह तरह के पकवान होते: अमेरिकी सीरियल, फिश कटलेट, बैकन और अंडे। मुझे ख्याल आया था कि जब से मैं यूरोप में था, मैं अमेरिकी व्हीटकेक की कमी महसूस कर रहा था और अब ये मेरे सामने थे। मेरे बिस्तर के बगल में ही ले आये गये थे। एकदम गरमा गरम, और साथ में मक्खन और मैपल का शोरबा। लगता था ये सब अरेबियन नाइट्स से चल कर आया है।

सर फिलिप घूम घूम कर घर के काम काज निपटाते और उनका एक हाथ कोट की जेब में होता। वे उस हाथ से मां की मोतियों की माला फेर रहे होते। ये लगभग एक गज लम्बी माला थी और मोतियों का आकार अंगूठे के नाखून के बराबर था। उन्होंने बताया,"मैं मोतियों को जीवित रखने के लिए हमेशा अपने पास रखता हूं।"

जब मैं अपनी थकान से उबर गया तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके साथ ब्राइटन में अस्पताल तक चला चलूंगा जहां पर कुछ ऐसे असाध्य मरीज हैं जो युद्ध में घायल हो गये थे। उन युवा चेहरों को देखना बेहद तकलीफदेह था, खास कर एक ऐसे नौजवान को देखना जिसके हाथ पांव बेकार हो चुके थे और वह मुंह में ब्रश ले कर पेंट कर रहा था क्योंकि यही वह इकलौता अंग था उसके शरीर का जो काम कर रहा था। एक अन्य सैनिक की मुट्ठियां इतनी भिंच गयी थीं कि उसके नाखून काटने के लिए उसे बेहोश करना पड़ा था ताकि उनके नाखून कहीं उसकी हथेलियों में ही न घुस जायें। कुछ मरीज तो इतनी दयनीय हालत में थे कि मुझे उन्हें देखने ही नहीं दिया गया। अलबत्ता, सासून उनसे मिले। लिम्पने के बाद हम एक साथ ड्राइव करते हुए लंदन में उनके पार्क स्ट्रीट स्थित घर में आ गये जहां पर उन्होंने सहायतार्थ पेंटिंगों की अपनी वार्षिक फोर जॉर्ज प्रदर्शनी का आयोजन किया हुआ था। ये बहुत ही शानदार घर था और उसमें एक बहुत बड़ी पौधशाला थी जिसमें नीले हाइसिंथ के फूल बिछे हुए थे। अगले दिन जब मैंने वहां पर लंच लिया तो पाया कि हाइसिंथ के फूल बदल दिये गये थे और अब किसी और रंग के थे।

हम सर विलियम ऑर्पेन के स्टूडियो में गये जहां पर हमने फिलिप की बहन लेडी रॉकसैवेज का पोर्ट्रेट देखा। ये बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। मैंने तो अपनी तरफ से ऑर्पेन को नकारात्मक प्रतिक्रिया ही दी थी क्योंकि उन्होंने गूंगे की तरह विश्वास न करने जैसे भाव दिखाये थे और मैं समझा था कि ये भाव नकली हैं।

हम एक बार फिर एच जी वेल्स के गांव वाले घर में गये। ये वारविक इस्टेट के काउटेंस पर था और यहां पर वे अपनी पत्नी और अपने दोनों बेटों के साथ रहते थे। उनके बेटे हाल ही में कैम्ब्रिज से आये थे। मुझे रात भर वहां ठहरने का न्यौता दिया गया था।

दोपहर के आसपास कैम्ब्रिज संकाय के तीस से भी ज्यादा लोग आ गये और बगीचे में इस तरह से सट कर बैठ गये मानो स्कूल ग्रुप की फोटो ली जा रही हो। वे गूंगे हो कर मुझे देखे जा रहे थे मानो वे किसी दूसरे नक्षत्र से आये किसी विचित्र प्राणी को देख रहे हों।

शाम के वक्त वेल्स परिवार ने एक खेल खेला जिसका नाम था जानवर, सब्जी या खनिज। ये खेलते हुए मुझे लगा मानो मैं सामान्य ज्ञान की कोई परीक्षा दे रहा हूं। मेरी स्मृति में सबसे ऊपर है वहां की बरफ जैसी ठंडी चादरें और मोमबत्ती ले कर बिस्तर पर सोने जाना। इंगलैंड में बितायी गयी ये मेरी सबसे ठंडी रात थी। सारी रात मैं ठिठुरता रहा था और सुबह जब उठा तो एच जी वेल्स ने मुझसे पूछा कि रात नींद आयी थी क्या।

"हां, ठीक से सोया मैं," मैंने विनम्रता से जवाब दिया।

"हमारे कई मेहमान कहते हैं कि कमरा ठंडा होता है?" उन्होंने भोलेपन से पूछा।

"मैं ये तो नहीं कहूंगा, ठंडा था, हां बर्फीला ज़रूर था।"

वे हँसे।

एच जी वेल्स के घर उस बार जाने की कुछ और स्मृतियां हैं मेरे पास। उनका छोटा सा अध्ययन कक्ष था जो बाहर लगे दरख्तों के कारण अंधेरा सा लगता था। उसकी खिड़की के पास पुराने ढब की एक ढलुवां लिखने की डेस्क थी। उनकी प्यारी सी, सुंदर पत्नी ने मुझे ग्यारहवीं शताब्दी का गिरजाघर दिखाया था। हमने एक नक्काशी करने वाले से बात की थी जो कुछ समाधि शिलाओं से पीतल की छाप ले रहा था। घर के पास झुंड के झुंड हिरण घूम रहे थे। लंच के वक्त सेंट जॉन इर्विन ने रंगीन फोटोग्राफी के रोमांचकारी पहलुओं के बारे में बताया था और मैंने उनके प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर की थी। एच जी ने कैम्ब्रिज के प्रोफेसर के व्याख्यान में से एक पन्ना पढ़ कर सुनाया था और मैंने कहा था कि इसकी पुरातन शैली यही आभास देती है मानो पन्द्रहवीं शताब्दी के किसी भिक्षु ने इसे लिखा हो। और फ्रैंक हैरिस के बारे में वेल्स का किस्सा। वेल्स ने बताया कि संघर्षरत युवा लेखक के रूप में उन्होंने चौथे आयाम को छूते हुए अपनी पहली विज्ञान कहानियों में से एक लिखी थी और उसे उन्होंने कई पत्रिकाओं के सम्पादकों को भेजा था लेकिन सफलता कहीं नहीं मिली थी। आखिर उन्हें फ्रैंक हैरिस से एक पर्ची मिली जिसमें अनुरोध किया गया कि मै उनके दफ्तर में आ कर मिलूं।

"हालांकि उन दिनों मैं कड़की में था," वेल्स ने बताया,"मैंने इस मौके के लिए एक पुराना टॉप हैट खरीदा । हैरिस ने मेरा इन शब्दों के साथ स्वागत किया: 'हे भगवान, तुमने ये हैट कहां से पा लिया और खुदा खैर खरे, तुम पत्रिकाओं में इस तरह के लेख बेचने के बारे में सोच ही कैसे सकते हो।' उन्होंने पांडुलिपि मेज पर पटक दी,'इस कारोबार में बौद्धिकता के लिए कोई जगह नहीं है।' मैंने अपना हैट सावधानी से डेस्क के कोने पर रखा हुआ था और बात करते समय फ्रैंक बार बार अपना हाथ डेस्क पर मार रहे थे और मेरा हैट बार बार इधर उधर उछल रहा था। मैं भयभीत था कि किसी भी पल उनकी मुट्ठी सीधे ही मेरे हैट पर पड़ेगी। अलबत्ता, उन्होंने वह लेख ले लिया था और मुझे और भी काम दिये थे।"

लंदन में मैं लाइम लाइट्स के लेखक थॉमस बर्के से मिला। वे शांत, अभेद्य, छोटे कद के आदमी थे जिनका चेहरा मुझे कीट्स के पोट्रेट की याद दिलाता था। वे बिना हिले डुले बैठे रहते और जिस व्यक्ति से बात कर रहे होते, शायद ही उससे आंखें मिलाते, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया। मुझे लगा कि मैं इस आदमी के सामने अपनी आत्मा का बोझ हल्का करना चाहता हूं और मैंने किया भी। मैं बर्के के साथ अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में था। वेल्स की तुलना में भी अधिक। बर्के और मैं लाइमहाउस और चाइनाटाउन की गलियों में चहलकदमी करते रहते और आपस में एक शब्द भी न बोलते। जगहें घुमाने का उनका यही तरीका था। वे अलग ही तरह के आदमी थे और मैं कभी भी ये समझ नहीं पाया कि वे मेरे बारे में क्या सोचते थे। तीन या चार बरस के बाद ही उन्होंने मुझे अपनी अर्ध आत्मकथात्मक किताब द विंड एंड द रेन भेजी थी तभी मुझे पता चल पाया था कि वे मुझे पसंद करते थे। उनकी युवावस्था भी मेरी अपनी जवानी की तरह रही थी।

जब उत्तेजना की कलई उतरने लगी तो मैंने अपने कज़िन ऑब्रे और उसके परिवार के साथ डिनर लिया। एक दिन बाद मैं कार्नो के दिनों के जिम्मी रसेल से मिलने गया। उसका एक पब था। तब मैं स्टेट्स में वापिस लौटने के बारे में सोचने लगा।

अब मैं ऐसे पलों में पहुंच चुका था जब मुझे लगा कि अगर मैं लंदन में और अधिक रहा तो मैं अपने आपको निकम्मा महसूस करने लगूंगा। मैं इंगलैंड छोड़ने में हिचकिचकाहट महसूस कर रहा था लेकिन प्रसिद्धि के पास अब मुझे देने के लिए और कुछ नहीं बचा था। मैं पूरी संतुष्टि के साथ इंगलैंड से वापिस लौट रहा था हालांकि थोड़ा सा उदास था, क्योंकि मैं अपने पीछे न केवल अमीर और प्रसिद्ध लोगों के द्वारा दिये गये सम्मान और खातिरदारी और प्यार के शोर को पीछे छोड़ कर जा रहा था बल्कि वाटरलू और गरे दू नोर्ड स्टेशनों पर मेरा इंतज़ार करके स्वागत करने के लिए जुटी इंगलैंड और फ्रांस की जनता द्वारा ईमानदारी और प्यार से दिये गये स्नेह और उत्साह भी अब पीछे छूट रहे थे। इस बात की कोफ्त कि आप उनके पास से ले जाये जाये रहे हैं और टैक्सी में ठूंसे जा रहे हैं और इस हालत में भी नहीं हैं कि आप उनकी तरफ हाथ भी हिला सकें, तकलीफ देता है। मानो मैं फूलों को कुचलते हुए चला होऊं। मैं अपना अतीत भी पीछे छोड़ का जा रहा था। केनिंगटन, और 3 पाउनाल टैरेस में जाने से मेरे भीतर कुछ भर गया सा लगता था। अब मैं कैलिफोर्निया लौटते हुए और खुद को काम में झोंक देने के लिए संतुष्ट था क्योंकि काम ही मेरी मुक्ति थी। बाकी सब कुछ दोगलापन था।

*****

जब मैं न्यू यार्क में पहुंचा तो मैरी डोरो ने फोन किया। मैरी डोरो का फोन करना - इस फोन का मतलब कुछ बरस पहले क्या हो सकता था!

मैं उन्हें लंच के लिए ले गया और उसके बाद हम उस नाटक का मैटिनी शो देखने गये जिस में वे अभिनय कर रही थीं: लिलीज़ ऑफ द फील्ड।

शाम को मैंने मैक्स ईस्टमैन, उनकी बहन, क्रिस्टल ईस्टमैन, और जमाइका के कवि और जहाजी मज़दूर क्लाउड मैके के साथ खाना खाया।

न्यू यार्क में अंतिम दिन। मैं फ्रैंक हैरिस के साथ सिंग सिंग जेल गया। रास्ते में उन्होंने बताया कि वे अपनी आत्म कथा पर काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें लगता है कि शुरू करने में बहुत देर हो गयी है,"मैं बूढ़ा हो रहा हूं।" कहा उन्होंने।

"उम्र अपने तरीके से क्षतिपूर्ति भी करती है।" मैंने चुटकी ली,"विवेक के हाथों मार खाना कम ही तकलीफदेह होता है।"

जिम लार्किन, आइरिश विद्रोही और मज़दूरों की यूनियन का संगठनकर्ता सिंग सिंग जेल में पांच बरस की सज़ा काट रहा था और फ्रैंक उससे मिलना चाहते थे। लार्किन बेहद मेधावी वक्ता था और उसे एक पूर्वाग्रही न्यायाधीश और जूरी द्वारा सरकार का तख्ता पलटने के झूठे जुर्म में सज़ा दी गयी थी, ऐसा फ्रैंक का कहना था और बाद में यह उस वक्त सिद्ध भी हो गया था जब गवर्नर अल स्मिथ ने उसकी सज़ा माफ़ कर दी थी लेकिन तब तक लार्किन अपनी सज़ा के अधिकांश बरस काट चुका था।

जेलों का एक अजीब-सा माहौल होता है। मानो वहां पर मानवीय आत्मा को स्थगित कर दिया गया हो। सिंग सिंग जेल में पुरानी कोठरियों के ब्लॉक बाबा आदम के ज़माने के थे। छोटी, संकरी, पत्थर की कोठरियां और हर कोठरी मे चार से छ: तक कैदी एक साथ सोते थे। इस तरह की हौलनाक इमारतें बनाने की सोचने वालों का दिमाग कितना खुराफाती होता होगा। कोठरियां इस वक्त खाली थीं क्योंकि कैदी इस वक्त बाहर एक्सरसाइज वाले अहाते में थे। वहां पर सिर्फ़ एक ही जवान आदमी था जो अपनी खुली कोठरी की दीवार से टिका बैठा उदासी में अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। वार्डन ने समझाया कि लम्बी सज़ा के लिए आने वाले नये कैदियों को पहले बरस के लिए पुरानी कोठरियों वाले ब्लॉक में ही रखा जाता है और उसके बाद ही उन्हें अधिक आधुनिक कोठरियों में डाला जाता है। मैं नौजवान के आगे से कदम रखता हुआ उसकी कोठरी में गया और वहां की तंग जगह के आतंक को देख घबरा उठा,"हे मेरे भगवान," मैंने बाहर कदम रखते हुए तेजी से कहा,"ये तो अमानवीय है।"

"आपका कहना सही है," युवा कैदी कड़ुवाहट के साथ फुसफुसाया।

वार्डन बेचारा भला आदमी था, बताने लगा कि सिंग सिंग जेल में ज़रूरत से ज्यादा भीड़ है तथा और कोठरियां बनाने के लिए पैसे चाहिये लेकिन किसे फुर्सत,"हम पर सबके बाद ही विचार किया जाता है। कोई भी राजनेता जेल की स्थितियों को सुधारने के लिए सोचता नहीं।"

जिस कमरे में मौत की सज़ा दी जाती थी, वह स्कूल के कमरे की तरह था, लम्बोतरा और संकरा, जिसकी छत नीची थी और दोनों तरफ पत्रकारों के लिए लम्बी बेंचें और डेस्क लगे हुए थे और उनके सामने एक सस्ता-सा लकड़ी का ढांचा, बिजली की कुर्सी रखी हुई थी। कुर्सी पर, ऊपर से बिजली की एक नंगी तार लटक रही थी। कमरे में सबसे ज्यादा आतंकित करने वाली बात उसकी सादगी थी। वहां किसी किस्म का कोई ड्रामा नहीं था और ये बात निर्दयता से मुंह ढक कर मारने से भी ज्यादा पापमय थी। कुर्सी के ठीक पीछे लकड़ी का एक पार्टीशन बना हुआ था जहां पर आदमी को मारने के तुरंत ले जाया जाता था और वहां पर उसकी चीर-फाड़ की जाती थी। "अगर कुर्सी ने अपना काम पूरी तरह से नहीं किया होता तो शरीर को शल्य क्रिया द्वारा काट-पीट दिया जाता है।" डॉक्टर ने हमें बताया। और आगे कहा कि खत्म कर दिये जाने के तुरंत बाद मानव शरीर के दिमाग में खून का तापमान 212 डिग्री फारेनहाइट के आस-पास होता है। हम मौत के कमरे से भागते हुए बाहर निकले।

फ्रैंक ने जिम लार्किन के बारे में पूछा तो वार्डन इस बात के लिए तैयार हो गया कि हम उससे मिल सकते हैं। हालांकि ये नियमों के खिलाफ था, वह हमारे लिए ये काम भी कर देगा। लार्किन जूते बनाने की फैक्टरी में था। वहां पर उसने हमारा स्वागत किया। वह एक लम्बा, सुंदर, लगभग छ: फुट चार इंच का शख्स था और उसकी नीली बेधती हुई आंखें लेकिन मोहक मुसकान थी।

हालांकि वह फ्रैंक से मिल कर खुश हुआ लेकिन वह नर्वस और व्यथित था और अपनी बेंच पर वापिस जाने के लिए लालायित था। यहां तक कि वार्डन के आश्वासन से भी उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई। "नैतिक रूप से ये दूसरे कैदियों के हक में गलत होगा अगर मुझे काम के घंटों के दौरान अपने मेहमानों से मिलने दिया जाये," लार्किन ने कहा। फ्रैंक ने जब उससे पूछा कि वहां पर उसके साथ कैसा बरताव होता है और क्या वह उसके लिए कुछ कर सकता है तो उसने बताया कि उसके साथ ठीक-ठाक व्यवहार होता है, बस, वह आयरलैंड में अपनी बीवी और बच्ची के लिए परेशान है। उनके बारे में उसने सज़ा मिलने के बाद से नहीं सुना है। फ्रैंक ने वायदा किया कि वह उसकी मदद करेगा। जब हम वहां से चले तो फ्रैंक ने कहा कि जिम लार्किन जैसे इस बहादुर, जांबाज चरित्र को जेल के कैदी में बदल दिये जाने से उन्हें बहुत हताशा होती है।

जब मैं हॉलीवुड लौटा तो मां से मिलने के लिए बीच में रुक गया। वह बहुत खुश नज़र आ रही थी और उसे मेरी लंदन की विजय यात्रा की सारी खबरें मिल गयी थीं।

"बताओ तो मां, अपने बेटे और इन सारी बेवकूफियों के बारे में तुम क्या सोचती हो?" मैंने शरारतन पूछा।

"ये सब हैरान करने वाला है। लेकिन क्या ये अच्छा नहीं होगा कि तुम अपने असली रूप में रहो बजाये नकली की ड्रामाई दुनिया में रहने के!"

"इसका जवाब तो मां, तुम्हें ही देना चाहिये," मैं हँसा, "इस नकलीपने के लिए तुम्हीं जिम्मेवार हो।"

वह एक पल के लिए रुकी,"काश, तुमने अपने आपको परम पिता परमात्मा की सेवा में लगा दिया होता तो तुम हज़ारों लोगों की ज़िंदगी बचा सकते थे।"

मैं मुस्कुराया,"मैंने आत्माओं को तो बचा लिया होता लेकिन धन न बचा पाता।"

घर की तरफ जाते समय मिसेज रीव्ज़, मेरे प्रबंधक की पत्नी, जोकि मां की देखभाल करती थी, बताने लगीं कि जब से मैं बाहर था, मां की सेहत बहुत अच्छी रही है और उन्हें कोई भी मानसिक दौरा नहीं पड़ा है। वे खुश रहीं और उन्हें जिम्मेवारी का कोई अहसास नहीं था। मिसेज रीव्ज़ को मां के पास जाना अच्छा लगता था क्योंकि मां हमेशा सब का दिल बहलाये रखती थी और अपने अतीत के रोचक किस्से सुना-सुना कर उन्हें हँसी से लोट-पोट कर देती थी। हां, ऐसे भी वक्त आते जब मां जिद पकड़ बैठती।

मिसेज़ रीव्ज़ ने मुझे एक दिन का किस्सा बताया। वे और नर्स उन्हें शहर ले जाना चाहती थीं ताकि उनकी कुछ नयी पोशाकों की नाप जांच सकें। अचानक मां जिद पकड़ बैठीं। वे कार से बाहर ही न आयें। "उन्हें ही मेरे पास आने दो।" मां ने ज़िद पकड़ ली,"इंगलैंड में वे आपकी गाड़ी तक आते हैं।"

आखिरकार वे बाहर आयीं, एक प्यारी-सी लड़की उनकी हाजरी में थी और उन्हें कपड़ों के कई थान दिखा रही थी। उनमें से एक गहरे भूरे रंग का था जो रीव्ज़ और नर्स को अच्छा लगा लेकिन मां ने उसे हिकारत से सरका दिया, और तब बेहद सुसंस्कृत अंग्रेजी स्वर में बोलीं,"नहीं नहीं, ये तो गू के रंग का है, मुझे कोई ज्यादा खिला हुआ रंग दिखाओ।"

उस हक्की-बक्की लड़की ने तुरंत मां की बात मान ली लेकिन उसे अभी भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

मिसेज़ रीव्ज ने मुझे ये भी बताया कि वे मां को ऑस्ट्रिच फार्म में ले कर गयी थीं। वहां का कीपर, जो एक भला और विनम्र आदमी थी, उन्हें अंडे सेने की जगह दिखा रहा था। "ये वाला," ऑस्ट्रिच के एक अंडे को हाथ में ले कर कहा उसने,"एकाध हफ्ते में से लिया जायेगा।" तभी उसका फोन आ गया और उसे बुलवा लिया गया और जाते-जाते क्षमा मांगते हुए वह अंडा नर्स को थमा गया। जैसे ही वह वहां से गया, मां ने नर्स के हाथ से अंडा छीना और कहा,"इसे उस बेचारे ऑस्ट्रिच को वापिस लौटा दो।"

और मां ने अंडे को अहाते में फैंक दिया। अंडा वहां पर ज़ोर की आवाज़ के साथ फूट गया। इससे पहले कि कीपर वापिस आता उन्होंने तुरंत ही मां को थामा और सीधे ही आस्ट्रिच पार्क से बाहर ले आयीं।

"एक गर्म, धूप भरे दिन की बात है," मिसेज रीव्ज़ ने बताया,"वे शोफर और हम सबके लिए आइसक्रीम कोन दिलाने की ज़िद पर अड़ गयीं। एक बार वे कार से एक मैनहोल के पास गुज़र कर जा रहे थे कि एक कामगार का चेहरा ऊपर उभरा। मां कार से बाहर झुकीं ताकि वह कोन उस आदमी को दे सकें, लेकिन कोन को सीधे ही उसके मुंह पर उछाल दिया, "लो बेटे, ये तुम्हें वहां पर ठंडा रखेगा।" कार से उसकी तरफ हाथ हिलाते हुए मां ने कहा।

हालांकि मैं अपने व्यक्तिगत मामले मां से अलग ही रखता था, ऐसा लगता था कि उसे सारी घटनाओं के बारे में खबर मिल जाती थी। मेरी दूसरी पत्नी के साथ घरेलू समस्याओं के दौरान, शतरंज के खेल के बीच उसने अचानक ही कहा, (वैसे वह हर बार जीतती ही थी।) "तुम अपनी इन सारी मुसीबतों से अपने-आप को मुक्त क्यों नहीं कर लेते। पूरब की तरफ निकल जाओ और मौज़-मज़ा करो।"

मैं हैरान हुआ और पूछने लगा कि उसके कहने का मतलब क्या है।

"तुम्हारी निजी ज़िंदगी के बारे में प्रेस में ये बस किस्से!"

मैं हँसा,"मेरी व्यक्तिगत ज़िंदगी के बारे में तुम जानती ही क्या हो?"

उसने कंधे उचकाये,"अगर तुम इतने अलग न होते तो शायद मैं तुम्हें कुछ सलाह दे पाती।"

इस तरह के जुमले वह उछाल दिया करती थी और आगे कुछ नहीं कहती थी।