Ek Duniya Ajnabi - 42 PDF free in Moral Stories in Hindi

एक दुनिया अजनबी - 42

एक दुनिया अजनबी

42-

दरवाज़े पर नॉक हुई तो सबकी आँखें उधर की ओर घूम गईं |

दरवाज़े पर कोई अजनबी था लेकिन वह अजनबी उन तीनों के लिए था, मंदा मौसी के लिए नहीं |

" कम इन जॉन --प्लीज़ --" मंदा मौसी ने भीतर आने वाले व्यक्ति से कहा |

मंदा मौसी का अँग्रेज़ी उच्चारण बता रहा था कि वह कोई नौसीखिया या अभी ताज़ी नकलची स्त्री नहीं थीं | उनका बोलने, उठने-बैठने का, विश करने का सलीका बड़ा शानदार और ठहरा हुआ था | उनका सुथरा व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि जो भी उनके पास आए वह प्रभावित हुए बिना न रह सके |

"हलो--एवरीबडी --" अचानक किसीने गैलरी से कहा | यह कोई विदेशी था |

लीजिए, एक और नया शगूफ़ा ---ये मौसी क्या-क्या कर बैठी हैं ? मौसी बड़े आराम से मुस्कुरा रही थीं |

"ये जॉन डिसूज़ा हैं --एन्ड जॉन दीज़ आर ---"

"मायसेल्फ --प्रखर --" प्रखर ने खड़े होकर उस 'फ़ादर' जैसे व्यक्तित्व को विश किया |

लेकिन वह कोई पादरी नहीं थे। उनका सौम्य व्यक्तित्व पादरी जैसा लगता था |

"सुनीला, निवेदिता ----" मंदा मौसी ने जॉन से दोनों लड़कियों का परिचय करवाया |

"आइ नो ऑल ऑफ़ यू बाय नेम ---प्लीज़ हैव योर सीट्स --आइए, बैठते हैं " कहते हुए स्वयं बैठ गया |

बहुत शुद्ध हिंदी बोल रहे थे जॉन --अपने बारे में कुछ न कहकर वो इन सबको सुनने के लिए उत्सुक दिखाई दे रहे थे |

अब उस हॉलनुमा कमरे में पाँच लोग थे जिनका अभी ही सूक्ष्म सा परिचय हुआ था जॉन डिसूज़ा का खिला हुआ चेहरा देखकर इन तीनों को अच्छा लगा लेकिन सुनीला को ब्रिटिश पसंद न थे |

जॉन डिसूज़ा अँग्रेज़ व भारतीय दोनों थे | माँ के भारतीय होने से उनके भीतर भारत के प्रति असीम लगाव व आकर्षण था | उनके परदादा ब्रिटिश राज में यहाँ आए थे फिर वापिस ही नहीं गए |यद्धपि जॉन की परदादी व दादी भी अँग्रेज़ मूल की थीं | ब्रिटिशर्स के वापिस इंग्लैण्ड लौटने के समय बहुत से अँग्रेज़ परिवार भारत में रह गए थे | उन्हीं में से एक परिवार में जॉन का जन्म हुआ था |

भारतीयता के प्रति उनका परिवार सदा समर्पित रहा |यह उनको देखकर भी लगता था और ऐसा कुछ महसूस नहीं होता था कि वो यहाँ पर ईसाई धर्म की तरफ़दारी के लिए या उसका प्रचार करने के लिए रुके हैं |

भारतीयता से जुड़े, भारतीयता से प्रभावित ऐसे व्यक्ति जो लगभग दस वर्षों से भारत-भ्रमण कर रहे थे |

मंदा मौसी की उनसे मित्रता एफ़.बी से हुई थी और अब साल भर से ऊपर हो गया था वो यहाँ थे |मंदा मौसी से उनके विचार बहुत मिलते थे और दोनों एक ही जाति यानि किन्नर समुदाय के होने के कारण वे एक-दूसरे की भावनाओं को काफ़ी हद तक समझते थे |

बड़ा अजीब लगा सबको यह कहानी सुनकर |

"एफ.बी से इतनी क्लोज़ फ्रैंडशिप ? " प्रखर के मुख से निकल ही गया |

"आपने तो कभी हमें इनके बारे में बताया नहीं ---? "सुनीला ने मौसी से कुछ रोष से कहा |

"हाँ, नहीं बताया, मिलाना चाहती थी, कितनी बार तो फ़ोन किया, कुछ जवाब भी नहीं देती थी, मुझसे शिक़ायत कर रही है -!"मंदा मौसी ने मुस्कुराकर उल्टे उसीसे शिक़ायत कर दी |

मंदा मौसी जानती थीं कि सुनीला को अंग्रेज़ों से कोई ख़ास मुहब्बत नहीं थी, वह अक्सर अँग्रेज़ों के उस व्यवहार के बारे में बात करती थी जब उन्होंने हमारे देश पर राज किया और 'डिवाइड एंड रूल' से देश को तहस-नहस किया था |

"मैं जानता हूँ सुनीला मुझको देखकर बहुत खुश नहीं है ---" जॉन ने बहुत धीमे से मुस्कराकर कहा |

"आपको ऐसा क्यों लगता है ? ---वैसे भी, आप मंदा मौसी के दोस्त हैं | "

"क्योंकि मैं जानता हूँ ---तुम्हारे मन में ब्रिटिशर्स के प्रति रोष है | "

"आप मेरी बात को अदरवाइज़ न लें ---मेरे मन में जो होता है, मैं कह देती हूँ | आप बुरा न मानिए लेकिन सच नहीं कहना चाहिए क्या ? "

"इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है, कोई भी हमारे देश या हमारी चीज़ों पर अपना अधिकार करेगा तो हमको बुरा लगेगा और लगना भी चाहिए --"कुछ रुककर जॉन ने कहा ;

"वैसे, जितना मैं जानता हूँ भारतीय पूरे विश्व को अपना मानते हैं, सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना रखना और उसका सम्मान करना आता है उन्हें फिर ---"

"इसीलिए तो जिसने चाहा, उसने हम पर राज किया। हम अपने ही घर में भिखारी बन गए|"

"मैं मानता हूँ ये ग़लत है पर इसी तरह यदि हम लड़ते रहे तो विश्व शांति का स्वप्न कैसे पूरा होगा ? "

"छोड़िए न, जहाँ धर्म, जाति, वर्गों के टुकड़े होते जा रहे हैं, वहाँ ये सब बातें बेमानी लगती हैं | सब तो बँट चुके हैं | अपनी धरती को हमने अनगिनत टुकड़ों में विभाजित कर दिया है, क्या ख़ाक मुहब्बत फैलाएंगे हम ? विश्व -शांति की बात करते हैं और खानों में बँटते जा रहे हैं, ये कोई नहीं देखता | कब तक राजनीति खेलेंगे ? कब तक ? " सुनीला बहुत पीड़ित थी |

बहुत सी बातों से घायल होकर उसके घाव रिसने लगते थे | यानि आदमी जब तक जीए तब तक अपने घावों की टीस में पीड़ित होता रहे ? कभी कोई तो कभी कोई ---!

"मैं नहीं जानता राजनीति कब ख़त्म होगी, वैसे कब राजनीति नहीं थी ? " प्रखर को अच्छा लग रहा था |

वैसे उसके विचार में ये सारी बातें 'टेबल टॉक्स' होती हैं फिर भी आदमी अपने विचार तो प्रगट करेगा ही | केवल चुप्पी लगाकर तो बैठ नहीं सकता | अब विचार भेद हो तो हो, स्वाभाविक भी होता है विचारा भेद होना |
"ऐसा मत कहो सुनीला, यदि वह वर्ग ही इतनी निराशाजनक बातें करेगा जो जागा हुआ है तो सोते हुओं को कौन जगाएगा ---? " जॉन सुनीला की बातें सुनकर पीड़ित था |

"देखो, एक कोशिश है एक कदम आगे चलने की, कितनी पूरी होगी कोशिश, नहीं जानता लेकिन मैं और मंदा यहाँ पर एक योग और मेडिटेशन का केंद्र खोल रहे हैं, मंदा कबसे तुमसे बात करने की कोशिश कर रही थी ----"जॉन को लगा, इस सूचना से सुनीला प्रसन्न हो जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ |

"भरे पड़े हैं ऐसे केंद्र भारत में --क्या हो रहा है, देख रहे हैं आप ? बस--आश्रम बनते जा रहे हैं और मैडिटेशन और साधना के नाम पर पैसे बटोरे जाते हैं----"निवि भी तो सुनीला के विचारों वाली थी, तभी तो दोनों की मानसिक मित्रता थी |

"मैं भी मंदा की जाति का हूँ, उसी जाति का हूँ जहाँ तुम्हारी माताजी का लालन -पालन बड़े प्यार से हुआ, जहाँ तुम रहती हो, जिनका प्यार पाती हो लेकिन कहीं पर भी जात-बिरादरी और खेमों में बँटने से जीवन स्ट्रॉन्ग नहीं बन सकता | जैसे और लोग कोशिश कर रहे हैं, मैं और मंदा मिलकर भी एक छोटी सी कोशिश कर रहे हैं तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए --"

"नहीं, मुझे परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है लेकिन ज़िंदगी इतनी आसान भी नहीं है जितनी दिखाई देती है ---"

"इस मामले में मैं तुमसे बड़ा हूँ और अनुभव भी ज़्यादा बटोर चुका हूँ ----" जॉन ने शांति से उत्तर दिया |

Rate & Review

मधु सोसि गुप्ता
Ranjan Rathod

Ranjan Rathod 3 years ago

Pramila Kaushik

Pramila Kaushik 3 years ago

सचमुच जाति-बिरादरी और खेमों में बँटने से समाज या देश, कोई भी मज़बूत नहीं बन सकता।

Share

NEW REALESED